सतना। 13 प्रकार की लौकियों के साथ 250 से अधिक औषधीय पौधों का अनुपम संग्रह करने वाले सतना जिले के किसान ने देशी म्यूजियम बनाया है. किसान राम लोटन कुशवाहा, जिन्होंने लौकियों को उनके आकार के आधार पर नाम दिया है. राम लोटन अपने खेतों में साल भर में कई तरह की सब्जियां उगाते हैं, जो अपने आप में बेहद ही खास होती हैं. 1 एकड़ से कम के खेत में औषधीय गुणों से भरपूर जड़ी बूटियों का संरक्षण एवं संवर्धन कर किसान राम लोटन ने देशी म्यूजियम बनाया है. देश के पीएम नरेंद्र मोदी भी मन की बात में किसान राम लोटन की सराहना कर चुके हैं.
औषधीय पौधों का अनुपम संग्रह: सतना जिला मुख्यालय से महज 40 किलोमीटर दूर उचेहरा विकासखंड के अतर्वेदिया गांव के निवासी किसान रामलोटन कुशवाहा के यहां 12 प्रकार की लौकियों के साथ अपनी बगिया में 250 से भी अधिक औषधीय पौधों का अनुपम संग्रह है. रामलोटन साल भर में कई तरह की सब्जियां उगाते हैं, जो बेहद खास होती है. 12 प्रकार की लौकियां उनके खेतों में है, रामलोटन ने लौकियों को उनके आकार के आधार पर नाम दिए गए हैं, जैसे बीन वाली लौकी, अजगर लौकी, तंबूरा लौकी. इनमें से कुछ खाने के काम आती हैं, बाकी की लौकियां औषधीय उपयोग में लाई जाती हैं. रामलोटन के ग्राम पंचायत की कुल आबादी करीब 6 हजार से अधिक है. रामलोटन कुशवाहा को क्षेत्र में 'वैद्य जी' कहा जाता हैं.
आयुर्वेद के प्रति अगाध प्रेम: रामलोटन कुशवाहा की मानें तो 63 साल पहले उनका जन्म गांव के किसान कताहुरा कुशवाहा के घर हुआ था. उनकी पढ़ाई के प्रति कोई रुचि नहीं थी और पढ़े भी नहीं. पिता का आयुर्वेद के प्रति अगाध प्रेम उन्हें इस ओर खींच लाया. जड़ी बूटियों से सजी रहने वाली उनकी बगिया में राम लोटन 25 साल की उम्र में लग गए, तब से आज तक वह वहीं रमे हैं. हालांकि उनका और पिता का साथ बहुत दिनों तक नहीं रहा. वह बताते हैं कि उम्र करीब 8-9 साल रही होगी, तब पिता का साया सिर से उठ गया. राम लोटन के 3 पुत्र और एक पुत्री हैं. पुत्री का ब्याह कर दिया है, बड़े पुत्र दयानंद को इसमें कोई रुचि नहीं हैं, जबकि मझले शिवानंद और छोटे रामानंद को आयुर्वेद और जड़ी बूटियों के संग्रह में गजब की रुचि है.
बैगाओं से ली आयुर्वेदिक औषधियों की जानकारी: रामलोटन पढ़े लिखे नहीं हैं, लेकिन फिर भी जड़ी बूटियों और आयुर्वेदिक औषधियों की पहचान अच्छे से कर लेते हैं. रामलोटन कुशवाहा कि माने तो उन्होनें इसकी जानकारी बैगाओं से ली है. वह जंगल में होने वाली आयुर्वेदिक औषधियों की जानकारी बखूबी रखते हैं, इसलिए उनसे मिलने जाता रहते हैं, वह भी आते रहते हैं. मध्यप्रदेश के बालाघाट, उमरिया, शहडोल, निमाड़, भिंड आदि और छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा, बस्तर के इलाकों में रहने वाले बैगाओं से जड़ी बूटियों की पहचान और गुण की जानकारी मिलती है.
एक एकड़ से भी कम खेत में जड़ी बूटियों का संरक्षण: किसान रामलोटन की करीब 20 वर्ष पहले पहले दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में योग गुरु बाबा रामदेव से भी भेंट हुई थी, वहां योग गुरु ने उन्हें अपने साथ काम करने का अवसर देना चाहा, जिसे रामलोटन ने स्वीकार नहीं किया. रामलोटन ने एक एकड़ से भी कम के खेत में औषधीय गुणों से भरी जड़ी बूटियों का संरक्षण और संवर्धन कर रहे हैं. रामलोटन की बगिया में मौजूदा समय में 200 से अधिक औषधीय पौधों का अनुपम संग्रह है. रामलोटन कुशवाहा बताते हैं कि जंगली धनिया, जंगली मिर्ची के अलावा गोमुख बैगन, जंगली पालक, सुई धागा, हाथी पंजा, सिंदूर, अजवाइन, शक्कर पत्ती(स्टीविया), अजूबी, बालम खीरा, पिपरमिंट, गरुड़, सोनचट्टा, सफेद और काली मूसली और पारस पीपल जैसी तमाम औषधीय गुण के पौधे रोपे गए हैं. इसके अलावा इसकी नर्सरी भी बना रखी है, जरूरतमंदों को देते भी हैं.
जड़ी बूटियों को खोजने जगह-जगह जाते हैं रामलोटन: रामलोटन बताते हैं कि जड़ी बूटियों को खोजने के लिए कहीं भी जा सकते हैं. रामलोटन ब्राह्मी के लिए हिमालय तक गए हैं, वहां से ब्राह्मी ले आए. लोग कहते रहे कि हिमालय के पौधे यहां कैसे हो सकेंगे, लेकिन उनकी बगिया में सब कुछ वैसा ही फलफूल रहा है. इसके अलावा अमरकंटक सहित अन्य जंगलों में भी भटके हैं. रामलोटन बताते हैं कि सुई धागा नामक जड़ी बूटी कटे-फटे को जोड़ देती है, राजाओं के जमाने में तलवार चलती थी, ऐसे कट जाना सामान्य था. यही सुई धागा सिलने का काम करती थी, बस इसे काट लें और दूध के साथ बांट लें, जहां कटा है वहां लगा लें, 2 घंटे के अंदर पता चल जाएगा कि क्या असर करती है. इसी तरह कई अन्य जड़ी बूटियों का उपयोग भी उन्होने बताया, उनकी नर्सरी में सबसे खास सफेद पलाश है. जो बहुत कम ही देखने को मिलता है, सफेद पलाश को बचाने के लिए वो उसकी नई पौध भी तैयार कर रहे हैं.