हैदराबाद : जानलेवा कोरोना वायरस अपनी दूसरी लहर से दुनियाभर में तबाही मचा रहा है. इस खतरनाक वायरस को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं कि इसकी तीसरी लहर लोगों के लिए अधिक खतरनाक साबित होगी. साथ ही कहा जा रहा है कि कोरोना की पहली और दूसरी लहर के मुकाबले तीसरी लहर बच्चों को भी अधिक प्रभावित करेगी. इस पर बैंगलुरू स्थित निमहांस अस्पताल के अग्रणी विरोलॉजिस्ट डॉक्टर रवि ने ईटीवी भारत से बातचीत कर अहम जानकारी दी.
डॉ. रवि पिछले चार दशक से बैंगलुरु के निमहांस अस्पताल में शोध कर रहे थे. वह हाल ही में रिटायर हुए हैं. वह नई वैक्सीन के निर्माण पर केंद्र सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा नियुक्त समिति के सह-अध्यक्ष थे. इसके अलावा वह स्पुतनिक वैक्सीन अंतर्राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के सदस्य और कर्नाटक कोविड टास्क फोर्स समिति के नोडल अधिकारी भी रहे. उन्होंने ईटीवी से बात करते हुए निम्नलिखित सवालों के जवाब दिए.
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दूसरे चरण की गंभीरता कब तक जारी रहने की संभावना है? तीसरा चरण कितना गंभीर होगा?
इस सवाल के जवाब में डॉ. रवि ने बताया कि दक्षिण राज्यों में मई तक इस वायरस के खत्म होने की संभावना, क्योंकि यहां कोरोना के तीसरे चरण तक कई लोगों का वैक्सीनेशन का हो जाएगा. कुछ राज्यों में यह कुछ समय तक के लिए जारी रहेगा. दूसरे चरण के गंभीर होने की वजह हम हैं. कोरोना का तीसरा चरण अक्टूबर से फरवरी तक रहेगा. अगर हमारे लोगों और नेताओं ने अपना नजरिया नहीं बदला और दूसरे चरण से सबक नहीं लिया तो यकीकन हम बहुत कठिन परिस्थितियों का सामना करते नजर आएंगे.
हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि कोरोना एक बार आया है और अब नहीं फैलेगा. इस वायरस के कई म्यूटेट्स हैं और जब तक देश में वैक्सीनेशन की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती तब तक इसका खतरा बरकरार रहेगा. उन्होंने कहा कि एक चरण से दूसरे चरण के बीच 3 से 5 महीने की अवधि होती है. यह देखा जाना बाकी है कि तीसरे चरण तक 60 से 70 प्रतिशत लोगों को टीका लगाया जाएगा या नहीं.
वहीं बच्चों को लेकर डॉ. रवि ने चौंकाने वाला आंकड़ा पेश किया है. उन्होंने कहा, कोरोना के पहले चरण में दिल की बीमारी से ग्रस्त चार फीसदी बच्चों पर इसका असर पड़ा था. मौजूदा दूसरी लहर में 15 से 20 बच्चे इसकी चपेट में आए और सबके भयानक कोरोना के तीसरे चरण में 85 फीसदी बच्चे इसका शिकार हो सकते हैं. उन्होंने बताया कि देश में बच्चों की संख्या 20 करोड़ है. अगर दो करोड़ लोग इसकी चपेट में आते हैं तो एक फीसदी इसके गंभीर रूप से शिकार होंगे और दो लाख संक्रमित. क्या हमारे पास इतने आईसीयू बेड हैं? इसलिए हमें अभी से सावधानी बरतनी होगी. स्कूलों और कॉलेजों के कैसे चलाया जाना है इस पर भी स्पष्ट मत होना जरूरी है.
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क्या पिछले वर्ष किए गए शोध ऐसे पहलुओं पर पहुंचे हैं, जहां वायरस के भविष्य के व्यवहार का आकलन करना संभव हो?
इस सवाल पर डॉ. रवि ने कहा, कोविड-19 वायरस एक नया वायरस है. जब यह पहली बार आया था, तब किसी को नहीं पता था कि इसके कई म्यूटेट्स भी होंगे. लेकिन हम लगातार इस वायरस की स्क्रीनिंग कर रहे हैं. देश में दस लैबों में इस पर काम किया जा रहा है, जिनमें बैंगलुरू का निमहांस अस्पताल भी शामिल है. हम लगातार पांच नमूनों पर शोध कर रहे हैं.
एक ही जगह से 50 मामले सामने आए थे. यहां तक कि दो खुराक लेने के बाद भी एक क्षेत्र में यह बहुत गंभीर था. इसके अलावा, विदेशी यात्रियों के नमूने एकत्रित करते हैं. 96 नमूनों का एक बैच है. एक सीक्वेंस बनाने में 10 दिन का समय लगता है. ऐसा यह पता लगाने के लिए किया जा रहा है कि वैक्सीन प्रभावी है या नहीं. हमने जो टेस्ट किए, उनमें पता चला कि 34 अलग-अलग वेरिएंट्स थे.
इसमें ब्रिटेन के वैरिएंट 27.5 फीसदी है. B.36.29 वैरिएंट कर्नाटक में दिखाई दिए. अप्रैल से अप्रैल के बाद से, महाराष्ट्र का वैरिएंट B1.617 स्पाइक प्रोटीन में बदलाव के कारण 50 फीसदी से अधिक व्यापक हुआ. राजधानी दिल्ली और पंजाब में भी यह गंभीर है.
कोवाक्सिन की दूसरी खुराक 4 से 6 सप्ताह के भीतर और कोविशिल्ड 6 से 8 सप्ताह के भीतर लेने की सलाह दी जाती है। क्या प्रभाव दो सप्ताह की अवधि के अंदर समान होगा या कोई फर्क होगा?
डॉ. रवि ने कहा यहां कोई फर्क नहीं है. प्रयोग में पता चला है कि पहली और दूसरी खुराक के कितने दिन बाद टीके के लिए एंटीबॉडी तैयार किया जाता है. लंदन में दूसरी खुराक तीन महीने के बाद दी गई. एंटीबॉडीज दूसरी खुराक लेने के दो से तीन सप्ताह के भीतर पूर्ण रूप से तैयार हो जाते हैं.
कुछ दिनों के बाद लोगों की मैमरी सेल भी बूस्ट हो जाएगी. इसलिए लोगों को डरने की जरूरत नहीं है. टीका निश्चिंत रूप से इसमें प्रभावी होगा. टीकाकरण से कुछ संक्रमण हो सकते हैं लेकिन वह गंभीर नहीं होंगे. उन्होंने कहा कि अगर दूसरी खुराक लेने में देरी हो जाती है तो कोई जोखिम नहीं है और ना ही पहली खुराक दोबारा लेने की जरूरत है.
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वैक्सीन की भारी कमी है। यह स्थिति कितने दिनों तक रहने वाली है?
इस सवाल के जवाब में डॉ. रवि ने कहा, फ्रंटलाइन वर्कर्स और बुजुर्गों का टीकाकरण करना पहली प्राथमिकता है. यदि फ्रंटलाइन वर्कर्स का टीकाकरण नहीं किया जाता तो मेडिकल सेवाओं में चूक हो सकती थी. पूरा देश कोरोना के खिलाफ एकजुट हुआ. लेकिन वायरस के दूसरे चरण में दबाव बढ़ने लगा और हमनें 18 और 45 साल की उम्र के वर्ग का टीकाकरण शुरू किया.
कुछेक का कहना है यह एक चुनावी रणनीति थी, लेकिन मुझे नहीं पता. 18 वर्ष से अधिक आयु वालों को दो खुराक देने के सरकार के फैसले के अनुसार, हमारे देश में 200 करोड़ खुराक की आवश्यकता है, वैश्विक तौर पर इतना उत्पादन नहीं है. अब उत्पादन को बढ़ाया जा रहा है. इसमें समय लगेगा। ऐसे में लोग सावधानी बरतें और मास्क पहनें.
मौजूदा परिस्थितियों में राज्य सरकारों को क्या करना चाहिए?
डॉ. रवि ने इस पर कहा कि राज्यों को विशेषज्ञों की एक समिति बनानी चाहिए। इसमें एक विरोलॉजिस्ट और सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारी भी शामिल होना चाहिए. समिति को रोजाना स्थिति की समीक्षा कर राज्य सरकारों को सलाह देनी चाहिए. मामलों में वृद्धि को देखते हुए बैंगलुरू में लॉकडाउन का सुझाव दिया गया है, लेकिन इस पर विचार नहीं किया गया, अब देखो क्या होता है.
कुछ राज्यों में मामले कम हैं और कुछ राज्यों में ज्यादा, इसका कारण क्या है?
इस पर उन्होंने कहा कि जनसंख्या के दृष्टिकोण से भारत की आबादी 30 देशों जितनी है. इस पर बड़ी लापरवाही हुई है. उन्होंने कहा कि यदि एक राज्य में मामलों में कमी होती है, तो दूसरे राज्य में वृद्धि होती है, कुछ राज्य कम संख्या दिखा रहे हैं. हालिया चुनावी रैलियों में कितने लोग इकट्ठा हुए, कितने लोगों ने मास्क पहना और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया? कितने नेताओं ने जनसभा में मास्क पहना? अगर नेतागण नियमों का पालन नहीं करते हैं तो किसे दोष दें? डॉक्टर्स और वैज्ञानिक कोरोना वायरस के खात्मे के लिए बार-बार मास्क पहनने और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करने की सलाह दे रहे हैं. वैक्सीनेशन की प्रक्रिया पूरी होने तक ऐसा करके ही वायरस से बचा सकता है.