वाराणसी: काशी के गंगा तट पर बसी टेंट सिटी एक बार फिर विवादों में है. गंगा घाट के उस पार गुजरात के कच्छ की तर्ज पर बसाई गई इस टेंट सिटी को लेकर एक बार फिर सवाल उठने लगे हैं. बीते दिनों रेत पर बसाई गई टेंट सिटी का निरीक्षण करने के लिए एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) की टीम वाराणसी पहुंची थी. निरीक्षण के दौरान टेंट सिटी के एनओसी और औचित्य को लेकर एनजीटी काफी गंभीर दिख रही है.
दरअसल टेंट सिटी को लेकर लगातार एनजीटी के पास शिकायतें पहुंच रही थीं. इसके बाद एनजीटी की एक विशेष टीम वाराणसी निरीक्षण के लिए पहुंची. इस दौरान निरीक्षण के बाद सोमवार को मामले में सुनवाई हुई. इसमें एनजीटी ने दोनों कंपनियों को नोटिस जारी करने का आदेश दिया है. इसके अलावा अब 10 जुलाई को अगली सुनवाई की तिथि मुकर्रर की गई है.
संचालन करने वाली कंपनियों को नोटिसः न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल की अध्यक्षता वाली एनजीटी की दो सदस्यीय पीठ ने सरकारी वकील से कई गंभीर सवाल पूछे. कोर्ट ने कहा सरकार बताए वहां से कछुआ सेंचुरी (जहां कछुओं के प्रजन्न किया जाता है) आखिर किस विधि और किस अध्ययन के आधार पर हटाई गई है. इसके अलावा यहां टेंट सिटी क्यों बसाई गई है. कोर्ट ने एनजीटी के प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को टेंट सिटी का संचालन करने वाली दोनों कंपनियों के 'प्रवेश' और 'निरान' को नोटिस जारी कर उनका पक्ष मांगने को कहा है.
टेंट सिटी के लिए नहीं ली गई आवश्यक एनओसीः बता दें कि एनजीटी के आदेश पर 7 सदस्यीय टीम में 161 पेज की अपनी रिपोर्ट 25 मई को ही कोर्ट को सौंप दी थी. इसमें याचिकाकर्ता तुषार गोस्वामी की तरफ से उनके वकील सौरभ तिवारी ने सुनवाई से पहले भी जांच रिपोर्ट पर अपना पक्ष रखा था. समिति की रिपोर्ट के मुताबिक वाराणसी विकास प्राधिकरण में टेंट सिटी के संचालन के लिए गंगा प्राधिकरण आदेश 2016 के तहत राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन से आवश्यक एनओसी ली ही नहीं थी. टेंट सिटी को गंगा के तल पर बसाया गया और उसका सीवरेज सिस्टम भी संतोषजनक नहीं था. इसके बाद 23 मई को वीडीए को पत्र भेजकर एनएमसीजी ने यह पूछा था कि किस हैसियत से टेंट सिटी संचालकों के लिए एनओसी मांगी जा रही है.
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