दमोह। दमोह जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर थाना तेजगढ़ की बाबा मुरादशाह की दरगाह की चर्चा सिर्फ तेजगढ़ ही नहीं, बल्कि पूरे बुंदेलखंड में रहती है. दरअसल थाने में स्थित दरगाह में जहां स्थानीय लोगों की अटूट आस्था है, तो दूसरी तरफ थाने का स्टाफ और थाना प्रभारी भी दरगाह में भरपूर आस्था रखते हैं. कहा जाता है कि कोई भी नए प्रभारी की जब थाना में पोस्टिंग होती है, तो ड्यूटी पर आमद के पहले वह हजरत बाबा मुरादशाह की दरगाह पर आमद देता है और सजदा करने के बाद अपनी कुर्सी पर बैठता है. स्थानीय लोग बताते है कि कई थाना प्रभारी आए और उन्होंने अंधविश्वास मानते हुए बाबा की दरगाह का सजदा नहीं किया, तो वो थाने में टिक भी नहीं पाए. ऐसे में जो थानेदार या थाने का दूसरा स्टाफ अपनी पोस्टिंग पर तेजगढ़ थाना आता है, तो सबसे पहले बाबा की दरगाह पर आमद देता है और फिर अपनी कुर्सी पर बैठकर काम शुरू करता है.
दरगाह की डर से नहीं कराते झूठी रिपोर्ट: तेजगढ़ थाना में स्थित हजरत बाबा मुरादशाह की दरगाह की महिमा ऐसी है कि थाने में पहुंचने वाले फरियादी और शिकायतकर्ता झूठी शिकायत नहीं करते हैं क्योकिं उन्हें डर होता है कि हजरत बाबा मुरादशाह की दरगाह के सामने झूठ बोलेंगे, तो सजा जरूर मिलेगी. कई बार ऐसा होता है कि कोई शिकायतकर्ता झूठी रिपोर्ट कराने पहुंचता है और पुलिस वाले भांप जाते हैं कि शिकायतकर्ता झूठ बोल रहा है, तो बाबा की दरगाह के सामने सच उगल देता है. छोटे- मोटे विवाद जो अक्सर थाने में समझाइश और बातचीत से हल हो जाते हैं, वो विवाद भी हजरत बाबा मुरादशाह की दरगाह के सामने हल किए जाते हैं. स्थानीय लोगों की दरगाह में आस्था होने के कारण वो दरगाह के सामने हुए फैसले मानते भी है.
थानेदार के कक्ष में जाने के पहले उतारनी होती है जूते चप्पल: अगर किसी थानेदार के कक्ष के बाहर पोस्टर लगा हो कि कृपया जूते चप्पल उतारकर प्रवेश करें, तो एक वक्त मन में आएगा कि थाना प्रभारी सामंती सोच का व्यक्ति है और अपने रूतबे के चलते ऐसा पोस्टर चिपकाया हुआ है. लेकिन तेजगढ़ थाना प्रभारी के कक्ष में जूते चप्पल उतारकर जाने की परम्परा सालों से लागू है और थाना प्रभारी के कारण नहीं, बल्कि थाने में स्थित दरगाह के कारण ऐसा है. ऐसी स्थिति में थाने में पहुंचने वाला हर व्यक्ति दरगाह में आस्था के चलते जूते चप्पल उतारकर प्रवेश करता है.
क्या है दरगाह का इतिहास: तेजगढ़ थाने में स्थित दरगाह की पिछली 6 पीढ़ियों से खिदमत कर रहे सलीम मुल्ला जी बताते हैं कि दरगाह का इतिहास काफी पुराना है. तेजगढ़ में राजा तेजीसिंह का राज हुआ करता है राजा तेजीसिंह अपने राज्य के विवादों के निपटारे के लिए इसी स्थान पर कचहरी चलाते हैं. जब अंग्रेजों का राज आया, तो तेजीसिंह को हटा दिया गया और उनकी कचहरी में अंग्रेजों ने थाना बना दिया. तब से लेकर अब तक तेजगढ़ का थाना उसी कचहरी में संचालित है.
चाहकर भी थाना नहीं हटा पाए: ऐसा नहीं है कि तेजगढ़ थाना को नई जगह ले जाने या नया थाना बनाने की कोशिश नहीं की गयी,लेकिन ये कोशिश हमेशा नाकाम रही. बाबा साहब की खिदमत करने वाले सलीम मुल्ला जी बताते हैं कि 1973 में नया थाना भवन बनाकर थाने को शिफ्ट करे की तैयारी कर ली गयी थी. तेजगढ़ से कुछ दूरी पर नया थाना भवन बनाया जा रहा है. पुराने थाने को गिराने का काम शुरू किया गया और थाने की दीवारें गिराना शुरू किया गया. दरगाह को भी हटाने की तैयारी थी, लेकिन इसके पहले नए थाने के भवन में दरारे आ गयी और नवनिर्मित थाना ढह गया. वहीं सागर आईजी थाना का उद्घाटन करने तेजगढ़ आने वाले थे, उनकी बीच रास्ते में गाडी खराब हो गयी. इसके साथ ही दरगाह के खिदमतगार सलीम मुल्ला जी को सपने में हजरत बाबा मुरादशाह आए और उन्होंने पुरानी जगह रहने की इच्छा बतायी. जब इसके बारे में पुलिस के आला अधिकारियों को जानकारी लगी, तो गृह विभाग ने भी थाने को जस का तस रखने का फैसला किया और तब से ना सिर्फ पुलिस वालों में बल्कि स्थानीय लोगों में दरगाह के प्रति आस्था और बढ़ गयी.
क्या कहना है थाना प्रभारी का: तेजगढ़ थाना प्रभारी धर्मेंद्र उपाध्याय का कहना है कि थाना में हजरत बाबा मुरादशाह की दरगाह है. जिसकी मान्यता पूरे थाना इलाके और पुलिस विभाग के लोगों में है. कोई भी फरियादी या शिकायतकर्ता जब भी आता है, तो पहले दरगाह का सजदा करता है और फिर अपनी शिकायत बताता है. थाना में कोई भी जूते चप्पल पहनकर नहीं जाता है. हर शुक्रवार के दिन बाबा की दरगाह पर चादर चढाई जाती है और थाना प्रभारी जब पहली बार यहां आता है, तो दरगाह पर चादर चढ़ाकर और सजदा कर अपना कार्यभार ग्रहण करता है.