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विकास की पिच पर 'जाति' की जोरदार एंट्री, जीतेंगे या वॉकओवर देंगे पीएम मोदी? पढ़ें रिपोर्ट

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Published : Aug 24, 2021, 12:17 AM IST

Updated : Aug 24, 2021, 3:44 AM IST

बिहार के नेताओं ने जातीय जनगणना की मांग पीएम मोदी के सामने रख दी है. हालांकि जाति-धर्म से उपर उठकर 'विकासवाद' की राजनीति करने वाली भाजपा के लिए यह मुद्दा सुलझाना टेढ़ी खीर बन गया है. 2014 में नरेंद्र मोदी खुद कह चुके हैं कि 'जान दे दूंगा, जाति की राजनीति नहीं करुंगा'. बड़ा सवाल यह है कि मौजूदा हालात में वे अपने बयान पर कायम रह पाते हैं या फिर विकास के खेल में 'जाति' की राजनैतिक एंट्री को कुबूल कर लेते हैं. फिलहाल गेंद केंद्र या यूं कहें नरेंद्र मोदी के पाले में है. अब वे बोल्ड होते हैं या बाउंड्री जड़ते है, इसके लिए है बस थोड़ा सा इंतजार. पढ़ें पूरी रिपोर्ट.

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पटना : यह अजीब संयोग है कि जातीय जनगणना (Cast Census) की जिस राजनीति को बिहार ने पीएम नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) के पास जाकर रखा है, वह नरेंद्र मोदी के लिए बहुत आसान नहीं है.

बिहार में जाति जनगणना को लेकर दिल्ली पहुंची सियासत ने आज बिहार के मन को प्रधानमंत्री के सामने रख दिया. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में सभी दलों के प्रतिनिधियों ने अपनी बात को पीएम के सामने रखी और कहा कि 'जाति जनगणना जरूरी है'. हालांकि राजनैतिक विश्लेषक मानते हैं कि जाति जनगणना नीतीश कुमार की वह सियासी चाल है जो बीजेपी को जाल में फंसाने के लिए चली गई है. यह उनकी राष्ट्रीय राजनीति में ताजपोशी का भी माध्यम बन सकता है क्योंकि यह सिर्फ बिहार की बात नहीं बल्कि पूरे देश की बात है. हालांकि केंद्र ने अभी कोई स्पष्ट निर्णय नहीं लिया है.

इस बीच जातीय जनगणना की मांग तो बिहार ने कर दी है, लेकिन जिस चीज को बिहार ने मांग बनाकर नरेंद्र मोदी को भेजा था वह नरेंद्र मोदी के गले की हड्डी बनी हुई है. अब उससे बीजेपी कैसे निकल कर बाहर आएगी और मोदी क्या बयान देंगे? यह राजनीति में दिए गए बयानों की सुचिता और उस पर टिके रहने पर आकर टिक गया है. माना जा रहा है कि इस मुद्दे पर बीजेपी का स्टैंड आने वाले दिनों में न सिर्फ बिहार बल्कि पूरे देश की राजनैतिक दिशा तय करने वाला होगा.

चुनावी वादे आएंगे याद

3 मार्च 2014 को मुजफ्फरपुर में पीएम नरेंद्र मोदी की हुंकार रैली थी. रैली में ही रामविलास पासवान बीजेपी के साथ खड़े हुए थे. तब प्रधानमंत्री के दावेदार नरेंद्र मोदी ने यह कहा था कि 'जान दे दूंगा लेकिन जाति की राजनीति नहीं करूंगा'.

अब सवाल यह उठ रहा है कि जिस जाति की राजनीति को लेकर पूरा बिहार नरेंद्र मोदी से मिलने गया था, उसमें सभी जाति के ही लंबरदार हैं. सब लोगों की अपनी जाति पर गोलबंदी और पकड़ है. उनकी सियासत भी बिहार में करने का एकाधिकार इनके पास है. सवाल ये है कि अब ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्या करेंगे?

बिहार में जाति की राजनीति

बिहार से जो दल नरेंद्र मोदी से मिला है उसमें खुद नीतीश कुमार 'दलित-महादलित' की राजनीति को लेकर बिहार में खूब चर्चा बटोरी हैं. जीतन राम मांझी की बात की जाए तो एक खास समुदाय के सबसे बड़े नेता के तौर पर अपनी पहचान बनाना चाहते हैं.

तेजस्वी यादव अपने पिता के राजनीतिक सियासत के उस विरासत को संभाले हुए हैं जिसमें 'भूरा बाल साफ करो' जैसा नारा ही दिया गया. आज की राजनीति में जाति की बात करके मंत्री की कुर्सी तक पहुंचे मुकेश सहनी 'मल्लाह' समाज की बात करते हैं. कांग्रेस का एमवाई समीकरण सबसे लंबे समय तक उसे गद्दी पर रखा है.

अब यहीं से सियासत दूसरा रंग ले रही है. जब हर जाति के लोग जाति की गिनती करवाने के लिए आ ही गए हैं, तो फिर केंद्र को इस में गुरेज क्या है? लेकिन सवाल यह है कि जाति की राजनीति सिर्फ जाति भर रह जाए. इसी धंधे में देश की सियासत फंस गई है.

एक सुर में बोला पक्ष-विपक्ष

मोदी से मिलकर निकलने के बाद नीतीश कुमार ने कहा कि जाति जनगणना से न तो समाज में कोई विभेद पैदा होगा और ना ही किसी तरह की दिक्कत आएगी. हां, देश का भला जरूर होगा. जातियों के आधार पर गिनती हो जाएगी तो उनके लिए नीतियां बनानी आसान होंगी. तेजस्वी ने भी कहा कि कुत्ते-बिल्ली की गिनती हो सकती है, पेड़ की गिनती हो सकती है तो फिर जाति की गिनती क्यों नहीं हो सकती?

सियासत की नई पटकथा

एक बार फिर बिहार में सियासत की नई पटकथा लिखने की तैयारी है. जाति के नाम पर सभी दल साथ हैं. यहां विकास की राजनीति के लिए इसलिए जगह नहीं है क्योंकि विकास के नाम पर बहुत सी सियासी पार्टियां बहुत कुछ होने नहीं देंगी. जो राजनैतिक दल चाहते हैं वह सिर्फ और सिर्फ जाति के आधार पर ही संभव है.

2022 के चुनावों पर असर

जाति आधारित जनगणना की राजनीति को अगर हवा दी जाती है तो 2022 में होने वाले पांच राज्यों के चुनाव भी इसी पर केंद्रित हो सकते हैं. क्योंकि 2015 में मोहन भागवत के आरक्षण की सियासत ने बीजेपी की पूरी राजनीतिक दिशा ही पलट दी थी. अब यह मांग भी नया रंग ला सकती है.

यह भी पढ़ें-जातिगत जनगणना: बिहार के नेताओं की मोदी से मुलाकात, नीतीश और तेजस्वी बोले, पीएम ने सुनी बात

केंद्र के पाले में फेंक दी गेंद

2022 के लिए होने वाले विधानसभा के चुनाव में जाति कोई बड़ा मुद्दा न बनकर खड़ा हो जाए कि फिर मोदी को जवाब देना मुश्किल हो जाए. दरअसल, पीएम मोदी के लिए सबसे बड़ी परेशानी यह है कि जाति की गिनती कैसे करवाएंगे? बहरहाल अब सियासत है तो सियासत होगी ही. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह मुद्दा विकास की राजनीति का रुख मोड़ सकता है. फिलहाल वक्त का इंतजार करना ही मुनासिब है.

पटना : यह अजीब संयोग है कि जातीय जनगणना (Cast Census) की जिस राजनीति को बिहार ने पीएम नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) के पास जाकर रखा है, वह नरेंद्र मोदी के लिए बहुत आसान नहीं है.

बिहार में जाति जनगणना को लेकर दिल्ली पहुंची सियासत ने आज बिहार के मन को प्रधानमंत्री के सामने रख दिया. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में सभी दलों के प्रतिनिधियों ने अपनी बात को पीएम के सामने रखी और कहा कि 'जाति जनगणना जरूरी है'. हालांकि राजनैतिक विश्लेषक मानते हैं कि जाति जनगणना नीतीश कुमार की वह सियासी चाल है जो बीजेपी को जाल में फंसाने के लिए चली गई है. यह उनकी राष्ट्रीय राजनीति में ताजपोशी का भी माध्यम बन सकता है क्योंकि यह सिर्फ बिहार की बात नहीं बल्कि पूरे देश की बात है. हालांकि केंद्र ने अभी कोई स्पष्ट निर्णय नहीं लिया है.

इस बीच जातीय जनगणना की मांग तो बिहार ने कर दी है, लेकिन जिस चीज को बिहार ने मांग बनाकर नरेंद्र मोदी को भेजा था वह नरेंद्र मोदी के गले की हड्डी बनी हुई है. अब उससे बीजेपी कैसे निकल कर बाहर आएगी और मोदी क्या बयान देंगे? यह राजनीति में दिए गए बयानों की सुचिता और उस पर टिके रहने पर आकर टिक गया है. माना जा रहा है कि इस मुद्दे पर बीजेपी का स्टैंड आने वाले दिनों में न सिर्फ बिहार बल्कि पूरे देश की राजनैतिक दिशा तय करने वाला होगा.

चुनावी वादे आएंगे याद

3 मार्च 2014 को मुजफ्फरपुर में पीएम नरेंद्र मोदी की हुंकार रैली थी. रैली में ही रामविलास पासवान बीजेपी के साथ खड़े हुए थे. तब प्रधानमंत्री के दावेदार नरेंद्र मोदी ने यह कहा था कि 'जान दे दूंगा लेकिन जाति की राजनीति नहीं करूंगा'.

अब सवाल यह उठ रहा है कि जिस जाति की राजनीति को लेकर पूरा बिहार नरेंद्र मोदी से मिलने गया था, उसमें सभी जाति के ही लंबरदार हैं. सब लोगों की अपनी जाति पर गोलबंदी और पकड़ है. उनकी सियासत भी बिहार में करने का एकाधिकार इनके पास है. सवाल ये है कि अब ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्या करेंगे?

बिहार में जाति की राजनीति

बिहार से जो दल नरेंद्र मोदी से मिला है उसमें खुद नीतीश कुमार 'दलित-महादलित' की राजनीति को लेकर बिहार में खूब चर्चा बटोरी हैं. जीतन राम मांझी की बात की जाए तो एक खास समुदाय के सबसे बड़े नेता के तौर पर अपनी पहचान बनाना चाहते हैं.

तेजस्वी यादव अपने पिता के राजनीतिक सियासत के उस विरासत को संभाले हुए हैं जिसमें 'भूरा बाल साफ करो' जैसा नारा ही दिया गया. आज की राजनीति में जाति की बात करके मंत्री की कुर्सी तक पहुंचे मुकेश सहनी 'मल्लाह' समाज की बात करते हैं. कांग्रेस का एमवाई समीकरण सबसे लंबे समय तक उसे गद्दी पर रखा है.

अब यहीं से सियासत दूसरा रंग ले रही है. जब हर जाति के लोग जाति की गिनती करवाने के लिए आ ही गए हैं, तो फिर केंद्र को इस में गुरेज क्या है? लेकिन सवाल यह है कि जाति की राजनीति सिर्फ जाति भर रह जाए. इसी धंधे में देश की सियासत फंस गई है.

एक सुर में बोला पक्ष-विपक्ष

मोदी से मिलकर निकलने के बाद नीतीश कुमार ने कहा कि जाति जनगणना से न तो समाज में कोई विभेद पैदा होगा और ना ही किसी तरह की दिक्कत आएगी. हां, देश का भला जरूर होगा. जातियों के आधार पर गिनती हो जाएगी तो उनके लिए नीतियां बनानी आसान होंगी. तेजस्वी ने भी कहा कि कुत्ते-बिल्ली की गिनती हो सकती है, पेड़ की गिनती हो सकती है तो फिर जाति की गिनती क्यों नहीं हो सकती?

सियासत की नई पटकथा

एक बार फिर बिहार में सियासत की नई पटकथा लिखने की तैयारी है. जाति के नाम पर सभी दल साथ हैं. यहां विकास की राजनीति के लिए इसलिए जगह नहीं है क्योंकि विकास के नाम पर बहुत सी सियासी पार्टियां बहुत कुछ होने नहीं देंगी. जो राजनैतिक दल चाहते हैं वह सिर्फ और सिर्फ जाति के आधार पर ही संभव है.

2022 के चुनावों पर असर

जाति आधारित जनगणना की राजनीति को अगर हवा दी जाती है तो 2022 में होने वाले पांच राज्यों के चुनाव भी इसी पर केंद्रित हो सकते हैं. क्योंकि 2015 में मोहन भागवत के आरक्षण की सियासत ने बीजेपी की पूरी राजनीतिक दिशा ही पलट दी थी. अब यह मांग भी नया रंग ला सकती है.

यह भी पढ़ें-जातिगत जनगणना: बिहार के नेताओं की मोदी से मुलाकात, नीतीश और तेजस्वी बोले, पीएम ने सुनी बात

केंद्र के पाले में फेंक दी गेंद

2022 के लिए होने वाले विधानसभा के चुनाव में जाति कोई बड़ा मुद्दा न बनकर खड़ा हो जाए कि फिर मोदी को जवाब देना मुश्किल हो जाए. दरअसल, पीएम मोदी के लिए सबसे बड़ी परेशानी यह है कि जाति की गिनती कैसे करवाएंगे? बहरहाल अब सियासत है तो सियासत होगी ही. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह मुद्दा विकास की राजनीति का रुख मोड़ सकता है. फिलहाल वक्त का इंतजार करना ही मुनासिब है.

Last Updated : Aug 24, 2021, 3:44 AM IST
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