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पंजाब में त्रिशंकु विधानसभा के आसार, आखिर क्या है पार्टियों की रणनीति

पंजाब विधानसभा चुनावों (punjab assembly election 2022) से पूर्व और मतदान के बाद हुए सर्वेक्षणों में त्रिशंकु विधानसभा की संभावनाएं बन रही हैं. (Punjab likely Headed Towards Hung Assembly) ऐसे में जहां राजनीतिक मजबूरियों के चलते अकाली दल और भाजपा में गठबंधन की संभावनाएं बन रही हैं, वहीं अन्य दलों को विघटन का भय सता रहा है.

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पंजाब में त्रिशंकु विधानसभा के आसार
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Published : Mar 1, 2022, 4:43 PM IST

चंडीगढ़ : पंजाब में त्रिशंकु विधानसभा बनने की संभावनाएं हैं. पंजाब विधानसभा चुनावों को लेकर हुए 9 सर्वे इस बात की पुष्टि कर रहे हैं. ऐसे में जोड़-तोड़ की संभावनाओं में न तो कांग्रेस के पास कोई समाधान है और ना ही आम आदमी पार्टी के पास. ले-देकर अकाली दल और भाजपा के गठजोड़ की संभावनाओं की तरफ इशारा होने लगा है. भाजपा को पंजाब में राज्य सभा के इसी वर्ष 7 सीटों पर होने वाले चुनाव और बाद में लोकसभा चुनाव के लिए सहयोग की आवश्यकता है, जबकि अकाली दल को पार्टी में फिर से बगावत की स्थिति से बचने के लिए सत्ता में आना बड़ी जरूरत है.

दोनों पार्टियों का एक दूसरे के लिए नरम व्यवहार और मीठी बयानबाजी भी गठजोड़ के आधार को मजबूत कर रहे हैं.दोनों ही पार्टियों के नेता चुनाव परिणामों की प्रतीक्षा करने की बात कह कर किसी संभावना की बात को छुपाते नजर आ रहे हैं.

जानिए क्या है कांग्रेस की स्थिति : चंद रोज पहले ही पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं के साथ बैठक करके चुनावी सीटों की समीक्षा की. हालांकि सार्वजनिक रूप से कांग्रेस का ये दावा है कि वह पूर्ण बहुमत लेकर सत्ता में आएगी. हालांकि औपचारिक रूप से पार्टी का कोई भी नेता इस बात को आत्मविश्वास के साथ कहने के लिए तैयार नहीं है. कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी परेशानी यही है कि अगर अल्पमत की सम्भावना में किसी से गठजोड़ की नौबत आती है तो उसके समक्ष कोई विकल्प नहीं है.
कांग्रेस ना तो आम आदमी पार्टी से गठजोड़ कर सकती है और ना ही उसका गठजोड़ किसी भी हालत में भाजपा अथवा अकाली दल से हो सकता है. चुनाव लड़ रहे किसानों के संगठन के उम्मीदवारों को कोई सीट मिल पाएगी, इसकी संभावना अभी तक किसी भी चुनाव सर्वे में नहीं आई है. निर्दलीय प्रत्याशियों में भी ऐसा कोई नजर नहीं आ रहा, जो चुनाव जीत सके. अकाली दल अमृतसर के हिस्से में एकाध सीट आने की संभावना कलाकार दीप सिद्धू की मौत के बाद नजर आने लगी है. लेकिन उससे भी कांग्रेस गठजोड़ कर सके, इसकी संभावना नहीं है. कांग्रेस के नेताओं में इस बात का भय अवश्य देखा जा रहा है कि अगर कहीं अकाली दल और भाजपा, दोनों मिलाकर अन्य दलों से अधिक सीटें जीत जाते हैं तो ऐसे में कांग्रेस में विघटन का खतरा बन सकता है.
'आप' को बहुमत न मिला तो विधायक टूटने का खतरा
कमोबेश ऐसी ही स्थिति आम आदमी पार्टी की है. विभिन्न चुनाव सर्वे में आम आदमी पार्टी को सबसे बड़े दल के रूप में बताया जा रहा है. हालांकि आम आदमी पार्टी जादुई आंकड़ा ले पाएगी ऐसा किसी भी सर्वे में नहीं आया. आम आदमी पार्टी का गठजोड़ भी ना तो कांग्रेस से हो सकता है और ना ही अकाली दल अथवा भाजपा से. कलाकार से राजनीति में आए दीप सिद्दू की मौत के बाद अकाली दल अमृतसर को एकाध सीट जीतने की उम्मीद है. आम आदमी पार्टी से उसका गठजोड़ होने की संभावना तो हो सकती है लेकिन एक सीट से वह सरकार में बहुमत ले पाए, सर्वे में ऐसी कोई संभावना नजर नहीं आ रही. यही वजह है कि आप के नेता भी चिंता में हैं.

2017 में भी पार्टी ने पूरा जोर लगा दिया था, लेकिन वो सरकार बनाने के लिए आवश्यक आंकड़े तक नहीं पहुंच पाई .अगर इस बार भी ऐसा होता है तो पार्टी के भविष्य के लिए संकट बन सकता है. आम आदमी पार्टी के नेताओं में इस बात को लेकर भी भय अवश्य है कि अगर कोई भी पार्टी चुनावों में बहुमत नहीं ले पाती और अकाली दल व भाजपा की सीटों की संख्या मिलाकर अन्य पार्टियों से ज्यादा हो जाती है, तो ऐसे में उनकी पार्टी में विघटन की आशंका हो सकती है. विशेष रूप से वो विधायक, जिनकी पहले मजबूत राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं रही है. गौरतलब है कि निवर्तमान सरकार में आम आदमी पार्टी के 20 विधायक थे, जिनमें से एक-एक करके 9 विधायक पार्टी छोड़ गए थे अथवा दल बदल कर के अन्य दलों में चले गए थे. पार्टी के नेता इसी बात को लेकर आशंकित हैं कि अगर आम आदमी पार्टी बहुमत का आंकड़ा नहीं ले पाती तो पार्टी में विघटन हो सकता है, इसके लिए पार्टी को सबसे अधिक खतरा भाजपा से है.

अकाली–भाजपा गठजोड़ की राह : अलबत्ता अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी में इस बात को लेकर समीक्षा अवश्य शुरू हो चुकी है कि अगर कहीं गठजोड़ करके सरकार बनाने का मौका मिला तो उसका आधार क्या-क्या होगा. अकाली दल और भाजपा का गठजोड़ 24 साल तक रहा लेकिन तीन कृषि कानूनों को लेकर अकाली दल ने भाजपा से गठबंधन तोड़ लिया था. अकाली दल और भाजपा गठजोड़ में भाजपा को 23 सीटें दी जाती थीं, जबकि अकाली दल 94 सीटों पर चुनाव लड़ती थी. भाजपा में इस बात की समीक्षा भी हो रही है कि पार्टी अपने पुराने हिस्से वाली उन 23 सीटों पर अकाली दल के बिना कितना प्रभाव कायम रख पाएगी. इसके साथ जिन सीटों पर भाजपा पहली बार चुनाव लड़ रही है, उनमें से कितनी सीटों पर वह जीत पाएगी अथवा बेहतर प्रदर्शन कर पाएगी. ऐसी समीक्षा ही अकाली दल में भी की जा रही है.

अकाली दल के प्रवक्ता और पूर्व मंत्री डॉ. दलजीत सिंह चीमा का इस बारे में कहना था कि पार्टी ने प्रत्येक सीट पर अपना पूरा दम लगाया है. प्रत्येक सीट पर समीक्षा की जा रही है. विशेष रूप से पार्टी उन 23 सीटों पर भी नजर बनाए है, जो हिस्से में कभी भाजपा को दी जाती थीं. अकाली दल के उम्मीदवार इन सीटों पर पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं. इसके अलावा अकाली दल की उन अन्य सीटों पर स्थिति क्या रहेगी, जहां कभी अकाली-भाजपा गठजोड़ था.

गठजोड़ पर बयानबाजी से बच रहीं पार्टियां
वैसे 24 साल पुराने गठजोड़ वाले अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी ने एक बार फिर से एक दूसरे के लिए द्वार खोलने शुरू कर दिए हैं. अकाली दल के सरपरस्त प्रकाश सिंह बादल ने अकाली दल और भाजपा गठजोड़ की संभावना के खिलाफ कोई भी टिप्पणी नहीं की. मतदान के दिन 20 फरवरी को अकाली दल के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया ने भी पत्रकारों द्वारा अकाली दल और भाजपा गठजोड़ की संभावना के बारे में पूछे प्रश्न के उत्तर में कहा था कि चुनाव परिणाम आने के बाद ही कोई विचार हो सकता है. मजीठिया के इसी बयान की प्रतिक्रिया के रूप में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव तरुण चुघ ने भी कहा था कि पहले लोगों का फतवा आ लेने दो, 10 मार्च के बाद ही गठजोड़ के बारे में कोई विचार किया जाएगा. तरुण चुघ ने यह भी कहा था कि वह ऐसी किसी संभावना के बारे में ना तो इनकार कर रहे हैं और ना ही इकरार कर रहे हैं.

दिलचस्प बात यह भी रही के मतदान से 1 सप्ताह पूर्व पंजाब में व्यापक प्रचार करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अकाली दल अथवा बादल को उस तरह निशाना नहीं बनाया जिस प्रकार से उन्होंने गांधी परिवार, कांग्रेस और दिल्ली के मुख्यमंत्री को निशाना बनाया था. इसी तरह बादल परिवार के सदस्यों ने भी आम आदमी पार्टी और कांग्रेस को तो निशाना बनाया, लेकिन उनका रवैया भाजपा को लेकर नरम रहा. प्रधानमंत्री मोदी ने मतदान से पूर्व प्रकाश सिंह बादल को कोरोना होने पर फोन भी किया और उनकी कुशलक्षेम की कामना भी की. इससे पूर्व भी प्रकाश सिंह बादल के जन्मदिन पर भी प्रधानमंत्री ने मुबारक दी थी.

मतदान से एक दिन पूर्व पंजाब के दो नामी और प्रभावशाली डेरों द्वारा भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों एवं अकाली दल के प्रत्याशियों को अनौपचारिक रूप से समर्थन के निर्णय ने चुनावों के समीकरण को रातोंरात बदल दिया था.

'किंग मेकर की भूमिका अदा कर सकती है भाजपा'
चंडीगढ़ से पंजाबी के वरिष्ठ पत्रकार हरिश्चंद्र का कहना है कि अगर भाजपा ऐसी स्थिति में दो अंकों में सीटें प्राप्त करने में सफल हो जाती है और बराबर में अकाली दल का प्रदर्शन भी अच्छा रहता है तो भाजपा, पंजाब में किंग मेकर की भूमिका अदा कर सकती है और अकाली दल भाजपा गठजोड़ पुनर्जीवित हो सकता है. भाजपा की नजरें वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों की तरफ हैं. पंजाब में लोकसभा की 13 सीटें हैं शायद यही वजह थी कि चुनाव प्रचार में भी अकाली दल अथवा भाजपा ने एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने से किनारा किया. हरिश्चंद्र का कहना है कि अकाली दल की अन्य मांगों को मानने में भाजपा को कोई परेशानी भी नहीं रहेगी.

जानिए जगतार सिंह ने क्या कहा
चंडीगढ़ स्थित पंजाब के राजनीतिक मामलों के विशेषज्ञ जगतार सिंह का कहना है कि अकाली दल की कमान बादल परिवार के हाथों में बरकरार रखने के लिए अकाली दल का सत्ता में आना आवश्यक है. यह अकाली दल की मजबूरी होगी कि अगर उसे भाजपा की मदद से पंजाब में सरकार बनानी पड़ी तो वह भाजपा से गठजोड़ करेगा अन्यथा सुखबीर सिंह बादल की लीडरशिप के विरुद्ध फिर से पार्टी में बगावत हो सकती है. दिलचस्प बात यह भी है कि अनौपचारिक रूप से अकाली दल और भाजपा दोनों पार्टियों के नेता, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के उन चेहरों की समीक्षा करते नज़र आते हैं, जिन्हें उनकी पार्टियों से तोड़ा जा सकता है.

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दोनों पार्टियों का एक दूसरे के लिए नरम व्यवहार और मीठी बयानबाजी भी गठजोड़ के आधार को मजबूत कर रहे हैं.दोनों ही पार्टियों के नेता चुनाव परिणामों की प्रतीक्षा करने की बात कह कर किसी संभावना की बात को छुपाते नजर आ रहे हैं.

जानिए क्या है कांग्रेस की स्थिति : चंद रोज पहले ही पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं के साथ बैठक करके चुनावी सीटों की समीक्षा की. हालांकि सार्वजनिक रूप से कांग्रेस का ये दावा है कि वह पूर्ण बहुमत लेकर सत्ता में आएगी. हालांकि औपचारिक रूप से पार्टी का कोई भी नेता इस बात को आत्मविश्वास के साथ कहने के लिए तैयार नहीं है. कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी परेशानी यही है कि अगर अल्पमत की सम्भावना में किसी से गठजोड़ की नौबत आती है तो उसके समक्ष कोई विकल्प नहीं है.
कांग्रेस ना तो आम आदमी पार्टी से गठजोड़ कर सकती है और ना ही उसका गठजोड़ किसी भी हालत में भाजपा अथवा अकाली दल से हो सकता है. चुनाव लड़ रहे किसानों के संगठन के उम्मीदवारों को कोई सीट मिल पाएगी, इसकी संभावना अभी तक किसी भी चुनाव सर्वे में नहीं आई है. निर्दलीय प्रत्याशियों में भी ऐसा कोई नजर नहीं आ रहा, जो चुनाव जीत सके. अकाली दल अमृतसर के हिस्से में एकाध सीट आने की संभावना कलाकार दीप सिद्धू की मौत के बाद नजर आने लगी है. लेकिन उससे भी कांग्रेस गठजोड़ कर सके, इसकी संभावना नहीं है. कांग्रेस के नेताओं में इस बात का भय अवश्य देखा जा रहा है कि अगर कहीं अकाली दल और भाजपा, दोनों मिलाकर अन्य दलों से अधिक सीटें जीत जाते हैं तो ऐसे में कांग्रेस में विघटन का खतरा बन सकता है.
'आप' को बहुमत न मिला तो विधायक टूटने का खतरा
कमोबेश ऐसी ही स्थिति आम आदमी पार्टी की है. विभिन्न चुनाव सर्वे में आम आदमी पार्टी को सबसे बड़े दल के रूप में बताया जा रहा है. हालांकि आम आदमी पार्टी जादुई आंकड़ा ले पाएगी ऐसा किसी भी सर्वे में नहीं आया. आम आदमी पार्टी का गठजोड़ भी ना तो कांग्रेस से हो सकता है और ना ही अकाली दल अथवा भाजपा से. कलाकार से राजनीति में आए दीप सिद्दू की मौत के बाद अकाली दल अमृतसर को एकाध सीट जीतने की उम्मीद है. आम आदमी पार्टी से उसका गठजोड़ होने की संभावना तो हो सकती है लेकिन एक सीट से वह सरकार में बहुमत ले पाए, सर्वे में ऐसी कोई संभावना नजर नहीं आ रही. यही वजह है कि आप के नेता भी चिंता में हैं.

2017 में भी पार्टी ने पूरा जोर लगा दिया था, लेकिन वो सरकार बनाने के लिए आवश्यक आंकड़े तक नहीं पहुंच पाई .अगर इस बार भी ऐसा होता है तो पार्टी के भविष्य के लिए संकट बन सकता है. आम आदमी पार्टी के नेताओं में इस बात को लेकर भी भय अवश्य है कि अगर कोई भी पार्टी चुनावों में बहुमत नहीं ले पाती और अकाली दल व भाजपा की सीटों की संख्या मिलाकर अन्य पार्टियों से ज्यादा हो जाती है, तो ऐसे में उनकी पार्टी में विघटन की आशंका हो सकती है. विशेष रूप से वो विधायक, जिनकी पहले मजबूत राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं रही है. गौरतलब है कि निवर्तमान सरकार में आम आदमी पार्टी के 20 विधायक थे, जिनमें से एक-एक करके 9 विधायक पार्टी छोड़ गए थे अथवा दल बदल कर के अन्य दलों में चले गए थे. पार्टी के नेता इसी बात को लेकर आशंकित हैं कि अगर आम आदमी पार्टी बहुमत का आंकड़ा नहीं ले पाती तो पार्टी में विघटन हो सकता है, इसके लिए पार्टी को सबसे अधिक खतरा भाजपा से है.

अकाली–भाजपा गठजोड़ की राह : अलबत्ता अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी में इस बात को लेकर समीक्षा अवश्य शुरू हो चुकी है कि अगर कहीं गठजोड़ करके सरकार बनाने का मौका मिला तो उसका आधार क्या-क्या होगा. अकाली दल और भाजपा का गठजोड़ 24 साल तक रहा लेकिन तीन कृषि कानूनों को लेकर अकाली दल ने भाजपा से गठबंधन तोड़ लिया था. अकाली दल और भाजपा गठजोड़ में भाजपा को 23 सीटें दी जाती थीं, जबकि अकाली दल 94 सीटों पर चुनाव लड़ती थी. भाजपा में इस बात की समीक्षा भी हो रही है कि पार्टी अपने पुराने हिस्से वाली उन 23 सीटों पर अकाली दल के बिना कितना प्रभाव कायम रख पाएगी. इसके साथ जिन सीटों पर भाजपा पहली बार चुनाव लड़ रही है, उनमें से कितनी सीटों पर वह जीत पाएगी अथवा बेहतर प्रदर्शन कर पाएगी. ऐसी समीक्षा ही अकाली दल में भी की जा रही है.

अकाली दल के प्रवक्ता और पूर्व मंत्री डॉ. दलजीत सिंह चीमा का इस बारे में कहना था कि पार्टी ने प्रत्येक सीट पर अपना पूरा दम लगाया है. प्रत्येक सीट पर समीक्षा की जा रही है. विशेष रूप से पार्टी उन 23 सीटों पर भी नजर बनाए है, जो हिस्से में कभी भाजपा को दी जाती थीं. अकाली दल के उम्मीदवार इन सीटों पर पहली बार चुनाव लड़ रहे हैं. इसके अलावा अकाली दल की उन अन्य सीटों पर स्थिति क्या रहेगी, जहां कभी अकाली-भाजपा गठजोड़ था.

गठजोड़ पर बयानबाजी से बच रहीं पार्टियां
वैसे 24 साल पुराने गठजोड़ वाले अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी ने एक बार फिर से एक दूसरे के लिए द्वार खोलने शुरू कर दिए हैं. अकाली दल के सरपरस्त प्रकाश सिंह बादल ने अकाली दल और भाजपा गठजोड़ की संभावना के खिलाफ कोई भी टिप्पणी नहीं की. मतदान के दिन 20 फरवरी को अकाली दल के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया ने भी पत्रकारों द्वारा अकाली दल और भाजपा गठजोड़ की संभावना के बारे में पूछे प्रश्न के उत्तर में कहा था कि चुनाव परिणाम आने के बाद ही कोई विचार हो सकता है. मजीठिया के इसी बयान की प्रतिक्रिया के रूप में भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव तरुण चुघ ने भी कहा था कि पहले लोगों का फतवा आ लेने दो, 10 मार्च के बाद ही गठजोड़ के बारे में कोई विचार किया जाएगा. तरुण चुघ ने यह भी कहा था कि वह ऐसी किसी संभावना के बारे में ना तो इनकार कर रहे हैं और ना ही इकरार कर रहे हैं.

दिलचस्प बात यह भी रही के मतदान से 1 सप्ताह पूर्व पंजाब में व्यापक प्रचार करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अकाली दल अथवा बादल को उस तरह निशाना नहीं बनाया जिस प्रकार से उन्होंने गांधी परिवार, कांग्रेस और दिल्ली के मुख्यमंत्री को निशाना बनाया था. इसी तरह बादल परिवार के सदस्यों ने भी आम आदमी पार्टी और कांग्रेस को तो निशाना बनाया, लेकिन उनका रवैया भाजपा को लेकर नरम रहा. प्रधानमंत्री मोदी ने मतदान से पूर्व प्रकाश सिंह बादल को कोरोना होने पर फोन भी किया और उनकी कुशलक्षेम की कामना भी की. इससे पूर्व भी प्रकाश सिंह बादल के जन्मदिन पर भी प्रधानमंत्री ने मुबारक दी थी.

मतदान से एक दिन पूर्व पंजाब के दो नामी और प्रभावशाली डेरों द्वारा भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों एवं अकाली दल के प्रत्याशियों को अनौपचारिक रूप से समर्थन के निर्णय ने चुनावों के समीकरण को रातोंरात बदल दिया था.

'किंग मेकर की भूमिका अदा कर सकती है भाजपा'
चंडीगढ़ से पंजाबी के वरिष्ठ पत्रकार हरिश्चंद्र का कहना है कि अगर भाजपा ऐसी स्थिति में दो अंकों में सीटें प्राप्त करने में सफल हो जाती है और बराबर में अकाली दल का प्रदर्शन भी अच्छा रहता है तो भाजपा, पंजाब में किंग मेकर की भूमिका अदा कर सकती है और अकाली दल भाजपा गठजोड़ पुनर्जीवित हो सकता है. भाजपा की नजरें वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों की तरफ हैं. पंजाब में लोकसभा की 13 सीटें हैं शायद यही वजह थी कि चुनाव प्रचार में भी अकाली दल अथवा भाजपा ने एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने से किनारा किया. हरिश्चंद्र का कहना है कि अकाली दल की अन्य मांगों को मानने में भाजपा को कोई परेशानी भी नहीं रहेगी.

जानिए जगतार सिंह ने क्या कहा
चंडीगढ़ स्थित पंजाब के राजनीतिक मामलों के विशेषज्ञ जगतार सिंह का कहना है कि अकाली दल की कमान बादल परिवार के हाथों में बरकरार रखने के लिए अकाली दल का सत्ता में आना आवश्यक है. यह अकाली दल की मजबूरी होगी कि अगर उसे भाजपा की मदद से पंजाब में सरकार बनानी पड़ी तो वह भाजपा से गठजोड़ करेगा अन्यथा सुखबीर सिंह बादल की लीडरशिप के विरुद्ध फिर से पार्टी में बगावत हो सकती है. दिलचस्प बात यह भी है कि अनौपचारिक रूप से अकाली दल और भाजपा दोनों पार्टियों के नेता, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के उन चेहरों की समीक्षा करते नज़र आते हैं, जिन्हें उनकी पार्टियों से तोड़ा जा सकता है.

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