बेंगलुरु : कर्नाटक उच्च न्यायालय की एक पीठ ने अपने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि कानून को इस तथ्य को स्वीकार करना चाहिए कि नाजायज माता-पिता हो सकते हैं, लेकिन बच्चे कभी भी नाजायज नहीं हो सकते. न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस संबंध में कर्नाटक पावर ट्रांसमिशन कॉरपोरेशन लिमिटेड (केपीटीसीएल) द्वारा निर्धारित खंड का जिक्र करते हुए बुधवार को यह टप्पणी की है.
केपीटीसीएल द्वारा जारी 2011 के सर्कुलर में उल्लेखित क्लॉज में कहा गया है कि अगर दूसरी शादी, पहली पत्नी और समाज की जानकारी के बिना गुपचुप तरीके से हुई हो तो दूसरी पत्नी या उसके बच्चे अनुकंपा के आधार पर नौकरी पाने के योग्य नहीं हैं.
याचिकाकर्ता को अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति से वंचित कर दिया गया था, क्योंकि केपीटीसीएल ने कहा था कि दूसरी पत्नी या उसके बच्चे अनुकंपा के आधार पर नौकरी पाने के योग्य नहीं थे.
याचिकाकर्ता के संतोष के पिता, जो एक लाइनमैन के रूप में काम करते थे, उनकी जून 2014 में मृत्यु हो गई थी. अनुकंपा के आधार पर नौकरी की मांग करने वाले उनके आवेदन को केपीटीसीएल ने खारिज कर दिया था.
इस आदेश को चुनौती देते हुए संतोष ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. हाई कोर्ट की सिंगल जज बेंच ने उनकी याचिकाओं को मंजूर नहीं किया. हालांकि, खंडपीठ ने याचिका को स्वीकार कर लिया और शिकायत का समाधान किया.
हाईकोर्ट ने केपीसीएल को दो महीने के भीतर अनुकंपा नियुक्ति के लिए याचिकाकर्ता के संतोषा के आवेदन पर विचार करने का निर्देश दिया है.
साथ ही पीठ ने टिप्पणी की, इस दुनिया में कोई भी बच्चा बिना पिता और मां के पैदा नहीं होता है. एक बच्चे की उसके जन्म में कोई भूमिका नहीं होती है. इसलिए, कानून को मान्यता देनी चाहिए ... नाजायज माता-पिता हो सकते हैं, लेकिन नाजायज बच्चे नहीं.
बच्चों की वैधता की तुलना में कानून में एकरूपता जरूरी
अदालत ने कहा, 'इसलिए, यह संसद का काम है कि वह बच्चों की वैधता की तुलना में कानून में एकरूपता लाए. इस प्रकार, यह संसद को तय करना है कि वैध विवाह के बगैर पैदा हुए बच्चों को किस तरह से सुरक्षा प्रदान की जा सकती है.'
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साथ ही पीठ ने कहा कि जहां तक अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति का संबंध है, 'अन्य व्यक्तिगत कानूनों के तहत अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चे, जहां वैधता प्रदान करने का कोई प्रावधान नहीं है, उन्हें भी कानून का समान संरक्षण प्राप्त है.'
फैसला सुनाते समय, पीठ ने वीआर त्रिपाठी मामले (VR Tripathi case) में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का हवाला दिया, और कहा कि अनुकंपा नियुक्ति के संबंध में सभी धर्मों में ऐसे सभी बच्चों के अधिकारों की रक्षा करना आवश्यक है.