नई दिल्ली : पाक पीएम इमरान खान (Pakistan Prime Minister Imran Khan) की बीजिंग यात्रा के दौरान इस्लामाबाद की विफल अर्थव्यवस्था, अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों के बाहर निकलने के बाद वैश्विक स्तर पर इसका अलगाव और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गिरती साख की झलक मिलती है. पीएम खान के लिए यह संकट तभी हल हो सकता है जब बीजिंग आर्थिक और रणनीतिक दोनों तरह से समर्थन करना जारी रखे.
हालांकि यह बैठक इस्लामाबाद की असफल आर्थिक नीति के भविष्य के प्रक्षेपवक्र को सामने रखेगी. भारतीय विशेषज्ञों का मानना है कि बलूचिस्तान क्षेत्र में पाकिस्तान में विद्रोह और टीटीपी में उछाल के कारण बीजिंग को इस्लामाबाद में भारी मात्रा में पूंजी प्राप्त करने की संभावना नहीं है.
ईटीवी भारत से खास बातचीत में ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली में निदेशक प्रोफेसर हर्ष वी पंत ने कहा कि अगर चीन का पाकिस्तान को किसी भी प्रकार की ठोस सहायता देने का मन होता, तो वे पहले ही दे चुके होते. यह पाकिस्तान में चीनी कर्मियों पर सुरक्षा के लिए खतरे की तरह है, जिन्हें इस क्षेत्र में सबसे खराब अनुभव हुए हैं. हालांकि शुक्रवार को चीन के प्रमुख थिंक टैंकों, विश्वविद्यालयों और बीजिंग में पाकिस्तान स्टडी सेंटर के प्रमुखों और प्रतिनिधियों के साथ एक सत्र में भाग लेते हुए पाक पीएम ने यह कहते हुए भारत पर हमला किया कि वर्तमान शासन क्षेत्र में दीर्घकालिक अस्थिरता पैदा कर रहा है. चाहे वह संयुक्त राष्ट्र में हो, या किसी अन्य द्विपक्षीय या बहुपक्षीय शिखर सम्मेलन में, इस्लामाबाद कभी भी कश्मीर मुद्दे को उठाने का अवसर नहीं चूकता.
पाक पीएम ने कहा कि दुनिया को कश्मीरियों के खिलाफ भारत के चल रहे अभियान पर ध्यान देना चाहिए. पीएम खान ने कश्मीर मुद्दे पर इस्लामाबाद को अटूट समर्थन के लिए राष्ट्रपति शी जिनपिंग को धन्यवाद दिया. उन्होंने पाक-चीन के संबंधों के महत्व और क्षेत्रीय स्थिरता और समृद्धि सुनिश्चित करने पर जोर दिया. क्षेत्रीय गतिशीलता पर चर्चा करते हुए पीएम खान ने यह भी दोहराया कि इस समय अफगान अकेले नहीं रह गए हैं. काबुल के साथ काम करने के लिए पाक-चीन के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि वहां वापस शांति, विकास और संपर्क की जरुरत है.
इस्लामाबाद के सर्वकालिक सहयोगी के रूप में देखे जा रहे बीजिंग और इस्लामाबाद ने शुक्रवार को चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) के हिस्से के रूप में औद्योगिक सहयोग पर रूपरेखा समझौते पर हस्ताक्षर किए. हालांकि इस समझौते के साथ बीजिंग ने पाकिस्तान को अपने समर्थन का प्रदर्शन किया, लेकिन केवल कुछ हद तक ही.
प्रो हर्ष पंत ने यह भी कहा कि यह कठिन लगता है कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग इस्लामाबाद में आंतरिक राजनीतिक उथल-पुथल को देखते हुए पीएम खान को कोई भी ऋण देने के लिए तैयार होंगे. क्योंकि ऐसी भविष्यवाणियां हैं कि पीएम खान अपना कार्यकाल भी पूरा नहीं कर पाएंगे. चीनी जानते हैं कि यह सेना ही है जो सभी निर्णय लेती है. चीन-पाकिस्तान के घनिष्ठ संबंध के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि यह नई दिल्ली के हितों, सुरक्षा और संप्रभुता के लिए अत्यंत चिंता का विषय बन गया है. प्रो पंत ने कहा कि जब आप चीन-पाक गठजोड़ के बारे में बात करते हैं, तो यह मूल रूप से चीन के बारे में होता है.
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चीन के राष्ट्रीय विकास और सुधार आयोग (एनडीआरसी) के अध्यक्ष हे लाइफेंग के साथ पीएम खान की बैठक के बाद कहा कि इस समझौते को सीपीईसी के दूसरे चरण के रूप में देखा जा रहा है, जो दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को गहरा करेगा. जो अपनी-अपनी सीमाओं पर एक साझा दुश्मन साझा करते हैं. समझौते का उद्देश्य पाकिस्तान में चीनी निवेश को बढ़ावा देना और साथ ही चीनी औद्योगिक क्षमता को स्थानांतरित करना है. इसके साथ ही कृषि के क्षेत्र में महत्वपूर्ण समझौतों पर भी हस्ताक्षर किए गए हैं. इसके अलावा इस यात्रा के साथ पीएम खान देश के घटते विदेशी मुद्रा भंडार को स्थिर करने में मदद करने के लिए चीन से $3 बिलियन का ऋण प्राप्त करने की भी उम्मीद करेंगे.