शहडोल। एमपी सचमुच अजब-गजब है और इस बार मध्यप्रदेश के कुछ गांव अपनी विशेष मुनादी को लेकर चर्चित भी हैं. अभी हाल ही में मध्यप्रदेश के शहडोल जिले के 2 गांव में ऐसी मुनादी कराई गई, जो देश भर में सुर्खियां बटोर रही है, क्योंकि यह अनोखी मुनादी थी, और इसका विरोध भी हुआ, जिसमें मवेशियों की व्यवस्था न करने पर जुर्माना साथ ही जूते मारने तक की भी मुनादी कराई गई, जिसके बाद सवाल यही है कि आखिर मवेशी जाएं तो जाएं कहां ? क्या सचमुच ग्रामीणों के लिए मवेशी इतनी बड़ी समस्या बन गये हैं.
सुर्खियों में अजब-गजब मुनादी: अभी हाल ही में शहडोल जिले के जयसिंह नगर के ग्राम पंचायत नागनौडी गांव और सोहागपुर जनपद पंचायत अंतर्गत ग्राम पंचायत खैरहा गांव में एक ऐसी मुनादी कराई गई जो अब सुर्खियां बटोर रही है. नगनौडी गांव में मुनादी कराई गई कि अपने मवेशियों की व्यवस्था कर लें, नहीं तो 500 रुपये जुर्माना और 5 जूते भी पड़ेंगे, सचिव और सरपंच को दोष न दें. इसके बाद एक और वीडियो सामने आया जिसमें खैरहा गांव में मुनादी की गई जिसमें एक हज़ार रुपये जुर्माना और 25 जूते मारने की मुनादी की गई. इन दोनों ही वीडियो के सामने आने के बाद यह वीडियो सुर्खियों में बन गई है. नगनौडी गांव के लोग तो विरोध भी करने लग गए और ग्रामीणों ने इसकी शिकायत भी एसडीएम से कर डाली कुछ ग्रामीणों का कहना था कि जुर्माना तक तो बात ठीक है लेकिन जूते मारने की बात कितनी सही है और इस मामले को लेकर जयसिंहनगर के एसडीएम ने भी कहा कि वायरल वीडियो का जांच कराएंगे और वीडियो की जांच के बाद एक्शन भी लिया जाएगा.
![problems of stray cattle increased in mp](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/23-07-2023/mp-sha-02-awara-maveshi-munadi-pkg-7203529_22072023185016_2207f_1690032016_871.jpg)
आखिर ऐसी मुनादी की जरूरत क्यों पड़ी ?: गांव में आखिर ऐसी मुनादी की जरूरत क्यों पड़ी इसे समझने के लिए पहले आप यहां के गांवों की प्रथा को जानिए, मध्यप्रदेश के शहडोल संभाग क्षेत्र में प्रमुख तौर पर रवि और खरीफ सीजन की खेती की जाती है जैसे ही दोनों सीजन की खेती खत्म होती है गेहूं की फसल कटती है उसके बाद यहां मवेशियों को ऐरा प्रथा के लिए छोड़ दिया जाता था, मतलब गर्मी के 2 महीने जब खेत खाली रहते हैं तो यहां पर मवेशियों को बिना चरवाहे के ही बाहर छोड़ दिया जाता था, जिसे ऐरा प्रथा कहा जाता है और फिर जैसे ही बरसात का सीजन शुरू होता है धान की बुवाई शुरू होती है, पहली बारिश के बाद से ही गांव में मुनादी करा दी जाती है, और चरवाहे मवेशियों को चराने लगते हैं, या फिर मवेशी के जो मालिक होते हैं वो अपने मवेशियों की अपने तरीके से व्यवस्था कर लेते हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों से अब यह व्यवस्था भी गांव में खत्म होती जा रही है, और यह दो महीने का ऐरा प्रथा आवारा मवेशियों में बदलती जा रही है.
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ऐरा प्रथा खत्म, आवारा मवेशी का कल्चर बढ़ा: इसे लेकर जब हमने कुछ गांव के ग्रामीणों से बात की आखिर ऐरा प्रथा कैसे आवारा मवेशियों में तब्दील हो रहा है, आवारा मवेशी कौन हैं. इसके बारे में ग्रामीण बताते हैं कि गांव में पहले दो महीने ही मवेशी फ्री घूमते थे, बिना चरवाहे के चरते थे, लेकिन अब इनका कोई मालिक ही न बचा, ये आवारा हो चुके हैं न इनका कोई मालिक है न घर है, ये जंगल में गांव के सड़कों में मोहल्लों में मिलेंगे और धीरे धीरे अब इनकी संख्या भी लगातार बढ़ती ही जा रही है.
समस्या गंभीर है: आवारा मवेशियों को लेकर किसान किस तरह से परेशान हो रहा है इसे लेकर कृषि वैज्ञानिक मृगेंद्र सिंह कहते हैं कि क्षेत्र में पहले सिर्फ ऐरा प्रथा होती थी, उसका फिक्स टाइम होता था और उसके बाद बड़ी इमानदारी से मवेशी मालिक अपने मवेशियों की व्यवस्था कर लेते थे लेकिन अब साल दर साल यह प्रथा आवारा जानवरों का रूप ले लिया है, इसकी एक वजह यह भी है और आवारा मवेशियों की संख्या ज्यादा बढ़ गई है जो यह गंभीर समस्या है और किसान की खेती के लिए तो यह एक सबसे बड़ी चुनौती भी है.
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मध्यप्रदेश में मवेशियों की स्थिति: मध्यप्रदेश में मवेशियों की आखिर क्या स्थिति है, इसे आप ऐसे जान सकते हैं, सरकारी आंकड़ों के अनुसार मध्यप्रदेश में आवारा गोवंश की संख्या 8,53971 है जबकि आवारा कुत्तों की संख्या 10,09,076 है और पालतू पशुओं की संख्या 4.06 करोड़ है और यह आवारा मवेशियों का आंकड़ा लगातार बढ़ता ही जा रहा है साल दर साल यह आंकड़ा बड़ी तेजी के साथ बढ़ रहा है.
चरवाहों का खत्म हो रहा कल्चर: ग्रामीण युवा राज नारायण पांडे जो कि एक पढ़े-लिखे युवक हैं, और खेती को ही अपने आय का साधन बना कर रखे हुए हैं वह बताते हैं की बदलते वक्त के साथ बहुत कुछ बदल रहा है और गांव में भी काफी तेजी के साथ आधुनिकता आ रही है साल दर साल अब जो गांव में एक व्यवस्था बनी हुई थी वह भी धीरे-धीरे विलुप्त की कगार पर है उन्हीं में से एक व्यवस्था थी साल भर गांव में चरवाहे लगाए जाते थे जो गांव भर के मवेशियों को सुबह से लेकर शाम तक चराने के लिए ले जाते थे, और फिर शाम को उनके घरों पर लाते थे, लेकिन अब यह व्यवस्था भी धीरे-धीरे खत्म हो रही है.
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कुछ और ग्रामीणों से जब हमने इसके बारे में चर्चा की तो उनका मानना है इसका प्रमुख कारण यह है कि अब तो आधुनिकता में लोग मवेशियों को चराना ही नहीं चाहते हैं और खुद मवेशी मालिक भी चरवाना नहीं चाहते हैं क्योंकि महंगाई इतनी बढ़ गई है चरवाहों के रेट भी बढ़ चुके हैं. इसके अलावा दूसरी समस्या आ रही है चरनोई की क्योंकि पहले मवेशियों के चरने के लिए काफी बड़ा रकबा खाकी रहता था, वह अब इस बढ़ती आबादी के साथ ही काफी छोटा या खत्म हो रहा है और इस बढ़ती आधुनिकता के साथ ही वहां किसान भी अब ज्यादा से ज्यादा खेती कर रहे हैं.
अब तो जंगलों में भी रहते हैं मवेशी: आवारा मवेशी किस तरह से ग्रामीणों के लिए एक बड़ी और गंभीर समस्या बनते जा रहे हैं इसे जानने के लिए हमने गांव के एक ग्रामीण गोविंद सिंह से बात की गोविंद सिंह बताते हैं कि जब से वह खेती की शुरुआत करते हैं पहला तो वह एक ही सीजन की खेती करते हैं क्योंकि इन आवारा मवेशियों की वजह से दूसरे सीजन की खेती संभव नहीं है और यह एक सीजन की भी खेती जो 4 महीने में करते हैं उसके लिए गोविंद सिंह 4 महीने अपने खेत पर ही रहते हैं और फसलों की सुरक्षा करते हैं, तब जाकर कहीं वो खेती कर पाते हैं. गोविंद सिंह बताते हैं कि उनके गांव के पास एक जंगल है और जंगल में अब आवारा मवेशियों की संख्या 40 से 50 से ज्यादा पहुंच चुकी है, वह दिन में तो जंगलों में छिपे रहेंगे, लेकिन रात में अचानक आते हैं और झुंड में आते हैं और पूरा खेत साफ कर जाते हैं, इस समस्या से अब हर कोई पीड़ित हो रहा है, और धीरे-धीरे इनकी संख्या भी बढ़ती जा रही है.
गौवंश की ऐसी दुर्गति क्यों ?: आखिर गोवंश की इस तरह की दुर्गति क्यों हो रही है इसे लेकर हमने कई लोगों से बात की और जानने समझने की कोशिश की कि आखिर गोवंश के साथ मवेशियों के साथ ऐसा क्यों किया हो रहा है, इसे लेकर हमने अटल कामधेनु गौ सेवा संस्थान के गौरव राही मिश्रा से बात की जिनकी टीम अक्सर घायल बेसहारा गोवंश का रेस्क्यू करते रहती है उनका मानना है कि यह मवेशी उन मवेशी मालिकों के लिए उपयोगी नहीं रह जाते हैं, तो उन्हें वह छोड़ देते हैं और फिर अपने घर में ही रखना पसंद नहीं करते जिसकी वजह से उनकी यह दुर्गति होती है साथ ही कुछ लोग ऐसे स्वार्थी भी हैं, जब तक गाय दूध देती है तो घर पर रखते हैं जब दूध देना बंद करती है तो उसे बाहर छोड़ देते हैं.
इसे लेकर हमने कुछ ग्रामीणों से भी बात की तो उनका मानना है कि अब खेती किसानी भी आधुनिकता की ओर जा रही है पहले हल से खेती होती थी लेकिन अब ट्रैक्टर से हो रही है जिसकी वजह से बैल पूरी तरह से बेकार हो चुके हैं किसी काम के नहीं रहे, इस क्षेत्र में ग्रामीणों के यहां देसी नस्ल के जो गाय हैं वह बहुत ही कम दूध देते हैं और वजह यही है कि अब ग्रामीण उन मवेशियों को अपने घरों पर नहीं रखना चाहते हैं. कुछ ग्रामीणों ने एक और वजह बताई कि पहले गोबर खाद के लिए कई लोग मवेशियों को घर पर रखते थे लेकिन अब डीपी यूरिया ने उसकी जगह ले ली है जिसकी वजह से मवेशियों की ऐसी स्थिति हो गई है. गांव में तो अब इन देसी मवेशियों के यह हालात हैं कि लोग अपने घरों पर ही नहीं रखना चाहते फ्री में लोगों को ले जाने के लिए दे देते हैं तो फ्री में भी लोग इन मवेशियों को ले जाने के लिए तैयार नहीं होते हैं.
गौरतलब है कि आवारा मवेशियों की ये समस्या अब दिनोंदिन विकराल बनती जा रही है इससे किसानों का तो नुकसान हो ही रहा है साथ ही साथ गोवंश की भी काफी दुर्गति हो रही है गोवंश को लेकर सरकारें राजनीति तो बहुत करती हैं लेकिन इनकी उचित व्यवस्था पर ध्यान कोई नहीं देता है.