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बुढ़ापे में माता-पिता की देखभाल बच्चों की नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी: कर्नाटक हाई कोर्ट

कर्नाटक हाई कोर्ट एक मामले पर सुनवाई करते हुए कहा कि बुजुर्ग माता-पिता के अंतिम दिनों में उनकी देखभाल करना बच्चों की नैतिक, कानूनी और धार्मिक जिम्मेदारी है. उच्च न्यायालय एक पिता द्वारा अपनी बेटी और दामाद के खिलाफ दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था. Karnataka High Court, Parents protection in old age.

karnataka high court
कर्नाटक हाई कोर्ट
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Nov 13, 2023, 7:07 PM IST

बेंगलुरु: कर्नाटक हाई कोर्ट ने सोमवार को कहा कि बुजुर्ग माता-पिता के अंतिम दिनों में उनकी देखभाल की कानूनी, धार्मिक और नैतिक जिम्मेदारी बच्चों की है. मुख्य न्यायाधीश पीबी वराले और न्यायमूर्ति कृष्ण एस दीक्षित की खंडपीठ ने एक पिता के प्रति उनकी बेटी और दामाद के व्यवहार को देखते हुए, आदेश दिया कि माता-पिता द्वारा संपत्ति उपहार में देने पर यह देनदारी बढ़ जाएगी.

बेटी और दामाद ने पिता से उपहार के रूप में संपत्ति प्राप्त करने के बाद पिता के साथ मारपीट की और उन्हें घर से बाहर निकाल दिया. साथ ही, हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने तुमकुर जोन के माता-पिता कल्याण और वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण अधिनियम के तहत ट्रिब्यूनल के डिवीजनल अधिकारी के आदेश को बरकरार रखा.

इस आदेश में पिता से उपहार विलेख के रूप में बेटी द्वारा संपत्ति के अधिग्रहण को अमान्य कर दिया था और उच्च न्यायालय की एकल सदस्यीय पीठ के फैसले ने इसे बरकरार रखा. कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा कि माता-पिता की देखभाल करना बच्चों की जिम्मेदारी है, न कि कोई दान का मामला, बुढ़ापे में अपने माता-पिता की देखभाल करना बच्चों की वैधानिक जिम्मेदारी है.

कोर्ट ने कहा कि हजारों वर्षों से इस देश के शास्त्र यही उपदेश देते आये हैं कि 'रक्षन्ति स्थविरे पुत्रः'. कोर्ट ने कहा कि इसका मतलब है कि बच्चे अपने माता-पिता की देखभाल करते हैं, जो अपने जीवन के आखिरी दिनों में हैं. वर्तमान मामले में बेटी ने उपहार के रूप में संपत्ति प्राप्त करने के बाद अपने माता-पिता की देखभाल नहीं की. इतना ही नहीं, माता-पिता के साथ मारपीट करना और उन्हें घर से बाहर निकाल देना बहुत दर्दनाक है.

माता-पिता द्वारा बच्चों के उत्पीड़न के कई मामले कई कारणों से कभी सामने नहीं आ पाते. यह खुशी की बात है कि अदालत ऐसे कई मामलों का अवलोकन कर रही है. डिविजन बेंच ने अपने आदेश में कहा कि यह स्वीकार्य घटनाक्रम नहीं है. अदालतों, प्राधिकरणों और न्यायाधिकरणों को ऐसे मामलों में अत्यधिक सावधानी और सख्ती बरतनी होगी.

बेंगलुरु: कर्नाटक हाई कोर्ट ने सोमवार को कहा कि बुजुर्ग माता-पिता के अंतिम दिनों में उनकी देखभाल की कानूनी, धार्मिक और नैतिक जिम्मेदारी बच्चों की है. मुख्य न्यायाधीश पीबी वराले और न्यायमूर्ति कृष्ण एस दीक्षित की खंडपीठ ने एक पिता के प्रति उनकी बेटी और दामाद के व्यवहार को देखते हुए, आदेश दिया कि माता-पिता द्वारा संपत्ति उपहार में देने पर यह देनदारी बढ़ जाएगी.

बेटी और दामाद ने पिता से उपहार के रूप में संपत्ति प्राप्त करने के बाद पिता के साथ मारपीट की और उन्हें घर से बाहर निकाल दिया. साथ ही, हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने तुमकुर जोन के माता-पिता कल्याण और वरिष्ठ नागरिक भरण-पोषण अधिनियम के तहत ट्रिब्यूनल के डिवीजनल अधिकारी के आदेश को बरकरार रखा.

इस आदेश में पिता से उपहार विलेख के रूप में बेटी द्वारा संपत्ति के अधिग्रहण को अमान्य कर दिया था और उच्च न्यायालय की एकल सदस्यीय पीठ के फैसले ने इसे बरकरार रखा. कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा कि माता-पिता की देखभाल करना बच्चों की जिम्मेदारी है, न कि कोई दान का मामला, बुढ़ापे में अपने माता-पिता की देखभाल करना बच्चों की वैधानिक जिम्मेदारी है.

कोर्ट ने कहा कि हजारों वर्षों से इस देश के शास्त्र यही उपदेश देते आये हैं कि 'रक्षन्ति स्थविरे पुत्रः'. कोर्ट ने कहा कि इसका मतलब है कि बच्चे अपने माता-पिता की देखभाल करते हैं, जो अपने जीवन के आखिरी दिनों में हैं. वर्तमान मामले में बेटी ने उपहार के रूप में संपत्ति प्राप्त करने के बाद अपने माता-पिता की देखभाल नहीं की. इतना ही नहीं, माता-पिता के साथ मारपीट करना और उन्हें घर से बाहर निकाल देना बहुत दर्दनाक है.

माता-पिता द्वारा बच्चों के उत्पीड़न के कई मामले कई कारणों से कभी सामने नहीं आ पाते. यह खुशी की बात है कि अदालत ऐसे कई मामलों का अवलोकन कर रही है. डिविजन बेंच ने अपने आदेश में कहा कि यह स्वीकार्य घटनाक्रम नहीं है. अदालतों, प्राधिकरणों और न्यायाधिकरणों को ऐसे मामलों में अत्यधिक सावधानी और सख्ती बरतनी होगी.

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