बेंगलुरु : कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा है कि महाराष्ट्र की सीमा से लगे बीदर में शाहीन एजुकेशन सोसाइटी में पिछले साल एक राजद्रोह के मामले में पुलिस द्वारा बच्चों से पूछताछ करना किशोर न्याय अधिनियम का उल्लंघन है. अदालत ने राज्य सरकार को यह निर्देश जारी करने के लिए कहा है कि इसकी पुनरावृत्ति नहीं हो.
वरिष्ठ अधिवक्ता नयना ज्योति झावर और अन्य की एक याचिका के आधार पर मुख्य न्यायाधीश अभय श्रीनिवास ओका और न्यायमूर्ति एनएस संजय गौड़ा की खंडपीठ ने उन तस्वीरों पर गौर किया, जिनमें वर्दी पहने और हथियार लिए हुए पुलिसकर्मियों को पिछले साल मार्च में बच्चों से पूछताछ करते दिखाया गया था. याचिकाकर्ता ने राजद्रोह मामले में पुलिस को किशोर न्याय अधिनियम का उल्लंघन नहीं करने का निर्देश देने का अनुरोध किया था.
पीठ ने कहा कि अगर हम इस मामले से आंखें मूंद लेते हैं तो यह दोहराया जाएगा. हम पुलिस की इस कार्रवाई को माफ नहीं करेंगे. बच्चों को यह सब क्यों झेलना चाहिए, यह जारी नहीं रह सकता. वरिष्ठ अधिवक्ता नयना ज्योति झावर और साउथ इंडिया सेल फॉर ह्यूमन राइट्स एजुकेशन एंड मॉनिटरिंग ने पुलिस विभाग के खिलाफ याचिका दायर की थी. उन्होंने आरोप लगाया है कि पुलिस ने 9 साल के एक बच्चे सहित 85 छात्रों की जांच की जिससे बच्चों को आघात पहुंचा.
नियमानुसार बच्चों के साथ बातचीत करते समय पुलिस अधिकारियों को सामान्य पोशाक पहनने की सलाह दी जाती है. पीठ ने कहा कि किशोर न्याय कानून के प्रावधानों के तहत सिर्फ महिला अधिकारी ही छात्राओं से बात कर सकती हैं. जबकि इस मामले में इन नियमों की अनदेखी की गई.
पीठ ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह उन पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई रिपोर्ट पेश करे, जिन्होंने कथित तौर पर बच्चों से पूछताछ के दौरान किशोर न्याय अधिनियम का उल्लंघन किया था. इस बीच एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने पीटीआई को बताया कि इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति से बचने के लिए जल्द ही उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार एक निर्देश जारी किया जाएगा.
यह था पूरा मामला
यह मामला स्कूल में एक नाटक के मंचन से संबंधित है, जहां बच्चों द्वारा प्रयुक्त पटकथा में कथित तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी थी. यह नाटक कथित तौर पर संशोधित नागरिकता अधिनियम और राष्ट्रीय नागरिक पंजीकरण (एनआरसी) के खिलाफ था. एक शिकायत के आधार पर कार्यक्रम के प्रबंधन और आयोजकों के खिलाफ राजद्रोह का मामला दर्ज किया गया था.
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मामले में प्रधानाध्यापिका समेत छात्रा के माता-पिता को गिरफ्तार कर बाद में जमानत पर रिहा कर दिया गया था. याचिका में पुलिस कार्रवाई को चुनौती दी गई और कहा गया कि पुलिस ने मामले की जांच के दौरान सीआरपीसी, किशोर न्याय अधिनियम के सभी दिशा-निर्देशों का उल्लंघन किया. याचिकाकर्ताओं ने पुलिस से छात्रों और अभिभावकों को मुआवजा देने की भी मांग की है.