नई दिल्ली : कोरोना के कारण सिविल सेवा की मुख्य परीक्षा (यूपीएससी) नहीं दे सके उम्मीदवारों को एक अतिरिक्त मौका मिलने की मांग संबंधी याचिका पर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. शीर्ष कोर्ट ने केंद्र और यूपीएससी से इस संबंध में दोबारा विचार कर दो सप्ताह के भीतर फैसला लेने को कहा. शीर्ष अदालत तीन अभ्यर्थियों की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने यूपीएससी 2021 की प्रारंभिक परीक्षा उत्तीर्ण की थी, लेकिन कोरोना वायरस से संक्रमित होने के बाद मुख्य परीक्षा में सभी प्रश्न पत्र के दौरान उपस्थित नहीं हो सके. अब वे परीक्षा में उपस्थित होने के लिए एक अतिरिक्त मौके का अनुरोध कर कर रहे हैं.
न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की अगुवाई वाली पीठ ने यह कहते हुए याचिका का निपटारा कर दिया कि केंद्र और यूपीएससी इस संबंध में दो सप्ताह के भीतर फैसला लें. दरअसल संसदीय समिति ने एक रिपोर्ट दी है जिसमें सरकार को अपना रुख बदलने और उम्मीदवारों को छूट की अनुमति देने की सिफारिश की गई है. इसी आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और यूपीएससी से इस पर विचार करने को कहा है.
अदालत पिछले कुछ दिनों से मामले की सुनवाई कर रही थी. उसने याचिका पर केंद्र और यूपीएससी से जवाब मांगा था. केंद्र ने कोई ढील देने से इनकार कर दिया था. केंद्र का कहना था कि कोविड-19 महामारी के कारण आयु-सीमा में किसी भी तरह की छूट और मंजूर मौकों की संख्या के कारण अन्य श्रेणियों के उम्मीदवारों द्वारा भी इसी तरह की मांग की जा सकती है.
यूपीएससी ने कहा था कि परीक्षाओं के दौरान सभी कोविड प्रोटोकॉल का पालन किया गया था. कोविड संक्रमित उम्मीदवारों के लिए अलग से व्यवस्था करने का निर्देश दिया गया था. एएसजी ऐश्वर्या भाटी (ASG Aishwarya Bhati ) ने कहा था कि कोविड अब किसी भी अन्य बीमारी की तरह है. कोरोना का यह तीसरा साल है और देश इससे निपटने में बेहतर स्थिति में है.
उम्मीदवारों की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायण का तर्क था कि 'सरकार ने कहा था कि संक्रमित लोगों को घर पर बैठना चाहिए और संक्रमण नहीं फैलाना चाहिए, इसलिए उम्मीदवारों ने ऐसा किया. उन्होंने सरकार के नियमों का पालन किया है इसलिए अब उन पर भी विचार किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि ऐसे उम्मीदवारों की संख्या बहुत कम होगी. इस पर कोर्ट ने कहा कि अब संसदीय समिति की रिपोर्ट आ गई है और केंद्र को इस पर फैसला लेना चाहिए.
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