चेन्नई : मद्रास उच्च न्यायालय ने कंपनी के प्रबंधन के साथ समस्याओं का सामना करने वाले कर्मचारियों के लिए "भड़ास निकालने के अधिकार" पर जोर दिया है. न्यायमूर्ति जी.आर. स्वामीनाथन की अध्यक्षता वाली पीठ ने बैंक के प्रशासनिक निर्णयों के संबंध में व्हाट्सएप पर उपहासपूर्ण मैसेज पोस्ट करने को लेकर तमिलनाडु ग्राम बैंक के एक कर्मचारी के खिलाफ आरोप पत्र को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की.
पीठ ने कहा कि संगठन में शिकायतें होना स्वाभाविक है और कर्मचारियों को उसे व्यक्त करने की अनुमति देने से उनके दिल को तस्सली होगी और वे अच्छा महसूस करेंगे. हालाँकि, अदालत ने कहा कि यदि प्रबंधन की छवि गंभीर रूप से प्रभावित होती है, तो हस्तक्षेप किया जा सकता है. पीठ ने यह भी कहा कि इस तरह की अभिव्यक्ति को रोकना विचारों पर नियंत्रण के समान होगा. महत्वपूर्ण टिप्पणी में हाई कोर्ट ने कहा कि आज की डिजिटल रूप से जुड़ी दुनिया में निजी बातचीत पर लागू सिद्धांत सीमित पहुंच वाले एन्क्रिप्टेड वर्चुअल प्लेटफॉर्म के लिए प्रासंगिक हैं.
पीठ ने कहा कि बैंक ने सोशल मीडिया पर कर्मचारियों के आचरण को विनियमित करने के लिए 2019 में एक परिपत्र जारी किया था. एंड-टू-एंड एन्क्रिप्टेड प्लेटफ़ॉर्म पर साझा की गई सामग्री कानूनी सीमाओं के भीतर रहनी चाहिए. पीठ ने निष्कर्ष निकाला कि याचिकाकर्ता ने बैंक के आचरण नियमों का उल्लंघन नहीं किया है और चार्ज मेमो को रद्द कर दिया. याचिकाकर्ता ए. लक्ष्मीनारायण तूतीकोरिन में तमिलनाडु ग्राम बैंक की अरुमुगनेरी शाखा में कार्यालय सहायक के रूप में काम करते हैं.
वह एक ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता और बैंक कर्मचारी संघ का पदाधिकारी भी है. उसे अपने आलोचनात्मक व्हाट्सएप मैसेज के लिए अनुशासनात्मक कार्रवाई का सामना करना पड़ा. याचिकाकर्ता ने अपने खिलाफ हुई कार्रवाई को हाई कोर्ट की मदुरै बेंच में चुनौती दी थी.
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(आईएएनएस)