नई दिल्ली : इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने सोमवार को राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) के खिलाफ केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मानसुख मंडविया के पास एक औपचारिक शिकायत दर्ज करायी. हाल ही में एनएमसी ने एक अधिसूचना जारी कर पंजीकृत चिकित्सा चिकित्सकों (RMPs) के लिए केवल जेनेरिक दवाइयां लिखने को अनिवार्य कर दिया. आईएमए के अध्यक्ष डॉ. शरद कुमार अग्रवाल ने बैठक के बाद ईटीवी भरत से बात की. उन्होंने कहा कि हमने स्वास्थ्य मंत्री मंसुख मंडविया के सामने अपनी सारी बातें रखी हैं. वास्तव में, सभी पक्षों ने अपनी बातें रखीं. बैठक एक सौहार्दपूर्ण माहौल में हुई.
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जेनेरिक मेडिसिन के उपयोग पर खड़े हुए विवाद के बीच स्वास्थ्य मंत्री ने यह बैठक बुलायी थी. यह बैठक स्वास्थ्य मंत्रालय, नई दिल्ली में हुई. जिसमें आईएमए, नेशनल मेडिकल कमीशन और इंडियन फार्मास्युटिकल एलायंस (आईपीए) सहित सभी हितधारक शामिल हुए. बैठक के बाद आईएमए के अध्यक्ष शरद अग्रवाल ने कहा कि वे अब केंद्र सरकार के फैसले की प्रतीक्षा कर रहे हैं.
अग्रवाल ने कहा कि राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग का फैसला स्वाभाविक रूप से रोगी के सर्वोत्तम हित में नहीं होगा. उन्होंने कहा कि सरकार के इस फैसले से सिर्फ होगा कि मरीजों के लिए सही दवा चुनने का अधिकार चिकित्सक के पास से कैमिस्ट के पास चला जायेगा. जबकि एक चिकित्सक से बेहतर कोई भी यह नहीं समझ सकता है कि मरीज के लिए क्या बेहतर है. आईएमए के अध्यक्ष ने कहा कि यह आईएमए के लिए बहुत चिंता का विषय है क्योंकि यह सीधे मरीजों की देखभाल और सुरक्षा को प्रभावित करता है. उन्होंने कहा कि जेनेरिक प्रमोशन को वास्तविक धरातल पर जांचने की जरूरत है.
IMA ने कहा कि, सरकार, यदि जेनेरिक दवाओं को लागू करने के बारे में गंभीर है, तो उसे जेनेरिक दवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए पहल करनी चाहिए. इसके साथ ही केवल जेनरिक दवाओं को ही लाइसेंस देना चाहिए. आईएमए की ओर से कहा गया कि ऐसी परिस्थिति में ब्रांडेड दवा को लाइसेंस नहीं देना चाहिए. उन्होंने कहा कि बाजार में गुणवत्तापूर्ण ब्रांड की दवाइयों के रहते चिकित्सकों को उन्हें प्रेसक्राइब करने से रोकना मरीजों के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकता है. आईएमए ने कहा कि जेनेरिक दवाओं के लिए सबसे बड़ी बाधा इसकी गुणवत्ता के बारे में अनिश्चितता है.
अग्रवाल ने कहा कि भारत में निर्मित 0.1 प्रतिशत से कम दवाओं का गुणवत्ता के लिए परीक्षण किया जाता है. यह कदम तब तक स्थगित किया जाना चाहिए जब तक कि सरकार बाजार में जारी सभी दवाओं की गुणवत्ता का आश्वासन नहीं दे देती है. एनएमसी की अधिसूचना में कहा गया है कि स्वास्थ्य देखभाल पर सार्वजनिक खर्चे का एक बड़ा अनुपात दवाओं पर होने वाला खर्च होता है. जिसे जेनेरिक दवाओं के इस्तेमाल से कम किया जा सकता है. जेनेरिक दवाएं ब्रांडेड दवाओं की तुलना में 30 से 80 प्रतिशत सस्ती हैं. इसलिए, जेनेरिक दवाओं को निर्धारित करने से स्वास्थ्य देखभाल की लागत कम हो सकती है.
राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (एनएमसी) ने अपने नये नियमों में कहा है कि चिकित्सक और उनके परिवार के सदस्य दवा कंपनियों या उनके प्रतिनिधियों, वाणिज्यिक स्वास्थ्य देखभाल प्रतिष्ठानों और चिकित्सा उपकरण कंपनियों से किसी भी रूप में कोई उपहार या अन्य सुविधाएं नहीं लेंगे. दो अगस्त को जारी 'पंजीकृत चिकित्सक के व्यावसायिक आचरण से संबंधित विनियम' चिकित्सकों को किसी भी दवा ब्रांड, दवा और उपकरण का समर्थन करने या उनका विज्ञापन करने से रोकते हैं.
नियमों के अनुसार, किसी अस्पताल में मरीज के रिकॉर्ड के लिए जिम्मेदार पंजीकृत चिकित्सक (आरएमपी) को मेडिकल रिकॉर्ड के लिए मरीजों या अधिकृत परिचारक द्वारा किए गए किसी भी अनुरोध को विधिवत स्वीकार किया जाना चाहिए और दस्तावेजों को 72 दिन के मौजूदा प्रावधान के स्थान पर पांच कार्य दिवस के भीतर उपलब्ध कराया जाना चाहिए. नियमों में कहा गया है कि आपात चिकित्सा स्थिति के मामले में, मेडिकल रिकॉर्ड जल्द से जल्द उपलब्ध कराने का प्रयास किया जाना चाहिए.
नियमों के अनुसार, रिकॉर्ड तुरंत प्राप्त करने और सुरक्षा के लिए रोगी के मेडिकल रिकॉर्ड को कम्प्यूटरीकृत करने का प्रयास किया जाएगा. नियमों में कहा गया है कि रोगी की निजता की रक्षा के लिए इन विनियमों के प्रकाशन की तारीख से तीन साल के भीतर, चिकित्सक आईटी अधिनियम, डेटा संरक्षण और गोपनीयता कानूनों, या समय-समय पर अधिसूचित किसी भी अन्य लागू कानूनों, नियमों और विनियमों के प्रावधानों का पालन करते हुए पूरी तरह से डिजिटलीकृत रिकॉर्ड सुनिश्चित करेगा.
बिना किसी संस्थान से जुड़े चिकित्सिक को एनएमसी द्वारा निर्धारित मानक प्रारूप में उपचार के लिए रोगी के साथ अंतिम संपर्क की तारीख से तीन साल तक रोगियों (इनपेशेंट्स) के मेडिकल रिकॉर्ड को कायम रखना होगा. एनएमसी द्वारा गजट अधिसूचना में जारी नियमों के अनुसार, पंजीकृत चिकित्सक को हर साल नियमित रूप से निरंतर व्यावसायिक विकास कार्यक्रमों में भाग लेना चाहिए, हर पांच साल में कम से कम 30 क्रेडिट घंटे.
केवल मान्यता प्राप्त मेडिकल कॉलेज और स्वास्थ्य संस्थान या ईएमआरबी/राज्य चिकित्सा परिषदों द्वारा मान्यता प्राप्त या अधिकृत मेडिकल सोसायटी ही इस उद्देश्य के लिए प्रशिक्षण और क्रेडिट घंटे की पेशकश कर सकते हैं. नियमों के अनुसार कि चिकित्सकों और उनके परिवारों को दवा कंपनियों या उनके प्रतिनिधियों, वाणिज्यिक स्वास्थ्य देखभाल प्रतिष्ठानों, चिकित्सा उपकरण कंपनियों से कोई उपहार, यात्रा सुविधाएं, आतिथ्य, मौद्रिक लाभ, परामर्श शुल्क या मनोरंजन सुविधा तक किसी भी तरह से पहुंच नहीं मिलनी चाहिए.
नियमों में कहा गया है कि इसमें वेतन और लाभ शामिल नहीं हैं जो पंजीकृत चिकित्सकों को इन संस्थानों के कर्मचारियों के रूप में मिल सकते हैं. इसके अलावा, चिकित्सकों को सेमिनार, कार्यशाला, सम्मेलन जैसी किसी भी तीसरे पक्ष की शैक्षिक गतिविधि में शामिल नहीं होना चाहिए, जिसमें दवा कंपनियों या संबद्ध स्वास्थ्य क्षेत्र से प्रत्यक्ष या परोक्ष प्रायोजन शामिल हो.
नियमों में कहा गया है कि रोगी की देखभाल करने वाला चिकित्सक अपने कार्यों के लिए पूरी तरह से जवाबदेह होगा. वह उचित शुल्क का हकदार होगा. रोगियों या रिश्तेदारों द्वारा हिंसा के मामले में चिकित्सक व्यवहार का दस्तावेजीकरण और रिपोर्ट कर सकता है और रोगी का इलाज करने से इनकार कर सकता है. ऐसे मरीजों को आगे के इलाज के लिए कहीं और भेजना चाहिए.
एनएमसी ने यह भी कहा है कि ड्यूटी के दौरान या ड्यूटी के बाद शराब या अन्य नशीले पदार्थों का इस्तेमाल पेशेवर कार्य को प्रभावित कर सकता है और ऐसा करने को कदाचार माना जाएगा. साथ ही, पहली बार आपातकालीन शब्द को 'जीवन बचाने की प्रक्रिया' के रूप में परिभाषित किया गया है. पहले, आपातकालीन शब्द को स्पष्ट रूप से परिभाषित नहीं किया गया था.
पंजीकृत चिकित्सक को अपने नाम के साथ केवल एनएमसी द्वारा मान्यता प्राप्त और मान्यता प्राप्त चिकित्सा डिग्री/डिप्लोमा प्रदर्शित करना होगा, जैसा कि नियमों के नामकरण में दिया गया है और एनएमसी वेबसाइट पर सूचीबद्ध है. ऐसी डिग्री और डिप्लोमा की सूची वेबसाइट पर होगी और नियमित रूप से अपडेट की जाएगी.