कराची: पाकिस्तान के उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को 'इवैक्यूई ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड' (ईटीपीबी) के अध्यक्ष को यहां एक धरोहर हिंदू संपत्ति की बिक्री के मामले में दस्तावेजों की कथित जालसाजी की व्याख्या करने के लिए तलब किया.
डॉन अखबार में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार प्रधान न्यायाधीश गुलजार अहमद ने पाकिस्तान हिंदू परिषद के संरक्षक एवं नेशनल असेंबली के सदस्य डॉ. रमेश कुमार वंकवानी द्वारा दायर की गई एक याचिका पर सुनवाई के दौरान सवाल करते हुए पूछा कि अल्पसंख्यकों की संपत्ति किस कानून के तहत बेची जा रही है.
वंकवानी ने अपनी याचिका में दावा किया कि ईटीपीबी ने यह साबित करने के लिए जाली दस्तावेज बनाए थे कि सिंध विरासत विभाग ने एक धरोहर संपत्ति को ढहाने के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी किया था. धरोहर हिन्दू संपत्ति कराची के सदर टाउन क्षेत्र में हिंदू तीर्थयात्रियों के लिए एक धर्मशाला है जो 716 वर्ग गज में स्थित है.
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि एक आलीशान शॉपिंग सेंटर के निर्माण के लिए जमीन एक बिल्डर को सौंप दी गई. शीर्ष अदालत ने 11 जून को सिंध सरकार के विरासत विभाग और ईटीपीबी को धर्मशाला के किसी भी हिस्से को न गिराने का आदेश दिया था. खबर में कहा गया है कि अदालत ने कराची के आयुक्त को यह सुनिश्चित करने के लिए संपत्ति का अधिग्रहण करने का भी निर्देश दिया कि इस पर कोई अतिक्रमण न हो.
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वंकवानी ने अपनी याचिका में न्यायालय से परिसर का नियंत्रण पास के बघानी मंदिर को स्थानांतरित करने और दस्तावेजों की कथित जालसाजी और ईटीपीबी द्वारा धरोहर संपत्ति को ध्वस्त किए जाने के मामले की जांच संघीय जांच एजेंसी से कराए जाने का अनुरोध किया है.
ईटीपीबी एक सांविधिक बोर्ड है जो विभाजन के बाद भारत गए हिंदुओं और सिखों द्वारा छोड़ी गईं शैक्षिक, धर्मार्थ या धार्मिक ट्रस्ट सहित विभिन्न संपत्तियों का प्रबंधन करता है.
(पीटीआई-भाषा)