नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम के रुशिकोंडा हिल्स (Rushikonda hills) में निर्माण कार्य पर रोक लगाने संबंधी राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) का आदेश रद्द करते हुए कहा कि वैधानिक न्यायाधिकरणों पर संवैधानिक अदालतों के आदेश प्रबल होंगे. न्यायमूर्ति बीआर गवई (Justices B R Gavai) और न्यायमूर्ति हीमा कोहली (Justices Hima Kohli) की अवकाशकालीन पीठ ने कहा कि एनजीटी के लिए तब इस पर आगे बढ़ना उचित नहीं था, जब मामला उच्च न्यायालय में था.
शीर्ष अदालत ने कहा कि जहां तक क्षेत्रीय क्षेत्राधिकार का संबंध है, तो एनजीटी उच्च न्यायालय के अधीनस्थ है. पीठ ने कहा, 'एनजीटी और उच्च न्यायालय द्वारा पारित विपरीत आदेश से असंगत स्थिति बनेगी. किसके आदेश का पालन करना है, इसे लेकर अधिकारियों को परेशानी होगी. ऐसे मामले में संवैधानिक अदालतों के आदेश वैधानिक अधिकरणों पर प्रबल होंगे.' पीठ ने यह भी कहा, 'मामले के उच्च न्यायालय में लंबित होने के बावजूद एनजीटी में कार्यवाही जारी रखना न्याय के हित में नहीं है, इसलिए 'हम एनजीटी के समक्ष जारी कार्यवाही निरस्त और खारिज करते हैं.'
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि भले ही देश की आर्थिक तरक्की के लिए विकास जरूरी है, लेकिन भविष्य की पीढ़ियों के लिए प्रदूषण मुक्त पर्यावरण को संरक्षित करने के वास्ते पर्यावरण की रक्षा करना भी उतना ही जरूरी है. पीठ ने यह स्पष्ट किया कि निर्माण समतल क्षेत्र पर किया जाएगा, जहां पहले रिसॉर्ट था, जिसे बाद में तोड़ दिया गया था. आंध्र प्रदेश सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि एनजीटी एक न्यायाधिकरण है और क्षेत्राधिकार की दृष्टि से उच्च न्यायालय के अधीनस्थ है, लिहाज़ा उच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद एनजीटी के समक्ष कार्यवाही जारी रखना कानून के हिसाब से उचित नहीं है.
न्यायालय ने मंगलवार को हैरानी जताई थी कि एनजीटी सांसदों द्वारा दायर पत्र याचिकाओं पर क्यों विचार कर रहा है और कहा था कि उसका मानना है कि एनजीटी का अधिकार क्षेत्र उन लोगों के लिए उपलब्ध है, जो अदालतों का रुख नहीं कर सकते. विशाखापत्तनम के रुशिकोंडा हिल्स में निर्माण कार्य रोकने के एनजीटी के आदेश के खिलाफ आंध्र प्रदेश सरकार की अपील पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की गई.
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एनजीटी ने सांसद के. रघु रामकृष्ण राजू द्वारा दायर एक याचिका पर यह आदेश दिया था, जिसमें परियोजना के तहत तटीय विनियमन क्षेत्र (सीआरजेड) मानदंडों के उल्लंघन का आरोप लगाया गया था. आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने प्रदेश के पर्यटन निगम, विशाखापत्तनम कलेक्टर और ग्रेटर विशाखापत्तनम नगर निगम (जीवीएमसी) के आयुक्त को इस मुद्दे पर नोटिस भी जारी किया था. पर्यावरण संरक्षण से संबंधित मामलों के प्रभावी और शीघ्र निस्तारण के लिए राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम 2010 के तहत एनजीटी की स्थापना की गई थी.