ETV Bharat / bharat

उच्चतम न्यायालय ने औपनिवेशिक काल के राजद्रोह के प्रावधान को चुनौती देने वाली याचिका खारिज की

उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को राजद्रोह के प्रावधान की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एक याचिका को खारिज कर दिया है.

उच्चतम न्यायालय
उच्चतम न्यायालय
author img

By

Published : Feb 9, 2021, 10:55 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत औपनिवेशिक काल के राजद्रोह के प्रावधान की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एक याचिका मंगलवार को खारिज कर दी. याचिका के जरिए यह दलील दी गई थी कि इस कानून का इस्तेमाल नागरिकों की वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंटने के लिए किया जा रहा है.

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना तथा न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यन की पीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि कार्रवाई करने का कोई उद्देश्य नहीं है और याचिकाकार्ता प्रभावित पक्ष नहीं है. संक्षिप्त सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता अनूप जॉर्ज चौधरी ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश होते हुए कहा, यह जनहित का विषय है और लोगों को इस प्रावधान के तहत आरोपित किया जा रहा है.

इस पर पीठ ने टिप्पणी की, उपयुक्त हेतुवाद के बगैर किसी कानून को चुनौती नहीं दी जा सकती है. पीठ ने चौधरी से कहा इस धारा के तहत आप किसी मुकदमे का सामना नहीं कर रहे हैं. क्या हेतुवाद है? हमारे पास अभी (इससे संबद्ध) कोई मामला नहीं है, जहां कोई व्यक्ति जेल में सड़ रहा हो. यदि कोई जेल में है तो हम विचार करेंगे. याचिका खारिज की जाती है.

शीर्ष न्यायालय में तीन अधिवक्ताओं, आदित्य रंजन, वरुण ठाकुर और वी एलंचेजियान ने यह याचिका दायर कर दलील दी थी कि यदि लोग सत्ता में मौजूद सरकारों के खिलाफ असहमति प्रकट करना चाहते हैं, तो अब भी आईपीसी की धारा 124 ए (राजद्रोह) का इस्तेमाल देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंटने के लिए किया जा रहा है. वहीं, इस कानून का इस्तेमाल ब्रिटिश शासन ने महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक के खिलाफ किया था.

पढ़ें : बजट सत्र के आठवें दिन अविस्मरणीय लम्हों की साक्षी बनी राज्य सभा, कार्यवाही कल तक स्थगित

याचिका में कहा गया था कि किसी नागरिक पर राजद्रोह का आरोप लगाये जाने से उसकी और उसके परिवार के सदस्यों के गरिमापूर्ण जीवन की स्वतंत्रता सदा के लिए खतरे में पड़ जाती है. इसमें कहा गया है कि ऐसे व्यक्ति को मीडिया देशद्रोही के तौर पर पेश करता है, जबकि सरकार विरोधी गतिविधियों का अर्थ राजद्रोह है और इसे देशद्रोह के समान नहीं कहा जा सकता.

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत औपनिवेशिक काल के राजद्रोह के प्रावधान की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एक याचिका मंगलवार को खारिज कर दी. याचिका के जरिए यह दलील दी गई थी कि इस कानून का इस्तेमाल नागरिकों की वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंटने के लिए किया जा रहा है.

प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना तथा न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यन की पीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि कार्रवाई करने का कोई उद्देश्य नहीं है और याचिकाकार्ता प्रभावित पक्ष नहीं है. संक्षिप्त सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता अनूप जॉर्ज चौधरी ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश होते हुए कहा, यह जनहित का विषय है और लोगों को इस प्रावधान के तहत आरोपित किया जा रहा है.

इस पर पीठ ने टिप्पणी की, उपयुक्त हेतुवाद के बगैर किसी कानून को चुनौती नहीं दी जा सकती है. पीठ ने चौधरी से कहा इस धारा के तहत आप किसी मुकदमे का सामना नहीं कर रहे हैं. क्या हेतुवाद है? हमारे पास अभी (इससे संबद्ध) कोई मामला नहीं है, जहां कोई व्यक्ति जेल में सड़ रहा हो. यदि कोई जेल में है तो हम विचार करेंगे. याचिका खारिज की जाती है.

शीर्ष न्यायालय में तीन अधिवक्ताओं, आदित्य रंजन, वरुण ठाकुर और वी एलंचेजियान ने यह याचिका दायर कर दलील दी थी कि यदि लोग सत्ता में मौजूद सरकारों के खिलाफ असहमति प्रकट करना चाहते हैं, तो अब भी आईपीसी की धारा 124 ए (राजद्रोह) का इस्तेमाल देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंटने के लिए किया जा रहा है. वहीं, इस कानून का इस्तेमाल ब्रिटिश शासन ने महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक के खिलाफ किया था.

पढ़ें : बजट सत्र के आठवें दिन अविस्मरणीय लम्हों की साक्षी बनी राज्य सभा, कार्यवाही कल तक स्थगित

याचिका में कहा गया था कि किसी नागरिक पर राजद्रोह का आरोप लगाये जाने से उसकी और उसके परिवार के सदस्यों के गरिमापूर्ण जीवन की स्वतंत्रता सदा के लिए खतरे में पड़ जाती है. इसमें कहा गया है कि ऐसे व्यक्ति को मीडिया देशद्रोही के तौर पर पेश करता है, जबकि सरकार विरोधी गतिविधियों का अर्थ राजद्रोह है और इसे देशद्रोह के समान नहीं कहा जा सकता.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.