बीकानेर : राजनीति में धन बल और सत्ता के लिए क्या कुछ नहीं होता. समीकरण बनाए बिगाड़े जाते हैं, लेकिन राजस्थान के बीकानेर में नोखा विधानसभा सीट से विधायक रहे सुरजाराम ने दिखा दिया कि महत्वकांक्षाओं को तिलांजलि कैसे दी जाती है.
पूर्व विधायक सुरजाराम और उनका परिवार बरसों से बीकानेर की सर्वोदय बस्ती में टीन-टप्पर के मकान में गुजर बसर कर रहा है. इस जीवन से उन्हें शिकवा नहीं, बल्कि वे खुश हैं कि सियासत की काली कोठरी से अपनी ईमारीदारी और निष्ठा को बेदाग बाहर निकाल लाए हैं. उनके परिवार को भी इस जीवन से कोई गुरेज नहीं.
1980 में बीकानेर से पहली बार विधायक बनने वालों में बीडी कल्ला और देवीसिंह भाटी के साथ सुरजाराम भी थे. वे देहात के कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे और बीकानेर सहकारी बैंक के चेयरमैन भी. चाहते तो बरसों बरस राजनीति का सुख भोगते. लेकिन लालच और महत्वकांक्षाओं के मकड़जाल से वे बाहर आ गए. अब कोई मलाल भी नहीं.
सरकारी नौकरी छोड़कर चुनाव लड़े
सरकारी नौकरी छोड़कर सुरजाराम पहली बार चुनावी मैदान में उतरे. सुरजाराम ने कांग्रेस के प्रत्याशी के तौर पर जीत हासिल की. इसके बाद विधानसभा का एक और चुनाव लड़ा, लेकिन जीत नहीं पाए. दो साल तक वे देहात कांग्रेस के अध्यक्ष रहे. 1993 के बाद सुरजाराम पूरी तरह से राजनीति से दूर होते चले गए.
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करीब पांच साल तक विधायक रहने के साथ ही संगठन में पदाधिकारी और सहकारी बैंक के चेयरमैन जैसे पदों पर रहने के बावजूद बीकानेर के इस नेता ने कभी राजनीति के लिए अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया. आज भी बीकानेर के सर्वोदय बस्ती में कच्चे मकान में रह रहे सुरजाराम के बारे में कोई नहीं कर सकता कि यह कभी विधायक रहे हैं. पूर्व विधायक सुरजाराम और उनकी पत्नी को दो बेटियां और एक बेटा है. 44 साल की उम्र में विधायक बने सुरजाराम कहते हैं कि उन्हें किसी से कोई गिला शिकवा नहीं है. हालांकि पार्टी के नेताओं की ओर से उन्हें भूल जाने के बाद पर वे कहते हैं कि अब वह राजनीति से पूरी तरह से दूर हो गए हैं. अब राजनीति का स्वरूप भी बदल गया है.
उनके साथ के विधायक कहां से कहां पहुंच गए
राजस्थान के विधानसभा चुनाव में साल 1980 में बीकानेर जिले की चार विधानसभा सीटों- बीकानेर, कोलायत, लूणकरणसर और नोखा से चार नए विधायक पहली बार चुनकर विधानसभा में पहुंचे थे. वर्तमान में प्रदेश की सरकार में शिक्षा मंत्री बी डी कल्ला तब बीकानेर से विधायक थे, पूर्व मंत्री और कद्दावर नेता देवीसिंह भाटी कोलायत से थे, लूणकरणसर से मनीराम और नोखा विधानसभा क्षेत्र से सुरजाराम पहली बार विधानसभा में बतौर विधायक चुनाव जीते थे.
बीकानेर सहकारी बैंक के चेयरमैन बने
1980 के विधानसभा चुनाव में नोखा सुरक्षित सीट से चुनाव जीते सुरजाराम चुनाव जीतने के दो साल बाद बीकानेर के सहकारी बैंक के चेयरमैन बने और तकरीबन तीन साल तक चेयरमैन रहे. यह वह दौर था, जब प्रदेश की कांग्रेस की सरकार में चार मुख्यमंत्री बदले. नोखा सुरक्षित सीट थी. सुरजाराम ने सरकारी नौकरी छोड़ी, चुनाव लड़ा और जीत गए. कांग्रेस विधायक और सहकारी बैंक के चेयरमैन रहने के बाद उन्होंने संगठन में भी जिम्मेदारी निभाई. दो साल तक देहात कांग्रेस के अध्यक्ष रहे.
1993 के बाद सुरजाराम पूरी तरह से राजनीति से दूर हो गए. बीकानेर के इस नेता ने कभी राजनीति के लिए अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया. बीकानेर की सर्वोदय बस्ती में कच्चे मकान में वे परिवार समेत रह रहे हैं. कांग्रेस में राजीव गांधी, इंदिरा गांधी और संजय गांधी के दौर के नेता सुरजाराम अब कांग्रेस में सक्रिय नहीं हैं. वे कहते हैं कि कांग्रेस का समय वापस आएगा और देश में कांग्रेस ही सुधार करने में सक्षम है.
राजनीति में आने से पहले सुरजाराम बीकानेर अभिलेखागार में सरकारी नौकरी में थे. इसके बाद राजनीति में चले गए. विधायक रहे लेकिन ईमानदारी उनमें कूट-कूट कर भरी थी. कभी कोई गलत फायदा राजनीति से नहीं उठाया. उनका मकान आज भी कच्चा है. उनका जीवन अब खेती-बाड़ी से होने वाली आय पर ही निर्भर है. इतनी पेंशन भी नहीं आती कि गुजारा हो सके. उनके पुत्र रामशरण कहते हैं कि उनके पिता ने हमेशा सिद्धांतों की राजनीति की और वही उन्हें सिखाया. वे अपने जीवन से संतुष्ट हैं. सुरजाराम के बेटे का भी राजनीति से कोई वास्ता नहीं है.
पूर्व सीएम के नजदीकी रिश्तेदार सुरजाराम
राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ पहाड़िया के नजदीकी रिश्तेदार होने का लाभ भी कभी सुरजाराम ने अपने विधायक के कार्यकाल या उसके बाद नहीं उठाया. सर्वोदय बस्ती स्थित अपने मकान में सुरजाराम रहते हैं और मकान पूरी तरह से कच्चा है. बल्कि इस पैतृक संपत्ति में उनके भाई भी हिस्सेदार हैं. वर्तमान में सुरजाराम जिस घर में रह रहे हैं वहां कभी विधायक रहते हुए उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री जगन्नाथ पहाड़िया और पूर्व मुख्यमंत्री शिवचरण माथुर की सभा करवाई थी.