नई दिल्ली : भीमा कोरेगांव मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आज (बुधवार) एक्टिविस्ट गौतम नवलखा की जमानत याचिका खारिज कर दी है, जिसके बाद अब बॉम्बे हाईकोर्ट का फैसला बरकरार रहेगा.
गौतम नवलखा की ओर से याचिका में कहा गया था कि गिरफ्तार करने के 90 दिन के भीतर चार्जशीट दाखिल नहीं हुई थी. बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा था कि 2018 में घर में नजरबंदी के दौरान बिताए गए 34 दिन डिफॉल्ट जमानत के लिए नहीं गिने जा सकते हैं.
न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति के एम जोसेफ की एक पीठ ने बंबई उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ नवलखा कि याचिका खारिज कर दी. उच्च न्यायालय ने मामले में नवलखा को जमानत देने से इनकार कर दिया था.
शीर्ष अदालत ने नवलखा की जमानत याचिका पर 26 मार्च को फैसला सुरक्षित रखा था.
उच्चतम न्यायालय ने तीन मार्च को नवलखा की उस जमानत याचिका पर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) से जवाब मांगा था, जिसमें दावा किया गया था कि मामले में आरोपपत्र तय समयसीमा में दायर नहीं किया गया.
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नवलखा के खिलाफ जनवरी 2020 को दोबारा प्राथमिकी दर्ज की गई थी और पिछले साल 14 अप्रैल को ही उन्होंने एनआईए के समक्ष आत्मसमर्पण किया था. वह 25 अप्रैल तक 11 दिन के लिए एनआईए की हिरासत में रहे और उसके बाद से ही नवी मुंबई के तलोजा जेल में न्यायिक हिरासत में हैं.
पुलिस के अनुसार, कुछ कार्यकर्ताओं ने 31 दिसम्बर 2017 को पुणे में एल्गार परिषद की बैठक में कथित रूप से उत्तेजक और भड़काऊ भाषण दिया था, जिससे अगले दिन जिले के कोरेगांव भीमा में हिंसा भड़की थी.
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पुलिस ने यह भी आरोप लगाया है कि मामले में नवलखा और अन्य आरोपितों के माओवादियों से संबंध थे और वे सरकार के खिलाफ काम कर रहे थे.
बता दें कि नवलखा और अन्य आरोपितों पर गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों के तहत मामले दर्ज किये गये थे. नवलखा के अलावा वारवरा राव, अरुण फरेरा, वर्नोन गोंसाल्वेस और सुधा भारद्वाज चार अन्य आरोपित हैं.