नई दिल्ली : न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ ने इस सप्ताह की शुरुआत में कहा था कि राज्य में लगभग 19000 बच्चे हैं जिनमें से 593 बच्चों ने कोविड-19 के कारण अपने माता-पिता को खो दिया. उनकी सहायता के लिए राशि का प्रयोग किया जाना चाहिए.
इस साल की शुरुआत में महामारी की दूसरी लहर के दौरान सबसे बुरी तरह प्रभावित राज्यों में से एक महाराष्ट्र ने मेडिकल कॉलेज प्रवेश से संबंधित एक पुराने मामले में शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री में पैसा जमा किया था.
सुप्रीम कोर्ट ने उल्लेख किया कि महाराष्ट्र सरकार ने 17 जून 2021 को एक नीति तैयार की, जिसमें परिकल्पना की गई थी कि 5 लाख रुपये उन बच्चों के लिए सावधि जमा में रखे जाएंगे, जिन्होंने महामारी के कारण अपने माता-पिता दोनों को खो दिया है. यह पैसा उन्हें परिपक्वता आयु पूरी होने के बाद मिलेगी.
पीठ ने कहा कि 20 करोड़ रुपये की राशि जो (महाराष्ट्र सरकार द्वारा) 2 दिसंबर 2016 के आदेश के अनुसार जमा की गई थी, ब्याज की वृद्धि के परिणामस्वरूप बढ़कर 25,53,25,548 रुपये हो गई है. शीर्ष अदालत ने कहा कि इससे पहले कि वह महाराष्ट्र राज्य को धन के वितरण का निर्देश दे, वह चाहता है कि हलफनामे पर एक ठोस बयान दिया जाए कि किस तरह से या किसी की मृत्यु से प्रभावित बच्चों के लाभ के लिए धन का उपयोग किया जाएगा.
महाराष्ट्र राज्य के सचिव, महिला एवं बाल विकास तीन सप्ताह की अवधि के भीतर एक हलफनामा दाखिल करेंगे. इसके बाद अदालत प्रस्ताव की जांच के बाद उचित आदेश पारित करेगी. महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश हुए अधिवक्ता सचिन पाटिल ने एक नोट प्रस्तुत किया जिसमें यह विवरण दिया गया था कि बच्चों के हित में धन का उपयोग कैसे किया जाएगा.
उन्होंने कहा कि एक लंबित मामले में शीर्ष अदालत को महाराष्ट्र सरकार द्वारा अवगत कराया गया था कि 593 बच्चों ने अपने माता-पिता दोनों को खो दिया है और डेटा राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की बाल स्वराज वेबसाइट पर अपलोड किया गया है. उन्होंने कहा कि अनुमानित आंकड़ा आगे सत्यापन के अधीन हैं. शीर्ष अदालत ने पाटिल की सहायता और उनके सुझाव की सराहना की.
शीर्ष अदालत ने मामले को 4 अक्टूबर को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है. 2 दिसंबर 2016 को शीर्ष अदालत ने एक मेडिकल कॉलेज में प्रवेश पर बॉम्बे हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ छात्रों की अपील पर सुनवाई करते हुए कहा था कि चूंकि महाराष्ट्र राज्य समर्थन कर रहा है.
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इसलिए छात्रों के मामले में 20 करोड़ रुपये की राशि 15 दिसंबर 2016 तक इस अदालत में जमा कराएं. 16 दिसंबर 2016 को शीर्ष अदालत ने छात्रों की अपील को खारिज करते हुए निर्देश दिया कि राशि किशोर न्याय के मुद्दों के उपयोग के लिए उपलब्ध रखी जाए.