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अर्दली की तैनाती पर HC सख्त, आजादी के इतने सालों बाद भी नहीं बदली पुलिस अधिकारी की मानसिकता

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Published : Aug 12, 2022, 7:24 PM IST

मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों पर तीखी टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि एक ओर हम आजादी का 75वां वर्ष मना रहे हैं, वहीं दूसरी ओर राज्य में ऐसे पुलिस अधिकारी भरे पड़े हैं, जो अपने यहां अर्दली की नियुक्ति करते हैं. कोर्ट ने कहा कि ऐसे लोग प्रशिक्षित वर्दीधारी पुलिस कर्मियों से घरेलू और मामूली काम कराने के लिए औपनिवेशिक दासता प्रणाली का पालन कर रहे हैं.

madras hc
मद्रास हाईकोर्ट

चेन्नई : मद्रास उच्च न्यायालय ने 'औपनिवेशिक दासता प्रथा' जारी रखने पर अफसोस प्रकट करते हुए तमिलनाडु में निचले स्तर के विभागीय कर्मियों की अपने आवासों पर 'अर्दली' के तौर पर तैनाती के लिए पुलिस के उच्च अधिकारियों को फटकार लगाई. न्यायमूर्ति एस एम सुब्रमण्यम ने आगाह किया कि जब तक इस प्रथा को पूरी तरह से खत्म करने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए जाते, तब तक अदालत के पास संविधान के प्रावधानों के तहत कार्रवाई करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा.

न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम ने कहा, 'हम, भारत के लोग स्वतंत्रता के 75वें वर्ष का जश्न मना रहे हैं. यह कहना दुखद है कि पुलिस के उच्च अधिकारियों के आवासों पर घरेलू और अन्य काम के लिए औपनिवेशिक दासता प्रणाली अभी भी तमिलनाडु राज्य में प्रचलित है.' अदालत ने कहा, 'यह हमारे महान राष्ट्र के संविधान और लोकतंत्र पर तमाचा है. जब हम जीवंत लोकतंत्र की ओर बढ़ रहे हैं, राज्य में पुलिस के उच्च अधिकारी प्रशिक्षित वर्दीधारी पुलिस कर्मियों से घरेलू और मामूली काम कराने के लिए औपनिवेशिक दासता प्रणाली का पालन कर रहे हैं.'

न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम ने कहा, 'यह गम्भीरता से विचार करने वाला विषय है. ऐसे वर्दीधारी प्रशिक्षित पुलिसकर्मी करदाताओं के धन की कीमत पर उच्च अधिकारियों के आवासों में घरेलू और अर्दली का काम कर रहे हैं. जनता को उच्च अधिकारियों की मानसिकता पर सवाल उठाने का अधिकार है.'

अदालत ने यू मानिकवेल द्वारा दायर एक रिट याचिका पर अंतरिम आदेश पारित किया, जिन्होंने तमिलनाडु सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत कब्जाधारियों की बेदखली) नियमों के तहत जनवरी, 2014 में पारित एक आदेश को रद्द करने का अनुरोध किया. हालांकि याचिकाकर्ता ने बेदखली के आदेश को चुनौती देते हुए 2014 में वर्तमान याचिका दायर की थी, लेकिन उसने हाल में परिसर खाली किया था.

अतिरिक्त महाधिवक्ता पी कुमरेसन ने दलील दी कि ऐसे 19 पुलिस कर्मियों को अदालत के पूर्व के अंतरिम आदेश और इस मुद्दे पर राज्य सरकार के ज्ञापन के बाद अर्दली ड्यूटी से मुक्त किया गया. लेकिन न्यायाधीश इस दलील से संतुष्ट नहीं हुए. न्यायाधीश ने कहा कि अब भी बड़ी संख्या में निचले स्तर के पुलिस कर्मी उच्च अधिकारियों के आवासों पर अर्दली के रूप में कार्यरत हैं. उन्होंने कहा कि अनुशासनहीन उच्च पुलिस अधिकारी, वर्दीधारी खासकर अपने अधीनस्थ अधिकारियों के खिलाफ पुलिस बल में अनुशासन लागू करने में अपना नैतिक आधार खो देते हैं.

न्यायाधीश ने कहा कि पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) ने सरकार के आदेशों के क्रियान्वयन में अधिकारियों को एक ज्ञापन जारी किया. न्यायाधीश ने कहा कि लगभग दो महीने बीत जाने के बाद भी, बहुत कम वर्दीधारी कर्मियों को घरेलू दायित्व से मुक्त किया गया और उच्च पुलिस अधिकारियों के घरों पर वे काम कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें : निधन के बाद खातों का जल्द निपटान हो, इससे जुड़ी याचिका पर SC ने केंद्र से मांगा जवाब

चेन्नई : मद्रास उच्च न्यायालय ने 'औपनिवेशिक दासता प्रथा' जारी रखने पर अफसोस प्रकट करते हुए तमिलनाडु में निचले स्तर के विभागीय कर्मियों की अपने आवासों पर 'अर्दली' के तौर पर तैनाती के लिए पुलिस के उच्च अधिकारियों को फटकार लगाई. न्यायमूर्ति एस एम सुब्रमण्यम ने आगाह किया कि जब तक इस प्रथा को पूरी तरह से खत्म करने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए जाते, तब तक अदालत के पास संविधान के प्रावधानों के तहत कार्रवाई करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा.

न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम ने कहा, 'हम, भारत के लोग स्वतंत्रता के 75वें वर्ष का जश्न मना रहे हैं. यह कहना दुखद है कि पुलिस के उच्च अधिकारियों के आवासों पर घरेलू और अन्य काम के लिए औपनिवेशिक दासता प्रणाली अभी भी तमिलनाडु राज्य में प्रचलित है.' अदालत ने कहा, 'यह हमारे महान राष्ट्र के संविधान और लोकतंत्र पर तमाचा है. जब हम जीवंत लोकतंत्र की ओर बढ़ रहे हैं, राज्य में पुलिस के उच्च अधिकारी प्रशिक्षित वर्दीधारी पुलिस कर्मियों से घरेलू और मामूली काम कराने के लिए औपनिवेशिक दासता प्रणाली का पालन कर रहे हैं.'

न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम ने कहा, 'यह गम्भीरता से विचार करने वाला विषय है. ऐसे वर्दीधारी प्रशिक्षित पुलिसकर्मी करदाताओं के धन की कीमत पर उच्च अधिकारियों के आवासों में घरेलू और अर्दली का काम कर रहे हैं. जनता को उच्च अधिकारियों की मानसिकता पर सवाल उठाने का अधिकार है.'

अदालत ने यू मानिकवेल द्वारा दायर एक रिट याचिका पर अंतरिम आदेश पारित किया, जिन्होंने तमिलनाडु सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत कब्जाधारियों की बेदखली) नियमों के तहत जनवरी, 2014 में पारित एक आदेश को रद्द करने का अनुरोध किया. हालांकि याचिकाकर्ता ने बेदखली के आदेश को चुनौती देते हुए 2014 में वर्तमान याचिका दायर की थी, लेकिन उसने हाल में परिसर खाली किया था.

अतिरिक्त महाधिवक्ता पी कुमरेसन ने दलील दी कि ऐसे 19 पुलिस कर्मियों को अदालत के पूर्व के अंतरिम आदेश और इस मुद्दे पर राज्य सरकार के ज्ञापन के बाद अर्दली ड्यूटी से मुक्त किया गया. लेकिन न्यायाधीश इस दलील से संतुष्ट नहीं हुए. न्यायाधीश ने कहा कि अब भी बड़ी संख्या में निचले स्तर के पुलिस कर्मी उच्च अधिकारियों के आवासों पर अर्दली के रूप में कार्यरत हैं. उन्होंने कहा कि अनुशासनहीन उच्च पुलिस अधिकारी, वर्दीधारी खासकर अपने अधीनस्थ अधिकारियों के खिलाफ पुलिस बल में अनुशासन लागू करने में अपना नैतिक आधार खो देते हैं.

न्यायाधीश ने कहा कि पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) ने सरकार के आदेशों के क्रियान्वयन में अधिकारियों को एक ज्ञापन जारी किया. न्यायाधीश ने कहा कि लगभग दो महीने बीत जाने के बाद भी, बहुत कम वर्दीधारी कर्मियों को घरेलू दायित्व से मुक्त किया गया और उच्च पुलिस अधिकारियों के घरों पर वे काम कर रहे हैं.

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