नई दिल्ली : सूरत की एक अदालत ने 2019 के मानहानि मामले में कांग्रेस नेता राहुल गांधी को दोषी ठहराया, जिसके बाद लोकसभा से उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया. मामला 'मोदी सरनेम' से जुड़ा था. राहुल पर मानहानि का ये पहला मामला नहीं है. 2014 में महाराष्ट्र के भिवंडी की एक अदालत ने उन्हें आरएसएस कार्यकर्ता राजेश कुंटे मिश्रा द्वारा दायर एक शिकायत के आधार पर आईपीसी की धारा 499 और 500 के तहत मानहानि के एक अन्य मामले में समन किया था.
क्या है मामला? : महात्मा गांधी की हत्या से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को जोड़ने संबंधी बयान के मामले में 2014 में राहुल गांधी के खिलाफ एक आपराधिक शिकायत दर्ज कराई गई थी. आरएसएस के एक कार्यकर्ता द्वारा दायर की गई शिकायत में आरोप लगाया गया कि 2014 के लोकसभा चुनावों से पहले महाराष्ट्र के भिवंडी में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा आयोजित एक सार्वजनिक रैली के दौरान राहुल गांधी ने कहा था, 'यह उनकी शैली है. उनके द्वारा गांधीजी की हत्या की गई, आरएसएस के लोगों ने गांधीजी को गोली मार दी और आज उनके लोग गांधीजी की बात करते हैं.'
राजेश कुंटे मिश्रा की शिकायत में आरोप लगाया गया है कि राहुल गांधी ने आरएसएस और उसके सदस्यों की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के इरादे से ऐसा बयान दिया था. इस पर राहुल गांधी के खिलाफ तृतीय न्यायिक मजिस्ट्रेट, प्रथम श्रेणी, भिवंडी द्वारा धारा 499 और 500 के तहत एक आपराधिक मामला दर्ज किया गया था. इसके बाद, राहुल ने भिवंडी अदालत का समन रद्द कराने के लिए बंबई उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने ये कहा: 10 मार्च, 2015 को बॉम्बे हाई कोर्ट के एमएल तहलियानी की एकल-न्यायाधीश पीठ ने 'राहुल गांधी बनाम राजेश कुंटे' के भिवंडी अदालत में मानहानि के मामले में राहुल के खिलाफ समन या कार्यवाही को रद्द करने से इनकार कर दिया. बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा, 'मेरी राय में, जब तक यह स्थापित नहीं हो जाता है कि बयान अच्छी नीयत से दिया गया था, धारा 499 के तहत परिभाषित अपराध और आईपीसी की धारा 500 के तहत दंडनीय होगा.'
कोर्ट ने यह भी तर्क दिया कि उसने इस मामले को 'असाधारण' नहीं माना या सीआरपीसी की धारा 482 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करने के लिए उपयुक्त नहीं माना. कोर्ट ने कहा, 'सीआरपीसी की धारा 482 की शक्तियों का प्रयोग संयम से करने की आवश्यकता है.' इसके बाद राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था.1 सितंबर, 2016 को, सर्वोच्च न्यायालय के जस्टिस दीपक मिश्रा और रोहिंटन फली नरीमन की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने राहुल गांधी को भिवंडी अदालत के समक्ष उनके खिलाफ मानहानि की कार्यवाही को रद्द करने की याचिका वापस लेने की अनुमति दी.
बंबई उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने से न्यायालय के इनकार के बाद राहुल गांधी के अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने याचिका को वापस लेने का निर्णय लिया.
यह फैसला 14 मई, 2016 को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर 'राहुल गांधी बनाम राजेश कुंटे और अन्य' नामक एक नई याचिका पर आया था. इस याचिका को पिछली याचिकाओं से अलग करने वाली बात यह थी कि राहुल ने धारा 499 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी थी और इस बार आईपीसी की धारा 500 को. हालांकि, सर्वोच्च न्यायालय ने 'सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत संघ' के मामले में अपने 2016 के फैसले पर भरोसा करते हुए इस चुनौती को खारिज कर दिया.
क्या था सुब्रमण्यम स्वामी केस? सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस दीपक मिश्रा और प्रफुल्ल सी पंत की पीठ ने 2016 में अपने 'सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत संघ' के फैसले में आईपीसी की धारा 499 और 500 के तहत आपराधिक मानहानि की संवैधानिकता को बरकरार रखा. कोर्ट ने कहा कि भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को प्रतिष्ठा के अधिकार के खिलाफ संतुलित किया जाना चाहिए. न्यायालय ने यह भी कहा कि आपराधिक मानहानि का अपराध संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन नहीं करता है और यह अनुच्छेद 19 (2) में निर्धारित कानून के अनुसार आनुपातिक या उचित प्रतिबंध है.
कोर्ट ने यह भी कहा कि लोकतंत्र में बोलने की आज़ादी और असहमति का अधिकार मौजूद है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं हो सकता कि एक नागरिक दूसरे को बदनाम करे, क्योंकि प्रतिष्ठा की सुरक्षा एक मौलिक अधिकार होने के साथ-साथ एक मानवाधिकार भी है. कोर्ट ने 13 मई, 2016 को अपने फैसले में कहा, 'उपरोक्त विश्लेषण के मद्देनजर, हम भारतीय दंड संहिता की धारा 499 और 500 और दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 199 की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखते हैं.'
पढ़ें- सदस्यता रद्द होने पर राहुल गांधी ने दी पहली प्रतिक्रिया, बोले- हर कीमत चुकाने को तैयार हूं