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देखमुख मामले में सीबीआई ने कोर्ट से कहा- पुलिस किसी जमींदारी व्यवस्था का हिस्सा नहीं

सीबीआई ने यह बात महाराष्ट्र सरकार उस कदम का विरोध करते हुए की, जिसमें उसने अनिल देशमुख मामले में दो शीर्ष नौकरशाहों को जारी समन का रद्द करने का अनुरोध किया है.

अनिल देशमुख
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Published : Nov 23, 2021, 6:23 AM IST

मुंबई: केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने सोमवार को बंबई उच्च न्यायालय से कहा कि राज्य का पुलिस बल एक स्वतंत्र संस्था है, जिसके कार्यपालिका के नियंत्रण से मुक्त होने और किसी 'ज़मींदारी व्यवस्था' का हिस्सा नहीं होने की उम्मीद की जाती है. सीबीआई ने यह बात महाराष्ट्र सरकार उस कदम का विरोध करते हुए की, जिसमें उसने अनिल देशमुख मामले में दो शीर्ष नौकरशाहों को जारी समन का रद्द करने का अनुरोध किया है.

सीबीआई ने न्यायमूर्ति नितिन जामदार और न्यायमूर्ति एस वी कोतवाल की पीठ से कहा कि महाराष्ट्र सरकार को अदालत का दरवाजा खटखटाने और राज्य के मुख्य सचिव सीताराम कुंटे और वर्तमान डीजीपी संजय पांडेय को पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख के खिलाफ जबरन वसूली की जांच से संबंधित मामले में जारी समन को रद्द करने का अनुरोध करने का कोई अधिकार नहीं है.

सीबीआई की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अमन लेखी ने पीठ से कहा कि कानून के अनुसार, पुलिस बल को संस्थागत रूप दिया गया है और यह किसी 'जमींदारी व्यवस्था' का हिस्सा नहीं कि महाराष्ट्र सरकार यह दावा करते हुए उच्च न्यायालय का रुख करे कि वह ऐसा पुलिस प्रतिष्ठान की ओर से कर रही है, क्योंकि सीबीआई द्वारा उनके डीजीपी को समन जारी किये जाने से पूरे पुलिस बल का मनोबल गिर रहा है.

लेखी ने कहा कि राज्य की याचिका पूरी तरह से गलत है और देशमुख के खिलाफ सीबीआई की जांच में हस्तक्षेप करने का प्रयास है. महाराष्ट्र सरकार के वकील डेरियस खंबाटा ने इससे पहले पीठ से कहा था कि राज्य ने मामले में उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाकर सही किया, क्योंकि मुख्य सचिव और उसके सबसे वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को सीबीआई का समन पूरे पुलिस बल का मनोबल गिरा रहा है.

खंबाटा ने कहा कि राज्य कानून के एक प्रावधान 'पैरेंस पैट्री अधिकार क्षेत्र' का इस्तेमाल कर रहा है जो किसी नाबालिग, दिव्यांग या अदालत का रुख करने की स्थिति में नहीं किसी व्यक्ति के परिजन, कानूनी अभिभावक या मित्र को अदालत जाने की अनुमति देता है.

लेखी ने हालांकि कहा, पैरेंस पैट्री का सवाल ही नहीं उठता. हम एक आपराधिक मामले में दोष से निपट रहे हैं और किसी आपराधिक कानून में, केंद्रीय एजेंसी की जांच को रोकने के लिए पैरेंस पैट्री के सिद्धांत को लागू नहीं किया जा सकता है. उन्होंने सवाल किया, यह राज्य की हताशा को दर्शाता है. डीजीपी और मुख्य सचिव किस श्रेणी में आते हैं - नाबालिग, विक्षिप्त, दिव्यांग?

लेखी ने कहा कि मौजूदा मामले में राज्य सरकार के किसी मौलिक अधिकार का हनन नहीं किया जा रहा है. उन्होंने दावा किया कि राज्य सरकार की असली मंशा मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह द्वारा देशमुख के खिलाफ जबरन वसूली के आरोपों की सीबीआई जांच में हस्तक्षेप करना है.

पढ़ें: भारत को महाशक्ति नहीं बल्कि मानवता आधारित व्यवस्था में सहायक पथ प्रदर्शक बनना है : भागवत

लेखी ने कहा, पुलिस बल किसी जमींदारी व्यवस्था का हिस्सा नहीं है. इसलिए, कार्यपालिका अपने पुलिस बल का मालिक होने का दावा नहीं कर सकती. लेखी ने राज्य सरकार की इस दलील का विरोध किया कि मामले में चल रही जांच से समझौता किया गया है क्योंकि मौजूदा सीबीआई निदेशक सुबोध जायसवाल तब राज्य के डीजीपी थे, जब देशमुख गृह मंत्री थे, इसलिए वह ऐसी कई बैठकों का हिस्सा रहे थे, जिसमें पुलिस अधिकारियों के तबादलों और तैनाती पर चर्चा हुई थी.

पीटीआई-भाषा

मुंबई: केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने सोमवार को बंबई उच्च न्यायालय से कहा कि राज्य का पुलिस बल एक स्वतंत्र संस्था है, जिसके कार्यपालिका के नियंत्रण से मुक्त होने और किसी 'ज़मींदारी व्यवस्था' का हिस्सा नहीं होने की उम्मीद की जाती है. सीबीआई ने यह बात महाराष्ट्र सरकार उस कदम का विरोध करते हुए की, जिसमें उसने अनिल देशमुख मामले में दो शीर्ष नौकरशाहों को जारी समन का रद्द करने का अनुरोध किया है.

सीबीआई ने न्यायमूर्ति नितिन जामदार और न्यायमूर्ति एस वी कोतवाल की पीठ से कहा कि महाराष्ट्र सरकार को अदालत का दरवाजा खटखटाने और राज्य के मुख्य सचिव सीताराम कुंटे और वर्तमान डीजीपी संजय पांडेय को पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख के खिलाफ जबरन वसूली की जांच से संबंधित मामले में जारी समन को रद्द करने का अनुरोध करने का कोई अधिकार नहीं है.

सीबीआई की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अमन लेखी ने पीठ से कहा कि कानून के अनुसार, पुलिस बल को संस्थागत रूप दिया गया है और यह किसी 'जमींदारी व्यवस्था' का हिस्सा नहीं कि महाराष्ट्र सरकार यह दावा करते हुए उच्च न्यायालय का रुख करे कि वह ऐसा पुलिस प्रतिष्ठान की ओर से कर रही है, क्योंकि सीबीआई द्वारा उनके डीजीपी को समन जारी किये जाने से पूरे पुलिस बल का मनोबल गिर रहा है.

लेखी ने कहा कि राज्य की याचिका पूरी तरह से गलत है और देशमुख के खिलाफ सीबीआई की जांच में हस्तक्षेप करने का प्रयास है. महाराष्ट्र सरकार के वकील डेरियस खंबाटा ने इससे पहले पीठ से कहा था कि राज्य ने मामले में उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाकर सही किया, क्योंकि मुख्य सचिव और उसके सबसे वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को सीबीआई का समन पूरे पुलिस बल का मनोबल गिरा रहा है.

खंबाटा ने कहा कि राज्य कानून के एक प्रावधान 'पैरेंस पैट्री अधिकार क्षेत्र' का इस्तेमाल कर रहा है जो किसी नाबालिग, दिव्यांग या अदालत का रुख करने की स्थिति में नहीं किसी व्यक्ति के परिजन, कानूनी अभिभावक या मित्र को अदालत जाने की अनुमति देता है.

लेखी ने हालांकि कहा, पैरेंस पैट्री का सवाल ही नहीं उठता. हम एक आपराधिक मामले में दोष से निपट रहे हैं और किसी आपराधिक कानून में, केंद्रीय एजेंसी की जांच को रोकने के लिए पैरेंस पैट्री के सिद्धांत को लागू नहीं किया जा सकता है. उन्होंने सवाल किया, यह राज्य की हताशा को दर्शाता है. डीजीपी और मुख्य सचिव किस श्रेणी में आते हैं - नाबालिग, विक्षिप्त, दिव्यांग?

लेखी ने कहा कि मौजूदा मामले में राज्य सरकार के किसी मौलिक अधिकार का हनन नहीं किया जा रहा है. उन्होंने दावा किया कि राज्य सरकार की असली मंशा मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त परमबीर सिंह द्वारा देशमुख के खिलाफ जबरन वसूली के आरोपों की सीबीआई जांच में हस्तक्षेप करना है.

पढ़ें: भारत को महाशक्ति नहीं बल्कि मानवता आधारित व्यवस्था में सहायक पथ प्रदर्शक बनना है : भागवत

लेखी ने कहा, पुलिस बल किसी जमींदारी व्यवस्था का हिस्सा नहीं है. इसलिए, कार्यपालिका अपने पुलिस बल का मालिक होने का दावा नहीं कर सकती. लेखी ने राज्य सरकार की इस दलील का विरोध किया कि मामले में चल रही जांच से समझौता किया गया है क्योंकि मौजूदा सीबीआई निदेशक सुबोध जायसवाल तब राज्य के डीजीपी थे, जब देशमुख गृह मंत्री थे, इसलिए वह ऐसी कई बैठकों का हिस्सा रहे थे, जिसमें पुलिस अधिकारियों के तबादलों और तैनाती पर चर्चा हुई थी.

पीटीआई-भाषा

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