नई दिल्ली: हाल ही में जाकिया जाफरी और पीएमएलए पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ कड़े बयान देने के बाद वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल (Senior Advocate Kapil Sibal) ने आज एक सुनवाई के दौरान एक बार फिर संस्था के बारे में अपनी चिंता व्यक्त की है. वह न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति बीवी नागरथा की पीठ के समक्ष एक मामले में बहस कर रहे थे.
सिब्बल ने कहा, 'आप जिस कुर्सी पर बैठते हैं, उसके लिए हमारे मन में बहुत सम्मान है. यह एक विवाह है जिसे बार और बेंच के बीच नहीं तोड़ा जा सकता है. यहां कोई अलगाव नहीं है और एक बार हमें पता चलता है कि क्या हो रहा है कभी इस छोर पर और कभी दूसरे छोर पर.,और यह मेरे जैसे व्यक्ति को परेशान करता है, जिसने इस अदालत को अपना जीवन दिया है.'
इस पर जस्टिस अजय रस्तोगी (Justice Ajay Rastogi) ने कहा कि उन्हें हमेशा लगता है कि बार और बेंच एक ही रथ के पहिया हैं लेकिन हकीकत में एक पहिया कहां जाता है और दूसरा कहां जाता है, यह कोई नहीं जानता.
जस्टिस रस्तोगी ने कहा, ' फिर भी हमें यह पता लगाना होगा कि हम सभी इस संस्था से संबंधित हैं और इस संस्था ने हमें सबकुछ दिया है, इसलिए बार से हमारा अनुरोध है कि हम आत्मनिरीक्षण करें कि हम कैसे टिके रह सकते हैं. कैसे टिके रहें कि आम लोगों का विश्वास न टूटे, इस पर काम करना चाहिए.' इस पर सिब्बल ने कहा कि यह तभी हो सकता है जब बार और बेंच दोनों नियमों का पालन करें.
सिब्बल ने कहा कि 'अगर मैं अदालत में आता हूं और मुझे विश्वास है कि, चाहे जो भी हो, चाहे वह मेरे खिलाफ हो, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. मुझे सुना गया, दूसरे कानून को बिना किसी डर और पक्षपात के सही तरीके से लागू किया गया. सिब्बल ने कहा अगर ये तीन चीजें हैं तो विश्वास बहाल होगा. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि हम हारते हैं या जीतते हैं, संस्था में हमारा जो विश्वास है वह बना रहे लेकिन वह धीरे-धीरे कम होता जा रहा है.'
न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने कहा, 'हारने वाला पक्ष जो महसूस करता है वह अधिक महत्वपूर्ण है कि जीतने वाला पक्ष क्या महसूस करता है. हारने वाले पक्ष को भी संतुष्ट होकर वापस जाना चाहिए.'
गौरतलब है कि कपिल सिब्बल सुप्रीम कोर्ट के सबसे वरिष्ठ वकीलों में से एक हैं और उन्होंने न्यायपालिका को 50 साल से अधिक का समय दिया है.उन्होंने हाल ही में जाकिया जाफरी और पीएमएलए के फैसलों के खिलाफ बयान दिया था. इस पर सिब्बल के खिलाफ अवमानना कार्यवाही शुरू करने के लिए एक वकील द्वारा भारत के अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल को पत्र लिखा गया था, लेकिन एजी ने यह कहते हुए इनकार किया था कि उनके बयानों का इरादा संस्था में लोगों का विश्वास हिलाना नहीं था.
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