भिंड। चंबल वह इलाका जहां कुछ दशक पहले न जाने कितनी महिला डकैतों ने संघर्ष के लिए बंदूक उठाई. आज वही चंबल एक नयी क्रांति देख रहा है. समाज की उस पिछड़ी सोच के खिलाफ जहां मासिक धर्म जैसी समस्या आज भी जागरूकता की कमी से महिलाओं के स्वास्थ्य और जान से खिलवाड़ कर रही है. जानकारी का अभाव कहें या सामाजिक सोच, ग्रामीण अंचलों में आज भी सेनेटरी पैड्स को लेकर शर्म का पर्दा महिलाओं की समस्या के आड़े आ जाता है. लेकिन इस परेशानी को दूर करने और महिलाओं में मासिक धर्म के दौरान हाइजीन का ध्यान रखने के लिए भिंड की पैड वूमेन रेखा शुक्ला दिन रात मेहनत कर रही हैं.
महिलाओं को जागरूक करने के लिए शुरू की फैक्ट्री: भिंड की रेखा शुक्ला एक सेल्फहेल्प ग्रुप चलाती हैं. उन्होंने महिलाओं के मासिक धर्म के दौरान सेनेटरी पैड को लेकर जागरूकता की कमी को एक अभियान में बदल दिया. शहरी क्षेत्र में तो महिलाएं फिर भी मेडिकल तक पहुंच कर सेनेटरी पैड खरीद कर उपयोग कर लेती हैं, लेकिन कई ग्रामीण अंचलों में आज भी महिलाएं पीरियड्स के दौरान कपड़े से अपने स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रही हैं. इस समस्या को दूर करने के लिए रेखा शुक्ला ने खुद एक सेनेटरी पैड मैन्यूफैक्चरिंग फैक्ट्री की शुरुआत की. यहां उनका समूह सेनेटरी पैड्स का निर्माण, पैकिंग और सप्लाई करता है. उन्होंने 'संगिनी' नाम से अपना खुद का एक ब्रांड शुरू किया है. जो बाजार में उपलब्ध महंगे ब्रांडेड प्रॉडक्ट्स से सस्ता है, लेकिन क्वालिटी बड़े ब्रांड्स की तरह ही अच्छी है.
जानकारी का अभाव एक बड़ी समस्या: रेखा शुक्ला ने Etv Bharat को बताया कि ''उन्होंने सेनेटरी पैड्स का निर्माण इसलिए शुरू किया, क्योंकि भिंड जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी सेनेटरी नैपकिन उपलब्ध नहीं है और जहां मिलते भी है वहां ब्रांडेड सेनेटरी पैड्स बहुत महंगे मिलते हैं. जिले ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं लेने की स्थिति में भी नहीं होती हैं. साथ ही इस बात की भी जानकारी नहीं होती की ये पैड किस तरह और कहां मिलते हैं. इसलिए उन्होंने गांव-गांव में महिलाओं तक सेनेटरी पैड की सप्लाई करने के उद्देश्य से अपनी छोटी निर्माण यूनिट शुरू की. यहां से बनकर तैयार पैड्स के पैकेट गांव की स्वासहायता समूह से जुड़ी महिलाओं को उपलब्ध कराए और वहां बिक्री केंद्र बनाए. इन जगहों पर महिलाएं समूह की बहनों के घर से सेनेटरी पैड्स आसानी से ले जाती हैं.'' उन्होंने कहा कि ''अब यही उद्देश्य है कि हर गांव में महिलाएं पीरियड्स के दौरान सेनेटरी पैड्स का इस्तेमाल करें.''
घर बैठे मिल जाते हैं सेनेटरी पैड: जब हमने रेखा शुक्ला से बड़े ब्रांड्स के मुकाबले उनके सेनेटरी पैड्स में अंतर जानना चाहा तो उन्होंने कहा कि ''बड़े ब्रांड की कीमतें भी बड़ी होती हैं. लेकिन इस यूनिट को शुरू करने के पीछे ये उद्देश्य था कि कम लागत में सेनेटरी पैड ग्रामीण इलाकों में महिलाओं को यथास्थान पर उपलब्ध हो सके, तो महिलाएं उसे लेती भी हैं.'' उन्होंने कहा कि ''हमारा प्रोडक्ट आज आराम से बिक रहा है. समूह की दीदियों का प्रोडक्ट होने से महिलाओं को ये भी लगता है कि इससे समूह की भी आमदनी होगी और उनको भी घर के पास सेनेटरी पैड मिल जाएंगे, इससे दोनों को ही लाभ मिलेगा.''
कीमत कम, क्वालिटी वही: बात अगर कीमतों की करें तो बाजार में आमतौर पर बिकने वाले ब्रांडेड सेनेटरी पैड का पैकेट 45 रुपये से शुरू होते हैं. वहीं, समूह का ब्रांड संगिनी सिर्फ 25 रुपए में उपलब्ध है. रेखा शुक्ला ने कहा कि ''हम बाजार में उपलब्ध बड़ी कंपनियों की तरह उसी क्वालिटी और उसी क्वांटिटी में पैड बनाकर कम कीमत में दे रहे हैं. क्यूंकि हम आर्थिक लाभ के लिए नहीं बल्कि महिलाओं को जागरूक करने के लिए इनका निर्माण कर रहे हैं.''
इस तरह होता है पेड्स का निर्माण: 'संगिनी' नाम से अपना ब्रांड स्थापित करने वाली रेखा शुक्ला ने बताया कि ''मैन्युफैक्चरिंग के लिए उन्होंने पहले रिसर्च की उसके बाद उन्होंने काम शुरू किया. पैड बनाने की प्रक्रिया 4 स्टेज में पूरी होती है. इस लिए मशीन में पहले डिस्पोजेबल फैब्रिक की लेयर रखी जाती है. फिर दूसरी लेयर में 'बूटपल्प' (जो एक तरह का ऑब्सर्वर मैटेरियल है जो पीरियड्स के दौरान निकलने वाले ब्लड को सोखने का काम करता है. यह गीला होने पर जैल में तब्दील हो जाता है) का इस्तेमाल किया जाता है. इसके बाद एक बार फिर डिस्पोजेबल फैब्रिक की एक और लेयर बूटपल्प के ऊपर रखी जाती है और आखिर में एक पतली कागज जैसे कपड़े की शीट लगायी जाती है जो लीकेज को रोकती है. इसके बाद इसे सीलिंग मशीन में बने खांचे में रख कर सेट किया जाता है. इससे पैड अपने आकर में कट जाता है. दूसरे चरण में पैड को फ्लैट करने के लिए एक अन्य मशीन में रख कर प्रेस किया जाता है. जिससे वह दबकर पतला हो जाता है और आसानी से इसकी पैकिंग हो सकती है. तीसरे चरण में तैयार सेनेटरी पैड को हाईजीन के लिए यूवी मशीन में रखा जाता है आखिरी स्टेज में अपने ब्रांड 'संगिनी' के नाम वाले पैकेट में डाल कर हीट मशीन के जरिए सील कर दिया जाता है. इसके साथ ही पैकेट बिक्री के लिए तैयार हो जाता है.''
पैड निर्माण के जरिए महिलाओं को मिल रहा रोजगार: सेल्फहेल्प ग्रुप के जरिये रेखा शुक्ला ने कुछ महिलाओं को भी रोजगार दिया. मैन्युफैक्चरिंग यूनिट में काम कर रही बबिता ने बताया कि ''वह एक वो गृहणी है, जो पहले कभी बिजनेस में नहीं रही है. रेखा शुक्ला ने ही उन्हें इस समूह से जोड़ा, यहां काम कर उन्हें रोज़गार मिला. आज वह चार पैसे कमा रहीं हैं. परिवार वाले भी इस कार्य के लिए उन्हें कभी नहीं रोकते.'' वहीं ग्राम दुल्हागन की रहने वाली एक और महिला विमलेश ने बताया कि ''उन्हें इस यूनिट में जोड़ने वाली बबीता हैं जिन्होंने सेनेटरी पैड के निर्माण और रोजगार की बात समझाई. उनकी मुलाकात रेखा शुक्ला से हुई और काम शुरू किया. अब इस फैक्ट्री में काम करने से उनकी आमदनी हो रही है वे इससे खुश हैं.'' उन्होंने बताया कि उनके पति तो कहते हैं कि ''काम करना है तो मन लगाकर करो.''
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गांव-गांव शुरू किए संगिनी पिंक कॉर्नर: सेल्फहेल्प ग्रुप से जुड़ी महिला सदस्यों के साथ सेनेटरी पैड की बिक्री के लिए रेखा शुक्ला ने हर गांव में बिक्री केंद्र 'संगिनी' पिंक कॉर्नर शुरू किए. यहां गांव की महिलाएं उनके घर पहुंच कर आसानी से सेनेटरी पैड ले जाती हैं. इसकी बिक्री के लिए महिला बाल विकास और अस्पताल से भी मदद मिलती है, इनके जरिए अस्पतालों में भी पैड्स की सप्लाई करते हैं. साथ ही जिले में कोई बड़ा कार्यक्रम होता है तो वहां भी संगिनी पिंक कॉर्नर लगाया जाता हैं. इससे महिलाओं में जागरूकता आ रही है और साथ ही पैड्स भी सेल हो रहे हैं. फिलहाल इनकी बिक्री भिंड जिले में है यदि भविष्य में सब ठीक रहा तो अन्य जिलों में भी जागरूकता के साथ इस बिज़नेस को बढ़ाने की प्लानिंग है. जिससे महिलाएं जागरूक हो और ग्रुप से जुड़ने वाली महिलाओं को भी रोजगार मिल सके.
समाज में सकारात्मक बदलाव की पहल का प्रयास: रेखा शुक्ला ने अपनी टीम के साथ मिलकर समाज के लिए कुछ बेहतर करने की ठानी है. आज संगिनी स्वसहयता समूह ग्रामीण इलाकों की महिलाओं को ध्यान में रखते हुए सैनिटेरी पैड निर्माण कर कम कीमतों में उपलब्ध कराने का प्रयास किया जा रहा है, लेकिन ये प्रयास उस दिन पूरी तरह सफल माना जाएगा जब महिलाएं मासिक धर्म को लेकर फैली भ्रांतियों के खिलाफ खुद खड़ा होना शुरू कर देंगी और इस तरह के प्रयास शायद जल्द ही वह दिन दिखायेंगे.