कच्छ : वर्ष 2014-15 के दौरान नासा, इसरो और कुछ भारतीय विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों ने माता का मढ़ (Matanamadh) में एक वर्कशॉप का आयोजन किया था. इस भूमि पर नासा पहले ही शोध शुरू कर चुकी है और इस बात की जांच की गई थी कि क्या दुनिया में कहीं और मंगल ग्रह जैसी भूमि है. उस समय, भारत के महाराष्ट्र, लद्दाख और कच्छ के कुछ इलाकों की जमीन मंगल जैसी पाई गई थी.
कच्छ विश्वविद्यालय के भूविज्ञानी डॉ. महेश ठक्कर ने ईटीवी भारत से बात करते हुए कहा, कच्छ स्थित माता का मढ़ (Matanamadh) में 3 से 4 किलोमीटर रंगीन भूमि है जो पीली और लाल है. इस भूमि पर इन रंगों के अलग-अलग शेड्स भी हैं. भूवैज्ञानिकों द्वारा मिट्टी की जांच की गई जिसमें सामने आया है कि आम तौर पर ज्वालामुखी विस्फोट के बाद जिस प्रकार की मिट्टी पाई जाती है यह मिट्टी उसके जैसी है. इस प्रकार की मिट्टी मंगल ग्रह पर भी पाई गई है.
मिट्टी का होगा अध्ययन
मंगल ग्रह पर पाया जाने वाला जेरोसाइट नाम का खनिज कच्छ के माता का मढ़ (Matanamadh) में मिलने से वैज्ञानिकों की उत्सुकता जगी है. अब यहां की भूमि का अध्ययन किया जाएगा क्यूंकि कोई भी मानव मंगल तक नहीं पहुंच पाया है, इसलिए इस मिट्टी पर शोध से मंगल पर पानी के अस्तित्व और सदियों पहले वातावरण में आए बदलावों के कारण मंगल पर हुए बदलावों का पता चलेगा.
जेरोसाइट खनिज का कोई आर्थिक महत्व नहीं
जेरोसाइट खनिज ऐसा ख़निज नहीं हैं जिनका आर्थिक महत्व हो. ये खनिज पूरे पत्थर में केवल 1 से 2 प्रतिशत हैं और इनका कोई आर्थिक महत्व नहीं है. इस खनिज का उपयोग यह पता लगाने के लिए किया जाता है कि क्या संबंधित भूभाग (माता का मढ़) मंगल ग्रह की सतह से मिलता-जुलता है.
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कोरोना के बाद शोध प्रक्रिया को स्थगित कर दिया गया
2019 में नासा के वैज्ञानिक यहां पहुंचे थे, लेकिन कोरोना और लॉकडाउन के चलते शोध आगे नहीं बढ़ सका. अब कोरोना की स्थिति में सुधार के साथ जेरोसाइट पर देश-विदेश के वैज्ञानिक शोध करेंगे.
माता का मढ़ (Matanamadh) में वर्कशॉप होगी
फरवरी 2022 में नासा, एमआईटी विश्वविद्यालय, इसरो और विभिन्न विश्वविद्यालयों के साथ-साथ कच्छ विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक 3-4 दिवसीय कार्यशाला का आयोजन करेंगे, जिसमें इस भूमि पर शोध कैसे किया जाए इस पर चर्चा होगी. साथ ही कच्छ में ऐसे अन्य स्थलों की स्थिति का विस्तृत अध्ययन किया जाएगा.
वैश्विक स्तर पर मंगल मिशन में मददगार होगी शोध प्रक्रिया
भूविज्ञानी महेश ठक्कर ने कहा कि ऐसे स्थल कम ही देखने को मिलते हैं और वर्तमान में विभिन्न विकास कार्य किए जा रहे हैं. हमारी अपील है कि सड़कों को चौड़ा करते समय ऐसी भूमि की रक्षा की जाए यह बहुत महत्वपूर्ण है ताकि आने वाली पीढ़ियां इस पर अध्ययन कर सकें और आगे होने वाले मंगल मिशन के अध्ययन में कच्छ का अहम योगदान हो.