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PAC शताब्दी समारोह: जवाबदेही के लिए टेक्नोलॉजी का उपयोग करें संसदीय समितियां :  बिरला

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Published : Dec 5, 2021, 4:57 PM IST

Updated : Dec 5, 2021, 7:49 PM IST

संसद भवन के केंद्रीय कक्ष में लोक लेखा समिति (Public Accounts Committee) के 100 वर्ष पूर्ण होने पर आयोजित शताब्दी समारोह (PAC Centennial Year Celebration) के समापन कार्यक्रम को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला सहित अन्य वक्ताओं ने संबोधित (Lok Sabha Speaker Om Birla addressed) किया. भारत की संसद की लोक लेखा समिति का शताब्दी समारोह, जिसका उद्घाटन भारत के राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने 4 दिसंबर 2021 को संसद भवन के केन्द्रीय कक्ष में किया था, रविवार को संपन्न हुआ.

om birla@twitter
ओम बिरला@ट्विटर

नई दिल्ली : लोक लेखा समिति (Public Accounts Committee) के 100 वर्ष पूर्ण होने पर आयोजित शताब्दी समारोह के समापन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि आजादी के बाद इन 75 वर्षों में देश और राज्यों का बजट बढ़ा है. इससे PAC की प्रासंगिकता, दायित्व और कार्य भी बढ़ा है.

भारत की संसद की लोक लेखा समिति का शताब्दी समारोह में लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि समय के साथ लोक लेखा समिति की प्रासंगिकता बढ़ी है और समिति से लोगों की आशाएं और अपेक्षाएं भी बढ़ी हैं.

इसलिए यह लोक लेखा समिति की जिम्मेदारी है कि वह अपनी प्रक्रियाओं और प्रक्रियाओं को फ्लैक्सिब्ल बनाए. बिरला ने आगे कहा कि पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति के लाभ और कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए समिति को कार्यपालिका को देश के विकास के लिए जवाबदेह बनाना चाहिए और सरकार के कामकाज में पारदर्शिता सुनिश्चित करनी चाहिए.

लोक सभा अध्यक्ष ने सुझाव दिया कि भारत की संसद और राज्य विधानसभाओं की लोक लेखा समितियों का एक साझा डिजिटल प्लेटफॉर्म बनाया जाना चाहिए जहां ऐसी समितियां अपनी सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा कर सकें और अपनी सिफारिशों पर की गई कार्यवाही की निगरानी भी कर सकें.

बिरला ने आगे सुझाव दिया कि संसदीय समितियों को लोगों से सीधे बातचीत करनी चाहिए और उनकी राय लेनी चाहिए. बिरला ने कहा कि लोगों के साथ जितनी अधिक बातचीत होगी, समिति की सिफारिशें भी उतनी ही प्रभावी और सार्थक होंगी.

लोक लेखा समिति को और मजबूत करने तथा भारत की संसद और राज्य विधानसभाओं की लोक लेखा समितियों के बीच बेहतर समन्वय पर जोर देते हुए बिरला ने सुझाव दिया कि लोक लेखा समितियों के सभापतियों की एक समिति होनी चाहिए और उस समिति को लोक लेखा समितियों के कामकाज पर व्यापक चर्चा करनी चाहिए और इनके कार्यकरण को अधिक प्रभावी बनाने पर विचार-मंथन करना चाहिए.

इस समिति द्वारा दी गई रिपोर्ट या सुझावों पर पीठासीन अधिकारी चर्चा कर सकते हैं ताकि लोक लेखा समितियों को अधिक जवाबदेह, पारदर्शी और जनता के लिए लाभकारी बनाया जा सके. वर्तमान समय में लोक लेखा समितियों के कार्य के व्यापक दायरे के बारे में बात करते हुए बिरला ने कहा कि शासन में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए सूचना टेक्नोलॉजी साधनों का व्यापक उपयोग किया जाए.

लोक लेखा समितियों के निष्पक्ष कामकाज की परंपरा की सराहना करते हुए बिरला ने कहा कि हम सब को सामूहिक रूप से प्रयास करने चाहिए कि इस परंपरा को न केवल बनाए रखें बल्कि इसे और मजबूत भी करें. राष्ट्रहित सर्वोपरि होना चाहिए.

लोक लेखा समितियों के क्षमता निर्माण की आवश्यकता पर बल देते हुए लोक सभा अध्यक्ष ने कहा कि लोक लेखा समितियों की क्षमता में सुधार करने से वे जवाबदेही के साधन के रूप में और मजबूत होंगी. समावेशी शासन की दिशा में संसदीय समितियों की भूमिका के बारे में अपने विचार व्यक्त करते हुए बिरला ने सुझाव दिया कि उन्हें नए क्षेत्रों में विकास की संभावनाओं का पता लगाना चाहिए. इससे सरकारों को विकास के लिए कार्य योजना तैयार करने में मदद मिलेगी.

1921 से लोक लेखा समितियों के इतिहास और भूमिका का उल्लेख करते हुए राज्य सभा के उप सभापति हरिवंश ने इस बात पर जोर दिया कि ऑडिट पैरा के समयबद्ध तरीके से निपटान के लिए नवीनतम तकनीक का उपयोग किया जाना चाहिए.

उन्होंने निरर्थक कानूनों की समीक्षा की प्रक्रिया में इन समितियों की भूमिका के बारे में बात करते हुए कहा कि इससे हमारी कानूनी संरचना हमारे समय की बदलती जरूरतों के अनुरूप हो जाएगी. उन्होंने आगे यह टिप्पणी की कि कानून बनाने में देरी होने पर देश का सामाजिक आर्थिक विकास अवरुद्ध होता है जिससे संसदीय समितियों, विशेष रूप से लोक लेखा समितियों पर यह अतिरिक्त जिम्मेदारी आती है कि वे अपने कार्यक्षेत्र से संबंधित कानूनों की निरंतर जांच करें.

समितियों से निष्पक्ष रूप से अपने कर्तव्यों का पालन करने का आग्रह करते हुए उन्होंने बेहतर बुनियादी सुविधाएं और संसाधन प्रदान किए जाने की आवश्यकता पर बल दिया ताकि वे कार्यपालिका की जवाबदेही प्रभावी तरीके से सुनिश्चित करने में सक्षम हो सकें.

लोक लेखा समिति के सभापति अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि विधायिका के प्रति कार्यपालिका की जवाबदेही संसदीय लोकतंत्र का आधार है. इसलिए सार्वजनिक व्यय पर संसद का नियंत्रण केवल देश के शासन को चलाने के लिए आवश्यक धनराशि के लिए मतदान तक ही सीमित नहीं है बल्कि संसद यह भी सुनिश्चित करती है कि व्यय विवेकपूर्ण ढंग से किया जाए और इसके द्वारा अनुमोदित नीतियों के अंतर्निहित उद्देश्य को हासिल किया जाए.

सत्रों का समापन करते हुए भारत की संसद की लोक लेखा समिति के सभापति अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि सरकारी खर्च पर प्रभावी ढंग से निगरानी रखने वाली लोक लेखा समिति अपनी निष्पक्षता, दृढ़ता और बारीकी से जांच करने के लिए सुविख्यात है. उन्होंने आशा व्यक्त की कि शताब्दी समारोह के दौरान किया गया विचार-विमर्श देश की वित्तीय स्थिति को बेहतर बनाने में उपयोगी होगा.

यह भी पढ़ें- शिवसेना सांसद संजय राउत का दावा, कांग्रेस के बिना गठबंधन पर विचार कर रही हैं ममता बनर्जी

लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला, राज्य सभा के उपसभापति, हरिवंश और भारत की संसद की लोक लेखा समिति के सभापति अधीर रंजन चौधरी समापन सत्र में शामिल हुए. केंद्रीय मंत्री, संसद सदस्य, राज्य विधायी निकायों के पीठासीन अधिकारी, राज्यों की लोक लेखा समितियों के सभापति और अन्य विशिष्टजन भी समारोह के समापन सत्र में शामिल हुए.

नई दिल्ली : लोक लेखा समिति (Public Accounts Committee) के 100 वर्ष पूर्ण होने पर आयोजित शताब्दी समारोह के समापन कार्यक्रम को संबोधित करते हुए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि आजादी के बाद इन 75 वर्षों में देश और राज्यों का बजट बढ़ा है. इससे PAC की प्रासंगिकता, दायित्व और कार्य भी बढ़ा है.

भारत की संसद की लोक लेखा समिति का शताब्दी समारोह में लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि समय के साथ लोक लेखा समिति की प्रासंगिकता बढ़ी है और समिति से लोगों की आशाएं और अपेक्षाएं भी बढ़ी हैं.

इसलिए यह लोक लेखा समिति की जिम्मेदारी है कि वह अपनी प्रक्रियाओं और प्रक्रियाओं को फ्लैक्सिब्ल बनाए. बिरला ने आगे कहा कि पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति के लाभ और कल्याण को सुनिश्चित करने के लिए समिति को कार्यपालिका को देश के विकास के लिए जवाबदेह बनाना चाहिए और सरकार के कामकाज में पारदर्शिता सुनिश्चित करनी चाहिए.

लोक सभा अध्यक्ष ने सुझाव दिया कि भारत की संसद और राज्य विधानसभाओं की लोक लेखा समितियों का एक साझा डिजिटल प्लेटफॉर्म बनाया जाना चाहिए जहां ऐसी समितियां अपनी सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा कर सकें और अपनी सिफारिशों पर की गई कार्यवाही की निगरानी भी कर सकें.

बिरला ने आगे सुझाव दिया कि संसदीय समितियों को लोगों से सीधे बातचीत करनी चाहिए और उनकी राय लेनी चाहिए. बिरला ने कहा कि लोगों के साथ जितनी अधिक बातचीत होगी, समिति की सिफारिशें भी उतनी ही प्रभावी और सार्थक होंगी.

लोक लेखा समिति को और मजबूत करने तथा भारत की संसद और राज्य विधानसभाओं की लोक लेखा समितियों के बीच बेहतर समन्वय पर जोर देते हुए बिरला ने सुझाव दिया कि लोक लेखा समितियों के सभापतियों की एक समिति होनी चाहिए और उस समिति को लोक लेखा समितियों के कामकाज पर व्यापक चर्चा करनी चाहिए और इनके कार्यकरण को अधिक प्रभावी बनाने पर विचार-मंथन करना चाहिए.

इस समिति द्वारा दी गई रिपोर्ट या सुझावों पर पीठासीन अधिकारी चर्चा कर सकते हैं ताकि लोक लेखा समितियों को अधिक जवाबदेह, पारदर्शी और जनता के लिए लाभकारी बनाया जा सके. वर्तमान समय में लोक लेखा समितियों के कार्य के व्यापक दायरे के बारे में बात करते हुए बिरला ने कहा कि शासन में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए सूचना टेक्नोलॉजी साधनों का व्यापक उपयोग किया जाए.

लोक लेखा समितियों के निष्पक्ष कामकाज की परंपरा की सराहना करते हुए बिरला ने कहा कि हम सब को सामूहिक रूप से प्रयास करने चाहिए कि इस परंपरा को न केवल बनाए रखें बल्कि इसे और मजबूत भी करें. राष्ट्रहित सर्वोपरि होना चाहिए.

लोक लेखा समितियों के क्षमता निर्माण की आवश्यकता पर बल देते हुए लोक सभा अध्यक्ष ने कहा कि लोक लेखा समितियों की क्षमता में सुधार करने से वे जवाबदेही के साधन के रूप में और मजबूत होंगी. समावेशी शासन की दिशा में संसदीय समितियों की भूमिका के बारे में अपने विचार व्यक्त करते हुए बिरला ने सुझाव दिया कि उन्हें नए क्षेत्रों में विकास की संभावनाओं का पता लगाना चाहिए. इससे सरकारों को विकास के लिए कार्य योजना तैयार करने में मदद मिलेगी.

1921 से लोक लेखा समितियों के इतिहास और भूमिका का उल्लेख करते हुए राज्य सभा के उप सभापति हरिवंश ने इस बात पर जोर दिया कि ऑडिट पैरा के समयबद्ध तरीके से निपटान के लिए नवीनतम तकनीक का उपयोग किया जाना चाहिए.

उन्होंने निरर्थक कानूनों की समीक्षा की प्रक्रिया में इन समितियों की भूमिका के बारे में बात करते हुए कहा कि इससे हमारी कानूनी संरचना हमारे समय की बदलती जरूरतों के अनुरूप हो जाएगी. उन्होंने आगे यह टिप्पणी की कि कानून बनाने में देरी होने पर देश का सामाजिक आर्थिक विकास अवरुद्ध होता है जिससे संसदीय समितियों, विशेष रूप से लोक लेखा समितियों पर यह अतिरिक्त जिम्मेदारी आती है कि वे अपने कार्यक्षेत्र से संबंधित कानूनों की निरंतर जांच करें.

समितियों से निष्पक्ष रूप से अपने कर्तव्यों का पालन करने का आग्रह करते हुए उन्होंने बेहतर बुनियादी सुविधाएं और संसाधन प्रदान किए जाने की आवश्यकता पर बल दिया ताकि वे कार्यपालिका की जवाबदेही प्रभावी तरीके से सुनिश्चित करने में सक्षम हो सकें.

लोक लेखा समिति के सभापति अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि विधायिका के प्रति कार्यपालिका की जवाबदेही संसदीय लोकतंत्र का आधार है. इसलिए सार्वजनिक व्यय पर संसद का नियंत्रण केवल देश के शासन को चलाने के लिए आवश्यक धनराशि के लिए मतदान तक ही सीमित नहीं है बल्कि संसद यह भी सुनिश्चित करती है कि व्यय विवेकपूर्ण ढंग से किया जाए और इसके द्वारा अनुमोदित नीतियों के अंतर्निहित उद्देश्य को हासिल किया जाए.

सत्रों का समापन करते हुए भारत की संसद की लोक लेखा समिति के सभापति अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि सरकारी खर्च पर प्रभावी ढंग से निगरानी रखने वाली लोक लेखा समिति अपनी निष्पक्षता, दृढ़ता और बारीकी से जांच करने के लिए सुविख्यात है. उन्होंने आशा व्यक्त की कि शताब्दी समारोह के दौरान किया गया विचार-विमर्श देश की वित्तीय स्थिति को बेहतर बनाने में उपयोगी होगा.

यह भी पढ़ें- शिवसेना सांसद संजय राउत का दावा, कांग्रेस के बिना गठबंधन पर विचार कर रही हैं ममता बनर्जी

लोक सभा अध्यक्ष ओम बिरला, राज्य सभा के उपसभापति, हरिवंश और भारत की संसद की लोक लेखा समिति के सभापति अधीर रंजन चौधरी समापन सत्र में शामिल हुए. केंद्रीय मंत्री, संसद सदस्य, राज्य विधायी निकायों के पीठासीन अधिकारी, राज्यों की लोक लेखा समितियों के सभापति और अन्य विशिष्टजन भी समारोह के समापन सत्र में शामिल हुए.

Last Updated : Dec 5, 2021, 7:49 PM IST
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