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Manipur Violence : मणिपुर हिंसा में अब तक 110 की मौत, 50 हजार विस्थापित, अमेरिका में कुकी समुदाय करेंगे विरोध

तीन मई से मणिपुर में हिंसा जारी है. अब तक 110 लोगों की मौत हो चुकी है. 50 हजार से ज्यादा लोग कैंपों में रहने को मजबूर हैं. नगा और कुकी समुदाय के बीच परस्पर विश्वास की खाई पटने के बजाए और अधिक चौड़ी हो रही है. ऐसें में अब कई लोग राष्ट्रपति शासन की भी मांग करने लगे हैं. हालांकि, ऐसा करना भाजपा सरकार के लिए 'आत्मघाती' ही साबित होगा, क्योंकि राज्य में भाजपा की ही सरकार है.

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Published : Jun 20, 2023, 2:30 PM IST

Updated : Jun 20, 2023, 2:51 PM IST

Manipur violence
मणिपुर हिंसा

नई दिल्ली : पिछले 47 दिनों से मणिपुर में हिसा जारी है. स्थिति शांत होने के बजाए हर दिन बदतर होती जा रही है. सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में एक याचिका पर जल्द सुनवाई से इनकार कर दिया है. मणिपुर ट्राइबल फोरम ने याचिका दाखिल की थी. उन्होंने अपनी याचिका में कुकी समुदाय की सुरक्षा के लिए सेना की तैनाती का अनुरोध किया है. ऐसे में अब यह भी चर्चा की जा रही है कि कहीं राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना न पड़ जाए. हालांकि, यह हमेशा ही अंतिम विकल्प होगा. पर ऐसा हुआ, तो यह भाजपा के लिए किसी झटके से कम नहीं होगा, क्योंकि राज्य में उनकी ही सरकार है. पर, कांग्रेस ने मोदी सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं.

  • • 100 से ज्यादा लोगों की मौत
    • 50 हजार से ज्यादा लोग बेघर
    • करीब 50 दिन से हिंसा जारी

    और PM मोदी मणिपुर का 'म' नहीं बोल पाए

    एक ओर मणिपुर जल रहा है। हमारे देश के लोग जान बचाने की गुहार लगा रहे हैं। अपने घरों को छोड़ पलायन करने को मजबूर हैं।

    दूसरी ओर PM मोदी अमेरिका निकल गए।…

    — Congress (@INCIndia) June 20, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

राज्य के कुछ संगठनों ने राष्ट्रपति शासन की मांग की है. उन्होंने राज्य प्रशासन और सुरक्षा बलों पर भेदभाव करने के भी आरोप लगाए हैं. कुकी समुदाय से आने वाले विधायकों ने स्टेट पुलिस पर हिंसा में भाग लेने के आरोप मढ़े हैं. दूसरी ओर प्रभावशाली मैतेई समुदाय असम राइफल्स के जवानों पर कुकी समुदाय को समर्थन देने के आरोप लगाते रहे हैं. भाजपा के सामने दुविधा यह है कि इस समय किसी भी हाल में मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को हटा नहीं सकती है. अगर ऐसा हुआ तो भाजपा नेतृत्व पर भी सवाल उठेंगे. साथ ही मैतेई समुदाय भी भाजपा से नाराज हो सकता है.

भाजपा के सामने मुश्किल यह भी है कि पार्टी ने अफस्पा (आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट) को लेकर बड़े-बड़े दावे किए थे. पूर्वोत्तर के कई इलाकों से इसे हटाने को लेकर बड़े फैसले लिए. अब जिस तरह की स्थिति मणिपुर में है, अफस्पा दोबारा से लगाया जाएगा, तो इसको लेकर भी निगेटव मैसेज फैलने की आशंका है. राज्य में कुल 92 पुलिस थाने हैं. इनमें से 19 थानों में से इसे हटाया जा चुका है. ये सभी इलाके घाटी के हैं. इस बीच हिंसा का आलम ये है कि भाजपा विधायक और केंद्रीय मंती के घरों पर हमले हो रहे हैं.

सुरक्षा बलों के सामने दिक्कत यह है कि अफस्पा नहीं होने की वजह से खुलकर काम नहीं कर सकते हैं. उन्हें बार-बार सिविल एडमिनिस्ट्रेशन से औपचारिक अनुमति लेनी पड़ती है और कई बार इसकी वजह से देरी हो जाती है. इंटरनेट को सस्पेंड किया गया है, ताकि सोशल मीडिया पर भ्रामक वीडियो को शेयर न किया जा सके. समस्या पुलिस बल में मौजूद कुकी और मैतेई समुदाय के जवानों से भी है. क्योंकि वे राज्य के हित में काम करने के बजाए अपने समुदाय के हितों को प्राथमिकता देने लगते हैं.

द हिंदू की एक खबर के अनुसार मैतेई समुदाय के कुछ प्रतिनिधि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिकी यात्रा के दौरान भी विरोध प्रदर्शन कर सकते हैं. अमेरिका में रहने वाले द एसोसिशन ऑफ मैतेई के सदस्यों ने वाशिंगटन स्थित लैफ्येते पार्क में जमा होकर विरोध करने का फैसला किया है. वह 22 जून को विरोध करेंगे.

कुछ जानकार मानते हैं कि कहीं फिर से 1990 वाली स्थिति न वापस आ जाए. उस समय नगा-कुकी समुदायों के बीच जबरदस्त हिंसा हुई थी और 700 से भी ज्यादा लोग मारे गए थे. अभी राज्य में सेना और सीआरपीएफ के 40 हजार जवान तैनात हैं. राज्य में एक साथ कई एजेंसियां काम कर रही हैं. राज्य सरकार और उसकी पुलिस अलग है, सीआरपीएफ और उनकी रिपोर्टिंग टीम अलग है, और आर्मी के विंग अलग हैं. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इन अलग-अलग एजेंसियों के बीच कई बार तालमेल का भी अभाव दिखता है. सेंट्रल फोर्सेस मुख्य रूप से बफर जोन में मोर्चा संभाल रही है और अंदरूनी इलाके में राज्य पुलिस बल मौजूद है. हिंदुस्तान टाइम्स की एक खबर के मुताबिक पुलिस ने हथियार लूटने और अपने ऊपर हो रहे हमले को लेकर 22 मामले दर्ज किए हैं.

क्यों फैली हिंसा - मैतेई समुदाय को आदिवासी समुदाय का दर्जा दिए जाने का कुकी समुदाय विरोध कर रहे हैं. मणिपुर हाईकोर्ट ने यह आदेश दिया था. नगा और कुकी नहीं चाहते हैं कि मैतेई को एसटी का दर्जा प्रदान किया जाए. कुकी समुदाय ने तीन मई को रैली निकालकर विरोध किया था. उनकी रैली पर हमले हुए और उसके बाद जो हिंसा शुरू हुई, वह आजतक जारी है. नगा, कुकी मुख्य रूप से पहाड़ी इलाकों में रहते हैं. जबकि मैतेई मुख्य रूप से घाटी में रहते हैं. नगा और कुकी ईसाई धर्म का पालन करते हैं. मैतेई हिंदू हैं. मैतेई राज्य के 10 फीसदी क्षेत्र पर रहते हैं, जबकि बाकी जनजातियां 90 फीसदी इलाकों में रहते हैं. मणिपुर के 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई समुदाय से हैं.

शांति कमेटी का क्या हुआ- केंद्र सरकार ने 51 लोगों की एक कमेटी बनाई थी. इस कमेटी का नेतृत्व राज्यपाल के पास है. लेकिन कुकी की संस्था कुकी इंपी को इस पर भरोसा नहीं है. इसी तरह से मैतेई समुदाय की संस्था कोऑर्डिनेटिंग कमेटी ऑन मणिपुर इंटीग्रिटी को भी इस पर भरोसा नहीं है. विशेषज्ञ मानते हैं कि कमेटी गठन से पहले स्थानीय लोगों से राय ली जानी थी, लेकिन सरकार ने उनकी अनदेखी कर औपचारिकता पूरी कर ली. यही वजह है कि शांति कमेटी प्रभावकारी नहीं हो रही है.

ये भी पढ़ें : Manipur Violence : केंद्रीय मंत्री आरके रंजन के आवास पर पेट्रोल बम फेंका गया, सीएम ने की अपील

नई दिल्ली : पिछले 47 दिनों से मणिपुर में हिसा जारी है. स्थिति शांत होने के बजाए हर दिन बदतर होती जा रही है. सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में एक याचिका पर जल्द सुनवाई से इनकार कर दिया है. मणिपुर ट्राइबल फोरम ने याचिका दाखिल की थी. उन्होंने अपनी याचिका में कुकी समुदाय की सुरक्षा के लिए सेना की तैनाती का अनुरोध किया है. ऐसे में अब यह भी चर्चा की जा रही है कि कहीं राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाना न पड़ जाए. हालांकि, यह हमेशा ही अंतिम विकल्प होगा. पर ऐसा हुआ, तो यह भाजपा के लिए किसी झटके से कम नहीं होगा, क्योंकि राज्य में उनकी ही सरकार है. पर, कांग्रेस ने मोदी सरकार पर गंभीर आरोप लगाए हैं.

  • • 100 से ज्यादा लोगों की मौत
    • 50 हजार से ज्यादा लोग बेघर
    • करीब 50 दिन से हिंसा जारी

    और PM मोदी मणिपुर का 'म' नहीं बोल पाए

    एक ओर मणिपुर जल रहा है। हमारे देश के लोग जान बचाने की गुहार लगा रहे हैं। अपने घरों को छोड़ पलायन करने को मजबूर हैं।

    दूसरी ओर PM मोदी अमेरिका निकल गए।…

    — Congress (@INCIndia) June 20, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

राज्य के कुछ संगठनों ने राष्ट्रपति शासन की मांग की है. उन्होंने राज्य प्रशासन और सुरक्षा बलों पर भेदभाव करने के भी आरोप लगाए हैं. कुकी समुदाय से आने वाले विधायकों ने स्टेट पुलिस पर हिंसा में भाग लेने के आरोप मढ़े हैं. दूसरी ओर प्रभावशाली मैतेई समुदाय असम राइफल्स के जवानों पर कुकी समुदाय को समर्थन देने के आरोप लगाते रहे हैं. भाजपा के सामने दुविधा यह है कि इस समय किसी भी हाल में मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को हटा नहीं सकती है. अगर ऐसा हुआ तो भाजपा नेतृत्व पर भी सवाल उठेंगे. साथ ही मैतेई समुदाय भी भाजपा से नाराज हो सकता है.

भाजपा के सामने मुश्किल यह भी है कि पार्टी ने अफस्पा (आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट) को लेकर बड़े-बड़े दावे किए थे. पूर्वोत्तर के कई इलाकों से इसे हटाने को लेकर बड़े फैसले लिए. अब जिस तरह की स्थिति मणिपुर में है, अफस्पा दोबारा से लगाया जाएगा, तो इसको लेकर भी निगेटव मैसेज फैलने की आशंका है. राज्य में कुल 92 पुलिस थाने हैं. इनमें से 19 थानों में से इसे हटाया जा चुका है. ये सभी इलाके घाटी के हैं. इस बीच हिंसा का आलम ये है कि भाजपा विधायक और केंद्रीय मंती के घरों पर हमले हो रहे हैं.

सुरक्षा बलों के सामने दिक्कत यह है कि अफस्पा नहीं होने की वजह से खुलकर काम नहीं कर सकते हैं. उन्हें बार-बार सिविल एडमिनिस्ट्रेशन से औपचारिक अनुमति लेनी पड़ती है और कई बार इसकी वजह से देरी हो जाती है. इंटरनेट को सस्पेंड किया गया है, ताकि सोशल मीडिया पर भ्रामक वीडियो को शेयर न किया जा सके. समस्या पुलिस बल में मौजूद कुकी और मैतेई समुदाय के जवानों से भी है. क्योंकि वे राज्य के हित में काम करने के बजाए अपने समुदाय के हितों को प्राथमिकता देने लगते हैं.

द हिंदू की एक खबर के अनुसार मैतेई समुदाय के कुछ प्रतिनिधि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिकी यात्रा के दौरान भी विरोध प्रदर्शन कर सकते हैं. अमेरिका में रहने वाले द एसोसिशन ऑफ मैतेई के सदस्यों ने वाशिंगटन स्थित लैफ्येते पार्क में जमा होकर विरोध करने का फैसला किया है. वह 22 जून को विरोध करेंगे.

कुछ जानकार मानते हैं कि कहीं फिर से 1990 वाली स्थिति न वापस आ जाए. उस समय नगा-कुकी समुदायों के बीच जबरदस्त हिंसा हुई थी और 700 से भी ज्यादा लोग मारे गए थे. अभी राज्य में सेना और सीआरपीएफ के 40 हजार जवान तैनात हैं. राज्य में एक साथ कई एजेंसियां काम कर रही हैं. राज्य सरकार और उसकी पुलिस अलग है, सीआरपीएफ और उनकी रिपोर्टिंग टीम अलग है, और आर्मी के विंग अलग हैं. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार इन अलग-अलग एजेंसियों के बीच कई बार तालमेल का भी अभाव दिखता है. सेंट्रल फोर्सेस मुख्य रूप से बफर जोन में मोर्चा संभाल रही है और अंदरूनी इलाके में राज्य पुलिस बल मौजूद है. हिंदुस्तान टाइम्स की एक खबर के मुताबिक पुलिस ने हथियार लूटने और अपने ऊपर हो रहे हमले को लेकर 22 मामले दर्ज किए हैं.

क्यों फैली हिंसा - मैतेई समुदाय को आदिवासी समुदाय का दर्जा दिए जाने का कुकी समुदाय विरोध कर रहे हैं. मणिपुर हाईकोर्ट ने यह आदेश दिया था. नगा और कुकी नहीं चाहते हैं कि मैतेई को एसटी का दर्जा प्रदान किया जाए. कुकी समुदाय ने तीन मई को रैली निकालकर विरोध किया था. उनकी रैली पर हमले हुए और उसके बाद जो हिंसा शुरू हुई, वह आजतक जारी है. नगा, कुकी मुख्य रूप से पहाड़ी इलाकों में रहते हैं. जबकि मैतेई मुख्य रूप से घाटी में रहते हैं. नगा और कुकी ईसाई धर्म का पालन करते हैं. मैतेई हिंदू हैं. मैतेई राज्य के 10 फीसदी क्षेत्र पर रहते हैं, जबकि बाकी जनजातियां 90 फीसदी इलाकों में रहते हैं. मणिपुर के 60 विधायकों में से 40 विधायक मैतेई समुदाय से हैं.

शांति कमेटी का क्या हुआ- केंद्र सरकार ने 51 लोगों की एक कमेटी बनाई थी. इस कमेटी का नेतृत्व राज्यपाल के पास है. लेकिन कुकी की संस्था कुकी इंपी को इस पर भरोसा नहीं है. इसी तरह से मैतेई समुदाय की संस्था कोऑर्डिनेटिंग कमेटी ऑन मणिपुर इंटीग्रिटी को भी इस पर भरोसा नहीं है. विशेषज्ञ मानते हैं कि कमेटी गठन से पहले स्थानीय लोगों से राय ली जानी थी, लेकिन सरकार ने उनकी अनदेखी कर औपचारिकता पूरी कर ली. यही वजह है कि शांति कमेटी प्रभावकारी नहीं हो रही है.

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Last Updated : Jun 20, 2023, 2:51 PM IST
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