अजमेर: शहर के मध्य में स्थित अजमेर किले को अकबर के शासनकाल में बनाया गया था. अब यहां राजकीय संग्रहालय है. भारत में अंग्रेजों की गुलामी का पहला अध्याय अजमेर किले से ही शुरू हुआ था.
साल 1616 में इंग्लैंड के राजा जेम्स प्रथम के निर्देश पर थॉमस रो ने इस किले में मुगल सम्राट जहांगीर से मुलाकात की थी. इस मुलाकात का मकसद एक व्यावसायिक संधि की अनुमति लेना था. ईस्ट इंडिया कंपनी सूरत और भारत के दूसरे इलाकों में कारखाना लगाने के लिए विशेष अधिकार चाहती थी. कई बैठकों के बाद जहांगीर ने प्रस्ताव पर सहमति जताई. इस एक समझौते ने भारत का इतिहास हमेशा के लिए बदल दिया.
जब यह समझौता हुआ, उस वक़्त कोई नहीं जानता था कि व्यापार और कारखाने स्थापित करने आई ईस्ट इंडिया कंपनी पूरे देश में अपना साम्राज्य खड़ा कर लेगी. धीरे-धीरे ईस्ट इंडिया कंपनी ने पूरे देश में अपना जाल बिछा दिया और देश में अंग्रेजों की हुकूमत कायम हो गई.
पृथ्वीराज चौहान की नगरी अजमेर में चौहान वंश के बाद राजपूत, मुगल, मराठा और अंग्रेजों की हुकूमत रही. यह किला भी कई ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह रहा है. अकबर ने इसी किले से हल्दीघाटी युद्ध की मॉनिटरिंग की थी और मानसिंह को युद्ध के लिए भेजा था.
अजमेर उत्तर भारत में क्रांतिकारियों का बड़ा केंद्र भी रहा है. यहां महात्मा गांधी, अर्जुन लाल सेठी, चंद्रशेखर आजाद जैसे महान देशभक्त भी आए. यहां से कई महत्वपूर्ण घटनाओं का सूत्रपात भी हुआ. अजमेर का यह किला देश को आज़ादी मिलने के बाद स्वतंत्र भारत के जश्न का गवाह भी बना. 14 अगस्त 1947 को रात 12 बजे आज़ादी मिलने का ऐलान हुआ, तब तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष जीतमल लुणिया ने सैकड़ों लोगों की मौजूदगी में इस किले पर लगे ब्रिटिश राज के झंडे को उतारकर तिरंगा झंडा फहरा कर जश्न मनाया था.
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राजस्थान के मध्य होने की वजह से अजमेर का महत्व काफी रहा है. यहां से सम्पूर्ण राजपूताने का नियंत्रण आसान था. यही वजह रही कि अजमेर न सिर्फ मुगलों बल्कि अंग्रेजों की भी पहली पसंद रहा. लेकिन अंग्रेजों की गुलामी का पहला अध्याय भी यहीं से शुरू हुआ था.