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क्या हुआ था कश्मीरी पंडितों के साथ, जानें शरणार्थी बनने की कहानी

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Published : Feb 18, 2021, 6:24 PM IST

कश्मीरी पंडितों के कश्मीर से पलायन के आज कई वर्ष बीत चुके हैं, लेकिन आज भी उनके जहन में यह बात रह-रह कर उठती रहती है कि क्यों उन्हें इन परिस्थियों से गुजरना पड़ा, पलायन करना पड़ा. पढ़ें पूरी रिपोर्ट...

कश्मीरी पंडितों का पलायन
कश्मीरी पंडितों का पलायन

हैदराबाद : बजट चर्चा के दौरान 13 फरवरी को लोक सभा में गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि 2022 तक घाटी के सभी विस्थापित कश्मीरी पंडितों को फिर से संगठित किया जाएगा.

पुस्तक राहुल पंडित: हमारे चंद्रमा में रक्त के थक्के हैं के अनुसार 1941 की जनगणना में कश्मीरी पंडितों ने कश्मीर घाटी की जनसंख्या का लगभग 15 प्रतिशत हिस्सा गठित किया. 1981 तक वे जनसंख्या में चार प्रतिशत तक कम हो गए.

कश्मीरी पंडित कौन हैं : कश्मीरी पंडित हिंदू अल्पसंख्यक हैं- मुख्य रूप से ब्राह्मण और कश्मीर के शैव (Shaivism) धर्म के अनुयायी.

कश्मीर पंडितों के पलायन की घटनाएं

वर्ष 1984 : जम्मू-कश्मीर में 1984 में फारूक अब्दुल्ला (Farooq Abdullah) की सरकार उनके साले गुलाम मोहम्मद शाह द्वारा छीनी गई थी, जिन्हें गुलशाह (Gulshah) के नाम से भी जाना जाता है. गुलाम मोहम्मद शाह ने अपने बहनोई फारुख अब्दुल्ला से सत्ता छीन ली और जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बन गए. इस दौरान खुद को सही ठहराने के लिए उन्होंने कई खतरनाक निर्णय भी लिए, इनमें कुछ निर्णय ऐसे भी थे, जिनसे राज्य में हिंसा भी भड़की.

फरवरी 1986 : फरवरी माह में राज्य में साम्प्रदायिक दंगों की स्थिति बन चुकी थी. इस दौरान दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग इलाके में पंडितों का काफी विरोध हुआ. कथित तौर पर राज्य में भड़के दंगों में कश्मीरी पंडितों को निशाना बनाया गया. उनके घरों में घुसकर उनके साथ अभद्रता की गई, साथ ही महिलाओं के साथ गलत व्यवहार किया गया. इस दौरान पंडितों के धार्मिक स्थलों पर भी तोड़फोड़ और आगजनी की खबरें सामने आई थीं.

वर्ष 1987: 1987 के चुनाव से पहले राजीव गांधी और फारुख अब्दुल्ला के बीच एक समझौता हुआ. इसके बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस ने गठबंधन बनाकर चुनाव लड़ा. हालांकि, कट्टरपंथियों ने चुनाव में धांधली का आरोप लगाया.

जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) फारूक अब्दुल्ला की सरकार के तहत अधिक सक्रिय हो गया. कथित तौर पर इस दौरान धार्मिक विवाद और सांप्रदायिक घृणा की शुरुआत हो चुकी थी.

जुलाई 1988: श्रीनगर में आगजनी के चलते लोगों में डर का स्थिति उत्पन्न हो गई थी. कश्मीरी पंडितों का बढ़चढ़ कर विरोध हुआ.

सितंबर 1989: भाजपा के नेता पंडित टीका लाल टपलू को उनके ही घर के सामने कुछ हथियारबंद लोगों ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी.

वर्ष 1990: वर्ष 1990 में फारूक अब्दुल्ला के इस्तीफे के बाद, राष्ट्रपति शासन लागू हुआ. इस दौरान कई तरह के राजनीतिक हंगामे हुए, हिंदू-विरोधी आंदोलन और पलायन को गति मिली.

जनवरी 1990: 1990 को वो दिन माना जाता है, जब कश्मीर के पंडितों को अपना घर छोड़ने का फरमान जारी हुआ था, क्योंकि जनवरी 1990 तक यहां पंडितों का विरोध और उग्र हो गया था. सड़कों पर प्रदर्शन होने लगे. घाटी में बड़े पैमाने पर भारत विरोधी नारे लग रहे थे. इस दौरान सरकार के भीतर भी असंतोष बढ़ गया था. साल के अंत तक लगभग 3,50,000 पंडित घाटी से पलायन कर चुके थे.

मार्च 1997: घाटी का यह साल नरसंहार की भेंट चढ़ा. आतंकवादियों ने संग्रामपोरा (Sangrampora) गांव में सात कश्मीरी पंडितों को उनके घरों से बाहर निकाल कर हत्या कर दी.

जनवरी 1998: वंधामा गांव (Wandhama village) में 23 कश्मीर पंडितों (जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे) की गोली मारकर हत्या कर दी गई.

मार्च 2003: नादिमर्ग गांव (Nadimarg village) में शिशुओं सहित 24 कश्मीरी पंडितों की बेरहमी से गोली मारकर हत्या कर दी गई.

अगस्त 2019: नरेंद्र मोदी सरकार ने अनुच्छेद-370 को निरस्त किया, इस निर्णय का कश्मीरी पंडितों ने स्वागत किया.

पंजीकृत कश्मीर पंडित परिवार
जम्मू और कश्मीर सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक, 1990 के दशक में कश्मीर घाटी में उग्रवाद की शुरुआत के कारण, वर्तमान में पंजीकृत प्रवासी परिवारों की संख्या जम्मू-कश्मीर और देश के अन्य जगहों पर भी हैं.

राज्य/यूटीप्रवासी परिवारों की संख्या
जम्मू43,618
दिल्ली /एनसीआर19,338
अन्य राज्य /यूटी1995
कुल64,951

पलायन करने वाले कश्मीरी पंडितों की संख्या

जम्मू और कश्मीर सरकार की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1989 से 2004 के बीच 1,400 हिंदुओं में से पंडित समुदाय के 219 लोगों की हत्या कर दी गई.

वहीं, सरकार के दावों का विरोध करते हुए, पंडितों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक राजनीतिक समूह के सदस्य पनुन कश्मीर (Panun Kashmir) ने एक सूची प्रकाशित की, जिसमें कहा गया था कि 1990 में 1,341 पंडितों की मौत हुई थी.

राजनीतिक वैज्ञानिक अलेक्जेंडर इवांस (Alexander Evans) के अनुसार, 1990 में घाटी में रहने वाले 95 प्रतिशत कश्मीरी पंडित 1,50,000 और 1,60,000 के बीच यहां से चले गए.

नॉर्वेजियन रिफ्यूजी काउंसिल (Norwegian Refugee Council) के आंतरिक विस्थापन निगरानी केंद्र की 2010 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1990 से अब तक 2,50,000 से अधिक पंडित विस्थापित हो चुके हैं.

कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के शुरुआती वादे

अप्रैल 2008 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने 2004 में इसी तरह के पैकेज के बाद पंडितों की वापसी और पुनर्वास के लिए 1,618 करोड़ रुपये के पैकेज के प्रस्ताव की घोषणा की थी. घरों के पुनर्निर्माण या निर्माण के लिए दी जाने वाली सहायता राशि 7.5 लाख रुपये थी.

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने केंद्रीय बजट 2014 में कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के लिए 500 करोड़ रुपये के विशेष पैकेज की घोषणा की थी.

2017 में केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने श्रीनगर में पंडितों के लिए 6,000 पारगमन आवास के निर्माण की घोषणा की थी.

भाजपा ने अपने 2014 और 2019 के घोषणापत्र में कश्मीरी पंडितों की सुरक्षित वापसी का वादा किया था.

2014 का मेनिफेस्टो: कश्मीरी पंडितों की अपने पुरखों की भूमि पर पूर्ण सम्मान, सुरक्षा और सुनिश्चित आजीविका के साथ वापसी, भाजपा के एजेंडे में सबसे ऊपर था.

2019 का घोषणापत्र: कश्मीरी पंडितों की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करने के लिए हम सभी प्रयास करेंगे.

हैदराबाद : बजट चर्चा के दौरान 13 फरवरी को लोक सभा में गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि 2022 तक घाटी के सभी विस्थापित कश्मीरी पंडितों को फिर से संगठित किया जाएगा.

पुस्तक राहुल पंडित: हमारे चंद्रमा में रक्त के थक्के हैं के अनुसार 1941 की जनगणना में कश्मीरी पंडितों ने कश्मीर घाटी की जनसंख्या का लगभग 15 प्रतिशत हिस्सा गठित किया. 1981 तक वे जनसंख्या में चार प्रतिशत तक कम हो गए.

कश्मीरी पंडित कौन हैं : कश्मीरी पंडित हिंदू अल्पसंख्यक हैं- मुख्य रूप से ब्राह्मण और कश्मीर के शैव (Shaivism) धर्म के अनुयायी.

कश्मीर पंडितों के पलायन की घटनाएं

वर्ष 1984 : जम्मू-कश्मीर में 1984 में फारूक अब्दुल्ला (Farooq Abdullah) की सरकार उनके साले गुलाम मोहम्मद शाह द्वारा छीनी गई थी, जिन्हें गुलशाह (Gulshah) के नाम से भी जाना जाता है. गुलाम मोहम्मद शाह ने अपने बहनोई फारुख अब्दुल्ला से सत्ता छीन ली और जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बन गए. इस दौरान खुद को सही ठहराने के लिए उन्होंने कई खतरनाक निर्णय भी लिए, इनमें कुछ निर्णय ऐसे भी थे, जिनसे राज्य में हिंसा भी भड़की.

फरवरी 1986 : फरवरी माह में राज्य में साम्प्रदायिक दंगों की स्थिति बन चुकी थी. इस दौरान दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग इलाके में पंडितों का काफी विरोध हुआ. कथित तौर पर राज्य में भड़के दंगों में कश्मीरी पंडितों को निशाना बनाया गया. उनके घरों में घुसकर उनके साथ अभद्रता की गई, साथ ही महिलाओं के साथ गलत व्यवहार किया गया. इस दौरान पंडितों के धार्मिक स्थलों पर भी तोड़फोड़ और आगजनी की खबरें सामने आई थीं.

वर्ष 1987: 1987 के चुनाव से पहले राजीव गांधी और फारुख अब्दुल्ला के बीच एक समझौता हुआ. इसके बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस और कांग्रेस ने गठबंधन बनाकर चुनाव लड़ा. हालांकि, कट्टरपंथियों ने चुनाव में धांधली का आरोप लगाया.

जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) फारूक अब्दुल्ला की सरकार के तहत अधिक सक्रिय हो गया. कथित तौर पर इस दौरान धार्मिक विवाद और सांप्रदायिक घृणा की शुरुआत हो चुकी थी.

जुलाई 1988: श्रीनगर में आगजनी के चलते लोगों में डर का स्थिति उत्पन्न हो गई थी. कश्मीरी पंडितों का बढ़चढ़ कर विरोध हुआ.

सितंबर 1989: भाजपा के नेता पंडित टीका लाल टपलू को उनके ही घर के सामने कुछ हथियारबंद लोगों ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी.

वर्ष 1990: वर्ष 1990 में फारूक अब्दुल्ला के इस्तीफे के बाद, राष्ट्रपति शासन लागू हुआ. इस दौरान कई तरह के राजनीतिक हंगामे हुए, हिंदू-विरोधी आंदोलन और पलायन को गति मिली.

जनवरी 1990: 1990 को वो दिन माना जाता है, जब कश्मीर के पंडितों को अपना घर छोड़ने का फरमान जारी हुआ था, क्योंकि जनवरी 1990 तक यहां पंडितों का विरोध और उग्र हो गया था. सड़कों पर प्रदर्शन होने लगे. घाटी में बड़े पैमाने पर भारत विरोधी नारे लग रहे थे. इस दौरान सरकार के भीतर भी असंतोष बढ़ गया था. साल के अंत तक लगभग 3,50,000 पंडित घाटी से पलायन कर चुके थे.

मार्च 1997: घाटी का यह साल नरसंहार की भेंट चढ़ा. आतंकवादियों ने संग्रामपोरा (Sangrampora) गांव में सात कश्मीरी पंडितों को उनके घरों से बाहर निकाल कर हत्या कर दी.

जनवरी 1998: वंधामा गांव (Wandhama village) में 23 कश्मीर पंडितों (जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे) की गोली मारकर हत्या कर दी गई.

मार्च 2003: नादिमर्ग गांव (Nadimarg village) में शिशुओं सहित 24 कश्मीरी पंडितों की बेरहमी से गोली मारकर हत्या कर दी गई.

अगस्त 2019: नरेंद्र मोदी सरकार ने अनुच्छेद-370 को निरस्त किया, इस निर्णय का कश्मीरी पंडितों ने स्वागत किया.

पंजीकृत कश्मीर पंडित परिवार
जम्मू और कश्मीर सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक, 1990 के दशक में कश्मीर घाटी में उग्रवाद की शुरुआत के कारण, वर्तमान में पंजीकृत प्रवासी परिवारों की संख्या जम्मू-कश्मीर और देश के अन्य जगहों पर भी हैं.

राज्य/यूटीप्रवासी परिवारों की संख्या
जम्मू43,618
दिल्ली /एनसीआर19,338
अन्य राज्य /यूटी1995
कुल64,951

पलायन करने वाले कश्मीरी पंडितों की संख्या

जम्मू और कश्मीर सरकार की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1989 से 2004 के बीच 1,400 हिंदुओं में से पंडित समुदाय के 219 लोगों की हत्या कर दी गई.

वहीं, सरकार के दावों का विरोध करते हुए, पंडितों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक राजनीतिक समूह के सदस्य पनुन कश्मीर (Panun Kashmir) ने एक सूची प्रकाशित की, जिसमें कहा गया था कि 1990 में 1,341 पंडितों की मौत हुई थी.

राजनीतिक वैज्ञानिक अलेक्जेंडर इवांस (Alexander Evans) के अनुसार, 1990 में घाटी में रहने वाले 95 प्रतिशत कश्मीरी पंडित 1,50,000 और 1,60,000 के बीच यहां से चले गए.

नॉर्वेजियन रिफ्यूजी काउंसिल (Norwegian Refugee Council) के आंतरिक विस्थापन निगरानी केंद्र की 2010 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1990 से अब तक 2,50,000 से अधिक पंडित विस्थापित हो चुके हैं.

कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के शुरुआती वादे

अप्रैल 2008 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने 2004 में इसी तरह के पैकेज के बाद पंडितों की वापसी और पुनर्वास के लिए 1,618 करोड़ रुपये के पैकेज के प्रस्ताव की घोषणा की थी. घरों के पुनर्निर्माण या निर्माण के लिए दी जाने वाली सहायता राशि 7.5 लाख रुपये थी.

वित्त मंत्री अरुण जेटली ने केंद्रीय बजट 2014 में कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के लिए 500 करोड़ रुपये के विशेष पैकेज की घोषणा की थी.

2017 में केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने श्रीनगर में पंडितों के लिए 6,000 पारगमन आवास के निर्माण की घोषणा की थी.

भाजपा ने अपने 2014 और 2019 के घोषणापत्र में कश्मीरी पंडितों की सुरक्षित वापसी का वादा किया था.

2014 का मेनिफेस्टो: कश्मीरी पंडितों की अपने पुरखों की भूमि पर पूर्ण सम्मान, सुरक्षा और सुनिश्चित आजीविका के साथ वापसी, भाजपा के एजेंडे में सबसे ऊपर था.

2019 का घोषणापत्र: कश्मीरी पंडितों की सुरक्षित वापसी सुनिश्चित करने के लिए हम सभी प्रयास करेंगे.

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