नई दिल्ली: निजी डेटा सुरक्षा विधेयक से संबंधित संसद की संयुक्त समिति की रिपोर्ट को सोमवार को अंगीकार कर लिया गया, हालांकि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश समेत कई विपक्षी नेताओं ने अपनी ओर से असहमति का नोट दिया. सूत्रों ने बताया कि इस संयुक्त समिति के गठन के करीब दो साल बाद रिपोर्ट को अंगीकार किया गया है. 2019 में पेश किये गये इस विधेयक को छानबीन और आवश्यक सुझावों के लिए इस समिति के पास भेजा गया था.
कांग्रेस के चार सांसदों, तृणमूल कांग्रेस के दो और बीजू जनता दल (बीजद) के एक सांसद ने समिति की कुछ सिफारिशों को लेकर अपनी असहमति जताई. राज्यसभा में कांग्रेस के मुख्य सचेतक रमेश ने इस रिपोर्ट को अंगीकार किए जाने के बाद अपनी ओर से असहमति का नोट दिया. रमेश ने कहा कि उन्हें असहमति का यह विस्तृत नोट देना पड़ा क्योंकि उनके सुझावों को स्वीकार नहीं किया गया और वह समिति के सदस्यों को मना नहीं सकें. तृणमूल कांग्रेस के डेरेक ओब्रायन और महुआ मोइत्रा ने भी असहमति का नोट दिया.
कांग्रेस के अन्य सदस्यों, मनीष तिवारी, गौरव गोगोई और विवेक तन्खा तथा बीजद सांसद अमर पटनायक ने भी असहमति का नोट दिया. समिति की रिपोर्ट में विलंब इसलिए हुआ कि इसकी पूर्व अध्यक्ष मीनाक्षी लेखी को कुछ महीने पहले केंद्रीय मंत्रिपरिषद में शामिल किया गया था. इसके बाद भारतीय जनता पार्टी के सांसद पीपी चौधरी को इसका अध्यक्ष नियुक्त किया गया.
पूर्व केंद्रीय मंत्री रमेश ने चौधरी की अध्यक्षता में पिछले चार महीनों में हुए समिति के कामकाज की सराहना की. उन्होंने इस प्रस्तावित कानून को लेकर अपनी असहमति जताते हुए कहा, 'आखिरकार, यह हो गया. संसद की संयुक्त समिति ने निजी डेटा सुरक्षा विधेयक-2019 पर अपनी रिपोर्ट को अंगीकार कर लिया. असहमति के नोट दिए गए हैं, लेकिन ये संसदीय लोकतंत्र की भावना के अनुरूप हैं. दुखद है कि मोदी सरकार के तहत इस तरह के कुछ ही उदाहरण हैं.
कांग्रेस नेता ने कहा कि उनके सुझावों को स्वीकार नहीं किया गया और वह सदस्यों से अपनी बात नहीं मनवा सके, जिस कारण उन्हें असहमति का नोट देने के लिए विवश होना पड़ा. उन्होंने ट्वीट किया, लेकिन इससे समिति के लोकतांत्रिक ढंग से काम करने का महत्व कम नहीं होना चाहिए. समिति में शामिल तृणमूल कांग्रेस के सदस्यों ने भी असहमति का नोट सौंपा और कहा कि यह विधेयक स्वभाव से ही नुकसान पहुंचाने वाला है. उन्होंने समिति के कामकाज को लेकर भी सवाल किया.
सूत्रों के मुताबिक, ओब्रायन और महुआ ने असहमति के नोट में आरोप लगाया कि यह समिति अपनी जिम्मेदारी से विमुख हो गई और संबंधित पक्षों को विचार-विमर्श के लिए पर्याप्त समय एवं अवसर नहीं दिया गया. उन्होंने यह भी कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान समिति की कई बैठकें हुईं जिनमें दिल्ली से बाहर होने के कारण कई सदस्यों के लिए शामिल होना बहुत मुश्किल था. सूत्रों के अनुसार, इन सांसदों ने विधेयक का यह कहते हुए विरोध किया कि इसमें निजता के अधिकार की सुरक्षा सुनिश्चित करने के उचित उपाय नहीं किए गए हैं.
राज्यसभा में कांग्रेस के मुख्य सचेतक रमेश ने असहमति के नोट में यह भी सुझाव दिया कि विधेयक की सबसे महत्वपूर्ण धारा 35 तथा धारा 12 में संशोधन किया जाए. उन्होंने कहा कि धारा 35 केंद्र सरकार को असीम शक्तियां देती है कि वह किसी भी सरकारी एजेंसी को इस प्रस्तावित कानून के दायरे से बाहर रख दे. रमेश ने कहा कि समिति की रिपोर्ट में निजी क्षेत्र की कंपनियों को नयी डेटा सुरक्षा व्यवस्था के दायरे में आने के लिए दो साल का समय देने का सुझाव दिया है, जबकि सरकारों या उनकी एजेंसियों के लिए ऐसा नहीं किया गया है.
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कांग्रेस सांसद मनीष तिवारी ने समिति के कामकाज को लेकर इसके प्रमुख चौधरी का धन्यवाद किया और कहा कि वह इस प्रस्तावित कानून के बुनियादी स्वरूप से असहमत हैं और ऐसे में उन्होंने असहमति का विस्तृत नोट सौंपा है. उन्होंने यह दावा भी किया कि यह प्रस्तावित अधिनियम, कानून की कसौटी पर खरा नहीं उतर पाएगा. लोकसभा में कांग्रेस के उप नेता गौरव गोगोई ने विधेयक को लेकर कहा कि जासूसी और इससे जुड़े अत्याधुनिक ढांचा स्थापित किए जाने के प्रयास के कारण पैदा हुई चिंताओं पर पूरी तरह ध्यान नहीं दिया गया है.
पीटीआई-भाषा