चंडीगढ़: करीब 5 दशकों से हरियाणा और पंजाब की सियासत में चल रहा सतलुज यमुना लिंक नहर यानी एसवाईएल का मुद्दा हल होने का नाम नहीं ले रहा. इस मुद्दे के समाधान के लिए राजनीतिक हो या कानूनी हर तरह की प्रयास किए जा चुके हैं, लेकिन समस्या अभी भी ज्यों की त्यों बनी हुई है. इस बीच आज चंडीगढ़ में एसवाईएल को लेकर बड़ी बैठक हुई. केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान और पंजाब कैबिनेट के मंत्री चेतन सिंह जौरामाजरा बैठक के लिए चंडीगढ़ में सेक्टर 17 स्ट्रीट के ताज होटल पहुंचे हुए थे.
70 % पंजाब डार्क जोन में : बैठक में पंजाब अपने रुख पर अड़ा रहा और बैठक से बाहर आने के बाद पंजाब के सीएम भगवंत मान ने कहा कि पंजाब के पास देने के लिए एक बूंद भी पानी नहीं है. भगवंत मान ने कहा कि आज उन्होंने जो पक्ष रखा है, वो पहले भी इसे रख चुके हैं. पंजाब के पास पानी तो है नहीं, नहर कैसे बना दें. उन्होंने कहा कि हरियाणा हमारा छोटा भाई है, हम उनका विरोध नहीं करते. उनको भी पानी चाहिए. लेकिन पानी के और भी तरीके हैं. हरियाणा के पास पानी के बहुत और भी चैनल हैं. यमुना शारदा लिंक है. इस वक्त सतलुज दरिया सूखकर नाला बन चुका है . पंजाब सरकार अपने पुराने स्टैंड पर कायम है. हमारे पास पानी नहीं है. पंजाब में भूमिगत पानी की बात करे तो 600 से 700 फीट के स्तर पर वो चला जा चुका है. डार्क जोन बढ़ रहे हैं. इस वक्त 70% पंजाब का इलाका डार्क जोन में आ गया है. सुप्रीम कोर्ट में पंजाब सरकार अपना पक्ष रखेगी. हमारे पास बहुत सारा रिकॉर्ड है. 4 जनवरी को कोर्ट में जो सुनवाई होगी उसमें अपना जवाब देंगे.
मान हैं कि मानते नहीं : वहीं हरियाणा के सीएम मनोहर लाल ने कहा कि बातचीत मनोहर माहौल में हुई है, लेकिन मान हैं कि मान ही नहीं रहे. सीएम ने कहा कि आज हुई बैठक का सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविट दिया जाएगा. पानी की जरूरत दोनों को है, लेकिन सवाल एग्रीमेंट का है, जो बहुत पहले से साइन हुआ है. उसका डिस्ट्रीब्यूशन हो जाए, ये अहम है. उन्होंने कहा कि पंजाब ने आज खुद माना कि पाकिस्तान को पानी जा रहा है तो फिर ऐसे में हरियाणा को क्यों नहीं दिया जा रहा. जबकि वो पानी पंजाब- हरियाणा दोनों मिलाकर इस्तेमाल कर सकते हैं. उन्होंने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर निशाना साधते हुए कहा कि सतलुज यमुना लिंक नहर को लेकर आम आदमी पार्टी की नीति दोगली है, जबकि हमारा स्टैंड हमेशा ही एक रहा है.
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माननीय केन्द्रीय मंत्री श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत जी की अध्यक्षता में आज चंडीगढ़ में SYL को लेकर आयोजित हुई अहम बैठक में हरियाणा के हक और पक्ष की बातें रखी।
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हरियाणा से अनुबंध के अनुसार पंजाब हमें हमारे हिस्से का पानी भी नहीं दे रहा है और आज पंजाब सरकार ने स्वयं ये स्वीकार किया… pic.twitter.com/YdXxDRejpA
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— Manohar Lal (@mlkhattar) December 28, 2023
हरियाणा से अनुबंध के अनुसार पंजाब हमें हमारे हिस्से का पानी भी नहीं दे रहा है और आज पंजाब सरकार ने स्वयं ये स्वीकार किया… pic.twitter.com/YdXxDRejpAमाननीय केन्द्रीय मंत्री श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत जी की अध्यक्षता में आज चंडीगढ़ में SYL को लेकर आयोजित हुई अहम बैठक में हरियाणा के हक और पक्ष की बातें रखी।
— Manohar Lal (@mlkhattar) December 28, 2023
हरियाणा से अनुबंध के अनुसार पंजाब हमें हमारे हिस्से का पानी भी नहीं दे रहा है और आज पंजाब सरकार ने स्वयं ये स्वीकार किया… pic.twitter.com/YdXxDRejpA
क्या कहते हैं राजनीतिक मामलों के जानकार ? : पंजाब और हरियाणा के बीच सतलुज यमुना लिंक नहर के निर्माण को लेकर चल रहे विवाद पर बात करते हुए वरिष्ठ पत्रकार सुखबीर बाजवा कहते हैं कि सतलुज यमुना लिंक नहर राजनीति का शिकार हुई है. जहां तक बात नहर के निर्माण की है, ये राजनीतिक लड़ाई कानून के जरिए चलती रहेगी. वे कहते हैं कि सत्ता बदली, नेता बदले लेकिन मुद्दा वहीं का वही है. वहीं वरिष्ठ पत्रकार धीरेंद्र अवस्थी इस मामले को लेकर कहते हैं कि दोनों ही राज्य अपने-अपने रुख पर कायम है. वे कहते हैं कि एसवाईएल नहर का पंजाब में निर्माण पंजाब के किसी भी सियासी दल के लिए आत्मघाती होगा. वे कहते हैं कि जहां तक पंजाब से पाकिस्तान जा रहे पानी की बात है तो उसका इस्तेमाल किया जा सकता है. उस पानी को हरियाणा की तरफ डायवर्ट भी किया जा सकता है, इस बात में लॉजिक है.
आखिर क्या है एसवाईएल विवाद ?: आपको बता दें कि सतलुज यमुना लिंक नहर की कुल लंबाई 212 किलोमीटर है. इसमें 90 किलोमीटर हरियाणा और 122 किलोमीटर पंजाब में इसका एरिया आता है. 1 नवंबर 1966 को हरियाणा, पंजाब से अलग राज्य बना. उसे वक्त पंजाब रिऑर्गेनाइजेशन एक्ट के सेक्शन 78 के तहत आपसी सहमति से पानी के साथ बाकी चीजों के बंटवारे की बात कही गई थी. वहीं अगर आपसी सहमति से कोई फैसला न हो पाने की स्थिति में केंद्र को इसमें पार्टी बनाया गया था.
1976 में पंजाब ने दी थी मंजूरी : इसके बाद हरियाणा से पंजाब ने 18 नवंबर 1976 को एक करोड़ रुपये लेकर नहर के निर्माण की मंजूरी दी थी. बाद में इसको लेकर पंजाब ने अपना रुख बदल लिया. इसके बाद साल 1979 में हरियाणा इस मामले को सुप्रीम कोर्ट लेकर पहुंचा. वहीं, पंजाब ने राज्य पुनर्गठन एक्ट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी. इस बीच दिसंबर 1981 में पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के तत्कालीन सीएम ने पीएम इंदिरा गांधी की मौजूदगी में सतलुज यमुना लिंक नहर के निर्माण को लेकर आपसी समझौता किया. इसके बाद 1982 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पटियाला के कपूरी में टक लगाकर नहर के निर्माण का काम शुरू कर दिया.
1985 में राजीव लोंगोवाल समझौता: इसके बाद SYL मुद्दे को लेकर पंजाब की फ़िज़ा अशांत होनी शुरू हो गई. पूरे मामले को लेकर पंजाब की क्षेत्रीय पार्टी शिरोमणि अकाली दल(SAD) ने मोर्चा खोल दिया. इसके बाद 1985 में राजीव लोंगोवाल समझौता किया गया. इसके तहत पंजाब की नदियों के पानी के बंटवारे के लिए नहर निर्माण पर सहमति जताई गई. लेकिन, 1988 में पंजाब में आतंकवाद के दौर में ये मामला खूनी संघर्ष में तब्दील हो गया. नगर निर्माण में लगे 30 मजदूरों की हत्या कर दी गई और फिर 1990 में दो इंजीनियरों की हत्या हुई. इसके बाद नहर निर्माण के काम को फिर बंद कर दिया गया.
2002 में पंजाब को एसवाईएल के निर्माण के निर्देश : पूरे मामले को लेकर 1996 में हरियाणा फिर से सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने साल 2002 में पंजाब को एसवाईएल के निर्माण के निर्देश दे दिए. लेकिन साल 2004 में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सारे समझौतों को निरस्त कर दिया. 2015 में हरियाणा ने फिर से इस मामले के सर्वोच्च न्यायालय से प्रेसिडेंट के रेफरेंस पर सुनवाई के लिए संविधान पीठ बनाने की गुजारिश की.
2019 में दोनों राज्यों के अधिकारियों की कमेटी गठित: साल 2016 में 5 सदस्यों की संविधान पीठ ने सुनवाई के लिए बुलाया. लेकिन दूसरी सुनवाई के बाद पंजाब ने नहर के लिए अधिग्रहित की गई जमीन को पाटने का काम शुरू कर दिया. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में जस की तस स्थिति को बनाए रखने के आदेश दिए. तब कहीं जाकर नहर को पाटने का काम रुका. 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दोनों राज्यों के अधिकारियों की कमेटी बनाई और मसले का हल निकालने के लिए कहा. साथ ही ये बात भी कही कि अगर दोनों स्टेट में सहमति नहीं बनी तो सुप्रीम कोर्ट खुद नहर का निर्माण कराएगा.
दोनों राज्यों के साथ केंद्र सरकार की बैठक: सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद केंद्र सरकार ने इस मामले में हस्तक्षेप किया. इस मामले को सुलझाने के लिए दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री की भी एक बैठक हुई, लेकिन दोनों राज्यों की बैठक के बाद भी इस मसले का कोई हल नहीं निकल सका. केंद्र सरकार के जल संसाधन मंत्रालय ने भी इस मामले को हल करने की तमाम कोशिशें की. लेकिन, इसके बावजूद भी किसी को कामयाबी नहीं मिली.