देहरादून (उत्तराखंड): उत्तरकाशी सिलक्यारा टनल हादसे ने देश-दुनिया में खूब सुर्खियां बटोरी हैं. सिलक्यारा टनल हादसे के 17 दिन बाद टनल में फंसे सात राज्यों के 41 श्रमिकों को सकुशल रेस्क्यू किया गया. उत्तरकाशी के सिलक्यारा में 17 दिनों तक देश का सबसे बड़ा रेस्क्यू ऑपरेशन चला, जिसमें देश-दुनिया से अत्याधुनिक मशीनें मंगाई गईं. दुनिया भर के टनलिंग एक्सपर्ट भी इस रेस्क्यू ऑपरेशन का हिस्सा बने. शासन-प्रशासन से लेकर सेना तक को उत्तरकाशी सिलक्यारा टनल हादसे के रेस्क्यू ऑपरेशन में दिन रात जुटना पड़ा.
इस दौरान दुनिया भर की निगाहें उत्तरकाशी पर टिकी हुई थीं. उत्तरकाशी से आने वाली हर अपडेट का हर दिन देशवासी बेसब्री से इंतजार करते थे. उत्तरकाशी सिलक्यारा टनल हादसा और रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान कई ऐसे नाम आए जो चर्चाओं में रहे. आइए आपको ऐसे ही कुछ नामों के बारे में बताते हैं जो उत्तरकाशी टनल रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान चर्चाओं में रहे.
उम्मीदों की ऑगर मशीन: उत्तरकाशी टनल हादसे के बाद अमेरिकन हेवी ऑगर मशीन पर सभी की निगाहें टिकी. इसी के जरिए उत्तरकाशी में ऑपरेशन 'जिंदगी' को रफ्तार दी गई. इस क्षेत्र में काम करने वालों के लिए चाहे ये बेहद कॉमन नाम हो लेकिन इस ऑपरेशन के दौरान ऑगर मशीन का जिक्र इतनी बार किया गया कि देशभर की जुबान पर ये नाम चढ़ गया है. दरअसल, अमेरिकन ऑगर मशीन विशालकाय होती है. इस मशीन की विशालकायता का इस बात से भी अंदाजा लगा सकते हैं कि इसको असेंबल करने में लगभग 10 घंटे का वक्त लगता है.
इस मशीन की खासियत ये है कि जिस पाइप को मजदूरों और अन्य मशीनों द्वारा मलबे के बीच से अंदर दाखिल नहीं किया जा सकता था, ये मशीन वो काम चंद घंटों में पूरा कर सकती थी. ये मशीन 5 मीटर प्रति घंटे की रफ्तार से पहाड़ को काटने में सक्षम है. इस दौरान आसपास के पहाड़ को इससे कोई खतरा नहीं होता. अमेरिकन ऑगर मशीन से उत्तरकाशी में 3 दिन तक काम किया गया. हालांकि, इस मशीन का बेयरिंग भी टूटा, मगर इसके ठीक होने के बाद फिर से इसने काम किया. हालांकि, उसके आगे ये मशीन काम नहीं कर पाई और कभी गार्डर तो कभी अन्य कारणों से इसके ब्लेड नष्ट हो गए थे लेकिन तबतक 46 मीटर तक खुदाई कर ऑगर ने श्रमिकों तक पहुंचने का रास्ता आसान कर दिया था.
इंटरनेशनल टनलमैन अर्नोल्ड डिक्स: उत्तरकाशी सिलक्यारा टनल रेस्क्यू ऑपरेशन में जो नाम सबसे ज्यादा चर्चाओं में आया वो टनलिंग कार्य के एक्सपर्ट अर्नोल्ड डिक्स का रहा. टनलमैन अर्नोल्ड डिक्स ऑस्ट्रेलिया के रहने वाले हैं. प्रोफेसर अर्नोल्ड डिक्स इंटरनेशनल टनलिंग विशेषज्ञ हैं. उन्हें भूमिगत और परिवहन बुनियादी ढांचे को लेकर विशेषज्ञता हासिल है. वह भूमिगत निर्माण जैसे सुरंग बनाने और उससे जुड़े जोखिमों पर भी दुनियाभर में सलाह देते हैं. प्रोफेसर डिक्स को भूमिगत सुरंग निर्माण (Underground tunnel construction) में दुनिया के अग्रणी विशेषज्ञों के रूप में जाना जाता है. उत्तरकाशी सिलक्यारा टनल हादसे के बाद रेस्क्यू ऑपरेशन में टनलमैन अर्नोल्ड डिक्स ने सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
अर्नोल्ड डिक्स ने रेस्क्यू ऑपरेशन को लीड तो किया ही लेकिन उनकी आस्था और भक्ति को भी देशभर में सराहना मिली. टनल के बाहर स्थापित स्थानीय बौखनाग देवता के मंदिर में अर्नोल्ड डिक्स हर रोज सुबह रेस्क्यू शुरू करने से पहले पूजा करते थे और रेस्क्यू ऑपरेशन सकुशल होने के बाद उन्होंने मंदिर में जाकर धन्यवाद दिया और माथा टेका. यही नहीं, स्थानीय लोगों के साथ उनका इतना मेल जोल बढ़ा गया था कि वो पहाड़ी गानों पर नाचते भी दिखाई दिए.
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ड्रोन बेस्ड सेंसर तकनीक: भारत में पहली बार ड्रोन बेस्ड सेंसर का उत्तरकाशी सिलक्यारा टनल में उपयोग किया गया. ड्रोन बेस्ड सेंसर का पूरा डाटा डिजिटल फॉर्म में ऑनलाइन प्राप्त होता है. इसका मतलब ये है कि कोई भी डिजास्टर मैनेजमेंट विशेषज्ञ चाहे वो बेंगलुरु, वॉशिंगटन, केपटाउन या फिर सिडनी में बैठा हो, उसे घटनास्थल की सारी चीजें ड्रोन बेस्ड सेंसर से डिजिटल फॉर्म में उनके कम्प्यूटर पर मिल जाएंगे. ऐसे में वो वहां बैठकर ही घटनस्थल पर रेस्क्यू के लिए अपने उपयोगी सुझाव दे सकते हैं. उत्तरकाशी टनल रेस्क्यू में दुनिया की ये आधुनिकतम तकनीक को इस्तेमाल किया गया था. ड्रोन बेस्ड सेंसर से टनल के अंदर की हर तस्वीर उपलब्ध कराई गई. उत्तरकाशी टनल में ड्रिलिंग के दौरान भी इसका उपयोग किया गया.
रैट माइनिंग से सफल हुआ ऑपरेशन: उत्तरकाशी टनल रेस्क्यू ऑपरेशन में लेटेस्ट टेक्नोलॉजी के साथ-साथ सदियों पुरानी तकनीक का सहारा भी लिया गया. रैट माइनिंग ऐसी ही एक तकनीक है जिसने उत्तरकाशी सिलक्यारा टनल रेस्क्यू ऑपरेशन को अपने मुकाम तक पहुंचाया. रैट माइनिंग, जैसा इसके नाम से ही साफ होता है चूहे की तरह खुदाई करना. दरअसल, जिस तरह के चूहा काम करता है, उसी तरह से रैट माइनिंग का काम होता है. रैट माइनिंग में सारा काम मैनुअली होती है. रैट माइनिंग में पांच से छह लोगों की एक टीम बनाई जाती है, जो सुरंग में आई बाधा को मैनुअली यानी हाथ से हटाती है, मतलब खुदाई करती है. जानकार बताते है कि सुरंग के अंदर 10 मीटर का रास्ता साफ करने के लिए करीब 20 से 22 घंटे तक लग जाते है. रैट माइनिंग करने वालों को रैट माइनर्स कहा जाता है.
बाबा बौखनाग का मिला आशीर्वाद: उत्तरकाशी टनल हादसा और रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान सबसे ज्यादा बाबा बौखनाग की चर्चा हुई. बाबा बौखनाग के बारे में जानने के लिए देश दुनिया में उत्सुकता देखी गई. बाबा बौखनाग सिलक्यारा क्षेत्र के क्षेत्रपाल है. मतलब वो इस इलाके के रक्षक देवता हैं. स्थानीय लोगों को मानना है कि टनल बनाने वाली कंपनी ने बाबा बौखनाग के मंदिर के वहां से हटा दिया था, जिसके बाद ही ये घटना घटी. रेस्क्यू ऑपरेशन में शामिल अधिकारी हों, मंत्री, नेता, वैज्ञानिक, एक्सपर्ट या खुद मुख्यमंत्री, सभी यहां बाबा बौखनाग के आगे शीश नवाते नजर आए. एकाएक उत्तराकाशी के राडीटॉप इलाके के स्थानीय देवता का नाम देश-दुनिया में प्रसिद्ध हो गया. उत्तराखंड सरकार की ओर से भी यहां बाबा बौखनाग का भव्य मंदिर बनाने की घोषणा की गई है.