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Research on pollution: प्रदूषण पर रिसर्च के लिए जमीनी स्तर पर उतरी IIT दिल्ली की टीम, PGI और PU भी मुहिम में शामिल

Research on pollution दिन प्रतिदिन देश के कई शहरों में प्रदूषण समस्या से लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है. वहीं, सर्दी में दिल्ली के साथ-साथ पंजाब और हरियाणा में भी प्रदूषण की समस्या लोगों के लिए मुश्किलें खड़ी कर देती है. आखिर दिल्ली में प्रदूषण और हरियाणा में पंजाब में प्रदूषण में व्याप्त पार्टिक्लस में क्या अंतर है. पंजाब हरियाणा से दिल्ली में ये प्रदूषण पहुंचने में क्या अंतर रहता है इस पर रिसर्च करने के लिए दिल्ली आईआईटी की टीम पीजीआई और पंजाब यूनिवर्सिटी की टीम के साथ मैदान में उतरी है. ये टीम मशीन के माध्यम से पार्टिकल पर अध्ययन करेगी. (IIT Delhi students Pollution problem in Delhi NCR Haryana Punjab Stuble Burning in Haryana Stuble Burning in Punjab Air Quality Index)

Research on pollution  problem in Delhi NCR Haryana Punjab
प्रदूषण पर जानकारी इकट्ठा करने में जुटी पीजीआई, पीयू के साथ आईआईटी दिल्ली की टीम.
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 26, 2023, 9:45 AM IST

प्रदूषण पर जानकारी इकट्ठा करने में जुटी पीजीआई, पीयू के साथ आईआईटी दिल्ली की टीम.

चंडीगढ़: प्रदूषण की समस्या हमारे देश के कई शहरों के लिए चिंता का सबब बनी हुई है. वहीं, सितंबर अंत के बाद सर्दियों के मौसम में यह समस्या दिल्ली, एनसीआर क्षेत्र के लिए मुश्किलें खड़ी कर देती हैं. वहीं, हरियाणा और पंजाब में जलने वाली पराली को भी इस प्रदूषण के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है. वहीं प्रदूषण को लेकर अलग-अलग संस्थान अपने स्तर पर काम भी करते रहते हैं जो न सिर्फ इसको लेकर जानकारी इकट्ठा करते हैं, बल्कि लोगों को जागरूक भी करते हैं.

प्रदूषण पर जानकारी इकट्ठा करने में जुटी IIT दिल्ली की टीम: कुछ ऐसा ही प्रयास आईआईटी दिल्ली, पीजीआई और पंजाब विश्वविद्यालय का भी है. जिसके तहत एक मोबाइल वैन लेकर और प्रदूषण को मापने वाली मशीनों के साथ आईआईटी दिल्ली के छात्र और पीजीआई, पंजाब विश्वविद्यालय, पंजाब के ग्रामीण इलाकों में यह जानने निकला है कि जहां से प्रदूषण की वजह माने जाने वाली पराली जलती है, वहां उससे उत्पन होने वाले पार्टिकल्स क्या है और जब वे यहां से दूसरी जगह पहुंचते हैं तो उनमें क्या अंतर आता है. साथ ही इनका प्रयास है कि लोगों को भी प्रदूषण मापने की मशीनों की जमीनी स्तर पर जानकारी दी जाए. ताकि वे भी इसको लेकर जागरूक हों.

इसको लेकर ईटीवी भारत की टीम ने आईआईटी दिल्ली से आए छात्रों और पंजाब विश्वविद्यालय के एनवायरमेंट विभाग की प्रमुख से बात की. जिनसे हमने जानने का प्रयास किया कि वे अपनी इस पहल के जरिए किस तरह और क्या काम करने जा रहे हैं.

Research on pollution  problem in Delhi NCR Haryana Punjab
दिल्ली, हरियाणा और पंजाब में प्रदूषण पर रिसर्च.

प्रदूषण पर पीजीआई औऱ पीयू के साथ आईआईटी दिल्ली के छात्रों का रिसर्च: आईआईटी दिल्ली के छात्र और प्रदूषण को लेकर काम कर रहे फैजल ने बताया कि दिल्ली में हमारे पास पॉल्यूशन के अलग-अलग पार्टिकल्स को मापने के लिए और उनकी जानकारी इकट्ठा करने के लिए मशीन लगी है. जैसे कि जब हरियाणा और पंजाब में पराली जलाई जाती है, उसका कुछ दिनों के बाद सीधा प्रभाव दिल्ली पर पड़ता दिखाई देता है. फैजल कहते हैं कि हम लोग अभी तक जिस पर काम कर रहे थे वह जो यहां से पॉल्यूशन दिल्ली आ रहा था, उस पर किया जा रहा था. लेकिन, अब हम प्रदूषण के उस सोर्स के पास जाकर ही यह जानने की कोशिश करेंगे कि जहां पर पराली जल रही है वहां पर उसका क्या और कितना असर होता है. इस पर हम पिछले चार-पांच सालों से दिल्ली में बैठ कर काम कर रहे हैं. उसके साथ ही सोर्स पर जाकर हम उसके प्रभाववौर पार्टिकल के अंतर को जानने की कोशिश करेंगे.

ये भी पढ़ें: Haryana Tree Pension Scheme: अगले महीने से हरियाणा में 70 साल की उम्र वाले चार हजार पेड़ों को मिलेगी पेंशन, सर्वे और रजिस्ट्रेशन का काम पूरा, अनोखी स्कीम वाला देश का पहला राज्य बनेगा

पंजाब और दिल्ली के प्रदूषण में कितना अंतर: दिल्ली आईआईटी के छात्र फैजल कहते हैं कि इससे हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि ग्रामीण क्षेत्र में उसका कितना असर है और दिल्ली तक पहुंचने में उसका कितना प्रभाव पड़ता है. दरअसल धरातल पर जाकर जहां से प्रदूषण निकल रहा है और वह ट्रैवल करके दिल्ली तक पहुंच रहा है उसमें क्या अंतर है टीम यह प्रयास करने में जुटी है. यानी उसके असर को लेकर आईआईटी दिल्ली के छात्र धरातल पर जाकर काम कर रहे हैं. फैजल कहते हैं कि प्रदूषण में जो अलग-अलग तरह के पार्टिकल्स होते हैं, उनको लेकर भी हम काम कर रहे हैं. इसलिए हमने इस गाड़ी में अलग-अलग तरह की मशीन भी रखी हैं जो उसको लेकर जानकारियां इकट्ठा करेगी. साथ ही इसके बाद हमारी कोशिश यह जानने की भी होगी कि इसका इंसान पर कितना प्रभाव पड़ता है.

'दिल्ली में प्रदूषण के लिए स्थानीय समस्याएं भी जिम्मेदार': वहीं, आईआईटी दिल्ली के छात्र अंजनेय पांडे कहते हैं कि सर्दियों में दिल्ली में प्रदूषण की वजह उसकी अपनी स्थानीय समस्याएं तो है ही, इसके साथ ही पंजाब से जो हवाओं का रुख होता है वह भी दिल्ली की तरफ होता है. पराली जलाने की यह एक्टिविटी सीजनल है और यह थोड़े समय के लिए रहती है. आजनेय कहते हैं दिक्कत यह है कि जहां से प्रदूषण निकल रहा है, उस सोर्स पर अधिक जानकारियां इकट्ठा नहीं की गई हैं.

ये भी पढ़ें: How do you manage Parali: इन मशीनों के जरिए किसान कर सकते हैं पराली का स्मार्ट प्रबंधन, एक क्लिक में जानें कैसे ?

पराली जलाने का डाटा सही और एक्यूरेट उपलब्ध होना जरूरी: आंजनेय कहते हैं कि पराली जहां जलाई जा रही है उसका जो केमिकल डाटा है वह अभी देश में सही तरीके से उपलब्ध नहीं है. उसके लिए एक तरीका यह है कि हम सारी मशीन यानी तकनीक लेकर सीधा ही सोर्स के पास जाएं और जानें कि वहां पर पैदा होने वाले प्रदूषण का क्या प्रभाव है. आंजनेय कहते हैं कि इस जानकारी को इकट्ठा करने के बाद हम पुख्ता तौर पर कह पाएंगे कि पराली जलाने का कितना प्रभाव पड़ता है. हम अपनी इस कोशिश के जरिए इसी दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास कर रहे हैं.

प्रदूष पर रिसर्च के लिए पंजाब के कुछ ग्रामीण इलाकों में जाएगी वैन: वहीं, इस मामले पंजाब विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग की प्रमुख सुमन मोर कहती हैं कि पंजाब विश्वविद्यालय दिल्ली आईआईटी और पीजीआई में मिलकर यह मोबाइल वैन चला कर एक प्रयास शुरू किया है. इसके तहत पंजाब के कुछ ग्रामीण इलाकों में यह वैन जाएगी. इससे हम प्रदूषण के लोकल सोर्स पर काम कर पाएंगे और उसके बारे में जानकारियां इकट्ठा कर पाएंगे. इसके साथ ही हमारा प्रयास है कि आस पास के जो लोग हैं ,वह भी यह समझें कि हम कैसे एयर क्वालिटी को मशीनों के जरिए मापते हैं.

लोगों को भी जागरूक होने की जरूरत: सुमन मोर कहती हैं कि अपने इस प्रयास के जरिए हम रियल टाइम पर लोगों को प्रदूषण के स्तर के बारे में भी जानकारी दे सकते हैं और वह भी इसको समझ सकते हैं. इस प्रयास के जरिए जो डाटा इकट्ठा किया जाएगा फिर उसका अध्ययन किया जाएगा. यह जानने का प्रयास किया जाएगा कि वह कितना ट्रेवल कर रहा है और किस इलाके तक यह जा रहा है. सुमन मोर ने कहा कि यह बहुत अच्छा प्रयास है कि हम लोगों तक जा रहे हैं और साथ ही उन्हें जागरूक करने का भी काम कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें: Karnal Pollution Level: सीएम सिटी करनाल में 2 साल में कम हुए पराली जलाने के मामले, घटा प्रदूषण स्तर

प्रदूषण पर जानकारी इकट्ठा करने में जुटी पीजीआई, पीयू के साथ आईआईटी दिल्ली की टीम.

चंडीगढ़: प्रदूषण की समस्या हमारे देश के कई शहरों के लिए चिंता का सबब बनी हुई है. वहीं, सितंबर अंत के बाद सर्दियों के मौसम में यह समस्या दिल्ली, एनसीआर क्षेत्र के लिए मुश्किलें खड़ी कर देती हैं. वहीं, हरियाणा और पंजाब में जलने वाली पराली को भी इस प्रदूषण के लिए जिम्मेदार ठहराया जाता है. वहीं प्रदूषण को लेकर अलग-अलग संस्थान अपने स्तर पर काम भी करते रहते हैं जो न सिर्फ इसको लेकर जानकारी इकट्ठा करते हैं, बल्कि लोगों को जागरूक भी करते हैं.

प्रदूषण पर जानकारी इकट्ठा करने में जुटी IIT दिल्ली की टीम: कुछ ऐसा ही प्रयास आईआईटी दिल्ली, पीजीआई और पंजाब विश्वविद्यालय का भी है. जिसके तहत एक मोबाइल वैन लेकर और प्रदूषण को मापने वाली मशीनों के साथ आईआईटी दिल्ली के छात्र और पीजीआई, पंजाब विश्वविद्यालय, पंजाब के ग्रामीण इलाकों में यह जानने निकला है कि जहां से प्रदूषण की वजह माने जाने वाली पराली जलती है, वहां उससे उत्पन होने वाले पार्टिकल्स क्या है और जब वे यहां से दूसरी जगह पहुंचते हैं तो उनमें क्या अंतर आता है. साथ ही इनका प्रयास है कि लोगों को भी प्रदूषण मापने की मशीनों की जमीनी स्तर पर जानकारी दी जाए. ताकि वे भी इसको लेकर जागरूक हों.

इसको लेकर ईटीवी भारत की टीम ने आईआईटी दिल्ली से आए छात्रों और पंजाब विश्वविद्यालय के एनवायरमेंट विभाग की प्रमुख से बात की. जिनसे हमने जानने का प्रयास किया कि वे अपनी इस पहल के जरिए किस तरह और क्या काम करने जा रहे हैं.

Research on pollution  problem in Delhi NCR Haryana Punjab
दिल्ली, हरियाणा और पंजाब में प्रदूषण पर रिसर्च.

प्रदूषण पर पीजीआई औऱ पीयू के साथ आईआईटी दिल्ली के छात्रों का रिसर्च: आईआईटी दिल्ली के छात्र और प्रदूषण को लेकर काम कर रहे फैजल ने बताया कि दिल्ली में हमारे पास पॉल्यूशन के अलग-अलग पार्टिकल्स को मापने के लिए और उनकी जानकारी इकट्ठा करने के लिए मशीन लगी है. जैसे कि जब हरियाणा और पंजाब में पराली जलाई जाती है, उसका कुछ दिनों के बाद सीधा प्रभाव दिल्ली पर पड़ता दिखाई देता है. फैजल कहते हैं कि हम लोग अभी तक जिस पर काम कर रहे थे वह जो यहां से पॉल्यूशन दिल्ली आ रहा था, उस पर किया जा रहा था. लेकिन, अब हम प्रदूषण के उस सोर्स के पास जाकर ही यह जानने की कोशिश करेंगे कि जहां पर पराली जल रही है वहां पर उसका क्या और कितना असर होता है. इस पर हम पिछले चार-पांच सालों से दिल्ली में बैठ कर काम कर रहे हैं. उसके साथ ही सोर्स पर जाकर हम उसके प्रभाववौर पार्टिकल के अंतर को जानने की कोशिश करेंगे.

ये भी पढ़ें: Haryana Tree Pension Scheme: अगले महीने से हरियाणा में 70 साल की उम्र वाले चार हजार पेड़ों को मिलेगी पेंशन, सर्वे और रजिस्ट्रेशन का काम पूरा, अनोखी स्कीम वाला देश का पहला राज्य बनेगा

पंजाब और दिल्ली के प्रदूषण में कितना अंतर: दिल्ली आईआईटी के छात्र फैजल कहते हैं कि इससे हम यह जानने की कोशिश करेंगे कि ग्रामीण क्षेत्र में उसका कितना असर है और दिल्ली तक पहुंचने में उसका कितना प्रभाव पड़ता है. दरअसल धरातल पर जाकर जहां से प्रदूषण निकल रहा है और वह ट्रैवल करके दिल्ली तक पहुंच रहा है उसमें क्या अंतर है टीम यह प्रयास करने में जुटी है. यानी उसके असर को लेकर आईआईटी दिल्ली के छात्र धरातल पर जाकर काम कर रहे हैं. फैजल कहते हैं कि प्रदूषण में जो अलग-अलग तरह के पार्टिकल्स होते हैं, उनको लेकर भी हम काम कर रहे हैं. इसलिए हमने इस गाड़ी में अलग-अलग तरह की मशीन भी रखी हैं जो उसको लेकर जानकारियां इकट्ठा करेगी. साथ ही इसके बाद हमारी कोशिश यह जानने की भी होगी कि इसका इंसान पर कितना प्रभाव पड़ता है.

'दिल्ली में प्रदूषण के लिए स्थानीय समस्याएं भी जिम्मेदार': वहीं, आईआईटी दिल्ली के छात्र अंजनेय पांडे कहते हैं कि सर्दियों में दिल्ली में प्रदूषण की वजह उसकी अपनी स्थानीय समस्याएं तो है ही, इसके साथ ही पंजाब से जो हवाओं का रुख होता है वह भी दिल्ली की तरफ होता है. पराली जलाने की यह एक्टिविटी सीजनल है और यह थोड़े समय के लिए रहती है. आजनेय कहते हैं दिक्कत यह है कि जहां से प्रदूषण निकल रहा है, उस सोर्स पर अधिक जानकारियां इकट्ठा नहीं की गई हैं.

ये भी पढ़ें: How do you manage Parali: इन मशीनों के जरिए किसान कर सकते हैं पराली का स्मार्ट प्रबंधन, एक क्लिक में जानें कैसे ?

पराली जलाने का डाटा सही और एक्यूरेट उपलब्ध होना जरूरी: आंजनेय कहते हैं कि पराली जहां जलाई जा रही है उसका जो केमिकल डाटा है वह अभी देश में सही तरीके से उपलब्ध नहीं है. उसके लिए एक तरीका यह है कि हम सारी मशीन यानी तकनीक लेकर सीधा ही सोर्स के पास जाएं और जानें कि वहां पर पैदा होने वाले प्रदूषण का क्या प्रभाव है. आंजनेय कहते हैं कि इस जानकारी को इकट्ठा करने के बाद हम पुख्ता तौर पर कह पाएंगे कि पराली जलाने का कितना प्रभाव पड़ता है. हम अपनी इस कोशिश के जरिए इसी दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास कर रहे हैं.

प्रदूष पर रिसर्च के लिए पंजाब के कुछ ग्रामीण इलाकों में जाएगी वैन: वहीं, इस मामले पंजाब विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग की प्रमुख सुमन मोर कहती हैं कि पंजाब विश्वविद्यालय दिल्ली आईआईटी और पीजीआई में मिलकर यह मोबाइल वैन चला कर एक प्रयास शुरू किया है. इसके तहत पंजाब के कुछ ग्रामीण इलाकों में यह वैन जाएगी. इससे हम प्रदूषण के लोकल सोर्स पर काम कर पाएंगे और उसके बारे में जानकारियां इकट्ठा कर पाएंगे. इसके साथ ही हमारा प्रयास है कि आस पास के जो लोग हैं ,वह भी यह समझें कि हम कैसे एयर क्वालिटी को मशीनों के जरिए मापते हैं.

लोगों को भी जागरूक होने की जरूरत: सुमन मोर कहती हैं कि अपने इस प्रयास के जरिए हम रियल टाइम पर लोगों को प्रदूषण के स्तर के बारे में भी जानकारी दे सकते हैं और वह भी इसको समझ सकते हैं. इस प्रयास के जरिए जो डाटा इकट्ठा किया जाएगा फिर उसका अध्ययन किया जाएगा. यह जानने का प्रयास किया जाएगा कि वह कितना ट्रेवल कर रहा है और किस इलाके तक यह जा रहा है. सुमन मोर ने कहा कि यह बहुत अच्छा प्रयास है कि हम लोगों तक जा रहे हैं और साथ ही उन्हें जागरूक करने का भी काम कर रहे हैं.

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