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यहां होली के बाद शीतला अष्टमी पर निकाली जाती है 'मुर्दे की सवारी', जाने क्या है ये अनूठी परंपरा

यूं तो देश भर में होली पर अनेकों परंपराएं प्रचलित हैं जो आज भी लोगों को वहां की संस्कृति से जोड़े हुए हैं. कुछ ऐसी ही परंपरा राजस्थान के भीलवाड़ा जिले में भी है जहां होली के बाद शीतला अष्टमी के दिन मुर्दे की सवारी निकाली जाती है. जाने क्या है इस अनूठी परंपरा का उद्देश्य.

भीलवाड़ा में मुर्दे की सवारी
भीलवाड़ा में मुर्दे की सवारी
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Published : Mar 14, 2023, 4:38 PM IST

Updated : Mar 15, 2023, 9:27 AM IST

भीलवाड़ा में मुर्दे की सवारी

भीलवाड़ा. वैसे तो पूरे राजस्थान में शीतला अष्टमी का त्योहार मनाया जाता है मगर वस्त्रनगरी भीलवाड़ा में शीतला अष्टमी का त्यौहार अनूठे अंदाज में मनाया जाता है. यहां शीतला अष्टमी पर भीलवाड़ा शहर में 'मुर्दे की सवारी' निकाली जाती है. यह परंपरा पिछले 425 सालों से निभाई जा रही है. मुर्दे की सवारी होली के 8 दिन बाद निकाली जाती है जिसकी शुरुआत शहर के 'चित्तौड़ वालों की हवेली' स्थान से होती है. इस आयोजन में एक जीवित युवक को अर्थी पर लेटाकर ढोल-नगाड़ों के साथ मुर्दे की सवारी निकाली जाती है. माना जाता है कि वर्ष भर हम जो भी गलतियां करते हैं या हमारे अंदर जो भी बुराई आती है उसे प्रतीकात्मक मुर्दे के दहन के साथ दूर किया जा सके.

इसमें शहर के अलावा आसपास के जिलों से भी लोग आते हैं और जमकर रंग-गुलाल उड़ाते हुए आगे बढ़ते जाते हैं. इस दौरान यहां पर जमकर अपशब्‍दों का प्रयोग किया जाता है जिस कारण इस कार्यक्रम में महिलाओं का प्रवेश वर्जित रखा जाता है. यह सवारी भीलवाड़ा रेलवे स्‍टेशन चौराहा, गोल प्‍याऊ चौराहा, भीमगंज थाना होते हुए बड़ा मंदिर पहुंचती है. यहां पहुंचते ही अर्थी पर लेटा व्यक्ति नीचे कुदकर भाग जाता है और प्रतीक के तौर पर अर्थी का बड़ा मंदिर के पीछे दाह संस्‍कार कर दिया जाता है.

पढ़ें. Rang Panchmi in Udaipur : भगवान जगदीश के दर पहुंचे भक्त, इष्ट देव संग जमकर खेली होली

425 सालों से निभाई जा रही परंपरा
भीलवाड़ा निवासी जानकी लाल सुखवाल का कहना है कि हमारे पूर्वज बताते रहे हैं कि भीलवाड़ा शहर का निर्माण विक्रम संवत् 1655 में हुआ था. तब मेवाड़ रियासत के राजा ने भोमियों का रावला के ठाकुर को ताम्रपत्र व पट्टा प्रदान किया था. इसका प्रमाण रावले में आज भी मौजूद है और तब से इस परंपरा की शुरुआत हुई है. आज इसे 425 साल हो चुके हैं और यह परंपरा आज भी जारी है. इस परंपरा के अनुसार शीतला अष्‍टमी से पूर्व शहर में दो स्‍थानों पर भैरव नाथ की स्‍थापना होती है. इसके बाद पंच पटेल बड़ा मंदिर में एक बैठक रखी जाती है जहां लोगों से मुर्दे की सवारी के लिए चन्‍दा एकत्रित किया जाता है. ऐसी मान्‍यता है कि जो भी इसमें चन्‍दा देता है उसके घर सुख-शांति और लक्ष्‍मी का वास होता है. उसके बाद इसी यात्रा की तैयारी की जाती है और सभी पंच चित्तौड़ वालों की हवेली जाते हैं जहां से मुर्दे की सवारी निकाली जाती है.

पढ़ें. राजस्थान के इस गांव में खेली जाती है बारूदों से होली!

शहर के वरिष्ठ नागरिक मुरली मनोहर सेन ने कहा कि इस शव यात्रा का मुख्‍य उद्देश्य होता है कि साल भर में जितनी भी बुराई इंसान में आती है उनको दुर किया जा सके. इस दौरान सभी व्‍यक्ति अपशब्‍दों के माध्‍यम से अपने मन की भड़ास निकालते हैं और फिर एक-दूसरे से माफी मांगकर क्षमा याचना करते हैं. भीलवाड़ा में बड़े हर्ष और उल्लास से शीतला अष्टमी का त्यौहार मनाते हैं और घर में भी स्वादिष्ट व्यंजन बनाते हैं.

भाजपा के वरिष्ठ नेता कालू लाल गुर्जर ने कहा कि मेवाड़ क्षेत्र में होली के बाद अलग-अलग दिन रंग व गुलाल खेले जाते हैं. भीलवाड़ा जिले में शीतला अष्टमी का त्यौहार मनाया जाता है. इस दौरान लोग जमकर रंग और गुलाल खेलते हैं. वर्षों पुरानी परंपरा के अनुसार शहर में जीवित व्यक्ति को लेटा कर मुर्दे की सवारी निकाली जाती है जो देश में अनोखी होती है.

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मुर्दे की शव यात्रा रहती है विशेष
शीतला अष्टमी के दिन भीलवाड़ा शहर में निकलने वाली मुर्दे की शव यात्रा भी विशेष रहती है. शव यात्रा में ढोल-नगाड़ों के साथ ऊंट और घोड़े पर सवार होकर लोग अबीर-गुलाल उड़ाते चलते हैं. इस गुलाल का भी विशेष महत्व है. लोग इस गुलाल को अपने घर ले जाकर इसकी विधिवत पूजा-अर्चना करते हैं.

जिले भर में रहता है अवकाश
शीतला अष्टमी के दिन वर्षों से जिला कलेक्टर की तरफ से अवकाश दिया जाता रहा है. ऐसे में जिले के तमाम सरकारी कार्यालय भी बंद रहते हैं. इस बार बुधवार को मनाए जाने वाले शीतलाष्टमी के त्यौहार के दिन भी जिला कलेक्टर की तरफ से अवकाश घोषित किया गया है.

भीलवाड़ा में मुर्दे की सवारी

भीलवाड़ा. वैसे तो पूरे राजस्थान में शीतला अष्टमी का त्योहार मनाया जाता है मगर वस्त्रनगरी भीलवाड़ा में शीतला अष्टमी का त्यौहार अनूठे अंदाज में मनाया जाता है. यहां शीतला अष्टमी पर भीलवाड़ा शहर में 'मुर्दे की सवारी' निकाली जाती है. यह परंपरा पिछले 425 सालों से निभाई जा रही है. मुर्दे की सवारी होली के 8 दिन बाद निकाली जाती है जिसकी शुरुआत शहर के 'चित्तौड़ वालों की हवेली' स्थान से होती है. इस आयोजन में एक जीवित युवक को अर्थी पर लेटाकर ढोल-नगाड़ों के साथ मुर्दे की सवारी निकाली जाती है. माना जाता है कि वर्ष भर हम जो भी गलतियां करते हैं या हमारे अंदर जो भी बुराई आती है उसे प्रतीकात्मक मुर्दे के दहन के साथ दूर किया जा सके.

इसमें शहर के अलावा आसपास के जिलों से भी लोग आते हैं और जमकर रंग-गुलाल उड़ाते हुए आगे बढ़ते जाते हैं. इस दौरान यहां पर जमकर अपशब्‍दों का प्रयोग किया जाता है जिस कारण इस कार्यक्रम में महिलाओं का प्रवेश वर्जित रखा जाता है. यह सवारी भीलवाड़ा रेलवे स्‍टेशन चौराहा, गोल प्‍याऊ चौराहा, भीमगंज थाना होते हुए बड़ा मंदिर पहुंचती है. यहां पहुंचते ही अर्थी पर लेटा व्यक्ति नीचे कुदकर भाग जाता है और प्रतीक के तौर पर अर्थी का बड़ा मंदिर के पीछे दाह संस्‍कार कर दिया जाता है.

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425 सालों से निभाई जा रही परंपरा
भीलवाड़ा निवासी जानकी लाल सुखवाल का कहना है कि हमारे पूर्वज बताते रहे हैं कि भीलवाड़ा शहर का निर्माण विक्रम संवत् 1655 में हुआ था. तब मेवाड़ रियासत के राजा ने भोमियों का रावला के ठाकुर को ताम्रपत्र व पट्टा प्रदान किया था. इसका प्रमाण रावले में आज भी मौजूद है और तब से इस परंपरा की शुरुआत हुई है. आज इसे 425 साल हो चुके हैं और यह परंपरा आज भी जारी है. इस परंपरा के अनुसार शीतला अष्‍टमी से पूर्व शहर में दो स्‍थानों पर भैरव नाथ की स्‍थापना होती है. इसके बाद पंच पटेल बड़ा मंदिर में एक बैठक रखी जाती है जहां लोगों से मुर्दे की सवारी के लिए चन्‍दा एकत्रित किया जाता है. ऐसी मान्‍यता है कि जो भी इसमें चन्‍दा देता है उसके घर सुख-शांति और लक्ष्‍मी का वास होता है. उसके बाद इसी यात्रा की तैयारी की जाती है और सभी पंच चित्तौड़ वालों की हवेली जाते हैं जहां से मुर्दे की सवारी निकाली जाती है.

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शहर के वरिष्ठ नागरिक मुरली मनोहर सेन ने कहा कि इस शव यात्रा का मुख्‍य उद्देश्य होता है कि साल भर में जितनी भी बुराई इंसान में आती है उनको दुर किया जा सके. इस दौरान सभी व्‍यक्ति अपशब्‍दों के माध्‍यम से अपने मन की भड़ास निकालते हैं और फिर एक-दूसरे से माफी मांगकर क्षमा याचना करते हैं. भीलवाड़ा में बड़े हर्ष और उल्लास से शीतला अष्टमी का त्यौहार मनाते हैं और घर में भी स्वादिष्ट व्यंजन बनाते हैं.

भाजपा के वरिष्ठ नेता कालू लाल गुर्जर ने कहा कि मेवाड़ क्षेत्र में होली के बाद अलग-अलग दिन रंग व गुलाल खेले जाते हैं. भीलवाड़ा जिले में शीतला अष्टमी का त्यौहार मनाया जाता है. इस दौरान लोग जमकर रंग और गुलाल खेलते हैं. वर्षों पुरानी परंपरा के अनुसार शहर में जीवित व्यक्ति को लेटा कर मुर्दे की सवारी निकाली जाती है जो देश में अनोखी होती है.

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मुर्दे की शव यात्रा रहती है विशेष
शीतला अष्टमी के दिन भीलवाड़ा शहर में निकलने वाली मुर्दे की शव यात्रा भी विशेष रहती है. शव यात्रा में ढोल-नगाड़ों के साथ ऊंट और घोड़े पर सवार होकर लोग अबीर-गुलाल उड़ाते चलते हैं. इस गुलाल का भी विशेष महत्व है. लोग इस गुलाल को अपने घर ले जाकर इसकी विधिवत पूजा-अर्चना करते हैं.

जिले भर में रहता है अवकाश
शीतला अष्टमी के दिन वर्षों से जिला कलेक्टर की तरफ से अवकाश दिया जाता रहा है. ऐसे में जिले के तमाम सरकारी कार्यालय भी बंद रहते हैं. इस बार बुधवार को मनाए जाने वाले शीतलाष्टमी के त्यौहार के दिन भी जिला कलेक्टर की तरफ से अवकाश घोषित किया गया है.

Last Updated : Mar 15, 2023, 9:27 AM IST
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