हैदराबाद : 14 नवंबर 2021 तक मध्यप्रदेश के भोपाल में एक रेलवे स्टेशन था, हबीबगंज. पिछले 20 साल में इस स्टेशन पर कई बदलाव हुए मगर 15 नवंबर को हबीबगंज नाम इतिहास हो गया. भारतीय रेलवे ने इसका नाम बदलकर कमलापति स्टेशन कर दिया. हबीबगंज स्टेशन का नया नाम गोंड समुदाय की एक रानी कमलापति को समर्पित है, जो निज़ाम शाह की विधवा थीं.
वैसे भारतीय रेलवे के इतिहास में पहले भी कई स्टेशनों के नाम बदले गए हैं. उत्तरप्रदेश की योगी सरकार की संस्तुति के बाद 2018 में इलाहाबाद का नाम प्रयागराज स्टेशन रखा गया. इसके बाद फैजाबाद भी अयोध्या छावनी में तब्दील हो गया. इन दोनों स्टेशनों के नाम बदले गए थे, क्योंकि योगी सरकार ने शहरों के नाम ही बदल दिए थे. मगर मुगलसराय और मड़ुआडीह के नाम के बदलाव के दौरान सिर्फ रेलवे स्टेशनों के नाम बदले गए थे.
रेलवे स्टेशन का नाम क्यों बदलता है?
रेलवे स्टेशनों के नाम बदलना कोई नई बात नहीं है. सरकारें जनभावनाओं और राजनीति जरूरतों के हिसाब से स्टेशनों का नामाकरण करती रही हैं. हबीबगंज देश में ऐसे कई स्टेशन हैं, जिनके नाम कई बार बदले गए. 1996 में जब मद्रास शहर का नाम चेन्नई किया गया, तब स्टेशन का नाम बदला गया. 2019 में एआईडीएमके के नेता एम जी रामचंद्रन के नाम पर चेन्नई स्टेशन का नामाकरण किया गया. संयुक्त आंध्रप्रदेश (तेलंगाना) में विजयवाड़ा, विशाखापट्टनम जैसे बड़े रेलवे स्टेशन समेत 11 स्टेशनों के नाम दो दशक पहले ही बदले जा चुके हैं. महाराष्ट्र में भी अबतक 17 स्टेशनों का नए सिरे से नामाकरण किया जा चुका है. पूना को पुणे, कोल्हापुर को छत्रपति साहूजी महाराज टर्निमल, वर्धा ईस्ट को सेवाग्राम जैसे नाम दिए गए. केरल, कर्नाटक, गुजरात और गोवा में भी कई स्टेशनों के नाम उनकी बोलचाल की भाषा के हिसाब से बदले गए.
रेलवे स्टेशन के नाम कैसे बदले जाते हैं?
अक्सर लोग यह मानते हैं कि सरकार या रेलवे अपनी मर्जी से रेलवे स्टेशनों के नाम बदल देती है. राजनीतिक तौर पर होता तो ऐसा ही है, मगर इसके लिए भी कागजों पर औपचारिक प्रक्रिया पूरी की जाती है. इस प्रक्रिया में राज्य सरकार, केंद्रीय गृह मंत्रालय और रेल मंत्रालय के अलावा डाक विभाग को भी शामिल किया जाता है. स्टेशनों के नाम बदलने की कवायद राज्य सरकार की मर्जी से शुरू होती है. वह जनभावना या राजनीतिक प्रतिनिधियों की मांग के आधार पर केंद्रीय गृह मंत्रालय को सिफारिश भेजती है. गृह मंत्रालय प्रस्ताव को इस आधार पर मंजूरी देता है कि इस नाम को कोई दूसरा स्टेशन नहीं हो.
नाम बदलने पर रेलवे करता है तकनीकी बदलाव
नाम परिवर्तन होने पर रेल मंत्रालय और भारतीय रेलवे नए स्टेशन कोड का निर्माण करता है और जनता को सूचित करता है. इसके साथ ही सभी विभागों और रेकॉर्डस में नाम अपडेट किए जाते हैं. अंत में स्टेशन पर लिखे नाम - भवन, प्लेटफॉर्म साइनेज, आदि और इसके संचार सामग्री में नाम परिवर्तन कर देता है. चूंकि नाम हिंदी, अंग्रेजी और स्थानीय भाषा में लिखे जाते हैं, इसलिए वह रेलवे वर्क्स मैनुअल के तहत राज्य सरकार से तीनों भाषाओं में वर्तनी की मंजूरी लेता है. पूरे देश में तमिलनाडु एक ऐसा राज्य है, जहां सिर्फ दो भाषा तमिल और अंग्रेजी में साइनबोर्ड और साइनेज लिखे जाते हैं.
जानें, अभी कितने स्टेशनों के नाम बदले जाएंगे
उत्तरप्रदेश में झांसी रेलवे स्टेशन का नाम वीरांगना लक्ष्मी बाई स्टेशन रखने का प्रस्ताव केंद्र के पास लंबित है. इसके अलावा यूपी के दांडुपुर स्टेशन का नाम भी मां बाराही देवी धाम करने की मांग की गई है. राबर्टसगंज स्टेशन पहले ही सोनभद्र बन चुका है.
90 स्टेशन होंगे अपग्रेड, नाम परिवर्तन की संभावना बनी रहेगी
नरेंद्र मोदी की सरकार ने 90 रेलवे स्टेशनों को प्राइवेट हाथों में सौंपने की तैयारी की है. 60 रेलवे स्टेशन पीपीपी ( पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप) मॉडल पर विकसित किए जाएंगे. हबीबगंज यानी रानी कमलापति स्टेशन देश का पहला प्राइवेट रेलवे स्टेशन है. इस स्टेशन को डिवेलप करने का जिम्मा भोपाल स्थित बंसल ग्रुप (मैसर्स बंसल पाथवेज हबीबगंज प्राइवेट लिमिटेड) ने आईआरएसडीसी से हासिल किया है. यहां रेलवे ट्रेनों का संचालन करेगा जबकि बंसल ग्रुप स्टेशन पर बनने वाले शॉपिंग कॉम्पलेक्स, ईटिंग जॉइंट्स और अन्य सुविधाओं की देखरेख करेगा. गुजरात के सूरत जंक्शन रेलवे स्टेशन को भी निजी हाथों में दिया जा चुका है. प्रधानमंत्री जून में गुजरात के पुनर्विकसित गांधीनगर कैपिटल रेलवे स्टेशन का उद्घाटन कर चुके हैं. अब सूरत बदलने के बाद कितने स्टेशनों के नाम बदले जाएंगे, यह वक्त ही बताएगा.