नई दिल्ली : ईटीवी भारत ने शनिवार को ICECEI के अध्यक्ष यशपाल सिंह (ICECEI President Yashpal Singh) से विशेष बातचीत की. बातचीत के दौरान यशपाल ने कहा कि देश में कोरोना महामारी के कारण हुए लॉकडाउन में यदि शिक्षा क्षेत्र की बात करें तो सबसे ज्यादा प्रभावित प्ले/ प्री स्कूल ही हुए हैं जो लगातार 16 महीनों से बंद पड़े हैं. जहां एक तरफ प्राइमरी, सेकंडरी और सीनियर सेकंडरी स्कूल ऑनलाइन पद्धति से छात्रों को पढ़ा कर अभिभावकों से मासिक फीस ले पा रहे हैं.
वहीं, देशभर में अलग अलग तरह से प्री प्राइमरी या प्ले स्कूलों 1.5 से 4 वर्ष तक की उम्र के लाखों बच्चे पढ़ते थे जिन्हें ऑनलाइन माध्यम से पढ़ाना संभव नहीं है. छोटी उम्र में बच्चे ऑनलाइन माध्यम से पढ़ाई करने में सहज नहीं हो सकते. इस कारण से सभी प्ले स्कूल आज स्थाई रूप से बंद हो चुके हैं. इन स्कूलों के माध्यम से लाखों लोगों को रोजगार भी मिलता है जिसमें 95% महिलाएं होती हैं. आज वे सभी महिलाएं बेरोजगार हो चुकी हैं. ऐसे में जब सरकार महिला सशक्तिकरण की बात करती है तो उन्हें इस समस्या की तरफ भी ध्यान देना चाहिए.
याचिकाकर्ता यशपाल का कहना है कि भारतीय रिजर्व बैंक (Reserve Bank of India) ने केवल 6 से 7 महीने बंद रहे लघु, छोटे व माध्यम उपक्रमों को आर्थिक सहायता पैकेज (MSME framework 1.0 और 2.0) पॉलिसी के माध्यम से जारी किया. उसी तर्ज पर इन प्री प्राइमरी / प्ले स्कूलों को भी बैंकों या अन्य वित्तीय संस्थानों से लिए गए कर्ज में कम से कम 6 महीने या स्थिति सामान्य होने तक ब्याज मुक्त कर्ज स्थगन (मोरेटोरियम) दिया जाना चाहिए.
घोर आर्थिक संकट से जूझ रहे प्री/ प्ले स्कूलों के लिए जब दिल्ली के नरेला निवासी यशपाल ने मुहिम शुरू की तो देशभर से 250 से ज्यादा संस्थान उनसे जुड़ गए. उनका कहना है कि लाखों की संख्या में लोग प्रभावित हुए हैं और इनमें से कई तो अपने आय के एकमात्र साधन को बेचने तक पर मजबूर हो गए हैं.
यशपाल कहते हैं, 'मेरे पास प्रतिदिन ऐसे लोगों के फोन कॉल आते हैं जो स्कूल चला रहे थे, लेकिन महामारी के बाद कि परिस्थितियों के कारण अब उनके पास कुछ भी नहीं बचा। या तो वह अब आमदनी के लिये वैकल्पिक काम की तलाश कर रहे हैं या अपने संस्थान को अधिग्रहित करने के लिये किसी बड़े या आर्थिक रूप से सदृढ़ संस्थान को संपर्क कर रहे हैं.'
असंगठित होने के कारण प्रतिनिधित्व नहीं
देश में लाखों की संख्या में प्ले/प्री स्कूलों का संचालन कई वर्षों से चल रहा है. असंगठित होने के कारण इनका प्रतिनिधित्व नहीं है और इस कारण सरकार भी इस ओर ध्यान नहीं देती है. सामान्य स्थिति में इन स्कूलों के पास न तो छात्रों की कमी होती है और न ही स्कूल चलाने में कोई परेशानी लेकिन 16 महीने से बंद स्कूलों को अब अगले 16 महीनों तक भी कोई उम्मीद नजर नहीं आती.
यह भी पढ़ें- 2021 : बाल श्रम के उन्मूलन का अंतरराष्ट्रीय वर्ष
यशपाल कहते हैं कि महामारी का पहला दौर नियंत्रित होने के बाद संस्थानों में कुछ उम्मीद जागी थी लेकिन फिर दूसरे दौर ने उनकी कमर तोड़ दी. अब वैज्ञानिक और विशेषज्ञ कोरोना के तीसरे दौर की बात कह रहे हैं जो छोटे बच्चों को सबसे ज्यादा प्रभावित कर सकती है. ऐसे में प्री/प्ले स्कूलों को निकट भविष्य में खुलने और सामान्य रूप से चलने की कोई उम्मीद नहीं दिखती. अब केवल सुप्रीम कोर्ट और सरकार ही उनके लिये कुछ राहत दे सकती है.