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SC On Pregnancy Termination: सुप्रीम कोर्ट ने भ्रूण की स्थिति पर एम्स मेडिकल बोर्ड से मांगी रिपोर्ट, अगली सुनवाई 16 अक्टूबर को - सुप्रीम कोर्ट गर्भपात याचिका

उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के मेडिकल बोर्ड से रिपोर्ट मांगी कि क्या गर्भपात की अनुमति मांग (sc on abortion case) रही विवाहित महिला का 26 सप्ताह का भ्रूण किसी असामान्यता से पीड़ित है. मेडिकल बोर्ड को महिला के स्वास्थ्य स्थिति पर रिपोर्ट दो दिन बाद पेश करने को कहा. इस मामले की अगली सुनवाई 16 अक्टूबर को होगी.

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 13, 2023, 2:18 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को विवाहिता की 26 सप्ताह के गर्भ को गिराने की याचिका (abortion case in sc) की चौथे दिन की सुनवाई की. इस दौरान शीर्ष अदालत ने एम्स, नई दिल्ली के मेडिकल बोर्ड से भ्रूण में किसी प्रकार की असामन्यता की जांच करने को कहा. साथ ही महिला की स्वास्थ्य स्थिति की जांच करने को भी कहा. गौरतलब है कि महिला ने अवसाद और गंभीर प्रसवोत्तर मनोविकृति से पीड़ित होने का दावा किया था.

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ केंद्र के आवेदन पर दलीलें सुन रही थी, जिसमें शीर्ष अदालत के 9 अक्टूबर के आदेश को वापस लेने की मांग की गई थी. इस आदेश में दो बच्चों की मां तथा 27 वर्षीय महिला को एम्स में गर्भपात कराने की अनुमति दी गई थी. पीठ ने कहा, "हालांकि एम्स द्वारा सौंपी गई पिछली रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि भ्रूण सामान्य है. इसके बावजूद, मामले में किसी प्रकार का संदेह न रहे, इसलिए, हम अनुरोध करते हैं कि उपरोक्त पहलू पर एक और रिपोर्ट पेश किया जाए." इस पीठ में न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल हैं.

पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील अमित मिश्रा की दलीलों पर गौर किया कि याचिकाकर्ता का 10 अक्टूबर 2022 से प्रसवोत्तर मनोविकृति के लक्षणों का इलाज चल रहा था. इसने मेडिकल बोर्ड से शीर्ष अदालत को यह बताने के लिए कहा कि क्या यह संकेत देने के लिए कोई सबूत है कि याचिकाकर्ता की गर्भावस्था की निरंतरता उन कथित स्थितियों के लिए निर्धारित दवाओं से खतरे में पड़ जाएगी, जिनसे वह पीड़ित बताई गई है.

इसमें कहा गया कि एम्स के डॉक्टर याचिकाकर्ता की मानसिक और शारीरिक स्थिति का अपना विशेष मूल्यांकन करने के लिए स्वतंत्र होंगे. पीठ ने कहा, "ऐसा करने पर, हम डॉक्टरों से इस अदालत को अवगत कराने का अनुरोध करते हैं, यदि याचिकाकर्ता प्रसवोत्तर मनोविकृति से पीड़ित है, तो क्या गर्भावस्था के अनुरूप दवा का कोई वैकल्पिक व्यवस्था हो सकती है, जिससे भ्रूण या महिला को किसी प्रकार का खतरा न हो. शीर्ष अदालत ने मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट दो दिन बाद होने वाली सुनवाई में पेश करने को कहा. इस याचिका की अगली सुनवाई 16 अक्टूबर को होगी.

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नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को विवाहिता की 26 सप्ताह के गर्भ को गिराने की याचिका (abortion case in sc) की चौथे दिन की सुनवाई की. इस दौरान शीर्ष अदालत ने एम्स, नई दिल्ली के मेडिकल बोर्ड से भ्रूण में किसी प्रकार की असामन्यता की जांच करने को कहा. साथ ही महिला की स्वास्थ्य स्थिति की जांच करने को भी कहा. गौरतलब है कि महिला ने अवसाद और गंभीर प्रसवोत्तर मनोविकृति से पीड़ित होने का दावा किया था.

मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ केंद्र के आवेदन पर दलीलें सुन रही थी, जिसमें शीर्ष अदालत के 9 अक्टूबर के आदेश को वापस लेने की मांग की गई थी. इस आदेश में दो बच्चों की मां तथा 27 वर्षीय महिला को एम्स में गर्भपात कराने की अनुमति दी गई थी. पीठ ने कहा, "हालांकि एम्स द्वारा सौंपी गई पिछली रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि भ्रूण सामान्य है. इसके बावजूद, मामले में किसी प्रकार का संदेह न रहे, इसलिए, हम अनुरोध करते हैं कि उपरोक्त पहलू पर एक और रिपोर्ट पेश किया जाए." इस पीठ में न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा भी शामिल हैं.

पीठ ने याचिकाकर्ता के वकील अमित मिश्रा की दलीलों पर गौर किया कि याचिकाकर्ता का 10 अक्टूबर 2022 से प्रसवोत्तर मनोविकृति के लक्षणों का इलाज चल रहा था. इसने मेडिकल बोर्ड से शीर्ष अदालत को यह बताने के लिए कहा कि क्या यह संकेत देने के लिए कोई सबूत है कि याचिकाकर्ता की गर्भावस्था की निरंतरता उन कथित स्थितियों के लिए निर्धारित दवाओं से खतरे में पड़ जाएगी, जिनसे वह पीड़ित बताई गई है.

इसमें कहा गया कि एम्स के डॉक्टर याचिकाकर्ता की मानसिक और शारीरिक स्थिति का अपना विशेष मूल्यांकन करने के लिए स्वतंत्र होंगे. पीठ ने कहा, "ऐसा करने पर, हम डॉक्टरों से इस अदालत को अवगत कराने का अनुरोध करते हैं, यदि याचिकाकर्ता प्रसवोत्तर मनोविकृति से पीड़ित है, तो क्या गर्भावस्था के अनुरूप दवा का कोई वैकल्पिक व्यवस्था हो सकती है, जिससे भ्रूण या महिला को किसी प्रकार का खतरा न हो. शीर्ष अदालत ने मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट दो दिन बाद होने वाली सुनवाई में पेश करने को कहा. इस याचिका की अगली सुनवाई 16 अक्टूबर को होगी.

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