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Naxalism in Jharkhand: नक्सली वारदातों से छलनी है झारखंड, अपनों को खोकर खूब रोया प्रदेश - झारखंड न्यूज

झारखंड, भौगोलिक विषमताओं के बीच बसा ये प्रदेश नक्सलवाद का दंश लगातार झेल रहा है. दर्द, टीस और पीड़ा से इस धरती का सीना छलनी है. विरासत में नक्सलवाद को साथ लिए झारखंड आज भी अपने कंधे पर लेकर चल रहा है. पिछले 22 साल में नक्सली वारदात में कमी हुई है, नक्सलियों का सफाया भी हुआ है लेकिन झारखंड की ये धरती नेताओं, आईपीएस अफसरों और आम लोगों के खून से लहुलुहान है.

Naxalism in Jharkhand Naxalites killed politicians policemen and common people
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Published : Feb 11, 2023, 2:17 PM IST

पलामू,रांचीः आज झारखंड में नक्सलवाद की जड़ें खोखली जरूर हो चली हैं. लेकिन इन जड़ों को काटने के दौरान झारखंड पुलिस को जान की कीमत भी चुकानी पड़ी है. अपनी जान देकर झारखंड और केंद्रीय बलों के अधिकारियों और जवानों ने झारखंड को नक्सल मुक्त करने की राह पर खड़ा किया है. आज भी ये प्रदेश नक्सलवाद से मुक्ति के कगार पर है तो इसमें उन आईपीएस अफसरों का, पुलिस बल का, जनप्रतिनिधियों का, जिन्होंने इस प्रदेश के माथे नक्सलवाद का कलंक मिटाने में अपनी जान की कर्बानी दे दी.

झारखंड में प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा माओवादी नेताओं और अधिकारियों पर हमला कर चुके हैं. इस हमले में दर्जनों लोगों की जान गई है और कई शहीद भी हुए हैं. छत्तीसगढ़ के नारायणपुर के इलाके में माओवादियों ने भाजपा नेता की हत्या कर दी है. झारखंड के गठन के बाद यंहा कई बड़े हमले हुए है जिसमें पूर्व सीएम के बेटे, पूर्व मंत्री, दो एसपी और आधा दर्जन से अधिक टॉप पुलिस अधिकारियों की जान गई है.

नक्सलवाद का दंशः झारखंड को अपने गठन के साथ नक्सलवाद विरासत में मिला. साल 2000 यानी जिस समय अलग राज्य बना था, इसके 8 जिले नक्सल प्रभावित थे. लेकिन जल्द ही ये आंकड़ा दोगुना से भी अधिक हो गया. नतीजा ये रहा कि राज्य में नक्सल वारदातें बढ़ी और इसका सीधा नुकसान झारखंड पुलिस को उठाना पड़ा. झारखंड के गठन के इन 22 साल में 541 (सेंट्रल और राज्य मिलाकर) से अधिक जवानों और अधिकारियों ने अपने प्राणों की आहुति दी. वहीं नक्सलवाद का नुकसान सबसे बड़ी कीमत झारखण्ड के आम नागरिकों को चुकानी पड़ी है 22 साल में 1887 आम नागरिक नक्सल हिंसा में अपनी जान गवां चुके हैं.

नक्सलियों के निशाने पर सांसद-विधायकः जन नेता और इलाके के जनप्रतिनिधि हमेशा नक्सलियों के निशाने पर रहे हैं. वो भरी सभा उनकी हत्या कर पूरे राज्य में दहशत कायम कर अपनी सरकार चलाने की कोशिश करते हैं. कुछ वाकये भी हुए हैं, कई वारदातों में उन्होंने आला जनप्रतिनिधि जिसमें सांसद और विधायक भी शामिल है, उनकी हत्या नक्सलियों ने की है. 04 मार्च 2007 को जमशेदपुर के तत्कालीन जेएमएम सांसद सुनील महतो एक फुटबॉल कार्यक्रम में भाग लेने गए थे. इसी क्रम में माओवादियो ने हमला किया और इसमें सांसद सुनील महतो समेत चार ग्रामीणों की जान गई थी. इस दौरान माओवादियो ने उनके बॉडीगार्ड से हथियार को छीन लिया था. 2008 में झारखंड के पूर्व मंत्री सह तत्कालीन विधायक रमेश सिंह मुंडा की सभा पर माओवादियों ने हमला किया था। इस हमले में रमेश सिंह मुंडा समेत चार लोगों की जान गई थी.

Naxalism in Jharkhand Naxalites killed politicians policemen and common people
नक्सलियों ने निशाने पर सांसद विधायक

2004 में गिरिडीह के चिलखारी में तत्कालीन सीएम बाबूलाल मरांडी के भाई नुनु मरांडी और बेटे अनूप मरांडी पर माओवादियों ने हमला किया था। इस हमले में बाबूलाल मरांडी के बेटे अनूप मरांडी समेत 20 लोगों की जान गई थी. 2013-14 में गढ़वा के इलाके में माओवादियों ने तत्कालीन जिला परिषद अध्यक्ष और उनके बॉडीगार्ड का अपहरण कर लिया. 2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान पलामू के पिपरा में माओवादियों ने भरी बाजार में प्रखंड प्रमुख के पति को मार डाला था. जनवरी 2022 में पश्चिमी सिंहभूम में माओवादियों ने पूर्व विधायक गुरुचरण नायक पर हमला किया था और उनके दो बॉडीगार्ड को मार डाला था. पलामू सांसद सह राज्य के पूर्व डीजीपी विष्णु दयाल राम को कुछ वर्ष पहले माओवादियों ने धमकी दी थी.

आईपीएस-डीएसपी भी बने टारगेटः भाकपा माओवादियों के हुए बड़े हमलों में पाकुड़ के एसपी अमरजीत बलिहार, डीएसपी स्तर के अधिकारी डीएसपी प्रमोद कुमार रांची के बुंडू में, पलामू में देवेंद्र राय, चतरा में विनय भारती तक को नक्सलियों ने अपना निशाना बनाया. 4 अक्टूबर 2000 को लोहरदगा एसपी अजय कुमार अभियान पर निकले थे, इसी क्रम में माओवादियों ने उनपर हमला कर दिया था, इस हमले में एसपी अजय कुमार शहीद हो गए. 2013 में दुमका के तत्कालीन एसपी अमरजीत बलिहार बैठक में भाग लेकर वापस लौट रहे थे इसी क्रम में माओवादियों ने उन पर हमला कर दिया था. इस हमले में एसपी अमरजीत बलिहार समेत छह जवान शहीद हुए. झारखंड में ऐसी दर्जनों घटनाएं हैं जिसमें माओवादियों ने राजनीतिक और टॉप अधिकारियों को निशाना बनाया है.

Naxalism in Jharkhand Naxalites killed politicians policemen and common people
नक्सलियों ने आईपीएस-डीएसपी समेत पुलिसकर्मियों की जान ली

झारखंड में कम हुआ माओवादियों का प्रभावः आज झारखंड में माओवादी अंतिम सांसे गिन रहे हैं इनका प्रभाव क्षेत्र सारंडा, बूढ़ापहाड़ और झारखंड बिहार सीमावर्ती इलाके तक ही सिमट कर रह गया है. झारखंड में राजनीतिक और टॉप पुलिस अधिकारियों पर माओवादियों के हमले को देखते हुए पूर्व में कई एसओपी भी जारी हुए है. नक्सल प्रभावित इलाके का दौरा से पहले जनप्रतिनिधियों को पुलिस को सूचना उपलब्ध करवाने के भी आग्रह किया गया है. कई टॉप इनामी माओवादी कमांडर बिहार बंगाल और तेलंगाना के रहने वाले हैं. एक करोड़ के इनामी माओवादियों में मिसिर बेसरा झारखंड का रहने वाला है जबकि प्रमोद मिश्रा बिहार का रहने वाला है. बूढ़ापहाड़ और झारखंड बिहार सीमावर्ती क्षेत्रों में अधिकतर इनामी माओवादी कमांडर बिहार के इलाके के हैं. झारखंड पुलिस इनामी मांओवादियों की जल्द ही अपडेटेड सूची जारी करने वाली है. फिलहाल झारखंड सरकार की वेबसाइट पर 38 इनामी माओवादियों की सूची मौजूद है, राज्य सरकार द्वारा इनामी माओवादियों की सूची तैयार की जा रही है.

झारखंड गठन के बाद नक्सली वारदातः पिछले 22 साल इसमें 541 से ज्यादा पुलिसकर्मी वही 1887 आमलोग मारे गए हैं. वहीं, झारखंड पुलिस ने साल 2001-22 के बीच 319 नक्सलियों को भी मुठभेड़ों में मार गिराया है. झारखंड में साल 2001 में 55 पुलिसकर्मी नक्सलियों के हमले में शहीद हुए थे. वहीं 2002 में 69 ,2003 में 20, 2004 में 45 ,2005 में 30, 2006 में 45 ,2007 में 11 2008 में 39 ,2009 में 64 ,2010 में 24 ,2011 में 32, 2012 में 26 ,2013 में 26 ,2014 में 08,2015 में 04 ,2016 में 09 ,2017 में 02 ,2018 में 09,2019 में 14 ,2020 में 01 ,2021 में 05 , साल 2022 के अक्टूबर माह तक 03 पुलिसकर्मी शहीद हुए.

Naxalism in Jharkhand Naxalites killed politicians policemen and common people
नक्सली वारदात में शहीद पुलिस जवान

नक्सल हिंसा में मारे गए आम लोगः नक्सलवाद का दंश सबसे ज्यादा झारखंड के आम लोगों को भुगतना पड़ा है. 2001 से लेकर 2022 के अक्टूबर महीने तक नक्सली हिंसा में कुल 1887 आम लोग अपनी जान गवां चुके हैं. साल 2007 में सबसे ज्यादा 175 लोग नक्सली हिंसा के शिकार हुए थे। आंकड़ों का जिक्र करें तो 2001 में 107 सिविलियन मारे गए , 2002 में 77 ,2003 में 93 ,2004 में 106, 2005 में 79, 2006 में 93 ,2007 में 175 ,2008 में 150 , 2009 में 138 ,2010 में 135, 2011 में 131, 2012 में 124 ,2013 में 126 ,2014 में 86 ,2015 में 47 2016 में 61, 2017 में 44 , 2018 में 27, 2019 में 30, 2020 में 28, 2021 में 16 और 2022 में अब तक 08 आम नागरिक मारे गए है.

Naxalism in Jharkhand Naxalites killed politicians policemen and common people
नक्सली हिंसा में मारे गए सिविलियंस

पलामू,रांचीः आज झारखंड में नक्सलवाद की जड़ें खोखली जरूर हो चली हैं. लेकिन इन जड़ों को काटने के दौरान झारखंड पुलिस को जान की कीमत भी चुकानी पड़ी है. अपनी जान देकर झारखंड और केंद्रीय बलों के अधिकारियों और जवानों ने झारखंड को नक्सल मुक्त करने की राह पर खड़ा किया है. आज भी ये प्रदेश नक्सलवाद से मुक्ति के कगार पर है तो इसमें उन आईपीएस अफसरों का, पुलिस बल का, जनप्रतिनिधियों का, जिन्होंने इस प्रदेश के माथे नक्सलवाद का कलंक मिटाने में अपनी जान की कर्बानी दे दी.

झारखंड में प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा माओवादी नेताओं और अधिकारियों पर हमला कर चुके हैं. इस हमले में दर्जनों लोगों की जान गई है और कई शहीद भी हुए हैं. छत्तीसगढ़ के नारायणपुर के इलाके में माओवादियों ने भाजपा नेता की हत्या कर दी है. झारखंड के गठन के बाद यंहा कई बड़े हमले हुए है जिसमें पूर्व सीएम के बेटे, पूर्व मंत्री, दो एसपी और आधा दर्जन से अधिक टॉप पुलिस अधिकारियों की जान गई है.

नक्सलवाद का दंशः झारखंड को अपने गठन के साथ नक्सलवाद विरासत में मिला. साल 2000 यानी जिस समय अलग राज्य बना था, इसके 8 जिले नक्सल प्रभावित थे. लेकिन जल्द ही ये आंकड़ा दोगुना से भी अधिक हो गया. नतीजा ये रहा कि राज्य में नक्सल वारदातें बढ़ी और इसका सीधा नुकसान झारखंड पुलिस को उठाना पड़ा. झारखंड के गठन के इन 22 साल में 541 (सेंट्रल और राज्य मिलाकर) से अधिक जवानों और अधिकारियों ने अपने प्राणों की आहुति दी. वहीं नक्सलवाद का नुकसान सबसे बड़ी कीमत झारखण्ड के आम नागरिकों को चुकानी पड़ी है 22 साल में 1887 आम नागरिक नक्सल हिंसा में अपनी जान गवां चुके हैं.

नक्सलियों के निशाने पर सांसद-विधायकः जन नेता और इलाके के जनप्रतिनिधि हमेशा नक्सलियों के निशाने पर रहे हैं. वो भरी सभा उनकी हत्या कर पूरे राज्य में दहशत कायम कर अपनी सरकार चलाने की कोशिश करते हैं. कुछ वाकये भी हुए हैं, कई वारदातों में उन्होंने आला जनप्रतिनिधि जिसमें सांसद और विधायक भी शामिल है, उनकी हत्या नक्सलियों ने की है. 04 मार्च 2007 को जमशेदपुर के तत्कालीन जेएमएम सांसद सुनील महतो एक फुटबॉल कार्यक्रम में भाग लेने गए थे. इसी क्रम में माओवादियो ने हमला किया और इसमें सांसद सुनील महतो समेत चार ग्रामीणों की जान गई थी. इस दौरान माओवादियो ने उनके बॉडीगार्ड से हथियार को छीन लिया था. 2008 में झारखंड के पूर्व मंत्री सह तत्कालीन विधायक रमेश सिंह मुंडा की सभा पर माओवादियों ने हमला किया था। इस हमले में रमेश सिंह मुंडा समेत चार लोगों की जान गई थी.

Naxalism in Jharkhand Naxalites killed politicians policemen and common people
नक्सलियों ने निशाने पर सांसद विधायक

2004 में गिरिडीह के चिलखारी में तत्कालीन सीएम बाबूलाल मरांडी के भाई नुनु मरांडी और बेटे अनूप मरांडी पर माओवादियों ने हमला किया था। इस हमले में बाबूलाल मरांडी के बेटे अनूप मरांडी समेत 20 लोगों की जान गई थी. 2013-14 में गढ़वा के इलाके में माओवादियों ने तत्कालीन जिला परिषद अध्यक्ष और उनके बॉडीगार्ड का अपहरण कर लिया. 2019 के विधानसभा चुनाव के दौरान पलामू के पिपरा में माओवादियों ने भरी बाजार में प्रखंड प्रमुख के पति को मार डाला था. जनवरी 2022 में पश्चिमी सिंहभूम में माओवादियों ने पूर्व विधायक गुरुचरण नायक पर हमला किया था और उनके दो बॉडीगार्ड को मार डाला था. पलामू सांसद सह राज्य के पूर्व डीजीपी विष्णु दयाल राम को कुछ वर्ष पहले माओवादियों ने धमकी दी थी.

आईपीएस-डीएसपी भी बने टारगेटः भाकपा माओवादियों के हुए बड़े हमलों में पाकुड़ के एसपी अमरजीत बलिहार, डीएसपी स्तर के अधिकारी डीएसपी प्रमोद कुमार रांची के बुंडू में, पलामू में देवेंद्र राय, चतरा में विनय भारती तक को नक्सलियों ने अपना निशाना बनाया. 4 अक्टूबर 2000 को लोहरदगा एसपी अजय कुमार अभियान पर निकले थे, इसी क्रम में माओवादियों ने उनपर हमला कर दिया था, इस हमले में एसपी अजय कुमार शहीद हो गए. 2013 में दुमका के तत्कालीन एसपी अमरजीत बलिहार बैठक में भाग लेकर वापस लौट रहे थे इसी क्रम में माओवादियों ने उन पर हमला कर दिया था. इस हमले में एसपी अमरजीत बलिहार समेत छह जवान शहीद हुए. झारखंड में ऐसी दर्जनों घटनाएं हैं जिसमें माओवादियों ने राजनीतिक और टॉप अधिकारियों को निशाना बनाया है.

Naxalism in Jharkhand Naxalites killed politicians policemen and common people
नक्सलियों ने आईपीएस-डीएसपी समेत पुलिसकर्मियों की जान ली

झारखंड में कम हुआ माओवादियों का प्रभावः आज झारखंड में माओवादी अंतिम सांसे गिन रहे हैं इनका प्रभाव क्षेत्र सारंडा, बूढ़ापहाड़ और झारखंड बिहार सीमावर्ती इलाके तक ही सिमट कर रह गया है. झारखंड में राजनीतिक और टॉप पुलिस अधिकारियों पर माओवादियों के हमले को देखते हुए पूर्व में कई एसओपी भी जारी हुए है. नक्सल प्रभावित इलाके का दौरा से पहले जनप्रतिनिधियों को पुलिस को सूचना उपलब्ध करवाने के भी आग्रह किया गया है. कई टॉप इनामी माओवादी कमांडर बिहार बंगाल और तेलंगाना के रहने वाले हैं. एक करोड़ के इनामी माओवादियों में मिसिर बेसरा झारखंड का रहने वाला है जबकि प्रमोद मिश्रा बिहार का रहने वाला है. बूढ़ापहाड़ और झारखंड बिहार सीमावर्ती क्षेत्रों में अधिकतर इनामी माओवादी कमांडर बिहार के इलाके के हैं. झारखंड पुलिस इनामी मांओवादियों की जल्द ही अपडेटेड सूची जारी करने वाली है. फिलहाल झारखंड सरकार की वेबसाइट पर 38 इनामी माओवादियों की सूची मौजूद है, राज्य सरकार द्वारा इनामी माओवादियों की सूची तैयार की जा रही है.

झारखंड गठन के बाद नक्सली वारदातः पिछले 22 साल इसमें 541 से ज्यादा पुलिसकर्मी वही 1887 आमलोग मारे गए हैं. वहीं, झारखंड पुलिस ने साल 2001-22 के बीच 319 नक्सलियों को भी मुठभेड़ों में मार गिराया है. झारखंड में साल 2001 में 55 पुलिसकर्मी नक्सलियों के हमले में शहीद हुए थे. वहीं 2002 में 69 ,2003 में 20, 2004 में 45 ,2005 में 30, 2006 में 45 ,2007 में 11 2008 में 39 ,2009 में 64 ,2010 में 24 ,2011 में 32, 2012 में 26 ,2013 में 26 ,2014 में 08,2015 में 04 ,2016 में 09 ,2017 में 02 ,2018 में 09,2019 में 14 ,2020 में 01 ,2021 में 05 , साल 2022 के अक्टूबर माह तक 03 पुलिसकर्मी शहीद हुए.

Naxalism in Jharkhand Naxalites killed politicians policemen and common people
नक्सली वारदात में शहीद पुलिस जवान

नक्सल हिंसा में मारे गए आम लोगः नक्सलवाद का दंश सबसे ज्यादा झारखंड के आम लोगों को भुगतना पड़ा है. 2001 से लेकर 2022 के अक्टूबर महीने तक नक्सली हिंसा में कुल 1887 आम लोग अपनी जान गवां चुके हैं. साल 2007 में सबसे ज्यादा 175 लोग नक्सली हिंसा के शिकार हुए थे। आंकड़ों का जिक्र करें तो 2001 में 107 सिविलियन मारे गए , 2002 में 77 ,2003 में 93 ,2004 में 106, 2005 में 79, 2006 में 93 ,2007 में 175 ,2008 में 150 , 2009 में 138 ,2010 में 135, 2011 में 131, 2012 में 124 ,2013 में 126 ,2014 में 86 ,2015 में 47 2016 में 61, 2017 में 44 , 2018 में 27, 2019 में 30, 2020 में 28, 2021 में 16 और 2022 में अब तक 08 आम नागरिक मारे गए है.

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नक्सली हिंसा में मारे गए सिविलियंस
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