चंडीगढ़ : भले ही राजनीति में परिवारवाद की आलोचना होती हो, मगर पंजाब विधानसभा चुनाव के दौरान नेताओं ने अपने परिवार के सदस्यों और करीबियों को राजनीति में उतारकर अपनी बिरासत आगे बढ़ा ली. इस चुनाव के दौरान कई परिवार ऐसे भी हैं, जिनके दो सदस्य चुनाव मैदान में थे. परिवार को चुनावी राजनीति में बढ़ाने में कांग्रेस अन्य दलों से आगे रही.
इस बार पंजाब के चुनाव मैदान में दो सौ अधिक नए चेहरे पहली बार किस्मत आजमा चुके हैं. इनमें अधिकतर राजनीतिक दिग्गजों के परिवार से हैं. पूर्व मुख्यमंत्री राजिंदर कौर भट्टल लहरगागा से चुनाव लड़ रही हैं, जबकि उनके दामाद विक्रम बाजवा साहनेवाल से चुनाव लड़ रहे हैं. बादल परिवार के मुखिया प्रकाश सिंह बादल लांबी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि उनके बेटे सुखबीर सिंह बादल जलालाबाद और दामाद आदेश प्रताप सिंह कैरों पट्टी निर्वाचन क्षेत्र से अकाली दल के उम्मीदवार हैं.
अमृतसर पूर्व से अकाली नेता बिक्रम सिंह मजीठिया कांग्रेस नेता नवजोत सिंह सिद्धू के खिलाफ मैदान में हैं, जबकि उनकी पत्नी गुनीव मजीठिया पहली बार मजीठा निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ रही हैं. धर्मकोट निर्वाचन क्षेत्र से जत्थेदार तोता सिंह और मोगा निर्वाचन क्षेत्र से उनके पुत्र बलजिंदर सिंह मैदान में किस्मत आजमा रहे हैं.
प्रो. प्रेम सिंह चंदूमाजरा घनौर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रहे हैं और उनके पुत्र हरिंदरपाल सिंह चंदूमाजरा सनौर निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं. इसी तरह प्रताप सिंह बाजवा कादियां विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं जबकि उनके भाई फतेहजंग सिंह बाजवा भाजपा के टिकट पर बटाला विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं.
मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी चमकौर साहिब से कांग्रेस के कैंडिडेट है जबकि उनके भाई डॉ मनोहर सिंह बस्सी पठाना से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. कांग्रेस उम्मीदवार राणा गुरजीत सिंह कपूरथला से मैदान में है और उनके बेटे सुल्तानपुर लोधी से निर्दलीय उम्मीदवार हैं. इस बार समराला विधानसभा क्षेत्र से अमरीक सिंह ढिल्लों और उनके चचेरे भाई के पोते परमजीत सिंह ढिल्लों एक-दूसरे के खिलाफ बतौर निर्दलीय उम्मीदवार ताल ठोंक रहे हैं.
इसके अलावा कई राजनीतिक परिवारों के सदस्यों ने इस चुनाव में किस्मत आजमाया है. माना जा रहा है कि नेताओं की इस नई पौध से राजनीतिक विरासत संभालने की कोशिश की गई. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सुनील जाखड़ ने इस बार अपने भतीजे संदीप जाखड़ के लिए अबोहर में जमकर चुनाव प्रचार किया. जाखड़ खुद दो बार लोकसभा और विधानसभा चुनाव हार चुके हैं. अब उनके पंजाब से राज्यसभा के उम्मीदवार होने की चर्चा है.
पूर्व केंद्रीय मंत्री पवन बंसल ने भी बरनाला सीट पर अपने बेटे मुनीश बंसल के लिए जमकर प्रचार किया. पूर्व अध्यक्ष निर्मल सिंह कहलों के बेटे रविकरण कहलों डेरा बाबा नानक निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव मैदान में थे. अकाली दल के दिवंगत नेता सेवा सिंह सेखवां के बेटे जगरूप सिंह सेखवां अपने परिवार की राजनीतिक विरासत को बचाने के लिए कादियां निर्वाचन क्षेत्र से उम्मीदवार बने. इस बार उन्होंने आम आदमी पार्टी का हाथ थामा है.
वर्तमान विधायक सुरजीत सिंह धीमान के बेटे जसविंदर सिंह सुनाम क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि पूर्व विधायक धनवंत सिंह धुरी के बेटे समित सिंह अमरगढ़ निर्वाचन क्षेत्र से ताल ठोंक चुके हैं. सुमित पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के करीबी रिश्तेदार भी हैं. सांसद डॉ. अमर सिंह ने अपने बेटे कामिल अमर सिंह के लिए दिन-रात जागकर प्रचार किया. कामिल अमर सिंह रायकोट से कैंडिडेट थे.
इस चुनाव में दिवंगत अकाली नेता जत्थेदार गुरचरण सिंह टोहरा के पोते कंवरबीर सिंह अमलोह निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा के उम्मीदवार बने. सांसद चौधरी संतोख सिंह के बेटे बिक्रमजीत सिंह ने फिल्लौर से कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा. पूर्व मंत्री सरवन सिंह फिल्लौर के बेटे दमनवीर सिंह संयुक्त अकाली दल के टिकट पर फिल्लौर सीट से ही चुनाव मैदान में उतरे. दिवंगत पूर्व सांसद जगदेव सिंह खुदिया के बेटे गुरमीत सिंह खुदिया ने भी पूर्व सीएम प्रकाश सिंह बादल के खिलाफ लांबी सीट से दावेदारी की. पूर्व विधायक गुरनाम सिंह अबुल खुराना के बेटे जगपाल सिंह अबुल खुराना भी कांग्रेस से टिकट लेकर लांबी से चुनाव में कूद पड़े.
पूर्व सांसद प्रो. साधु सिंह की बेटी डॉ. बलजीत कौर भी मलोट से आम आदमी पार्टी की कैंडिडेट थीं. पंजाब में इस बार 200 से ज्यादा नए चेहरे चुनाव मैदान में उतरे. शिरोमणि अकाली दल ने करीब 24 नये चेहरों को मैदान में उतारा था, जबकि कांग्रेस पार्टी ने करीब 12 नए उम्मीदवारों को टिकट दिया था. आम आदमी पार्टी ने 15 नये चेहरों को दांव लगाया है. बीजेपी और उसके सहयोगियों ने करीब 65 नए चेहरों को टिकट दिया है. संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से करीब 100 नए चेहरे लाए गए. मगर परिवारों को टिकट देने के मामले में कांग्रेस की जीत हुई है, उसने कई बड़े नेताओं के करीबी रिश्तेदारों को मैदान में उतारा था.
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