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तमिलनाडु में 2020 से लंबित विधेयकों पर राज्यपाल से SC का सवाल, '3 साल से क्या कर रहे थे' - तमिलनाडु राज्यपाल से सवाल

तमिलनाडु में विधेयकों पर मंजूरी देने में राज्यपाल की ओर से देरी पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि राज्यपालों को राजनीतिक पार्टियों द्वारा सुप्रीम कोर्ट का रूख करने तक इंतजार क्यों करना पड़ता है. उन्होंने जनवरी 2020 से लंबित विधेयकों पर राज्यपाल से सवाल किया, "तीन साल से क्या कर रहे थे?" Tamil Nadu govt in pending bills, SC questions Tamil Nadu Governor

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 20, 2023, 3:46 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को विधेयकों के निपटारे में तमिलनाडु के राज्यपाल की ओर से देरी पर सवाल उठाया. शीर्ष अदालत ने कहा कि जनवरी 2020 से लंबित विधेयकों पर अब मंजूरी लग रही है. राज्यपाल तीन साल से क्या कर रहे थे? प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने अटॉर्नी जनरल (एजी) आर वेंकटरमणी से पूछा कि अदालत ने 10 नवंबर को आदेश पारित किया था, और ये बिल जनवरी 2020 से लंबित हैं. इसका मतलब है कि राज्यपाल ने अदालत द्वारा नोटिस जारी किये जाने के बाद ही विधेयकों पर फैसला लिया है. सीजेआई ने यह भी पूछा, "राज्यपाल को राजनीतिक पार्टियों के सुप्रीम कोर्ट जाने तक का इंतजार क्यों करना पड़ रहा है?" तमिलनाडु सरकार की उस याचिका पर सुनवाई एक दिसंबर तक के लिए स्थगित कर दी है.

इस याचिका में राज्य के राज्यपाल आर एन रवि पर विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने में देरी करने का आरोप लगाया गया है. अदालत ने इस तथ्य पर गौर किया कि तमिलनाडु विधानसभा ने राज्यपाल द्वारा लौटाए गए 10 विधेयकों को फिर से पारित किया है. प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने राज्यपाल कार्यालय की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल (एजी) आर वेंकटरमणी की ओर से सुनवाई टालने के आग्रह को मान लिया. पीठ ने कहा, "पहले हम विधेयकों (पुन: पारित) पर राज्यपाल के निर्णय का इंतजार करते हैं." विधेयकों को मंजूरी देने में देरी पर गौर करते हुए पीठ ने कहा कि मुद्दा यह है कि क्या राज्यपाल के कार्यालय को सौंपे गए संवैधानिक कार्यों के निर्वहन में देरी हुई है.

इस पर एजी ने अदालत के समक्ष कहा कि वर्तमान राज्यपाल ने 18 नवंबर, 2021 को कार्यभार संभाला था और देरी के लिए राज्यपाल को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि कई विधेयकों में कई 'जटिल मुद्दे' अंतर्निहित होते हैं.सरकार के सबसे वरिष्ठ कानून अधिकारी ने उन विधेयकों में से एक का जिक्र किया जो राज्य संचालित विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति में राज्यपाल की शक्तियों को छीनने का प्रावधान करता है. पीठ ने कहा कि वर्तमान में केवल पांच विधेयक राज्यपाल के समक्ष सहमति के लिए लंबित हैं क्योंकि विधानसभा ने 10 अन्य विधेयकों को फिर से पारित किया है. पीठ ने कहा, "दोबारा पारित किये जाने के बाद किसी विधेयक की स्थिति एक अर्थ में धन विधेयक के समान हो जाती है. फिर से पारित विधेयकों पर राज्यपाल को नये सिरे से निर्णय लेने दीजिए."

पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 200 का हवाला देते हुए कहा कि राज्यपाल किसी विधेयक पर अनुमति दे सकते हैं/अनुमति रोक सकते हैं या राष्ट्रपति के विचार के लिए उसे आरक्षित कर सकते हैं, वह चाहें तो विधेयक को सदन को पुनर्विचार के लिए वापस कर सकते हैं. पीठ ने सवाल किया कि क्या राज्यपाल विधेयकों को विधानसभा या राष्ट्रपति के पास वापस भेजे बिना इसे अपने पास लंबे समय तक रख सकते हैं, फिर खुद ही कहा कि वह इस मुद्दे पर विचार कर सकती है. तमिलनाडु विधानसभा ने राज्यपाल आरएन रवि द्वारा लौटाए गए 10 विधेयकों को कुछ दिनों बाद शनिवार को एक विशेष विधानसभा सत्र के दौरान फिर से पारित कर दिया था.

पढ़ें : तमिलनाडु में विधेयकों की मंजूरी पर देरी, सुप्रीम कोर्ट ने कहा-'ये चिंता का विषय'

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को विधेयकों के निपटारे में तमिलनाडु के राज्यपाल की ओर से देरी पर सवाल उठाया. शीर्ष अदालत ने कहा कि जनवरी 2020 से लंबित विधेयकों पर अब मंजूरी लग रही है. राज्यपाल तीन साल से क्या कर रहे थे? प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने अटॉर्नी जनरल (एजी) आर वेंकटरमणी से पूछा कि अदालत ने 10 नवंबर को आदेश पारित किया था, और ये बिल जनवरी 2020 से लंबित हैं. इसका मतलब है कि राज्यपाल ने अदालत द्वारा नोटिस जारी किये जाने के बाद ही विधेयकों पर फैसला लिया है. सीजेआई ने यह भी पूछा, "राज्यपाल को राजनीतिक पार्टियों के सुप्रीम कोर्ट जाने तक का इंतजार क्यों करना पड़ रहा है?" तमिलनाडु सरकार की उस याचिका पर सुनवाई एक दिसंबर तक के लिए स्थगित कर दी है.

इस याचिका में राज्य के राज्यपाल आर एन रवि पर विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने में देरी करने का आरोप लगाया गया है. अदालत ने इस तथ्य पर गौर किया कि तमिलनाडु विधानसभा ने राज्यपाल द्वारा लौटाए गए 10 विधेयकों को फिर से पारित किया है. प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने राज्यपाल कार्यालय की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल (एजी) आर वेंकटरमणी की ओर से सुनवाई टालने के आग्रह को मान लिया. पीठ ने कहा, "पहले हम विधेयकों (पुन: पारित) पर राज्यपाल के निर्णय का इंतजार करते हैं." विधेयकों को मंजूरी देने में देरी पर गौर करते हुए पीठ ने कहा कि मुद्दा यह है कि क्या राज्यपाल के कार्यालय को सौंपे गए संवैधानिक कार्यों के निर्वहन में देरी हुई है.

इस पर एजी ने अदालत के समक्ष कहा कि वर्तमान राज्यपाल ने 18 नवंबर, 2021 को कार्यभार संभाला था और देरी के लिए राज्यपाल को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि कई विधेयकों में कई 'जटिल मुद्दे' अंतर्निहित होते हैं.सरकार के सबसे वरिष्ठ कानून अधिकारी ने उन विधेयकों में से एक का जिक्र किया जो राज्य संचालित विश्वविद्यालयों में कुलपतियों की नियुक्ति में राज्यपाल की शक्तियों को छीनने का प्रावधान करता है. पीठ ने कहा कि वर्तमान में केवल पांच विधेयक राज्यपाल के समक्ष सहमति के लिए लंबित हैं क्योंकि विधानसभा ने 10 अन्य विधेयकों को फिर से पारित किया है. पीठ ने कहा, "दोबारा पारित किये जाने के बाद किसी विधेयक की स्थिति एक अर्थ में धन विधेयक के समान हो जाती है. फिर से पारित विधेयकों पर राज्यपाल को नये सिरे से निर्णय लेने दीजिए."

पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 200 का हवाला देते हुए कहा कि राज्यपाल किसी विधेयक पर अनुमति दे सकते हैं/अनुमति रोक सकते हैं या राष्ट्रपति के विचार के लिए उसे आरक्षित कर सकते हैं, वह चाहें तो विधेयक को सदन को पुनर्विचार के लिए वापस कर सकते हैं. पीठ ने सवाल किया कि क्या राज्यपाल विधेयकों को विधानसभा या राष्ट्रपति के पास वापस भेजे बिना इसे अपने पास लंबे समय तक रख सकते हैं, फिर खुद ही कहा कि वह इस मुद्दे पर विचार कर सकती है. तमिलनाडु विधानसभा ने राज्यपाल आरएन रवि द्वारा लौटाए गए 10 विधेयकों को कुछ दिनों बाद शनिवार को एक विशेष विधानसभा सत्र के दौरान फिर से पारित कर दिया था.

पढ़ें : तमिलनाडु में विधेयकों की मंजूरी पर देरी, सुप्रीम कोर्ट ने कहा-'ये चिंता का विषय'

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