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कर्नाटक के कोडागु में खिले नीलकुरिंजी के फूल

नीलकुरिंजी के फूल हर 12 साल में एक बार ही खिलते हैं इसलिए पर्यटक दुर्लभ घटना को देखने के लिए कोडागु जिले की ओर जा रहे हैं.

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Published : Aug 30, 2021, 5:46 AM IST

कर्नाटक के कोडागु में खिले नीलकुरिंजी के फूल
कर्नाटक के कोडागु में खिले नीलकुरिंजी के फूल

कोडागु: कर्नाटक की मंडलपट्टी पहाड़ियां इन दिनों नीले और बैंगनी रंग की हो गई है. यहां 12 साल में एक बार खिलने वाली दुर्लभ नस्ल नीलकुरिंजी के फूल खिले हैं. जिसकी फोटोज सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं.

मंडलपट्टी और कोटे बेट्टा और कुमारा पर्वत की दो पहाड़ियों में पिछले कुछ दिनों से नीलकुरिंजी के फूल खिलते देखे गए हैं. सप्ताहांत के दौरान प्रतिबंध लगाए जाने के कारण राज्य और हजारों पर्यटक कोविड की आशंकाओं के बीच प्रकृति की सुंदरता को देखने के लिए आ रहे हैं.

बता दें, कुर्ग में नीलकुरिंजी के बड़े पैमाने पर खिलने से वन्यजीव उत्साहित हो गए हैं. वहीं, वनस्पतिविदों, फोटोग्राफरों और पर्यटकों के लिए एक स्थल भी बन गया है. यह नीलकुरिंजी फूल बड़ी संख्या में पर्यटकों को मंडलपट्टी और कोटे बेट्टा की ओर आकर्षित कर रहे हैं. ये फूल हर 12 साल में एक बार ही खिलते हैं इसलिए पर्यटक दुर्लभ घटना को देखने के लिए कोडागु जिले की ओर जा रहे हैं.

एक सप्ताह तक नीलकुरिंजी धरती पर स्वर्ग रचते हैं. इसे स्थानीय रूप से कुरिंजी के नाम से जाना जाता है. कोडागु में पर्यटक पिछले एक सप्ताह से फूल देखने आ रहे हैं. पिछले साल कुमारा बेट्टा और कोटेबेट्टा क्षेत्र में मिला. प्रत्येक प्रजाति अलग-अलग अंतराल पर खिलती है, जैसे 5, 7, 12, 14 साल में एक बार.

यह एक झाड़ी है जो केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु में पश्चिमी घाट के शोला जंगलों में पाई जाती है. कुरिंजी 1300 से 2400 मीटर की ऊंचाई पर उगता है. पौधा आमतौर पर 30 से 60 सेमी ऊँचा होता है. अन्य कुरिंजी प्रजातियां, जैसे स्ट्रोबिलैन्थेस कस्पिडाटस, हर सात साल में एक बार खिलती हैं और फिर मुरझा जाती हैं.

कोडागु: कर्नाटक की मंडलपट्टी पहाड़ियां इन दिनों नीले और बैंगनी रंग की हो गई है. यहां 12 साल में एक बार खिलने वाली दुर्लभ नस्ल नीलकुरिंजी के फूल खिले हैं. जिसकी फोटोज सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं.

मंडलपट्टी और कोटे बेट्टा और कुमारा पर्वत की दो पहाड़ियों में पिछले कुछ दिनों से नीलकुरिंजी के फूल खिलते देखे गए हैं. सप्ताहांत के दौरान प्रतिबंध लगाए जाने के कारण राज्य और हजारों पर्यटक कोविड की आशंकाओं के बीच प्रकृति की सुंदरता को देखने के लिए आ रहे हैं.

बता दें, कुर्ग में नीलकुरिंजी के बड़े पैमाने पर खिलने से वन्यजीव उत्साहित हो गए हैं. वहीं, वनस्पतिविदों, फोटोग्राफरों और पर्यटकों के लिए एक स्थल भी बन गया है. यह नीलकुरिंजी फूल बड़ी संख्या में पर्यटकों को मंडलपट्टी और कोटे बेट्टा की ओर आकर्षित कर रहे हैं. ये फूल हर 12 साल में एक बार ही खिलते हैं इसलिए पर्यटक दुर्लभ घटना को देखने के लिए कोडागु जिले की ओर जा रहे हैं.

एक सप्ताह तक नीलकुरिंजी धरती पर स्वर्ग रचते हैं. इसे स्थानीय रूप से कुरिंजी के नाम से जाना जाता है. कोडागु में पर्यटक पिछले एक सप्ताह से फूल देखने आ रहे हैं. पिछले साल कुमारा बेट्टा और कोटेबेट्टा क्षेत्र में मिला. प्रत्येक प्रजाति अलग-अलग अंतराल पर खिलती है, जैसे 5, 7, 12, 14 साल में एक बार.

यह एक झाड़ी है जो केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु में पश्चिमी घाट के शोला जंगलों में पाई जाती है. कुरिंजी 1300 से 2400 मीटर की ऊंचाई पर उगता है. पौधा आमतौर पर 30 से 60 सेमी ऊँचा होता है. अन्य कुरिंजी प्रजातियां, जैसे स्ट्रोबिलैन्थेस कस्पिडाटस, हर सात साल में एक बार खिलती हैं और फिर मुरझा जाती हैं.

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