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सीएम हिमंत बिस्वा सरमा के सिर कांटों का ताज, क्या चुनौतियों से हो पाएंगे पार!

राज्य में हिमंत बिस्व सरमा सरकार को नई चुनौतियों का सामना करना होगा, अगर ऐसा नहीं होता है तो सरकार को सत्ता से हाथ भी धोना पड़ सकता है. इस पर पढ़ें वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट.

assam cm himanta biswa sarma
हिमंत बिस्व सरमा सरकार के सिर कांटों का ताज
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Published : May 10, 2021, 9:58 PM IST

नई दिल्ली: असम में हिमंत बिस्व सरमा के नेतृत्व में आज नई सरकार का गठन हुआ. एनडीए गठबंधन ने असम विधानसभा चुनाव में बहुमत हासिल किया था. बता दें, नई सरकार के सामने चुनौतियां कम नहीं हैं.

भाजपा की अगुवाई वाले एनडीए के लिए असम में सत्ता चलाना कोई आसान काम नहीं है. सरकार और गठबंधन के सामने काफी चुनौतियां हैं. बता दें सरकार को सभी चुनौतियों का कदम फूंक-फूंक कर सामना करना होगा. असम विधान सभा चुनाव के करीब एक सप्ताह बाद राज्य के नए मुख्यमंत्री के नाम पर सहमति बनी. पूर्व सीएम सरबानंद सोनोवाल मार्गदर्शक की भूमिका में रहेंगे. नए सीएम हिमंत बिस्वा सरमा को विधायक दल का नेता चुना गया. इस सरकार के सामने कोविड-19 से निपटने की चुनौती बड़ी है.

कोविड-19 की चुनौती

राज्य में चुनाव प्रचार, मतदान, काउंटिंग और अप्रैल के मध्य में पड़ने वाले बिहू ने बेशक कोरोना के मामलों को बढ़ाया, लेकिन राज्य में अभी भी कोरोना का सबसे खराब दौर आना बाकी है. सरकार को समय रहते इससे निपटने के इंतजाम करने होंगे. जानकारी के मुताबिक शनिवार को लगातार दूसरे दिन असम में कोरोना के करीब 5,000 से अधिक नए मामले दर्ज किए. वहीं, सकारात्मकता दर भी लगभग 8 प्रतिशत दर्ज की गई है. ऐसे में राज्य के नए सीएम के सामने स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करना होगा. बता दें, राज्य में डॉक्टरों और कर्मचारियों की बेहद कमी है.

बेरोजगारी और निवेश

असम में बेरोजगारी और निवेश की सबसे बड़ी समस्या है. आंकड़ों पर नजर डालें तो करीब हर साल 15 लाख युवा बेरोजगारों की लिस्ट में शामिल होते हैं. बता दें, राष्ट्रीय बेरोजगारी दर 6.1 फीसद के मुकाबले असम में बेरोजगारी दर करीब 8.1 फीसद है. बात अगर महिला बेरोजगारी की करें तो यह आंकड़ा 13.9 फीसद के आसपास है. इस सिलसिले में सरमा ने एक साल में एक लाख नौकरियां पैदा करने का वादा किया है जो पर्याप्त नहीं हो सकता है. बेरोजगारी को दूर करना है तो सरकार को रोजगार के अवसरों को बढ़ाना होगा, लेकिन यह संभव नहीं है क्योंकि राज्य में कोई भी प्राइवेट सेक्टर नहीं है.

कोरोना महामारी और उसके बाद के हालात भी एक बड़ी चुनौती साबित होगी. नीति आयोग के निर्यात सूचकांक में असम का 22.81 नंबर के साथ 36 राज्यों में 28वां स्थान है. वहीं, गुजरात 75.19 के साथ टॉप पर है. नए सीएम सरमा को बेरोजगारी कम करने पर निवेश को बढ़ाने पर फोकस करना होगा.

आधारभूत संरचना, बाढ़ और कृषि

राज्य में निवेश बढ़ाने और रोजगार को बढ़ाने की दिशा में किए गए प्रयास तभी सफल होंगे जब आधारभूत संरचना पर ध्यान दिया जाएगा. असम में हर साल भयंकर बाढ़ आती है. यह चुनौती भी कम नहीं है. राज्य में मॉनसून के दौरान बारिश का कहर लगभग चार महीने रहता है, जिससे उत्पादक गतिविधियों पर लगाम लग जाता है. जिस अवधि के दौरान सड़क निर्माण भी संभव नहीं है. नए सीएम को एक्ट ईस्ट पॉलिसी (AEP) के हिस्से के रूप में असम-दक्षिण-पूर्व एशिया के प्रवेश द्वार वाली परियोजना के साथ भी जुड़ना होगा, लेकिन हकीकत की बात करें यो अभी यह परियोजना सिर्फ कागजों में ही सीमित है.

पढ़ें: हिमंत सरमा बने असम के 15वें मुख्यमंत्री, 12 मंत्रियों ने ली शपथ

लंबित राजनीतिक मुद्दे

राज्य में कई जातीय समुदायों, बहु-धार्मिक और बहु-सांस्कृतिक संस्थाओं के साथ असम आकांक्षाओं और अपेक्षाओं का एक सत्य पुंज है. जिन उग्रवादियों ने राज्य को दशकों तक त्रस्त किया है, उन्हें अभी पूरी तरह सुलझाया नहीं जा सका है. असम की संस्कृति और अधिकारों की सुरक्षा से जुड़े मुद्दे हैं जैसे कि 1985 के असम समझौते में वादा किया गया था. वहीं, अब एनआरसी और सीएए भी ऐसे मुद्दे हैं जो चुनौतियों में शामिल हो गए हैं.

नई दिल्ली: असम में हिमंत बिस्व सरमा के नेतृत्व में आज नई सरकार का गठन हुआ. एनडीए गठबंधन ने असम विधानसभा चुनाव में बहुमत हासिल किया था. बता दें, नई सरकार के सामने चुनौतियां कम नहीं हैं.

भाजपा की अगुवाई वाले एनडीए के लिए असम में सत्ता चलाना कोई आसान काम नहीं है. सरकार और गठबंधन के सामने काफी चुनौतियां हैं. बता दें सरकार को सभी चुनौतियों का कदम फूंक-फूंक कर सामना करना होगा. असम विधान सभा चुनाव के करीब एक सप्ताह बाद राज्य के नए मुख्यमंत्री के नाम पर सहमति बनी. पूर्व सीएम सरबानंद सोनोवाल मार्गदर्शक की भूमिका में रहेंगे. नए सीएम हिमंत बिस्वा सरमा को विधायक दल का नेता चुना गया. इस सरकार के सामने कोविड-19 से निपटने की चुनौती बड़ी है.

कोविड-19 की चुनौती

राज्य में चुनाव प्रचार, मतदान, काउंटिंग और अप्रैल के मध्य में पड़ने वाले बिहू ने बेशक कोरोना के मामलों को बढ़ाया, लेकिन राज्य में अभी भी कोरोना का सबसे खराब दौर आना बाकी है. सरकार को समय रहते इससे निपटने के इंतजाम करने होंगे. जानकारी के मुताबिक शनिवार को लगातार दूसरे दिन असम में कोरोना के करीब 5,000 से अधिक नए मामले दर्ज किए. वहीं, सकारात्मकता दर भी लगभग 8 प्रतिशत दर्ज की गई है. ऐसे में राज्य के नए सीएम के सामने स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करना होगा. बता दें, राज्य में डॉक्टरों और कर्मचारियों की बेहद कमी है.

बेरोजगारी और निवेश

असम में बेरोजगारी और निवेश की सबसे बड़ी समस्या है. आंकड़ों पर नजर डालें तो करीब हर साल 15 लाख युवा बेरोजगारों की लिस्ट में शामिल होते हैं. बता दें, राष्ट्रीय बेरोजगारी दर 6.1 फीसद के मुकाबले असम में बेरोजगारी दर करीब 8.1 फीसद है. बात अगर महिला बेरोजगारी की करें तो यह आंकड़ा 13.9 फीसद के आसपास है. इस सिलसिले में सरमा ने एक साल में एक लाख नौकरियां पैदा करने का वादा किया है जो पर्याप्त नहीं हो सकता है. बेरोजगारी को दूर करना है तो सरकार को रोजगार के अवसरों को बढ़ाना होगा, लेकिन यह संभव नहीं है क्योंकि राज्य में कोई भी प्राइवेट सेक्टर नहीं है.

कोरोना महामारी और उसके बाद के हालात भी एक बड़ी चुनौती साबित होगी. नीति आयोग के निर्यात सूचकांक में असम का 22.81 नंबर के साथ 36 राज्यों में 28वां स्थान है. वहीं, गुजरात 75.19 के साथ टॉप पर है. नए सीएम सरमा को बेरोजगारी कम करने पर निवेश को बढ़ाने पर फोकस करना होगा.

आधारभूत संरचना, बाढ़ और कृषि

राज्य में निवेश बढ़ाने और रोजगार को बढ़ाने की दिशा में किए गए प्रयास तभी सफल होंगे जब आधारभूत संरचना पर ध्यान दिया जाएगा. असम में हर साल भयंकर बाढ़ आती है. यह चुनौती भी कम नहीं है. राज्य में मॉनसून के दौरान बारिश का कहर लगभग चार महीने रहता है, जिससे उत्पादक गतिविधियों पर लगाम लग जाता है. जिस अवधि के दौरान सड़क निर्माण भी संभव नहीं है. नए सीएम को एक्ट ईस्ट पॉलिसी (AEP) के हिस्से के रूप में असम-दक्षिण-पूर्व एशिया के प्रवेश द्वार वाली परियोजना के साथ भी जुड़ना होगा, लेकिन हकीकत की बात करें यो अभी यह परियोजना सिर्फ कागजों में ही सीमित है.

पढ़ें: हिमंत सरमा बने असम के 15वें मुख्यमंत्री, 12 मंत्रियों ने ली शपथ

लंबित राजनीतिक मुद्दे

राज्य में कई जातीय समुदायों, बहु-धार्मिक और बहु-सांस्कृतिक संस्थाओं के साथ असम आकांक्षाओं और अपेक्षाओं का एक सत्य पुंज है. जिन उग्रवादियों ने राज्य को दशकों तक त्रस्त किया है, उन्हें अभी पूरी तरह सुलझाया नहीं जा सका है. असम की संस्कृति और अधिकारों की सुरक्षा से जुड़े मुद्दे हैं जैसे कि 1985 के असम समझौते में वादा किया गया था. वहीं, अब एनआरसी और सीएए भी ऐसे मुद्दे हैं जो चुनौतियों में शामिल हो गए हैं.

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