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कोरोना इलाज के नाम पर प्राइवेट अस्पतालों की मनमानी, थमा रहे लाखों का बिल - मनमानी बिल वसूलने

देश की राजधानी दिल्ली के एनकेएस अस्पताल में मरीजों के परिजनों से मनमानी बिल वसूलने और हजारों की महंगी दवाइयां रोज खरीदने के लिये बाध्य करने का आरोप लगा है.

प्राइवेट अस्पतालों की मनमानी
प्राइवेट अस्पतालों की मनमानी
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Published : May 9, 2021, 2:55 PM IST

नई दिल्ली : कोरोना संक्रमण का इलाज अब तक कोई वैज्ञानिक बेशक नहीं ढूंढ पाए हैं, लेकिन महामारी के दूसरी लहर में प्राइवेट अस्पताल कोविड केयर के नाम पर अपनी खूब मनमानी कर रहे हैं. आईसीयू में भर्ती मरीजों से लाखों रुपये बिल के नाम पर तो वसूले ही जा रहे हैं, साथ ही हजारों रुपये की दवाइयां भी अपने अस्पताल के केमिस्ट शॉप से ही खरीदने को बाध्य किया जा रहा है.

देश की राजधानी दिल्ली के एनकेएस अस्पताल से ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं, जिसमें परिजन अस्पताल पर मनमानी बिल वसूलने और हजारों की महंगी दवाइयां रोज खरीदने के लिये बाध्य करने का आरोप लगा चुके हैं. ताजा मामला एक बुजुर्ग दंपत्ति का है जो फिलहाल दिल्ली के गुलाबी बाग स्थित एनकेएस अस्पताल के आईसीयू में भर्ती हैं.

दिल्ली के यमुना विहार निवासी सतीश अग्रवाल और शशि अग्रवाल की तबियत बिगड़ने के बाद उनकी बेटी निधि गोयल ने 5 मई को एनकेएस अस्पताल में भर्ती कराया था. अब निधि गोयल का कहना है कि अस्पताल ने दोनों मरीजों के इलाज के लिये पहले ही उनसे दस लाख रुपये जमा करवा लिये और वह 5 दिनों में लगभग 5 लाख की दवाइयां वह खरीद चुके हैं. इसके बावजूद डॉक्टर अब तक यह नहीं बता सके हैं कि उनके माता पिता कब आईसीयू से बाहर आने की स्थिति में होंगे.

कोरोना इलाज के नाम पर प्राइवेट अस्पतालों की मनमानी

इतना ही नहीं अस्पताल के प्रोटोकॉल के मुताबिक उन्हें रोज दवाइयों की लंबी लिस्ट थमा दी जाती है, जो अस्पताल के केमिस्ट शॉप से ही खरीदना अनिवार्य है. बुजुर्ग माता पिता के इलाज में पहले ही 15 लाख रुपये खर्च कर चुकी निधि गोयल को इस परिस्थिति में कोई रास्ता नहीं दिख रहा. वह दिल्ली सरकार से गुहार लगा रही हैं कि उनकी मदद की जाए.

बता दें कि एनकेएस अस्पताल से यह पहली घटना नहीं है. रविवार के दिन जब ईटीवी भारत की टीम अस्पताल परिसर में पहुंची तो वहां मौजूद अन्य परिजनों की भी यही समस्या थी. उनका कहना था कि डॉक्टरों की तरफ से कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया जाता, लेकिन दवाइयों की लंबी लिस्ट और लाखों का बिल जरूर थमा दिए जाते हैं.

परिजनों की शंका दूर करने और अस्पताल प्रबंधन पर लग रहे गंभीर आरोपों के विषय में अस्पताल प्रशासन से बातचीत करने का प्रयास भी किया गया, लेकिन बार बार पूछने के बावजूद भी अस्पताल के प्रवेश पर तैनात सुरक्षा कर्मियों और कर्मचारी ने कोई जवाब नहीं दिया.

पढ़ें - लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन ले जा रहे वाहनों से हाईवे पर नहीं ली जाएगी टोल फीस

यह दिल्ली के केवल एक अस्पताल की नहीं, बल्कि ज्यादातर प्राइवेट अस्पतालों की यही कहानी है. सरकारी अस्पतालों में जगह न मिल पाने के कारण गंभीर मरीजों को परिजन प्राइवेट अस्पतालों में ले कर भागते हैं. वहां उन्हें बेड, आईसीयू और इलाज तो मिल जाता है, लेकिन उसके बदले वसूली जाने वाली मोटी रकम किसी भी मध्यम वर्गीय परिवार के लिये भारी पड़ती है.

लोग आन्ध्र प्रदेश की जगन सरकार का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि उन्होंने अपने राज्य में सभी अस्पतालों में कोविड के निःशुल्क इलाज के आदेश दिये हैं. अब दिल्ली की परेशान जनता भी केजरीवाल सरकार से ऐसी ही योजना लाने की मांग कर रही है.

नई दिल्ली : कोरोना संक्रमण का इलाज अब तक कोई वैज्ञानिक बेशक नहीं ढूंढ पाए हैं, लेकिन महामारी के दूसरी लहर में प्राइवेट अस्पताल कोविड केयर के नाम पर अपनी खूब मनमानी कर रहे हैं. आईसीयू में भर्ती मरीजों से लाखों रुपये बिल के नाम पर तो वसूले ही जा रहे हैं, साथ ही हजारों रुपये की दवाइयां भी अपने अस्पताल के केमिस्ट शॉप से ही खरीदने को बाध्य किया जा रहा है.

देश की राजधानी दिल्ली के एनकेएस अस्पताल से ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं, जिसमें परिजन अस्पताल पर मनमानी बिल वसूलने और हजारों की महंगी दवाइयां रोज खरीदने के लिये बाध्य करने का आरोप लगा चुके हैं. ताजा मामला एक बुजुर्ग दंपत्ति का है जो फिलहाल दिल्ली के गुलाबी बाग स्थित एनकेएस अस्पताल के आईसीयू में भर्ती हैं.

दिल्ली के यमुना विहार निवासी सतीश अग्रवाल और शशि अग्रवाल की तबियत बिगड़ने के बाद उनकी बेटी निधि गोयल ने 5 मई को एनकेएस अस्पताल में भर्ती कराया था. अब निधि गोयल का कहना है कि अस्पताल ने दोनों मरीजों के इलाज के लिये पहले ही उनसे दस लाख रुपये जमा करवा लिये और वह 5 दिनों में लगभग 5 लाख की दवाइयां वह खरीद चुके हैं. इसके बावजूद डॉक्टर अब तक यह नहीं बता सके हैं कि उनके माता पिता कब आईसीयू से बाहर आने की स्थिति में होंगे.

कोरोना इलाज के नाम पर प्राइवेट अस्पतालों की मनमानी

इतना ही नहीं अस्पताल के प्रोटोकॉल के मुताबिक उन्हें रोज दवाइयों की लंबी लिस्ट थमा दी जाती है, जो अस्पताल के केमिस्ट शॉप से ही खरीदना अनिवार्य है. बुजुर्ग माता पिता के इलाज में पहले ही 15 लाख रुपये खर्च कर चुकी निधि गोयल को इस परिस्थिति में कोई रास्ता नहीं दिख रहा. वह दिल्ली सरकार से गुहार लगा रही हैं कि उनकी मदद की जाए.

बता दें कि एनकेएस अस्पताल से यह पहली घटना नहीं है. रविवार के दिन जब ईटीवी भारत की टीम अस्पताल परिसर में पहुंची तो वहां मौजूद अन्य परिजनों की भी यही समस्या थी. उनका कहना था कि डॉक्टरों की तरफ से कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया जाता, लेकिन दवाइयों की लंबी लिस्ट और लाखों का बिल जरूर थमा दिए जाते हैं.

परिजनों की शंका दूर करने और अस्पताल प्रबंधन पर लग रहे गंभीर आरोपों के विषय में अस्पताल प्रशासन से बातचीत करने का प्रयास भी किया गया, लेकिन बार बार पूछने के बावजूद भी अस्पताल के प्रवेश पर तैनात सुरक्षा कर्मियों और कर्मचारी ने कोई जवाब नहीं दिया.

पढ़ें - लिक्विड मेडिकल ऑक्सीजन ले जा रहे वाहनों से हाईवे पर नहीं ली जाएगी टोल फीस

यह दिल्ली के केवल एक अस्पताल की नहीं, बल्कि ज्यादातर प्राइवेट अस्पतालों की यही कहानी है. सरकारी अस्पतालों में जगह न मिल पाने के कारण गंभीर मरीजों को परिजन प्राइवेट अस्पतालों में ले कर भागते हैं. वहां उन्हें बेड, आईसीयू और इलाज तो मिल जाता है, लेकिन उसके बदले वसूली जाने वाली मोटी रकम किसी भी मध्यम वर्गीय परिवार के लिये भारी पड़ती है.

लोग आन्ध्र प्रदेश की जगन सरकार का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि उन्होंने अपने राज्य में सभी अस्पतालों में कोविड के निःशुल्क इलाज के आदेश दिये हैं. अब दिल्ली की परेशान जनता भी केजरीवाल सरकार से ऐसी ही योजना लाने की मांग कर रही है.

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