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Ravan Dahan 2022: देवघर में होती है रावण की पूजा, नहीं होता दहन, जानिए क्यों - कामनालिंग बाबा बैद्यनाथ

विजयादशी को लेकर हर तरफ धूम मची है. देश भर में रावण दहन(Ravan Dahan 2022 )की तैयारी की जा रही है. लेकिन झारखंड के देवघर में रावण का पुतला नहीं जलाया जाता है(Ravan combustion does not happen in Deoghar), बल्कि यहां रावण की पूजा की जाती है.

Ravan combustion does not happen in Deoghar
Ravan combustion does not happen in Deoghar
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Published : Oct 5, 2022, 4:42 PM IST

देवघरः द्वादश ज्योतिर्लिंगों में सर्वश्रेष्ठ कामनालिंग बाबा बैद्यनाथ की नगरी देवघर को रावणेश्वर धाम कहा जाता है. देवघर में रावण को राजा के रूप में पूजा जाता है. दैत्यराज रावण के कारण ही देवघर में मनोकामनालिंग विराजे हैं. इसलिए झारखंड की सांस्कृतिक राजधानी देवघर में रावण दहन नहीं होता (Ravan combustion does not happen in Deoghar) है.

ये भी पढ़ेंः VIDEO: रावण, कुंभकरण और मेघनाद के पुतले तैयार, लंका दहन को लेकर राजधानी की सुरक्षा व्यवस्था भी हुई कड़ी


जानकार बताते हैं कि रावण की पहचान दो रूपों में की जाती है. एक तो राक्षसपति दशानन रावण और दूसरा वेद पुराणों का ज्ञाता, प्रकांड पंडित और विद्वान. इतना ही नहीं देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ के पवित्र लिंग की स्थापना भी रावण ने ही की है. यही कारण है कि देवघर में रावण को राजा के रूप में पूजा जाता है.

देखें वीडियो


क्यों नहीं होता है रावण दहनः शास्त्र-पुराणों में वर्णित तथ्यों के आधार पर कहा जाता है कि कठोर तप के बाद जब लंकाधिपति रावण भगवान शिव से मनचाहा वर प्राप्त कर उन्हें लंका ले जा रहा था तो देवताओं में खलबली मच गई थी. देवताओं ने मिलकर भगवान शिव को लंका ले जाने से रोकने का उपाय तैयार किया. उसी के तहत दैवीय प्रकोप से रावण को देवघर पहुंचने के बाद लघुशंका का अहसास हुआ और उसकी नजर गड़ेरिया का रूप धारण करने वाले देवता पर पड़ी. गड़ेरिया को रावण ने शिवलिंग सौंपते हुए उसके लौटने तक कहीं भी नहीं रखने का अनुरोध किया. इसके बाद लघुशंका के लिए चला गया. उसी बीच भगवान रूपी गड़ेरिये ने शिवलिंग को यहां देवी सती के समीप रख दिया. बताते चलें कि देवघर में शिव और सती एक साथ विराजमान हैं. उधर लघुशंका के बाद रावण जब लौटा तो यहां पर शिवलिंग स्थापित पाया.


उसके बाद रावण ने यहां से शिवलिंग ले जाने की काफी कोशिश भी की लेकिन शिवलिंग हिला नहीं. कहा जाता है कि उसके बाद ही रावण ने क्रोधवश अपने अंगुष्ठा से शिवलिंग को दबा दिया था. उसी कारण यहां शिवलिंग धंसा हुआ है. रावण के लघुशंका से बना तालाब भी यहां के हरिलाजोरी नामक स्थान पर होने की बात कही जाती है.

देवघरः द्वादश ज्योतिर्लिंगों में सर्वश्रेष्ठ कामनालिंग बाबा बैद्यनाथ की नगरी देवघर को रावणेश्वर धाम कहा जाता है. देवघर में रावण को राजा के रूप में पूजा जाता है. दैत्यराज रावण के कारण ही देवघर में मनोकामनालिंग विराजे हैं. इसलिए झारखंड की सांस्कृतिक राजधानी देवघर में रावण दहन नहीं होता (Ravan combustion does not happen in Deoghar) है.

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जानकार बताते हैं कि रावण की पहचान दो रूपों में की जाती है. एक तो राक्षसपति दशानन रावण और दूसरा वेद पुराणों का ज्ञाता, प्रकांड पंडित और विद्वान. इतना ही नहीं देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ के पवित्र लिंग की स्थापना भी रावण ने ही की है. यही कारण है कि देवघर में रावण को राजा के रूप में पूजा जाता है.

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क्यों नहीं होता है रावण दहनः शास्त्र-पुराणों में वर्णित तथ्यों के आधार पर कहा जाता है कि कठोर तप के बाद जब लंकाधिपति रावण भगवान शिव से मनचाहा वर प्राप्त कर उन्हें लंका ले जा रहा था तो देवताओं में खलबली मच गई थी. देवताओं ने मिलकर भगवान शिव को लंका ले जाने से रोकने का उपाय तैयार किया. उसी के तहत दैवीय प्रकोप से रावण को देवघर पहुंचने के बाद लघुशंका का अहसास हुआ और उसकी नजर गड़ेरिया का रूप धारण करने वाले देवता पर पड़ी. गड़ेरिया को रावण ने शिवलिंग सौंपते हुए उसके लौटने तक कहीं भी नहीं रखने का अनुरोध किया. इसके बाद लघुशंका के लिए चला गया. उसी बीच भगवान रूपी गड़ेरिये ने शिवलिंग को यहां देवी सती के समीप रख दिया. बताते चलें कि देवघर में शिव और सती एक साथ विराजमान हैं. उधर लघुशंका के बाद रावण जब लौटा तो यहां पर शिवलिंग स्थापित पाया.


उसके बाद रावण ने यहां से शिवलिंग ले जाने की काफी कोशिश भी की लेकिन शिवलिंग हिला नहीं. कहा जाता है कि उसके बाद ही रावण ने क्रोधवश अपने अंगुष्ठा से शिवलिंग को दबा दिया था. उसी कारण यहां शिवलिंग धंसा हुआ है. रावण के लघुशंका से बना तालाब भी यहां के हरिलाजोरी नामक स्थान पर होने की बात कही जाती है.

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