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उत्तराखंडः उत्तरकाशी के संग्राली की अनोखी रामलीला, यहां जो जनक बना उसे मिलता है संतान सुख

भारतीय संस्कृति विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक है. उसी तरह हमारे देश में विश्वास और परंपराओं का भी लंबा इतिहास है. उत्तरकाशी के संग्राली गांव में रामलीला से जुड़ी विश्वास की परंपरा निसंतान व्यक्ति को राजा जनक का अभिनय करने के लिए प्रेरित करती है. क्या है ये परंपरा और इससे जुड़ा विश्वास, हमारी इस खास रिपोर्ट में पढ़िए.

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Published : Nov 23, 2022, 1:54 PM IST

उत्तरकाशी: राजा जनक निःसंतान थे. माना जाता है कि धरती में सोने का हल चलाने के बाद राजा जनक को धरती से पुत्री के रूप में सीता की प्राप्ति हुई थी. उत्तरकाशी के गांव संग्राली की रामलीला में राजा जनक के किरदार के साथ अजब सा मिथक जुड़ा हुआ है. यहां के लोग मानते हैं कि रामलीला में अगर निःसंतान व्यक्ति जनक का किरदार निभाता है तो उसे संतान की प्राप्ति अवश्य होती है. लगातार इस तरह के उदाहरण सामने आने से लोगों की मान्यता विश्वास में बदल गई है. अब तो ग्रामीण रामलीला में जनक के पात्र के लिए नि:संतान व्यक्ति का ही चयन करते हैं.

संग्राली में 1967 में शुरू हुई रामलीला: संग्राली गांव में रामलीला की शुरूआत वर्ष 1967 में हुई थी. वैसे तो यह रामलीला गांवों में होने वाली आम लीलाओं से भिन्न नहीं है, लेकिन जनक के पात्र के प्रति उपजी मान्यता ने इसे दूसरों से भिन्न बनाया है. गांव के बुजुर्ग दमोदर सेमवाल व शिवानंद भट्ट तथा विजयलाल नैथानी बताते हैं कि जनक का अभिनय करते वाले व्यक्ति को संतान की प्राप्ति अवश्य होती है. यह भी रोचक तथ्य है कि जनक का पात्र निभाने वाले व्यक्ति के घर पर पूरे गांव का भोजन होता है. उसमें राजा जनक बना पात्र लोगों को सीता के विवाह का बाराती मानकर स्वागत करता है.

उत्तरकाशी के संग्राली की अनोखी रामलीला

इस बार भी नि:संतान शख्स बना है राजा जनक: रामलीला समिति के अध्यक्ष रविंद्र प्रसाद भट्ट व धर्मानंद नौटियाल ग्राम प्रधान संदीप सेमवाल ने बताया कि इस बार रामलीला में गांव के ही आशीष नैथानी जनक के पात्र का रोल निभा रहे हैं. इनकी शादी को तीन साल हो गये हैं, लेकिन अभी तक बच्चे नहीं हुए हैं. वहीं समिति के कोषाध्यक्ष परममानंद भट्ट बताते हैं कि कई ग्रामीणों को ईश्वरीय अनुकंपा से सरकारी नौकरी भी मिली है.

जनक का किरदार निभाने के बाद ये बने पिता: महिमानंद भट्ट (अब स्वर्गीय), ज्योति प्रसाद नैथानी, सुरेशानंद नौटियाल (अब स्वर्गीय), रुद्रेश्वर प्रसाद, लक्ष्मी प्रसाद, सुबोध भट्ट, प्रमोद भट्ट, हरि सिंह चौहान, संतोष सेमवाल, शंभू प्रसाद नैथानी, सूर्यप्रकाश नौटियाल. ये सभी निःसंतान थे. जनक का पात्र निभाने के बाद सभी को संतान लाभ हुआ.
ये भी पढ़ें: पैराग्ला‌इडिंग से दयारा बुग्याल के साथ हिमालय का कर सकेंगे दीदार, सफल परीक्षण से लोग खुश

अभी तक जनक का पात्र बने 18 लोगों को हुई संतान की प्राप्ति: संग्राली गांव में रामलीला की शुरूआत वर्ष 1967 में हुई. पहली बार गांव में सुरेशानंद नौटियाल (अब स्वर्गीय) को जनक का पात्र बनाया गया. कहते हैं कि उनकी संतान नहीं हो रही थी. जनक का किरदार निभाने के बाद पुत्री की प्रप्ति हुई. अभी तक गांव में राजा जनक का अभिनय करने वाले 18 लोगों को संतान प्राप्ति हो चुकी है. यहां तक कि इस गांव में बाहर के लोगों ने भी संतान प्राप्ति के लिए जनक का किरदार निभाया है.

उत्तरकाशी: राजा जनक निःसंतान थे. माना जाता है कि धरती में सोने का हल चलाने के बाद राजा जनक को धरती से पुत्री के रूप में सीता की प्राप्ति हुई थी. उत्तरकाशी के गांव संग्राली की रामलीला में राजा जनक के किरदार के साथ अजब सा मिथक जुड़ा हुआ है. यहां के लोग मानते हैं कि रामलीला में अगर निःसंतान व्यक्ति जनक का किरदार निभाता है तो उसे संतान की प्राप्ति अवश्य होती है. लगातार इस तरह के उदाहरण सामने आने से लोगों की मान्यता विश्वास में बदल गई है. अब तो ग्रामीण रामलीला में जनक के पात्र के लिए नि:संतान व्यक्ति का ही चयन करते हैं.

संग्राली में 1967 में शुरू हुई रामलीला: संग्राली गांव में रामलीला की शुरूआत वर्ष 1967 में हुई थी. वैसे तो यह रामलीला गांवों में होने वाली आम लीलाओं से भिन्न नहीं है, लेकिन जनक के पात्र के प्रति उपजी मान्यता ने इसे दूसरों से भिन्न बनाया है. गांव के बुजुर्ग दमोदर सेमवाल व शिवानंद भट्ट तथा विजयलाल नैथानी बताते हैं कि जनक का अभिनय करते वाले व्यक्ति को संतान की प्राप्ति अवश्य होती है. यह भी रोचक तथ्य है कि जनक का पात्र निभाने वाले व्यक्ति के घर पर पूरे गांव का भोजन होता है. उसमें राजा जनक बना पात्र लोगों को सीता के विवाह का बाराती मानकर स्वागत करता है.

उत्तरकाशी के संग्राली की अनोखी रामलीला

इस बार भी नि:संतान शख्स बना है राजा जनक: रामलीला समिति के अध्यक्ष रविंद्र प्रसाद भट्ट व धर्मानंद नौटियाल ग्राम प्रधान संदीप सेमवाल ने बताया कि इस बार रामलीला में गांव के ही आशीष नैथानी जनक के पात्र का रोल निभा रहे हैं. इनकी शादी को तीन साल हो गये हैं, लेकिन अभी तक बच्चे नहीं हुए हैं. वहीं समिति के कोषाध्यक्ष परममानंद भट्ट बताते हैं कि कई ग्रामीणों को ईश्वरीय अनुकंपा से सरकारी नौकरी भी मिली है.

जनक का किरदार निभाने के बाद ये बने पिता: महिमानंद भट्ट (अब स्वर्गीय), ज्योति प्रसाद नैथानी, सुरेशानंद नौटियाल (अब स्वर्गीय), रुद्रेश्वर प्रसाद, लक्ष्मी प्रसाद, सुबोध भट्ट, प्रमोद भट्ट, हरि सिंह चौहान, संतोष सेमवाल, शंभू प्रसाद नैथानी, सूर्यप्रकाश नौटियाल. ये सभी निःसंतान थे. जनक का पात्र निभाने के बाद सभी को संतान लाभ हुआ.
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अभी तक जनक का पात्र बने 18 लोगों को हुई संतान की प्राप्ति: संग्राली गांव में रामलीला की शुरूआत वर्ष 1967 में हुई. पहली बार गांव में सुरेशानंद नौटियाल (अब स्वर्गीय) को जनक का पात्र बनाया गया. कहते हैं कि उनकी संतान नहीं हो रही थी. जनक का किरदार निभाने के बाद पुत्री की प्रप्ति हुई. अभी तक गांव में राजा जनक का अभिनय करने वाले 18 लोगों को संतान प्राप्ति हो चुकी है. यहां तक कि इस गांव में बाहर के लोगों ने भी संतान प्राप्ति के लिए जनक का किरदार निभाया है.

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