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ऐसा भी हो चुका है कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में, जानिए गांधी परिवार का उम्मीदवार, कितना है दमदार

Congress President Election 2022 में भले ही मामला मल्लिकार्जुन खड़गे बनाम शशि थरूर होता दिख रहा है, लेकिन इसका परिणाम एकतरफा या अप्रत्याशित भी हो सकता है. इसके पहले कांग्रेस के अध्यक्ष के चुनाव में चौंकाने वाले परिणाम आते रहे हैं. जानिए किस घटना ने सबसे ज्यादा चौंकाया था....

Mallikarjun Kharge vs Shashi Tharoor
मल्लिकार्जुन खड़गे बनाम शशि थरूर
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Published : Oct 3, 2022, 4:19 PM IST

Updated : Oct 4, 2022, 1:27 PM IST

नई दिल्ली : कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव जब तक सकुशल संपन्न नहीं हो जाता है, तब तक तमाम तरह की चर्चाओं व संभावनाओं का बाजार गर्म रहेगा. देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल के सर्वोच्च पद पर आसीन होने वाले राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए औपचारिक रूप से चुनाव (Congress President Election 2022) प्रक्रिया आरंभ होने के बाद अब तक केवल नामांकन का काम खत्म हो पाया है. पार्टी के वरिष्ठ नेता मधुसूदन मिस्त्री की अध्यक्षता वाले केंद्रीय चुनाव प्राधिकरण की ओर से यह बताया गया है कि कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के लिए दाखिल 3 नामांकनों में से एक नामांकन खारिज हो गया है और अगर नाम वापसी की आखिरी तारीख तक किसी ने नाम वापस नहीं लिया तो 17 अक्टूबर को मतदान होगा और 19 अक्टूबर को नए कांग्रेस अध्यक्ष की घोषणा हो जाएगी. इसके पहले जब जब कांग्रेस में अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुआ है तो बड़े उलटफेर वाले नतीजे आए हैं. अगर कोई उलटफेर न हुआ तो मल्लिकार्जुन खड़गे बाबू जगजीवन राम के बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद संभालने वाले दूसरे दलित नेता के साथ साथ दूसरे कन्नड़भाषी प्रदेश कर्नाटक के नेता होंगे.

Mallikarjun Kharge and sonia gandhi
मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ सोनिया गांधी

पिछले कई दिनों से अधिसूचना जारी होने के पहले से ही राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पार्टी के वरिष्ठ नेता शशि थरूर के चुनावी समर में उतरने की सुगबुगाहट तेज हो गयी थी. ऐसी संभावना जतायी जा रही है कि 22 साल बाद देश की सबसे पुरानी पार्टी का प्रमुख चुनाव के जरिये चुना जाएगा. बीच में एक नाटकीय राजनीतिक घटनाक्रम के बाद अशोक गहलोत का नाम रेस से बाहर हो गया और मल्लिकार्जुन खड़गे बनाम शशि थरूर की लड़ाई सामने आ गयी.

Mallikarjun Kharge vs Shashi Tharoor
मल्लिकार्जुन खड़गे बनाम शशि थरूर

आपको याद होगा कि 1998 में जब से सोनिया गांधी ने यह कुर्सी हासिल की थी, तब से लेकर यह कुर्सी नेहरू-गांधी परिवार के हाथ में है. 2017 में सोनिया गांधी ने अपने बेटे राहुल गांधी को यह कुर्सी सौंप दी, लेकिन युवा राहुल गांधी कोई करिश्मा करने में नाकामयाब रहे. इतना ही नहीं पार्टी के कई दिग्गज नेता पार्टी छोड़कर जाने लगे और कांग्रेस की स्थिति दिन प्रतिदिन खराब होने लगी. 2019 में राहुल गांधी ने अध्यक्ष की कुर्सी छोड़ दी. इसके बाद से कांग्रेस के कई नेता नेहरू-गांधी परिवार से बाहर के नेता को यह कुर्सी सौंपने की मांग करने लगे. ऐसे में 22 साल बाद कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष का चुनाव होने जा रहा है, जिसमें नामांकन से लेकर मतदान तक का 'राजनीतिक ड्रामा' देखने को मिलता कहेगा.

Mallikarjun Kharge  Key Points
मल्लिकार्जुन खड़गे की खास बातें

‘सोलिल्लादा सरदारा’ की मिली है उपाधि
वैसे तो कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव केवल एक खानापूर्ति का मामला बनता नजर आ रहा है. अशोक गहलोत की जगह मल्लिकार्जुन खड़गे ने गांधी परिवार की तरफ से आशीर्वाद मिलने के बाद पार्टी के 'आधिकारिक प्रत्याशी' की तरह नामांकन किया और अपने नामांकन में जी-23 के बड़े चेहरे आनंद शर्मा और मनीष तिवारी के भी शामिल होने से उनकी दावेदारी को और मजबूती मिली है और यह चुनाव धीरे धीरे खड़गे के पक्ष में एकतरफा होने जा रहा है. तस्वीर यह साफ कर रही है कि नॉमिनेशन के साथ ही नतीजे लगभग तय हैं. जी-23 नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव के लिए राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत मुख्य प्रस्तावक हैं. प्रस्तावकों के नाम में आनंद शर्मा, भूपिंदर सिंह हुड्डा, पृथ्वीराज चव्हाण, अखिलेश प्रसाद सिंह, मुकुल वासनिक और मनीष तिवारी शामिल थे. अपने गृह राज्य कर्नाटक में ‘सोलिल्लादा सरदारा’ (कभी नहीं हारने वाला नेता) के रूप में मशहूर मापन्ना मल्लिकार्जुन खड़गे ने अध्यक्ष पद की रेस में पर्चा भरा तो ऐसा लगने लगा कि अब इनकी जीत भी पक्की हो जाएगी. दिग्विजय सिंह ने खुद के लिए नामांकन पत्र लेने के बाद जमा नहीं किया था और उसके बाद वह खुद खड़गे के प्रस्तावक बन गए थे. ऐसा माना जा रहा है कि जब खड़गे कांग्रेस अध्यक्ष चुने जाने के बाद उच्च सदन में विपक्ष के नेता बनने के लिए दिग्विजय सिंह का नाम आगे आ सकता है.

Mallikarjun Kharge on BJP and Tharoor
मल्लिकार्जुन खड़गे का बयान

कांग्रेस पार्टी में अध्यक्ष बनने की तैयारी में जुटे मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि ''एक व्यक्ति, एक पद' के फॉर्मूला के तहत मैंने राज्यसभा में नेता विपक्ष के पद से दे दिया है. आपको मेरे 50 साल के राजनीतिक जीवन के बारे में पता है. मैं अब तक उसूलों और आइडियोलॉजी के लिए बचपन से लड़ता रहा हूं. बचपन से ही मेरे जीवन में संघर्ष रहा है. सालों तक मंत्री रहा और विपक्ष का नेता भी बना. सदन में बीजेपी और संघ की विचारधारा के खिलाफ लड़ता रहा. मैं फिर लड़ना चाहता हूं और लड़कर उसूलों को आगे ले जाने की कोशिश करूंगा.''

मल्लिकार्जुन खड़गे के पार्टी के 'आधिकारिक प्रत्याशी' कहकर संबोधित किया जाने लगा और माना जा रहा है कि इनके कुर्सी पर बैठने के बाद इनका रिमोट कंट्रोल नेहरू-गांधी परिवार के हाथ में होगा. लेकिन मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस बात को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि वह पार्टी के एक कार्यकर्ता के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं तथा अध्यक्ष बन जाने पर वह गांधी परिवार और अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ विचार-विमर्श करेंगे एवं उनके अच्छे सुझावों पर अमल भी करेंगे.

Mallikarjun Kharge
मल्लिकार्जुन खड़गे की अपील

इसे भी पढ़ें : MP: दिग्विजय सिंह नहीं लड़ेंगे कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव, मल्लिकार्जुन खड़गे के बने प्रस्तावक

वहीं मल्लिकार्जुन खड़गे अपना चुनाव निर्विरोध व आम सहमति से चाहते थे और उन्होंने शशि थरूर को ऐसे संकेत दिए थे, लेकिन शशि थरूर की तैयारी को देखते हुए मतदान की संभावना बनी हुयी है और माना जा रहा है कि अगर कोई बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम नहीं हुआ तो शशि थरूर अपना नामांकन वापस नहीं लेंगे और चुनाव में अपने विजन व मिशन की पार्टी में स्वीकार्यता को आजमाने की भरपूर कोशिश करते हुए अप्रत्याशित परिणाम की उम्मीद करेंगे.

Shashi Tharoor Key Points
शशि थरूर की खास बातें

शशि थरूर अपनी स्थिति का आकलन करने के साथ साथ लोगों को अपने मिशन व विजन को समझाने की कोशिश कर रहे हैं. साथ में कह रहे हैं कि...'बड़े' नेता स्वाभाविक रूप से अन्य 'बड़े' नेताओं के साथ खड़े होते हैं, लेकिन उन्हें राज्यों के पार्टी कार्यकर्ताओं का समर्थन प्राप्त है....'' हम बड़े नेताओं को सम्मान देते हैं, लेकिन यह पार्टी में युवाओंको सुनने का समय है... हम पार्टी के संगठनात्मक ढांचे को बदलने के लिए काम करेंगे और पार्टी कार्यकर्ताओं को यह महत्व दिया जाना चाहिए....''

Shashi Tharoor on Gandhi Family Role
शशि थरूर ने स्वीकारा

शशि थरूर बोले--

''हम दुश्मन नहीं हैं, यह युद्ध नहीं है. यह हमारी पार्टी के भविष्य का चुनाव है। खड़गे जी कांग्रेस पार्टी के टॉप 3 नेताओं में आते हैं. उनके जैसे नेता बदलाव नहीं ला सकते और मौजूदा व्यवस्था को जारी रखेंगे. पार्टी कार्यकर्ताओं की उम्मीद के मुताबिक बदलाव लाऊंगा. वह कांग्रेस में बदलाव के लिए चुनाव लड़ रहे हैं और 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर काम करेंगे.''

शशि थरूर का इशारा

"गांधी परिवार और कांग्रेस का डीएनए एक ही है... गांधी परिवार को 'गुडबाय' कहने के लिए कोई (पार्टी) अध्यक्ष इतना मूर्ख नहीं है. वे हमारे लिए बहुत बड़ी संपत्ति हैं..."

इसे भी पढ़ें : अध्यक्ष चुनाव के बाद राजस्थान CM पर फैसला लेगी कांग्रेस, गहलोत फिलहाल सुरक्षित

S Nijalingappa First Congress President from Karnataka
एस. निजालिंगप्पा

एस. निजालिंगप्पा बने थे पहले कन्नड़भाषी अध्यक्ष (S Nijalingappa First Congress President from Karnataka)
दक्षिण भारत के बड़े नेताओं में गिने जाने वाले एस. निजालिंगप्पा एकीकृत कर्नाटक राज्य के पहले मुख्यमंत्री के रूप में चुने गये थे. उन्हें "आधुनिक कर्नाटक का निर्माता" कहा जाता है. वह जब कांग्रेस अध्यक्ष बने थे उस समय 1967 के चुनावों में देश के कई हिस्सों में लोगों ने कांग्रेस पर अविश्वास व्यक्त किया था. उन्होंने 1968 और 1969 में क्रमश: हैदराबाद और फरीदाबाद में दो कांग्रेस सत्रों की अध्यक्षता की थी. उनके अथक प्रयासों के कारण, कांग्रेस पार्टी फिर से सक्रिय हो गई. हालांकि, पार्टी के विभिन्न गुटों के बीच गुटबाजी बढ़ गई और आखिरकार 1969 में पार्टी का ऐतिहासिक विभाजन हो गया. वह अविभाजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अंतिम अध्यक्ष थे. कांग्रेस पार्टी के दो हिस्से बने. पहला कांग्रेस (सत्तारूढ़), जो इंदिरा गांधी की तरफ था तथा दूसरा हिस्सा कांग्रेस (संगठन) का था, जिसमें निजालिंगप्पा, नीलम संजीवा रेड्डी, के कामराज, मोरारजी देसाई और अन्य वरिष्ठ नेता थे. कांग्रेस के विभाजन के बाद निजलिंगप्पा धीरे-धीरे राजनीति से अलग होते चले गए.

Jagjivan Ram
बाबू जगजीवन राम पहले दलित अध्यक्ष

पहले दलित अध्यक्ष बने थे जगजीवन राम (Babu Jagjivan Ram First Dalit President)
बाबू जगजीवन राम ने दिसंबर 1885 में बनी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को अपनी माँ के समान बताया था. वह वर्ष 1937-77 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य रहे। इसके बाद स्वतन्त्रता प्राप्ति उपरान्त वे कांग्रेस के लिए अपरिहार्य होते गए. बाबू जगजीवन राम महात्मा गांधीजी के प्रिय होने के साथ साथ पंडित जवाहरलाल नेहरू एवं इन्दिरा गाँधी जी के सबसे अहम सलाहकारों में से भी एक थे. वर्ष 1966 में माननीय डॉ॰ राजेंद्र प्रसाद जी के निधनोपरांत कांग्रेस पार्टी का आपसी मतभेदों व सत्ता की लड़ाई के कारण बंटवारा हो गया. जहां एक तरफ नीलम संजीवा रेड्डी, मोरारजी देसाई व कुमारसामी कामराज जैसे दिग्गजों ने अपनी अलग पार्टी की रचना की तो वहीं इन्दिरा गाँधी, बाबू जगजीवन राम व फकरुद्दीन अली अहमद जैसे आधुनिक सोच के व्यक्ति कांग्रेस पार्टी के साथ खड़े रहे. वर्ष 1969 में जगजीवन बाबू निर्विरोध कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के रूप में स्वीकारे गए व बाबूजी ने पूरे देश में कांग्रेस पार्टी को मज़बूत करने व उसकी लोकप्रियता बढ़ाने का काम किया, जिससे कांग्रेस पार्टी 1971 के आम चुनावों में ऐतिहासिक व प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में लौट आई.

इसे भी पढ़ें : वरिष्ठ नेताओं को सम्मान देते हैं, अब वक्त है युवाओं को सुनने का : थरूर

ऐसे आ चुके हैं अप्रत्याशित नतीजे

  • 1939 में जब कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुआ था तो बहुत ही अप्रत्याशित परिणाम आए थे. पुराने चुनावी रिकॉर्ड से पता चलता है कि कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए पहला कांटेदार मुकाबला हुआ था. यह मुकाबला 1939 में सुभाष चंद्र बोस और पट्टाभिसीतारमैया के बीच हुआ था, जिसमें गांधीजी और सरदार पटेल के समर्थन के बाद भी पट्टाभिसीतारमैया चुनाव हार गए थे और कांग्रेस में जोश व युवा चेहरे के रूप में सुभाष चंद्र बोस जीत गए थे. 29 जनवरी को कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए वोटिंग हुई तो नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के पक्ष में 1580 वोट पड़े जबकि सीतारमैया को 1377 वोट ही मिले. बोस को बंगाल, मैसूर, यूपी, पंजाब और मद्रास से जबरदस्त समर्थन मिला था. हालांकि तमाम राजनीतिक दावपेंचों से आहत होकर सुभाष चंद्र बोस ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था.
  • इसके बाद 1950 में फिर से कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुआ. नासिक अधिवेशन से पहले जेबी कृपलानी और पुरुषोत्तम दास टंडन के बीच हुए इस चुनाव में जेबी कृपलानी को हार का सामना करना पड़ा, जबकि पुरुषोत्तम दास टंडन विजयी घोषित किए गए. लेकिन बाद में उन्होंने तत्कालीन पीएम जवाहरलाल नेहरू के साथ मतभेदों के बाद इस्तीफा देना बेहतर समझा. दरअसल 1950 में हुए कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में पटेल समर्थित उम्मीदवार थे पुरुषोत्तम दास टंडन जबकि नेहरू ने आचार्य कृपलानी को समर्थन दिया था. कृपलानी की हार हुई और राजर्षि टंडन विजयी हुए. यह नेहरू की करारी हार थी.
  • एक और चर्चित चुनाव 1997 में हुआ था, जिसमें सीताराम केसरी ने अपने दो कड़े प्रतिद्वंद्वियों शरद पवार और राजेश पायलट को हराकर कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव जीता था. जिसमें पुराने कांग्रेसी नेताओं ने सीताराम केशरी का साथ दिया था और सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे को उठाने वाले नेताओं को दरकिनारे कर दिया था.
  • सीताराम केसरी के बाद मार्च 1998 में CWC के प्रस्ताव के जरिए सीताराम केसरी को कुर्सी से हटा दिया गया और एक साल पहले ही AICC की प्राथमिक सदस्य बनी सोनिया गांधी को अध्यक्ष का पद संभालने का ऑफर दिया गया. इसके बाद सोनिया गांधी 6 अप्रैल 1998 को औपचारिक रूप से अध्यक्ष चुनी गयीं. बाद में 2017 के बीच 2019 यह कुर्सी अपने बेटे राहुल गांधी को सौंप दी. लेकिन राहुल के इस्तीफे के बाद 2019 में वह फिर से अध्यक्ष बन गयीं. इस तरह से देखा जाए तो सोनिया गांधी सबसे अधिक दिनों तक अध्यक्ष की कुर्सी संभालने वाली राजनेता हैं.

ऐसा है विशेषज्ञों का मानना

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक मामलों के विशेषज्ञ ज्ञानेन्द्र शुक्ला का कहना है कि मतदान में कुछ भी संभव है, लेकिन मौजूदा हालात में मल्लिकार्जुन खड़गे मजबूत स्थिति में हैं. अगर इनके प्रस्तावक दगाबाजी नहीं करेंगे तो इनकी जीत पक्की मानी जानी चाहिए. शशि थरूर की जगह अगर और कोई कद्दावर चेहरा होता तो परिणाम अप्रत्याशित हो सकते थे. फिलहाल ऐसी संभावना कम ही है. हर किसी को नाम वापसी और परिणाम घोषित होने तक इंतजार करना होगा.

वहीं राजीव ओझा का कहना है कि कांग्रेस के अध्यक्ष का चुनाव कई बार अप्रत्याशित रहा है. हर समय कांग्रेस के लोगों ने थोपे गए कंडीडेट को हराकर कर समर्थन करने वाले नेताओं को बड़ा झटका दिया है. 1939, 1950 और 1997 के चुनावों में कई दिग्गज धराशायी हो चुके हैं. अगर अबकी बार भी कुछ तथाकथित बागी व दगाबाज नेता सोनिया गांधी के भरोसेमंद उम्मीदवार को दगा दे देते हैं तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए. इसीलिए नाम वापसी की तारीख तक सबकुछ मैनेज करने की कोशिश होती रहेगी.

अब देखना है कि कांग्रेस का अगला अध्यक्ष कौन और कितना मजबूत होता है. वह पार्टी के बदलाव के लिए क्या कर पाता है और कांग्रेस को भाजपा से लड़ने के लिए कितना सशक्त बना पाता है.

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नई दिल्ली : कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव जब तक सकुशल संपन्न नहीं हो जाता है, तब तक तमाम तरह की चर्चाओं व संभावनाओं का बाजार गर्म रहेगा. देश के सबसे पुराने राजनीतिक दल के सर्वोच्च पद पर आसीन होने वाले राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए औपचारिक रूप से चुनाव (Congress President Election 2022) प्रक्रिया आरंभ होने के बाद अब तक केवल नामांकन का काम खत्म हो पाया है. पार्टी के वरिष्ठ नेता मधुसूदन मिस्त्री की अध्यक्षता वाले केंद्रीय चुनाव प्राधिकरण की ओर से यह बताया गया है कि कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के लिए दाखिल 3 नामांकनों में से एक नामांकन खारिज हो गया है और अगर नाम वापसी की आखिरी तारीख तक किसी ने नाम वापस नहीं लिया तो 17 अक्टूबर को मतदान होगा और 19 अक्टूबर को नए कांग्रेस अध्यक्ष की घोषणा हो जाएगी. इसके पहले जब जब कांग्रेस में अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुआ है तो बड़े उलटफेर वाले नतीजे आए हैं. अगर कोई उलटफेर न हुआ तो मल्लिकार्जुन खड़गे बाबू जगजीवन राम के बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद संभालने वाले दूसरे दलित नेता के साथ साथ दूसरे कन्नड़भाषी प्रदेश कर्नाटक के नेता होंगे.

Mallikarjun Kharge and sonia gandhi
मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ सोनिया गांधी

पिछले कई दिनों से अधिसूचना जारी होने के पहले से ही राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पार्टी के वरिष्ठ नेता शशि थरूर के चुनावी समर में उतरने की सुगबुगाहट तेज हो गयी थी. ऐसी संभावना जतायी जा रही है कि 22 साल बाद देश की सबसे पुरानी पार्टी का प्रमुख चुनाव के जरिये चुना जाएगा. बीच में एक नाटकीय राजनीतिक घटनाक्रम के बाद अशोक गहलोत का नाम रेस से बाहर हो गया और मल्लिकार्जुन खड़गे बनाम शशि थरूर की लड़ाई सामने आ गयी.

Mallikarjun Kharge vs Shashi Tharoor
मल्लिकार्जुन खड़गे बनाम शशि थरूर

आपको याद होगा कि 1998 में जब से सोनिया गांधी ने यह कुर्सी हासिल की थी, तब से लेकर यह कुर्सी नेहरू-गांधी परिवार के हाथ में है. 2017 में सोनिया गांधी ने अपने बेटे राहुल गांधी को यह कुर्सी सौंप दी, लेकिन युवा राहुल गांधी कोई करिश्मा करने में नाकामयाब रहे. इतना ही नहीं पार्टी के कई दिग्गज नेता पार्टी छोड़कर जाने लगे और कांग्रेस की स्थिति दिन प्रतिदिन खराब होने लगी. 2019 में राहुल गांधी ने अध्यक्ष की कुर्सी छोड़ दी. इसके बाद से कांग्रेस के कई नेता नेहरू-गांधी परिवार से बाहर के नेता को यह कुर्सी सौंपने की मांग करने लगे. ऐसे में 22 साल बाद कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष का चुनाव होने जा रहा है, जिसमें नामांकन से लेकर मतदान तक का 'राजनीतिक ड्रामा' देखने को मिलता कहेगा.

Mallikarjun Kharge  Key Points
मल्लिकार्जुन खड़गे की खास बातें

‘सोलिल्लादा सरदारा’ की मिली है उपाधि
वैसे तो कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव केवल एक खानापूर्ति का मामला बनता नजर आ रहा है. अशोक गहलोत की जगह मल्लिकार्जुन खड़गे ने गांधी परिवार की तरफ से आशीर्वाद मिलने के बाद पार्टी के 'आधिकारिक प्रत्याशी' की तरह नामांकन किया और अपने नामांकन में जी-23 के बड़े चेहरे आनंद शर्मा और मनीष तिवारी के भी शामिल होने से उनकी दावेदारी को और मजबूती मिली है और यह चुनाव धीरे धीरे खड़गे के पक्ष में एकतरफा होने जा रहा है. तस्वीर यह साफ कर रही है कि नॉमिनेशन के साथ ही नतीजे लगभग तय हैं. जी-23 नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव के लिए राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत मुख्य प्रस्तावक हैं. प्रस्तावकों के नाम में आनंद शर्मा, भूपिंदर सिंह हुड्डा, पृथ्वीराज चव्हाण, अखिलेश प्रसाद सिंह, मुकुल वासनिक और मनीष तिवारी शामिल थे. अपने गृह राज्य कर्नाटक में ‘सोलिल्लादा सरदारा’ (कभी नहीं हारने वाला नेता) के रूप में मशहूर मापन्ना मल्लिकार्जुन खड़गे ने अध्यक्ष पद की रेस में पर्चा भरा तो ऐसा लगने लगा कि अब इनकी जीत भी पक्की हो जाएगी. दिग्विजय सिंह ने खुद के लिए नामांकन पत्र लेने के बाद जमा नहीं किया था और उसके बाद वह खुद खड़गे के प्रस्तावक बन गए थे. ऐसा माना जा रहा है कि जब खड़गे कांग्रेस अध्यक्ष चुने जाने के बाद उच्च सदन में विपक्ष के नेता बनने के लिए दिग्विजय सिंह का नाम आगे आ सकता है.

Mallikarjun Kharge on BJP and Tharoor
मल्लिकार्जुन खड़गे का बयान

कांग्रेस पार्टी में अध्यक्ष बनने की तैयारी में जुटे मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि ''एक व्यक्ति, एक पद' के फॉर्मूला के तहत मैंने राज्यसभा में नेता विपक्ष के पद से दे दिया है. आपको मेरे 50 साल के राजनीतिक जीवन के बारे में पता है. मैं अब तक उसूलों और आइडियोलॉजी के लिए बचपन से लड़ता रहा हूं. बचपन से ही मेरे जीवन में संघर्ष रहा है. सालों तक मंत्री रहा और विपक्ष का नेता भी बना. सदन में बीजेपी और संघ की विचारधारा के खिलाफ लड़ता रहा. मैं फिर लड़ना चाहता हूं और लड़कर उसूलों को आगे ले जाने की कोशिश करूंगा.''

मल्लिकार्जुन खड़गे के पार्टी के 'आधिकारिक प्रत्याशी' कहकर संबोधित किया जाने लगा और माना जा रहा है कि इनके कुर्सी पर बैठने के बाद इनका रिमोट कंट्रोल नेहरू-गांधी परिवार के हाथ में होगा. लेकिन मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस बात को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि वह पार्टी के एक कार्यकर्ता के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं तथा अध्यक्ष बन जाने पर वह गांधी परिवार और अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ विचार-विमर्श करेंगे एवं उनके अच्छे सुझावों पर अमल भी करेंगे.

Mallikarjun Kharge
मल्लिकार्जुन खड़गे की अपील

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वहीं मल्लिकार्जुन खड़गे अपना चुनाव निर्विरोध व आम सहमति से चाहते थे और उन्होंने शशि थरूर को ऐसे संकेत दिए थे, लेकिन शशि थरूर की तैयारी को देखते हुए मतदान की संभावना बनी हुयी है और माना जा रहा है कि अगर कोई बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम नहीं हुआ तो शशि थरूर अपना नामांकन वापस नहीं लेंगे और चुनाव में अपने विजन व मिशन की पार्टी में स्वीकार्यता को आजमाने की भरपूर कोशिश करते हुए अप्रत्याशित परिणाम की उम्मीद करेंगे.

Shashi Tharoor Key Points
शशि थरूर की खास बातें

शशि थरूर अपनी स्थिति का आकलन करने के साथ साथ लोगों को अपने मिशन व विजन को समझाने की कोशिश कर रहे हैं. साथ में कह रहे हैं कि...'बड़े' नेता स्वाभाविक रूप से अन्य 'बड़े' नेताओं के साथ खड़े होते हैं, लेकिन उन्हें राज्यों के पार्टी कार्यकर्ताओं का समर्थन प्राप्त है....'' हम बड़े नेताओं को सम्मान देते हैं, लेकिन यह पार्टी में युवाओंको सुनने का समय है... हम पार्टी के संगठनात्मक ढांचे को बदलने के लिए काम करेंगे और पार्टी कार्यकर्ताओं को यह महत्व दिया जाना चाहिए....''

Shashi Tharoor on Gandhi Family Role
शशि थरूर ने स्वीकारा

शशि थरूर बोले--

''हम दुश्मन नहीं हैं, यह युद्ध नहीं है. यह हमारी पार्टी के भविष्य का चुनाव है। खड़गे जी कांग्रेस पार्टी के टॉप 3 नेताओं में आते हैं. उनके जैसे नेता बदलाव नहीं ला सकते और मौजूदा व्यवस्था को जारी रखेंगे. पार्टी कार्यकर्ताओं की उम्मीद के मुताबिक बदलाव लाऊंगा. वह कांग्रेस में बदलाव के लिए चुनाव लड़ रहे हैं और 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर काम करेंगे.''

शशि थरूर का इशारा

"गांधी परिवार और कांग्रेस का डीएनए एक ही है... गांधी परिवार को 'गुडबाय' कहने के लिए कोई (पार्टी) अध्यक्ष इतना मूर्ख नहीं है. वे हमारे लिए बहुत बड़ी संपत्ति हैं..."

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S Nijalingappa First Congress President from Karnataka
एस. निजालिंगप्पा

एस. निजालिंगप्पा बने थे पहले कन्नड़भाषी अध्यक्ष (S Nijalingappa First Congress President from Karnataka)
दक्षिण भारत के बड़े नेताओं में गिने जाने वाले एस. निजालिंगप्पा एकीकृत कर्नाटक राज्य के पहले मुख्यमंत्री के रूप में चुने गये थे. उन्हें "आधुनिक कर्नाटक का निर्माता" कहा जाता है. वह जब कांग्रेस अध्यक्ष बने थे उस समय 1967 के चुनावों में देश के कई हिस्सों में लोगों ने कांग्रेस पर अविश्वास व्यक्त किया था. उन्होंने 1968 और 1969 में क्रमश: हैदराबाद और फरीदाबाद में दो कांग्रेस सत्रों की अध्यक्षता की थी. उनके अथक प्रयासों के कारण, कांग्रेस पार्टी फिर से सक्रिय हो गई. हालांकि, पार्टी के विभिन्न गुटों के बीच गुटबाजी बढ़ गई और आखिरकार 1969 में पार्टी का ऐतिहासिक विभाजन हो गया. वह अविभाजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अंतिम अध्यक्ष थे. कांग्रेस पार्टी के दो हिस्से बने. पहला कांग्रेस (सत्तारूढ़), जो इंदिरा गांधी की तरफ था तथा दूसरा हिस्सा कांग्रेस (संगठन) का था, जिसमें निजालिंगप्पा, नीलम संजीवा रेड्डी, के कामराज, मोरारजी देसाई और अन्य वरिष्ठ नेता थे. कांग्रेस के विभाजन के बाद निजलिंगप्पा धीरे-धीरे राजनीति से अलग होते चले गए.

Jagjivan Ram
बाबू जगजीवन राम पहले दलित अध्यक्ष

पहले दलित अध्यक्ष बने थे जगजीवन राम (Babu Jagjivan Ram First Dalit President)
बाबू जगजीवन राम ने दिसंबर 1885 में बनी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को अपनी माँ के समान बताया था. वह वर्ष 1937-77 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य रहे। इसके बाद स्वतन्त्रता प्राप्ति उपरान्त वे कांग्रेस के लिए अपरिहार्य होते गए. बाबू जगजीवन राम महात्मा गांधीजी के प्रिय होने के साथ साथ पंडित जवाहरलाल नेहरू एवं इन्दिरा गाँधी जी के सबसे अहम सलाहकारों में से भी एक थे. वर्ष 1966 में माननीय डॉ॰ राजेंद्र प्रसाद जी के निधनोपरांत कांग्रेस पार्टी का आपसी मतभेदों व सत्ता की लड़ाई के कारण बंटवारा हो गया. जहां एक तरफ नीलम संजीवा रेड्डी, मोरारजी देसाई व कुमारसामी कामराज जैसे दिग्गजों ने अपनी अलग पार्टी की रचना की तो वहीं इन्दिरा गाँधी, बाबू जगजीवन राम व फकरुद्दीन अली अहमद जैसे आधुनिक सोच के व्यक्ति कांग्रेस पार्टी के साथ खड़े रहे. वर्ष 1969 में जगजीवन बाबू निर्विरोध कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष के रूप में स्वीकारे गए व बाबूजी ने पूरे देश में कांग्रेस पार्टी को मज़बूत करने व उसकी लोकप्रियता बढ़ाने का काम किया, जिससे कांग्रेस पार्टी 1971 के आम चुनावों में ऐतिहासिक व प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में लौट आई.

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ऐसे आ चुके हैं अप्रत्याशित नतीजे

  • 1939 में जब कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुआ था तो बहुत ही अप्रत्याशित परिणाम आए थे. पुराने चुनावी रिकॉर्ड से पता चलता है कि कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए पहला कांटेदार मुकाबला हुआ था. यह मुकाबला 1939 में सुभाष चंद्र बोस और पट्टाभिसीतारमैया के बीच हुआ था, जिसमें गांधीजी और सरदार पटेल के समर्थन के बाद भी पट्टाभिसीतारमैया चुनाव हार गए थे और कांग्रेस में जोश व युवा चेहरे के रूप में सुभाष चंद्र बोस जीत गए थे. 29 जनवरी को कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए वोटिंग हुई तो नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के पक्ष में 1580 वोट पड़े जबकि सीतारमैया को 1377 वोट ही मिले. बोस को बंगाल, मैसूर, यूपी, पंजाब और मद्रास से जबरदस्त समर्थन मिला था. हालांकि तमाम राजनीतिक दावपेंचों से आहत होकर सुभाष चंद्र बोस ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था.
  • इसके बाद 1950 में फिर से कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुआ. नासिक अधिवेशन से पहले जेबी कृपलानी और पुरुषोत्तम दास टंडन के बीच हुए इस चुनाव में जेबी कृपलानी को हार का सामना करना पड़ा, जबकि पुरुषोत्तम दास टंडन विजयी घोषित किए गए. लेकिन बाद में उन्होंने तत्कालीन पीएम जवाहरलाल नेहरू के साथ मतभेदों के बाद इस्तीफा देना बेहतर समझा. दरअसल 1950 में हुए कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में पटेल समर्थित उम्मीदवार थे पुरुषोत्तम दास टंडन जबकि नेहरू ने आचार्य कृपलानी को समर्थन दिया था. कृपलानी की हार हुई और राजर्षि टंडन विजयी हुए. यह नेहरू की करारी हार थी.
  • एक और चर्चित चुनाव 1997 में हुआ था, जिसमें सीताराम केसरी ने अपने दो कड़े प्रतिद्वंद्वियों शरद पवार और राजेश पायलट को हराकर कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव जीता था. जिसमें पुराने कांग्रेसी नेताओं ने सीताराम केशरी का साथ दिया था और सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे को उठाने वाले नेताओं को दरकिनारे कर दिया था.
  • सीताराम केसरी के बाद मार्च 1998 में CWC के प्रस्ताव के जरिए सीताराम केसरी को कुर्सी से हटा दिया गया और एक साल पहले ही AICC की प्राथमिक सदस्य बनी सोनिया गांधी को अध्यक्ष का पद संभालने का ऑफर दिया गया. इसके बाद सोनिया गांधी 6 अप्रैल 1998 को औपचारिक रूप से अध्यक्ष चुनी गयीं. बाद में 2017 के बीच 2019 यह कुर्सी अपने बेटे राहुल गांधी को सौंप दी. लेकिन राहुल के इस्तीफे के बाद 2019 में वह फिर से अध्यक्ष बन गयीं. इस तरह से देखा जाए तो सोनिया गांधी सबसे अधिक दिनों तक अध्यक्ष की कुर्सी संभालने वाली राजनेता हैं.

ऐसा है विशेषज्ञों का मानना

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक मामलों के विशेषज्ञ ज्ञानेन्द्र शुक्ला का कहना है कि मतदान में कुछ भी संभव है, लेकिन मौजूदा हालात में मल्लिकार्जुन खड़गे मजबूत स्थिति में हैं. अगर इनके प्रस्तावक दगाबाजी नहीं करेंगे तो इनकी जीत पक्की मानी जानी चाहिए. शशि थरूर की जगह अगर और कोई कद्दावर चेहरा होता तो परिणाम अप्रत्याशित हो सकते थे. फिलहाल ऐसी संभावना कम ही है. हर किसी को नाम वापसी और परिणाम घोषित होने तक इंतजार करना होगा.

वहीं राजीव ओझा का कहना है कि कांग्रेस के अध्यक्ष का चुनाव कई बार अप्रत्याशित रहा है. हर समय कांग्रेस के लोगों ने थोपे गए कंडीडेट को हराकर कर समर्थन करने वाले नेताओं को बड़ा झटका दिया है. 1939, 1950 और 1997 के चुनावों में कई दिग्गज धराशायी हो चुके हैं. अगर अबकी बार भी कुछ तथाकथित बागी व दगाबाज नेता सोनिया गांधी के भरोसेमंद उम्मीदवार को दगा दे देते हैं तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए. इसीलिए नाम वापसी की तारीख तक सबकुछ मैनेज करने की कोशिश होती रहेगी.

अब देखना है कि कांग्रेस का अगला अध्यक्ष कौन और कितना मजबूत होता है. वह पार्टी के बदलाव के लिए क्या कर पाता है और कांग्रेस को भाजपा से लड़ने के लिए कितना सशक्त बना पाता है.

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Last Updated : Oct 4, 2022, 1:27 PM IST
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