लखनऊ : मौजूदा समय में डिजिटल क्रांति होने के कारण बहुत सारी अच्छी चीजें होती हैं तो साथ ही उसके बुरे साइड इफेक्ट भी हैं. घर परिवार के सदस्य मजाक मजाक में बच्चों के कान में इयरफोन लगा देते हैं फिर बाद में बच्चे की आदत पड़ जाती है और बच्चा भी इयर फोन के लिए जिद करने लगता है. रेगुलर इयरफोन लगाने से बहुत से केस ऐसे देखे गए हैं. जिसमें छोटे बच्चे बचपन से ही सुनने के मामले में कमजोर हो जाते हैं. उनके कान के पर्दों पर बुरा प्रभाव पड़ता है कई बार कान के पर्दा में छेद हो जाता है. ईएनटी विशेषज्ञ के अनुसार पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चे और कुछ जानवर, जैसे कि कुत्ते 25 kHz (1 kHz = 1000 Hz) तक सुन सकते हैं. जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते जाते हैं, उनके कान उच्च आवृत्तियों के प्रति कम संवेदनशील होते जाते हैं. मनुष्यों के लिए ध्वनि की श्रव्य सीमा लगभग 20 Hz से 20000 Hz (एक Hz = एक चक्र /सेकेंड) तक बढ़ सकती है.
सिविल अस्पताल की ईएनटी विशेषज्ञ डॉ. चारू तिवारी ने बताया कि छोटे बच्चे को कई चीजों से बचाने की जरूरत है. फिर चाहे वह मोबाइल फोन के स्क्रीन हों या फिर हेडफोन. जिस तरह मोबाइल की स्क्रीन से बच्चों की आंखों पर बुरा प्रभाव डालती है उसी तरह से हेडफोन व इयर फोन के इस्तेमाल से बच्चों के कान के परदे पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है. कान में एक पतली परत का पर्दा होता है और बच्चों का शरीर बहुत कोमल होता है फिर चाहे वह कान का पर्दा हो या फिर आंखें. जरूरी बात यह है कि माता पिता को मजाक-मजाक में भी बच्चे को हेड फोन नहीं लगाना चाहिए. क्योंकि मजाक-मजाक में एक बार बच्चे को हेडफोन लगा दिया जाता है. बाद में फिर बच्चा उस चीज की जिद करता है. फिर मोबाइल में कार्टून देखता है तो वह हेडफोन का इस्तेमाल धीरे-धीरे शुरू कर देता है, क्योंकि बच्चे जिद करते हैं फिर माता-पिता को उनका रोना देखा नहीं जाता है. इसलिए शुरुआत से ही बच्चे को इन चीजों की आदत नहीं लगवानी चाहिए.
डॉ. चारू ने बताया कि अस्पताल के ओपीडी में रोजाना करीब 200 मरीज इलाज के लिए आते हैं. जिसमें से 15 20 छोटे बच्चे होते हैं. 25 से 40 ऐसे केस होते हैं जिनके कान में झनझनाहट की आवाज सुनाई देती है. कान में कोई परेशानी होने पर सबसे पहले झनझनाहट का एहसास होता है. आवाज बहुत तेज सुनाई देती है. यह बहरेपन का भी संकेत हो सकता है क्योंकि धीरे-धीरे कान की सुनने की क्षमता कम होने लगती है. अगर समय पर इलाज न मिले तो समस्या पैदा हो सकती है. कई बार अविभावक छोटे बच्चों को लेकर अस्पताल की ओपीडी में आते हैं जो बताते हैं कि किस तरह से तीन साल होने के बाद भी बच्चा सुन नहीं पा रहा है. इन समस्याओं के साथ बहुत से अभिभावक ओपीडी में आते हैं.