नई दिल्ली : संविधान (अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति) आदेश (दूसरा संशोधन) विधेयक 2022 पर लोक सभा में चर्चा की गई. विस्तार से चर्चा के बाद जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा ने चर्चा का जवाब दिया. उन्होंने कहा कि देश के स्वाभिमान को जगाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने कई उल्लेखनीय काम किए हैं. उन्होंने कहा कि कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने बजट को लेकर सवाल खड़ा किया. इसके जवाब में वे बताना चाहते हैं कि एकलव्य मॉडल स्कूल के लिए 2014 के पहले 12 करोड़ का आवंटन होता था, आज 38 करोड़ की व्यवस्था की गई है.
अर्जुन मुंडा ने कहा, आज हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं. 2014 के पहले जनजातीय स्कूलों की संख्या 167 थे, आज स्वीकृत स्कूलों की संख्या 669 है. उन्होंने कहा कि फंक्शनल स्कूलों की संख्या पहले 119 थी आज 367 स्कूल फंक्शनल हैं. ये एकलव्य मॉडल रेसिडेंशियल स्कूल हैं. प्रति छात्र आपके समय में 42 हजार रूपये खर्च होता था. हमारे कार्यकाल में 1.09 लाख रुपये प्रति छात्र खर्च किया जा रहा है. दुरूह क्षेत्रों में एक एकलव्य स्कूल के लिए 48 करोड़ रुपये की व्यवस्था की गई है. बजट आउटले 2013-14 में 978 करोड़ रुपये था. अभी 2546 करोड़ रुपये है. आगामी 5 साल में इस मद में 28 हजार करोड़ रुपये खर्च करने की योजना है. मुंडा ने सदन में 'संविधान (अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जनजातियां) आदेश (दूसरा संशोधन) विधेयक, 2022' पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि केंद्र सरकार जनजातीय समुदाय के विकास के समाधान तलाश रही है.
ध्वनिमत से पारित हुआ विधेयक : उत्तर प्रदेश में 'गोंड' समुदाय से संबंधित इस विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए मंत्री ने कहा कि आज सदन में उत्तर प्रदेश से संबंधित विधेयक पारित किया जा रहा है, इससे पहले सरकार ने कर्नाटक, अरुणाचल प्रदेश और त्रिपुरा के इस तरह के प्रस्तावों पर विचार किया था और हम भविष्य में झारखंड, छत्तीसगढ़ तथा ओडिशा के ऐसे प्रस्तावों की समीक्षा करने वाले हैं. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार देश में जनजातीय समुदाय और उनके क्षेत्रों के विकास के लिए प्रतिबद्ध है और यह विधेयक उसी कड़ी में समाधान का रास्ता है. मंत्री के जवाब के बाद सदन ने विपक्षी सदस्य एन के प्रेमचंद्रन के कुछ संशोधनों को अस्वीकृत करते हुए विधेयक को ध्वनिमत से पारित कर दिया.
खुशियां खरीदने बाजार नहीं जाते : जनजातीय समुदाय के दयनीय स्थिति में होने के विपक्षी सदस्यों के कथन पर मुंडा ने कहा कि सरकार आदिवासी समाज के विकास के लिए किये गये पिछले सात साल का हिसाब देने को तैयार है लेकिन उससे पहले का हिसाब तो कांग्रेस को देना होगा. उन्होंने कहा कि यह समुदाय दयनीय स्थिति में नहीं है, वह जहां है अपनी संस्कृति और परंपराओं के साथ खुश रहता है. यह समुदाय हमेशा अपने वृक्षों, जंगलों, पेड़ों और नदियों से प्यार करते हुए उनके बीच ही निश्छल भाव से रहना चाहता है और खुशियां खरीदने बाजार में नहीं जाता.
सभी राज्यों की अलग-अलग सूची : अलग-अलग राज्यों के इस तरह के प्रस्ताव सदन में एक साथ नहीं लाने के कुछ विपक्षी सदस्यों के सवाल पर केंद्रीय मंत्री ने कहा कि अनुसूचित जनजातियों के संबंध में सभी राज्यों की अलग-अलग सूची होती है और सब अपने-अपने हिसाब से अनुसंधान करके तय करते हैं. उन्होंने कहा कि राज्य सिफारिश करते हैं, जिस पर केंद्र पूरे देश में सलाह-मशविरा के बाद निर्धारित मानकों के आधार पर समीक्षा करता है और फिर विषय को सदन में चर्चा के लिए लाया जाता है. मुंडा ने कहा कि उच्चतम न्यायालय ने भी कहा है कि इस तरह के मामलों में स्पेलिंग आदि की कोई त्रुटि हो तो इसी सदन में उस पर चर्चा हो सकती है.
इसलिए जरूरी है यह विधेयक : उत्तर प्रदेश में गोंड जाति से संबंधित इस विधेयक को पुन: सदन में लाने के सवाल पर जनजातीय मंत्री ने कहा कि 2002 में जब विधेयक पारित हुआ था, तभी प्रदेश में कुछ जिलों का विभाजन हुआ था, लेकिन उसकी सूचना सदन को प्राप्त नहीं हुई थी. उन्होंने कहा कि जिले विभाजित होने की अधिसूचना जारी होने और नये जिले का नामकरण नहीं होने से लोगों को विधेयक पारित होने के बाद भी सुविधा प्राप्त नहीं हो रही थी, इसलिए यह विधेयक लाना आवश्यक था.
वन नेशन वन इलेक्शन का विचार : लोकसभा में इस विधेयक को लाने का संबंध उत्तर प्रदेश चुनाव से होने के विपक्षी सदस्यों के आरोपों को खारिज करते हुए मुंडा ने कहा कि राज्य में विधानसभा चुनाव तो हो चुके हैं और यह विधेयक चुनाव से जुड़ा नहीं है. उन्होंने कहा कि देश में संघीय ढांचे के तहत चुनाव तो सतत प्रक्रिया है और देश में किसी न किसी राज्य में चुनाव चलते रहते हैं. मुंडा ने कहा कि इसी तरह की परिस्थिति के मद्देनजर सरकार ने 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' की सोच को आगे रखा है जिस पर आगे सभी से विचार करके काम किया जाएगा.
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क्या है यह कानून बनाने का मकसद : विधेयक के उद्देश्यों और कारणों में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश सरकार की सिफारिश के आधार पर यह प्रस्ताव किया गया है कि संविधान अनुसूचित जातियां आदेश 1950 और संविधान अनुसूचित जनजातियां (उत्तर प्रदेश) आदेश 1967 का संशोधन करके उत्तर प्रदेश राज्य के संबंध में इनकी सूचियों में बदलाव किया जाए. यह विधेयक संविधान अनुसूचित जातियां आदेश 1950 की अनुसूची के भाग 18 - उत्तर प्रदेश की प्रविष्टि 36 में संत कबीर नगर, कुशीनगर, चंदौली और संत रविदास नगर जिलों से 'गोंड' समुदाय को लोप करने के लिये है. इसे संविधान अनुसूचित जनजातियां उत्तर प्रदेश आदेश 1967 की प्रविष्टि 6 में संत कबीर नगर, कुशीनगर, चंदौली और संत रविदास नगर जिलों को शामिल करने के लिये लाया गया है.
(इनपुट-पीटीआई-भाषा)