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Operation Kaveri : क्यों भारतीयों को छोड़ना पड़ रहा है सूडान, जानें वजह

भारत सरकार के अनुसार सूडान से कुल 3700 भारतीयों को बाहर निकाला जाना है. सूडान में गृह युद्ध छिड़ चुका है. राजधानी खार्तूम के बाहर किसी भी विदेशी टीम का जाना मुश्किल है. फिर भी भारत ने ऑपरेशन कावेरी के जरिए भारतीयों को वहां से निकालने का काम शुरू कर दिया है. सरकार ने कहा है कि इसमें थोड़ा वक्त लगेगा, क्योंकि ग्राउंड पर स्थिति बहुत ही खराब है. पर आइए जानते हैं सूडान में अचानक ही ऐसा क्या हो गया कि विदेशियों को वहां से भागने की नौबत आ गई.

indians caught in Sudan
सूडान में फंसे भारतीय
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Published : Apr 27, 2023, 1:51 PM IST

नई दिल्ली : उत्तरी अफ्रीका में सूडान सबसे बड़ा देश है. इस समय यहां पर गृहयुद्ध की स्थिति बनी हुई है. 15 अप्रैल से स्थिति और अधिक खराब हो गई है. वहां की मिलिट्री (सेना) और पैरामिलिट्री (अर्धसैनिक) एक दूसरे के खिलाफ लड़ रहे हैं. दोनों के बीच वर्चस्व की लड़ाई है. दोनों ही चाहते हैं कि देश के ऊपर उनका कब्जा हो. अभी तक की जानकारी के मुताबिक 400 से ज्यादा लोग मारे गए हैं, जबकि 4000 लोग घायल बताए जा रहे हैं.

  • Our efforts to swiftly send Indians back home from Jeddah is paying.

    246 Indians will be in Mumbai soon, travelling by IAF C17 Globemaster. Happy to see them off at Jeddah airport.#OperationKaveri. pic.twitter.com/vw3LpbbzGw

    — V. Muraleedharan (@MOS_MEA) April 27, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

आपसी लड़ाई की शुरुआत होने से पहले सूडानी सेना के प्रमुख ले. जन. अब्देल फतह अल बुरहान और रैपिड सपोर्ट फोर्स (आरएसएफ) के प्रमुख जन. मोहम्मद हमदान दगालो के बीच तनाव की स्थिति बनी हुई थी. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार दोनों के बीच सूडान की संस्थानों पर कब्जा को लेकर मनमुटाव हुआ. बुरहान चाहते हैं कि वह देश का प्रमुख रहें, जबकि हमदान को इस पर आपत्ति है.

वैसे, 2019 में बुरहान और हमदान ने मिलकर सूडान के तानाशाह राष्ट्रपति उमर अल बशीर को हटाने का संकल्प लिया था. दोनों को कामयाबी भी मिली. उन्होंने एक समिति के जरिए सत्ता को चलाने का संकल्प भी लिया. पर बाद में बुरहान की महत्वाकांक्षाएं बढ़ती चली गईं. और अब वह चाहते हैं कि पूरे देश की कमान उनके पास रहे. वहीं दूसरी ओर हमदान चाहते हैं कि सूडान का नेतृत्व वह करें. हमदान ने हाल के दिनों में आरएसएफ को न सिर्फ मजबूत किया, बल्कि अकूत संपत्ति भी जमा की है.

क्या है आरएसएफ - इसकी स्थापना 2013 में की गई थी. इसका रूट जंजावीड़ मिलिशिया है. ये मुख्य रूप से पश्चिमी सूडान में रहते हैं. ये अरब मूल के हैं. दारफूर भी उनका ही इलाका है. हमदान दारफूर से ही आते हैं. अस्सी के दशक में जंजावीड़ मिलिशिया को सूडान की ही सरकार ने मजबूत किया था. हालांकि, उस समय उनका उद्देश्य कुछ और था. वह पड़ोसी देश चाड पर अपना दबदबा रखना चाहते थे. उस वक्त चाड गृह युद्ध की वजह से चर्चा में था.

2003 में जंजावीड़ मिलिशिया ने दारफूर में किसान विद्रोह को दबाने में सरकार की मदद की थी. एक तरफ से सेना और एयरफोर्स का शिकंजा कसता जा रहा था, वहीं दूसरी ओर जमीन पर जंजावीड़ मिलिशिया ने विद्रोहियों और आम नागरिकों पर खूब जुल्म ढाए. उस समय की अखबारों को देखेंगे तो उसमें लिखा है कि वहां किस तरह से महिलाओं के साथ अत्याचार किया गया, आम लोगों को भी प्रताड़ित किया गया, पानी में जहर मिला दिया गया था, उनकी संपत्तियां लूट ली गईं थीं.

संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार 2003-2008 के बीच तीन लाख लोग मारे गए थे. 25 लाख लोग घरों से निर्वासित हो गए. 2007 में अमेरिका ने इस घटना को नरसंहार करार दिया था. अमेरिका ने कहा था कि इस घटना के लिए सीधे तौर पर सूडान की सरकार जिम्मेदार है. 2009 में अंतरराष्ट्रीय क्रिमिनल कोर्ट ने सूडान के राष्ट्रपति बशीर को इस नरसंहार का दोषी माना. इसके बावजूद बशीर पर कोई असर नहीं पड़ा और जंजावीड़ मिलिशिया मजबूत होता चला गया. 2013 में इसी मिलिशिया को राष्ट्रपति ने रैपिड सपोर्ट फोर्सेस का नाम देकर उसे देश की रक्षा व्यवस्था का हिस्सा बन दिया. अब उन्हें संवैधानिक कवर मिल गया था.

दुर्भाग्य यह रहा कि आरएसएफ का दर्जा मिलने के बाद भी इसने अपनी हिंसा जारी रखी. यह अब भी नागरिकों पर अत्याचार करता है. 2019 में आरएसएफ ने सूडान की राजधानी खार्तूम में 100 नागरिकों की हत्या कर दी. ये वो लोग थे, जो बशीर के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे. बहुत सारे लोग घायल हुए थे और कई लोगों को जेल में डाल दिया गया.

अलजजीरा के अनुसार आरएसएफ को बशीर की सुरक्षा का जिम्मा दे दिया गया था, ताकि किसी भी कू जैसी स्थिति आने पर उन्हें बचाया जा सके. दरअसल, यह बशीर की चाल थी. बशीर ने जानबूझकर सेना और आरएसएफ को समानानंतर बनाकर रखा, ताकि कोई एक भी विद्रोह करे, तो वे दूसरे का इस्तेमाल कर सकें. 2015 में सूडान की यह पैरामिलिट्री फोर्स ने यमन में सऊदी अरब और यूएई का साथ दिया, बदले में में हमदान को पैसे और हथियार दोनों दिए गए.

2017 में आरएसएफ ने सूडान की गोल्ड माइन पर काम शुरू किया. इसमें उसने रूस की मर्सिनरी वैगनर ग्रुप का सहयोग लिया. इसकी वजह से न सिर्फ हमदान के पास अधिक से अधिक पैसे आए, बल्कि उसका देश पर प्रभुत्व भी बढ़ता चला गया. उसके बढ़ते हुए प्रभुत्व की वजह से बुरहान चौकन्ने हो गए. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक आरएसएफ के पास डेढ़ लाख फाइटर हैं. 2019 में बशीर को हटाने के लिए दोनों साथ आ गए थे, लेकिन बाद में वर्चस्व की लड़ाई को लेकर दोनों के रास्ते अलग-अलग हो गए.

एक समय सूडान अफ्रीका का सबसे बड़ा देश हुआ करता था, लेकिन 2011 में दक्षिण सूडान उससे अलग हो गया. सूडान मिस्र के दक्षिण में पड़ता है. इसके पूर्व में इरिट्रिया और इथियोपिया है. लाल सागर इसके उत्तर पूर्व में है. जाहिर है दक्षिण में दक्षिण सूडान पड़ता है. इसके पश्चिम में चाड और लीबिया है.

ये भी पढ़ें : सूडान से लौटे भारतीयों की आपबीती- 'एक कमरे में मानो हम मृत्युशय्या पर हों'

नई दिल्ली : उत्तरी अफ्रीका में सूडान सबसे बड़ा देश है. इस समय यहां पर गृहयुद्ध की स्थिति बनी हुई है. 15 अप्रैल से स्थिति और अधिक खराब हो गई है. वहां की मिलिट्री (सेना) और पैरामिलिट्री (अर्धसैनिक) एक दूसरे के खिलाफ लड़ रहे हैं. दोनों के बीच वर्चस्व की लड़ाई है. दोनों ही चाहते हैं कि देश के ऊपर उनका कब्जा हो. अभी तक की जानकारी के मुताबिक 400 से ज्यादा लोग मारे गए हैं, जबकि 4000 लोग घायल बताए जा रहे हैं.

  • Our efforts to swiftly send Indians back home from Jeddah is paying.

    246 Indians will be in Mumbai soon, travelling by IAF C17 Globemaster. Happy to see them off at Jeddah airport.#OperationKaveri. pic.twitter.com/vw3LpbbzGw

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आपसी लड़ाई की शुरुआत होने से पहले सूडानी सेना के प्रमुख ले. जन. अब्देल फतह अल बुरहान और रैपिड सपोर्ट फोर्स (आरएसएफ) के प्रमुख जन. मोहम्मद हमदान दगालो के बीच तनाव की स्थिति बनी हुई थी. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार दोनों के बीच सूडान की संस्थानों पर कब्जा को लेकर मनमुटाव हुआ. बुरहान चाहते हैं कि वह देश का प्रमुख रहें, जबकि हमदान को इस पर आपत्ति है.

वैसे, 2019 में बुरहान और हमदान ने मिलकर सूडान के तानाशाह राष्ट्रपति उमर अल बशीर को हटाने का संकल्प लिया था. दोनों को कामयाबी भी मिली. उन्होंने एक समिति के जरिए सत्ता को चलाने का संकल्प भी लिया. पर बाद में बुरहान की महत्वाकांक्षाएं बढ़ती चली गईं. और अब वह चाहते हैं कि पूरे देश की कमान उनके पास रहे. वहीं दूसरी ओर हमदान चाहते हैं कि सूडान का नेतृत्व वह करें. हमदान ने हाल के दिनों में आरएसएफ को न सिर्फ मजबूत किया, बल्कि अकूत संपत्ति भी जमा की है.

क्या है आरएसएफ - इसकी स्थापना 2013 में की गई थी. इसका रूट जंजावीड़ मिलिशिया है. ये मुख्य रूप से पश्चिमी सूडान में रहते हैं. ये अरब मूल के हैं. दारफूर भी उनका ही इलाका है. हमदान दारफूर से ही आते हैं. अस्सी के दशक में जंजावीड़ मिलिशिया को सूडान की ही सरकार ने मजबूत किया था. हालांकि, उस समय उनका उद्देश्य कुछ और था. वह पड़ोसी देश चाड पर अपना दबदबा रखना चाहते थे. उस वक्त चाड गृह युद्ध की वजह से चर्चा में था.

2003 में जंजावीड़ मिलिशिया ने दारफूर में किसान विद्रोह को दबाने में सरकार की मदद की थी. एक तरफ से सेना और एयरफोर्स का शिकंजा कसता जा रहा था, वहीं दूसरी ओर जमीन पर जंजावीड़ मिलिशिया ने विद्रोहियों और आम नागरिकों पर खूब जुल्म ढाए. उस समय की अखबारों को देखेंगे तो उसमें लिखा है कि वहां किस तरह से महिलाओं के साथ अत्याचार किया गया, आम लोगों को भी प्रताड़ित किया गया, पानी में जहर मिला दिया गया था, उनकी संपत्तियां लूट ली गईं थीं.

संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार 2003-2008 के बीच तीन लाख लोग मारे गए थे. 25 लाख लोग घरों से निर्वासित हो गए. 2007 में अमेरिका ने इस घटना को नरसंहार करार दिया था. अमेरिका ने कहा था कि इस घटना के लिए सीधे तौर पर सूडान की सरकार जिम्मेदार है. 2009 में अंतरराष्ट्रीय क्रिमिनल कोर्ट ने सूडान के राष्ट्रपति बशीर को इस नरसंहार का दोषी माना. इसके बावजूद बशीर पर कोई असर नहीं पड़ा और जंजावीड़ मिलिशिया मजबूत होता चला गया. 2013 में इसी मिलिशिया को राष्ट्रपति ने रैपिड सपोर्ट फोर्सेस का नाम देकर उसे देश की रक्षा व्यवस्था का हिस्सा बन दिया. अब उन्हें संवैधानिक कवर मिल गया था.

दुर्भाग्य यह रहा कि आरएसएफ का दर्जा मिलने के बाद भी इसने अपनी हिंसा जारी रखी. यह अब भी नागरिकों पर अत्याचार करता है. 2019 में आरएसएफ ने सूडान की राजधानी खार्तूम में 100 नागरिकों की हत्या कर दी. ये वो लोग थे, जो बशीर के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे. बहुत सारे लोग घायल हुए थे और कई लोगों को जेल में डाल दिया गया.

अलजजीरा के अनुसार आरएसएफ को बशीर की सुरक्षा का जिम्मा दे दिया गया था, ताकि किसी भी कू जैसी स्थिति आने पर उन्हें बचाया जा सके. दरअसल, यह बशीर की चाल थी. बशीर ने जानबूझकर सेना और आरएसएफ को समानानंतर बनाकर रखा, ताकि कोई एक भी विद्रोह करे, तो वे दूसरे का इस्तेमाल कर सकें. 2015 में सूडान की यह पैरामिलिट्री फोर्स ने यमन में सऊदी अरब और यूएई का साथ दिया, बदले में में हमदान को पैसे और हथियार दोनों दिए गए.

2017 में आरएसएफ ने सूडान की गोल्ड माइन पर काम शुरू किया. इसमें उसने रूस की मर्सिनरी वैगनर ग्रुप का सहयोग लिया. इसकी वजह से न सिर्फ हमदान के पास अधिक से अधिक पैसे आए, बल्कि उसका देश पर प्रभुत्व भी बढ़ता चला गया. उसके बढ़ते हुए प्रभुत्व की वजह से बुरहान चौकन्ने हो गए. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक आरएसएफ के पास डेढ़ लाख फाइटर हैं. 2019 में बशीर को हटाने के लिए दोनों साथ आ गए थे, लेकिन बाद में वर्चस्व की लड़ाई को लेकर दोनों के रास्ते अलग-अलग हो गए.

एक समय सूडान अफ्रीका का सबसे बड़ा देश हुआ करता था, लेकिन 2011 में दक्षिण सूडान उससे अलग हो गया. सूडान मिस्र के दक्षिण में पड़ता है. इसके पूर्व में इरिट्रिया और इथियोपिया है. लाल सागर इसके उत्तर पूर्व में है. जाहिर है दक्षिण में दक्षिण सूडान पड़ता है. इसके पश्चिम में चाड और लीबिया है.

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